Wednesday, September 30, 2015

सबसे बड़ा झूठ : दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल...

कल कांग्रेसी प्रवक्ता एक न्यूजचैनल पर दावा कर रहा था कि कांग्रेस ने देश को आज़ाद कराया, इसके लिए नेहरू ने 18 साल जेल काटी... वह प्रवक्ता कोई अपवाद नहीं था. पिछले 67 सालों से कांग्रेस देश को यही झूठी घुट्टी पिला रही है. यह निर्लज्ज कांग्रेसी दावा कितना झूठा-धूर्ततापूर्ण और शर्मनाक है... यह शर्मनाक सच आप भी जानिये...
1947 में जिस समय भारत को स्वतंत्रता मिली उस समय गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन पूरी तरह मर चुका था और उसकी ऐसी कोई प्रासंगिकता या भूमिका नहीं रह गयी थी जिसने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया हो. इसके बजाय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज़ की गतिविधियों/ कार्रवाइयों, जिसने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों को बुरी तरह हिला दिया था तथा तत्कालीन भारतीय नौसेना के बगावती तेवरों ने, ब्रिटिश शासकों को यह अहसास करा दिया था कि, अब उनके दिन पूरे हो चुके हैं.
यह स्वीकारोक्ति किसी ऐरे-गैरे नत्थू खैरे की नहीं बल्कि 1947 में ब्रिटेन की जिस सरकार ने, ब्रिटिश संसद में भारत को आज़ादी देने का फैसला किया था, उस ब्रिटिश सरकार के मुखिया, ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली की है. भारत में एटली की इस स्वीकारोक्ति के गवाह कलकत्ता हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और 1956 में बंगाल के गवर्नर रहे पीवी चक्रवर्ती थे (पोस्ट के साथ उसी से संबंधित खबर की कटिंग की फोटो दी है). तत्कालीन ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता को लेकर हुई बहस में भी एटली ने इन्हीं कारणों का उल्लेख विस्तार से किया था.
मित्रों, एटली की बात शत प्रतिशत सही थी. आइये जरा दृष्टि डालिये भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर.
18 अप्रैल 1857 को फांसी पर लटकाये गए मंगल पाण्डेय और ईश्वरी प्रसाद की जोड़ी के अमर बलिदान के साथ प्रारम्भ हुई 90 वर्ष लम्बी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की यात्रा 15 अगस्त 1947 को जब अपने लक्ष्य तक पहुंची तब तक झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, खुदीराम बोस, आज़ाद, भगत, अशफ़ाक़ सरीखे लगभग 7 लाख बलिदानियों को तत्कालीन अंग्रेज़ शासक या तो फांसी पर लटका कर या अपनी बंदूकों से मौत के घाट उतार चुके थे.
इनकी तुलना में 1885 तक यानी 90 में से पहले 28 सालों तक तो कांग्रेस का जन्म ही नहीं हुआ था. 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसी के मुखिया के रूप में हज़ारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मौत के घाट उतरवाने के पुरस्कार में ब्रिटिश सरकार से मिली कलेक्टर की कुर्सी के कारण उत्तरप्रदेश के इटावा जिले का कलक्टर बने ह्यूम ने लगभग एक दर्जन विद्रोही किसानों को इटावा कोतवाली में जिन्दा जलाकर मौत के घाट उतार दिया था.
परिणामस्वरूप आसपास के गाँवों में भड़की विद्रोह की आग ने जब ह्यूम के घर, दफ्तर, कोतवाली को घेरकर आग के हवाले किया, तब ए.ओ. ह्यूम पेटीकोट-साड़ी-ब्लाउज पहनकर, होठों पर लाली, सिर पर सिन्दूर लगाकर एक हिजड़े के भेष में इटावा से भागकर आगरा स्थित ब्रिटिश सैन्य छावनी पहुँच गया था.
उसी ए.ओ.ह्यूम ने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की सलाह और सहायता से 1885 में कांग्रेस का गठन किया था. उसने और उसकी कांग्रेस ने भारत की आज़ादी की लड़ाई कैसे और किस से लड़ी होगी.? यह अनुमान आप स्वयं लगाइये.
मेरी तरफ से इसका एक छोटा सा उदाहरण: कांग्रेस के सबसे बड़े नेता जवाहर लाल नेहरू ने अपने पूरे जीवनकाल में 10 किस्तों में कुल 8 साल 9 महीने 3 दिन जेल काटी, ये जेल यात्रायें भी भाषण देने, निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने. जबरन दुकाने बंद कराने सरीखे अत्यंत साधारण आरोपों में की गयी थीं. नेहरू की जेल यात्राओं का तिथिवार हिसाब किताब कुछ इस तरह है -
01. 6 दिसंबर 1921 को गिरफ्तार हुई. इसके 2 महीने 25 दिन बाद 3 मार्च 1922 को रिहा कर दिया गया.
02. 11 मई 1922 को गिरफ्तार हुई. इसके 8 महीने 15 दिन बाद 26 जनवरी 1923 को रिहा कर दिया गया.
03. 19 सितम्बर 1923 को को गिरफ्तार हुई. इसके 24 दिन बाद 6 अक्टूबर 1923 को रिहा कर दिया गया.
04. 14 अप्रैल 1930 को गिरफ्तार हुई. इसके 5 महीने 27 दिन बाद 11 अक्टूबर 1930 को रिहा कर दिया गया.
05. 19अक्टूबर 1930 को गिरफ्तारी हुई. इसके 3 महीने 7 दिन बाद 26 जनवरी 1931 को रिहा कर दिया गया.
06. 26 दिसंबर 1931 को गिरफ्तारी हुई. इसके एक वर्ष 8 महीने 4 दिन बाद 30 अगस्त 1933 को रिहा कर दिया गया.
07. 12 फ़रवरी 1934 को गिरफ्तारी हुई. इसके 1 वर्ष 8 महीने 24 दिन बाद 4 सितम्बर 1935 को रिहा कर दिया गया.
08. 31 अक्टूबर 1940 को गिरफ्तारी हुई. इसके 1 वर्ष 1 महीने 4 दिन बाद 4 दिसम्बर 1941 को रिहा कर दिया गया.
09. 19 अक्टूबर 1930 को गिरफ्तारी हुई. इसके 3 महीने 7 दिन बाद 26 जनवरी 1931 को रिहा कर दिया गया.
10. 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तारी हुई. इसके 2 वर्ष 10 महीने 16 दिन बाद 25 जून 1945 को रिहा कर दिया गया.
कुल 8 साल 9 महीने 3 दिन. ध्यान रहे कि कल कांग्रेसी प्रवक्ता दावा कर रहा था कि नेहरू 18 साल जेल में बंद रहे.
मित्रों नेहरू से भी बड़े कांग्रेसी नेता मोहनदास करमचंद गांधी के भीषण स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास 6 किस्तों में कुल 5 साल 9 महीने 12 दिन की जेल यात्राओं का है. इसका भी तिथिवार विवरण है मेरे पास. यहाँ लिखूंगा तो पोस्ट और लम्बी हो जाएगी.
अब मेरा सवाल: 1885 से 1947 तक 62 साल में कांग्रेस के शीर्ष 500 नेताओं में से कितने नेताओं को ब्रिटिश शासकों ने सजा-ए-मौत दी? या आजीवन कारावास दी? या कालापानी भेजा? या कितने कांग्रेसी नेताओं ने लगातार 10 साल जेल में गुजारे?
मित्रों इन सवालों का जवाब शून्य ही है.
अतः जिन आज़ाद-भगत-अशफ़ाक़ सरीखों को कांग्रेस ने अपने शासनकाल में स्कूली पाठ्यपुस्तकों में आतंकवादी लिखा है, उन आज़ाद-भगत-अशफ़ाक़ की तरह देश की आज़ादी के लिए फांसी के फंदे पर झूले 7 लाख ज्ञात अज्ञात अमर बलिदानी भारतीय स्वतंत्रता के जिम्मेदार हैं या फिर कांग्रेस उस स्वतंत्रता की इकलौती ठेकेदार है? फैसला आप स्वयं करें...
सम्बंधित समाचार


Saturday, May 2, 2015

मोदी सरकार के खिलाफ शौरी साहब का तिलमिलाना. आग बबूला होना स्वाभाविक ही है.

मोदी सरकार के खिलाफ शौरी साहब का तिलमिलाना. आग बबूला होना स्वाभाविक ही है.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की अबतक की नीति-रीति से महान पत्रकार अरुण शौरी आगबबूला हो गए हैं. उनका मानना है कि मोदी सरकार ने अबतक कोई काम नहीं किया है और केवल सुर्खियां बटोरने में जुटी है. उनका दुःख यह भी है कि भाजपा पर मोदी, अमित शाह और जेटली की तिकड़ी ने कब्ज़ा कर लिया है.
शौरी साहब ने यह सब बातें एक इंटरव्यू में कही हैं जिसका ढिंढोरा कुछ न्यूजचैनली कोठों पर धूमधाम से पीटा जा रहा है.लेकिन वो न्यूजचैनली कोठे यह बताने से परहेज कर रहे हैं कि शौरी साहब के आगबबूला होने का वास्तविक कारण क्या है. 
...तो मित्रों अब जरा यह भी समझ लीजिये कि मोदी सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर शौरी साहब आगबबूला क्यों हो रहे हैं.
अटल जी की एनडीए सरकार में अडवाणी का प्रियपात्र होने के कारण शौरी साहब को एक नया मंत्रालय (विनिवेश मंत्रालय) गठित कर उसका मंत्री बनाया गया था. इस मंत्रालय को काम सौंपा गया था घाटे वाले सरकारी उपक्रमों को बेंचने का. मंत्रालय संभालते ही शौरी साहब ने कमाल दिखाना शुरू किया था. उदयपुर स्थित उस भव्य सरकारी होटल लक्ष्मी विलास पैलेस को केवल 7.52 करोड़ में "दिल्ली" के एक घराने को बेच डाला था जिस लक्ष्मी विलास पैलेस होटल की केवल जमीन मात्र की कीमत उस समय की सरकारी दरों के अनुसार 151 करोड़ रू थी. इसी तरह मुंबई के जिस सेंटूर एयरपोर्ट होटल को शौरी साहब के विभाग ने केवल 83 करोड़ रू में फिर से "दिल्ली" के ही एक मशहूर घराने को बेच दिया था उसे केवल 5 महीने बाद ही उस घराने ने 115 करोड़ में "सहारा" परिवार को बेच कर 32 करोड़ मुनाफा कमा डाला था. तब यह चर्चा खूब गर्म रही थी कि 115 करोड़ की रकम तो कागज़ी सौदे की है. इस रकम के अलावा नंबर दो में 150 करोड़ और वसूले गए हैं. ध्यान रखिये कि शौरी अडवाणी और होटल खरीदने वाले घराने दिल्ली के ही हैं. यह तो केवल दो उदाहरण मात्र हैं. उस दौरान ऐसे उदाहरणों की लम्बी कतार लगा दी थी शौरी जी ने.
2004 में अटल सरकार की सत्ता से विदाई में इस लम्बी कतार ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.
अब आइये आज के मुद्दे पर. मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता संभालने के बाद खुली सरकारी सम्पत्तियों की ऐसी खुली लूट की CBI की फाइलों की चपेट में उदयपुर का लक्ष्मी विलास पैलेस होटल भी आ गया. शौरी साहब के उस समय के सिपहसालार रहे प्रदीप बैजल के खिलाफ 29 अगस्त 2014 को CBI ने केस भी दर्ज़ कर लिया था. उसकी आंच कहां तक पहुंचेगी यह अनुमान आसानी से लगा सकते हैं आप. 2004 से 2014 तक अडवाणी जी सोनिया गांधी के खिलाफ क्यों नहीं आक्रामक हुए.? कालेधन पर सोनिया का नाम लिए जाने पर सोनिया से चिट्ठी लिखकर अडवाणी ने माफ़ी क्यों मांगी थी.? इन सवालों के जवाबों के तार भी उपरोक्त घटनाक्रमों से जुड़े हुए हैं. अब मोदी सरकार आने के बाद मामला "सलट" नहीं पा रहा है अतः मोदी सरकार के खिलाफ शौरी साहब का तिलमिलाना. आग बबूला होना स्वाभाविक ही है.
क्योंकि न्यूजचैनली कोठे पूरा सच नहीं बता रहे हैं इसलिए संक्षेप में यह सच लिखना पढ़ा.