Tuesday, May 24, 2016

'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' कहावत याद दिला रही है कांग्रेस

28 मई को होने वाले एनडीए सरकार के कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन की भागीदारी पर कांग्रेसी खेमा आगबबूला हो गया है.
सीबीआई जांच से घिरकर बाकायदा जेलयात्रा कर चुके लालू और शिबू सोरेन सरीखे कुख्यात राजनेताओं को यूपीए सरकार में कोयला और रेल सरीखे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कैबिनेट मंत्री बनाने का कारनामा अंजाम दे चुकी कांग्रेस की नैतिकता...!!! ईमानदारी...!!! सदाचार...!!! के हवन कुंड की लपटें शेषनाग की तरह इसलिए फुफकार रहीं हैं, क्योंकि तथाकथित 'पनामा लीक्स' में अमिताभ बच्चन का नाम भी उछला था.

कांग्रेस का कहना है कि सरकार के कार्यक्रम में अमिताभ की भागीदारी से एजेंसियों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. ज्ञात रहे कि 'पनामा लीक्स' में नाम उछलने के तत्काल बाद अमिताभ बच्चन सफाई दे चुके हैं. उसके बाद से उनके खिलाफ अभी तक कोई साक्ष्य या तथ्य भी सामने नहीं आया है.
आज जिस आधार और सिद्धांत पर कांग्रेस ने एनडीए के कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन की भागीदारी को लेकर उनके और सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी है वही आधार, वही सिद्धांत कांग्रेस तब क्यों भूल गयी थी, जब उसकी सरकार की विशेष कृपा के कारण जनवरी 2010 में, जिस भारतीय अमेरिकी नागरिक संत सिंह चटवाल को कांग्रेसी सरकार ने पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया था, वो भारत के स्टेट बैंक के साथ फर्जीवाड़ा करके उसके 90 लाख डॉलर हड़प चुका था. जिसके लिए वो बाकायदा गिरफ्तार भी हुआ था और जमानत पर छूटा था.

बाद में कांग्रेसी शासन में सीबीआई ने अज्ञात कारणों से उसके खिलाफ केस ही बंद कर दिया और स्टेट बैंक के 90 लाख डॉलर हमेशा के लिए चटवाल हजम कर गया था. सीबीआई की जांच बंद होने के कुछ महीनों बाद ही कांग्रेसी सरकार ने उसे पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया था. लेकिन उस समय भी चटवाल पर अमेरिका में (जहां का वो निवासी है) वहां उसपर धोखाधड़ी जालसाज़ी के 5 मुकदमे चल रहे थे. उस समय तक चटवाल खुद को एक-दो नहीं बल्कि 4 बार दीवालिया घोषित कर के अमेरिका के कई बैंकों को भी करोड़ों का चूना लगा चुका था. लेकिन इन शर्मनाक और खतरनाक सच्चाइयों से मुंह चुराते हुए देश की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने प्रचंड बेशर्मी के साथ चटवाल को पद्म भूषण से सम्मानित किया था.
चटवाल पर लगे आरोप केवल कोरे आरोप मात्र नहीं थे. उसपर चल रहे उन मुकदमों में से एक मुकदमे में उसे वर्ष 2014 अप्रैल में न्यूयॉर्क की एक अदालत ने 5 साल की जेल और 10 लाख डॉलर (लगभग 6.5 करोड़ रू) के जुर्माने की सज़ा सुनाई थी. सिर्फ चटवाल ही नहीं बल्कि उसी वर्ष 2010 में उसी कांग्रेसी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में दहशत और आतंक का पर्याय समझे जाने वाले गुलाम अहमद मीर उर्फ़ मोमा काना नाम के उस दुर्दांत आतंकवादी को पद्मश्री से सम्मानित किया था जिस पर हत्या, हत्या के प्रयास और अपहरण के दर्जनों केस दर्ज़ थे और जिनसे बचने के लिए उसने आत्मसमर्पण कर दिया था. उस आतंकी को राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री सरीखे सरकारी सम्मान से सम्मानित कराके कांग्रेस की सरकार ने जम्मू कश्मीर के प्रशासनिक तंत्र, वहाँ की पुलिस और वहाँ तैनात देश के सुरक्षाबलों को क्या सन्देश दिया था यह इसी से स्पष्ट हो गया था कि, आतंकी मोमा काना को दिए गए पद्म सम्मान पर जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह और जम्मू कश्मीर के तत्कालीन डीजीपी/गृहसचिव/प्रशासनिक सचिव समेत राज्य का पूरा गृहमंत्रालय स्तब्ध हो गया था और इन लोगों ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि आतंकी मोमा काना का नाम राज्य सरकार ने पद्म श्री के लिए नहीं भेजा था.

अतः देश आज यह जानना चाहता है कि, 2010 में देश की तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जालसाज़ चटवाल को पद्मभूषण सम्मान से तथा आतंकी गुलाम अहमद मीर उर्फ़ मोमा काना को पद्मश्री से सम्मानित करके किसको क्या सन्देश दिया था?
अतः आज जिन और जैसे तर्कों के साथ कांग्रेस देश की मोदी सरकार और महानायक अमिताभ बच्चन के खिलाफ ऊँगली उठा रही है, उन्ही तर्कों की कसौटी पर स्वयं को कसते हुए कांग्रेस को देश से यह बताना चाहिए कि उसने जनवरी 2010 में एक अंतर्राष्ट्रीय जालसाज़ ठग अपराधी को बाकायदा राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के हाथों से देश के तीसरे सबसे बड़े सरकारी सम्मान से सम्मानित क्यों करवाया था.?
ऐसा करके कांग्रेस नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने उस समय देश के साथ साथ सात समुंदर पार अमेरिकी जांच एजेंसियों और वहाँ की पुलिस को क्या सन्देश दिया था?
अतः कुछ अख़बारों में छपी अपुष्ट खबरों के आधार पर आज अमिताभ बच्चन और देश की सरकार पर ऊँगली उठाकर 'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' कहावत याद दिला रही है कांग्रेस...

Monday, May 16, 2016

बेहोश कांग्रेस को अभी होश नहीं आया है...

कांग्रेसी प्रवक्ता ने हिंदुत्व को हिन्दू धर्म के लिए सबसे बड़ा खतरा घोषित करते हुए हिन्दू धर्म को हिंदुत्व से बचाने का आह्वान किया है.

जिस हिंदुत्व की पालकी को स्वामी विवेकानंद और महामना मदनमोहन मालवीय सरीखे महामानवों ने असाधारण आदर के साथ अपने कन्धों पर उठाया हो उस हिंदुत्व को कलंकित, लांछित, अपमानित करने की इस कांग्रेसी मुहिम का आधार क्या है?
हिंदुत्व को हिन्दू धर्म के लिए कांग्रेस क्यों और किसलिए खतरा मानती है? फिलहाल कांग्रेसी प्रवक्ता ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया है.
किन्तु एक हिन्दू धर्मावलम्बी होने के अपने अधिकार के साथ मैं यह बताना चाहता हूँ कि...
हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानता है जिस कांग्रेस की सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा हलफनामा देकर यह औरंगजेबी ऐलान किया था कि, हर हिन्दू के तन मन रोम रोम में जो राम रचे बसे हैं, वास्तव में तो उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है और भगवान् राम का नाम केवल एक कोरी गप्प और अफवाह के सिवाय कुछ नहीं है.
कांग्रेस यह भी समझ ले कि, हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानता है जिस कांग्रेस की सरकार ने अपनी सरकारी पाठ्य पुस्तकों में देवी माँ दुर्गा को शराब के नशे में धुत्त रहनेवाली व्यभिचारिणी वेश्या तथा देवाधिदेव महादेव भगवान् शंकर को शराबी बलात्कारी लिख कर हिन्दू धर्म पर ऐसा भयंकर आक्रमण किया था जैसा कि महमूद गजनवी और नादिर शाह ने भी नहीं किया था.
कांग्रेस यह भी समझ ले कि, हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानता है जिस कांग्रेस की सरकार ने देवी माता सीता, देवी माता सरस्वती और देवी माता दुर्गा के नग्न चित्र बनाकर पूरी दुनिया में उन चित्रों की नुमाइश कर करोड़ों हिन्दुओ की आस्था श्रद्धा विश्वास को आहत और अपमानित करनेवाले एमएफ हुसैन नाम के धूर्त को पद्म भूषण और पद्म विभूषण सरीखे शासकीय नागरिक सम्मानों से सम्मानित किया था.
कांग्रेस यह भी समझ ले कि, हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानता है जिस कांग्रेस की सरकार ने बजरंगबली भगवान हनुमान को दुनिया का पहला आतंकवादी लिखने कहने वाले धूर्त साहित्यकार राजेंद्र यादव को साहित्य अकादमी और पद्मश्री, पद्मभूषण सरीखे सम्मानों से सम्मानित किया था.
कांग्रेस यह भी समझ ले कि, हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानता है जिस कांग्रेस की सरकार ने हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु अपने पुत्रों सहित स्वयं को बलिदान करने वाले परम श्रद्धेय सिक्ख गुरु तेगबहादुर जी को सरकारी पाठ्य पुस्तकों में लुटेरा और आततायी लिखकर हर हिन्दू और सिक्ख धर्मावलम्बी की आस्था श्रद्धा और विश्वास के साथ जघन्य बलात्कार किया था.
कांग्रेस यह भी समझ ले कि, हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानता है जिस कांग्रेस के तथाकथित युवराज राहुल गांधी ने बाकायदा रैली के मंच से माइक पर चिल्ला चिल्ला कर यह फैसला सुनाया था कि, मंदिर जानेवाले लोग लड़कियां छेड़ने का काम करते हैं. कांग्रेस यह भी समझ ले कि, हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा मानता है जिस कांग्रेस की सरकार किसी मुस्लिम आतंकवादी के पकड़े जाने पर यह दुहाई देती थी कि, आतंकवाद या आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता लेकिन उसी कांग्रेस की सरकार का गृहमंत्री संसद और सियासत के मैदान में चिल्ला चिल्ला कर हिन्दू आतंकवाद, भगवा आतंकवाद के किस्से गढ़ता था, तथाकथित युवराज अमेरिकी राजनीतिज्ञ से हिन्दू आतंकवाद को भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बताकर पूरी दुनिया के हिन्दुओं के मुंह पर कालिख पोतने का काम करता था.
अतः कांग्रेस यह भी समझ ले कि, हर हिन्दू धर्मावलम्बी अपने हिन्दू धर्म के लिए हिंदुत्व को नहीं बल्कि उस कांग्रेस को ही सबसे बड़ा खतरा मानता है और मानता रहेगा जो कांग्रेस आज भी हिंदुत्व को खतरा बताकर हिन्दुओं की जीवन पद्धति, जीवन शैली पर अपनी दूषित कलुषित नीति और नीयत का कीचड़ उछालने की कुचेष्टा कर रही है.
कांग्रेस सम्भवतः यह भूल गयी है कि लोकतंत्र में चुनाव परिणाम केवल सत्ता का कर्णधार नहीं चुनते बल्कि जनभावनाओं को भी प्रतिबिंबित करते हैं. मई 2014 और उसके बाद लगभग आधा दर्ज़न विधानसभा चुनाव कांग्रेस की उपरोक्त नीति और नीयत के प्रति जनभावनाओं के प्रचण्ड आक्रोश का प्रतीक बने हैं. किन्तु इसके बावजूद कांग्रेसी प्रवक्ता का हिंदुत्व सम्बन्धी उपरोक्त ताज़ा बयान यही संकेत दे रहा है कि, बेहोश कांग्रेस को अभी होश नहीं आया है.

शराब बंदी के बहाने : कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना...

नितीश कुमार, 1990 में वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बने फिर 1998 से 2004 तक लगातार 6 साल अटल जी की सरकार में मंत्री रहे. 2005 से 2014 तक लगातार 9 साल बिहार के मुख्य्मंत्री रहे. इन 24 वर्षो की समयावधि में दर्ज़नों ऐसे अवसर आये जब नितीश कुमार शराब बंदी लागू करने की मांग और फैसला कर सकते थे. लेकिन ऐसा कुछ करना तो दूर, केंद्रीय मंत्री या फिर बिहार का मुख्य्मंत्री रहते हुए नितीश कुमार ने कभी शराब बंदी का जिक्र तक नहीं किया.
क्या आज से पहले शराब पीकर बिहार में लोग भजन आदि गाया करते थे, पूजापाठ दान पुण्य आदि किया करते थे.?
अतः क्या कारण है कि 1977 में शुरू हुई राजनीतिक यात्रा के 40 साल गुजर जाने के बाद 65 वर्ष की आयु पार करके नितीश कुमार को यह दिव्य ज्ञान हुआ कि शराब बंदी लागू होनी चाहिए वो भी सिर्फ बिहार में नहीं बल्कि पूरे देश में.
इस मुहीम के पीछे नितीश कुमार की समाज सुधार की क्या कैसी और कितनी सोच है?
इस शर्मनाक सच को आजकल बिहार में बेख़ौफ़ हो रहा दुर्दांत अपराधियों का खौफनाक खूनी तांडव बुरी तरह उजागर कर रहा है. अतः शराब बंदी के नितीश कुमार के सियासी राग की जड़ जानने से पहले यह जानना भी आवश्यक है कि दुनिया में कोई ऐसा विकसित या विकासशील देश नहीं है जहां शराब बंदी लागू हो. इसका अपवाद केवल वो कट्टरपंथी धर्मांध इस्लामिक देश मात्र हैं जो कुरान के कानून के अनुसार संचालित होते है और शरीयत को ही अपने देश का संविधान मानते हैं.
नितीश कुमार ने मुस्लिम वोट बैंक की तुष्टिकरण नीति के तहत ही पूरे देश में शराब बंदी का ढोल पीटना शुरू किया है क्योंकि बिहार चुनाव में धर्मांध मुस्लिम वोट बैंक ने लामबंद होकर भाजपा के विरुद्ध और नितीश कुमार के सियासी भानुमति के कुनबे को अपना जबरदस्त समर्थन और मत दिया था.
परिणाम स्वरुप नितीश कुमार ने धुर साम्प्रदायिक आधार पर भारत में कुरान के कानून के अनुसार शराब बंदी का राग अलापना शुरू कर दिया है. 2019 तक नितीश का यह राग कट्टरपंथी धर्मांध मुल्लों के लिए उनके उस सपने की पूर्ति की दिशा में पहला और महत्वपूर्ण निर्णायक कदम बन जायेगा जिसके तहत वो भारत को कुरान के अनुसार इस्लामिक कानून से संचालित होने वाले इस्लामिक मुल्क में परिवर्तित करने का अरमान पाले हुए हैं.
मैं यह बात यूँ ही नहीं कह रहा हूँ. एक आंकड़ा बताता हूँ आपको.
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार देश में शराब के कारण प्रति वर्ष होनेवाली मौतों की संख्या डेढ़ लाख के करीब है जबकि तम्बाकू के कारण होनेवाली मौतों की संख्या दस लाख से अधिक है.
इस दस लाख मौतों के आंकड़े में बिहार हमेशा शीर्ष पर रहता है. लेकिन नितीश कुमार ने तम्बाकू के खिलाफ एक शब्द आज तक नहीं बोला, प्रतिबंध लगाना तो दूर है.
मित्रों सिर्फ तम्बाकू ही नहीं, चिकित्सा विज्ञान के अनुसार जिस गौमांस के खाने से अल्ज़ाइमर हृदयरोग कोलोन कैंसर सरीखे प्राणघातक रोग होते हैं, उस गौमांस पर प्रतिबन्ध की नीति का नितीश कुमार इसलिए जमकर विरोध करते हैं क्योंकि मुस्लिम समुदाय गौमांस खाने का समर्थक है.
ऐसा इसलिए क्योंकि तम्बाकू पर प्रतिबन्ध की सरकारी घोषणा से मुस्लिम वोट बैंक के ठेकेदार, भारत को इस्लामिक मुल्क बनाने को बेचैन कट्टर धर्मांध मुल्लों का कोई तुष्टिकरण नहीं होगा.
अंत में यह उल्लेख आवश्यक है की देश में गुजरात मात्र ऐसा प्रदेश है जहां दशकों पहले मोरारजी देसाई ने शराब बंदी लागू की थी और महात्मा गांधी का गृह प्रदेश होने के कारण शराब बंदी वहा से हटाई नहीं गयी जबकि नरेंद्र मोदी सरीखे सख्त मुख्य्मंत्री के रहते हुए भी शराब बंदी वहाँ कभी सफल नहीं हो सकी और प्रतीकात्मक ही रही. शराब वहाँ हमेशा सहज सुलभ रही है.

Sunday, May 15, 2016

हेमंत करकरे एक शहीद.? बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी...

26 नवंबर 2008 की रात मुंबई की गिरगाव चौपाटी रोड पर रुकी कार के भीतर अत्याधुनिक आग्नेयास्त्रों से लैस वो 2 खूंखार आतंकी बैठे थे जो उस रात मुंबई की सडकों पर खून की होली खेलने निकले थे और पिछले 2 घंटों में ही मुंबई CST सहित कई स्थानों पर लगभग 60-70 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार चुके थे.
गिरगांव चौपाटी पर उस रात उस कार का रास्ता रोक कर खड़ी हुई मुंबई पुलिस की टीम के सदस्य असिस्टेंट सब इन्स्पेक्टर तुकाराम ओम्बले इस स्थिति को अच्छी तरह जान समझ रहे थे. हालांकि उनके हाथ में पिस्तौल या रिवॉल्वर के बजाय केवल लाठी थी और अच्छी या ख़राब बुलेटप्रूफ जैकेट तो छोडिए, उनके बदन पर बुलेटप्रूफ जैकेट ही नहीं थी.
लेकिन इसके बावजूद तुकाराम ओम्बले ने अपने कदम कार की तरफ और अपने हाथ उन आतंकियों के गिरेबान की तरफ बढ़ा दिए थे. जवाब में आतंकियों की बंदूकों से बरसी गोलियों से छलनी होने के बावजूद उन आतंकियों की कार में घुस गए तुकाराम ओम्बले ने उनमें से एक आतंकी का गिरेबान तबतक नहीं छोड़ा था जबतक उसको कार से बाहर घसीटकर सड़क पर पटक नहीं दिया था. इसी आतंकी की पहचान बाद में अजमल कसाब के नाम से हुई थी.
इसी दिन 26/11 की रात, गिरगांव चौपाटी की इस घटना से लगभग 45 मिनट पहले ही आतंकी कसाब और उसके आतंकी साथी से 8 पुलिस कर्मियों की टीम का सामना हो गया था. टीम का नेतृत्व हेमंत करकरे कर रहे थे. करकरे और उनकी टीम के पास तुकाराम ओम्बले की तरह केवल लाठी नहीं बल्कि आटोमैटिक पिस्तौलें और राइफलें थीं. करकरे और उनकी टीम तुकाराम ओम्बले की तरह केवल सूती कपडे की सरकारी वर्दी नहीं पहने थी, बल्कि बाकायदा बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट पहने हुए थे. बुलेट प्रूफ घटिया थी कहने से काम नहीं चलेगा क्योंकि वो जैकेट चाहे जितनी घटिया रही हो किन्तु तुकाराम ओम्बले की सूती कपड़े वाली सरकारी वर्दी से तो हज़ार गुना बेहतर रही होगी.
सिर्फ यही नहीं, गिरगांव चौपाटी पर हुई मुठभेड़ में तो आतंकी कार में, आड़ लेकर बैठे थे जबकि तुकाराम ओम्बले के पास खुली सड़क पर किसी तिनके तक की ओट लेने की गुंजाईश नहीं थी. जबकि करकरे और उनकी टीम की स्थिति इसके ठीक विपरीत थी.
उनके सामने दोनों आतंकी खुली सड़क पर बिना किसी ओट के खड़े थे और करकरे अपनी टीम के साथ कार के भीतर थे इसके बावजूद उन दोनों आतंकियों ने करकरे समेत उनकी पूरी टीम को मौत के घाट उतार दिया था और करकरे व उनकी पूरी टीम मिलकर उन दोनों को मारना तो दूर उनको घायल तक नहीं कर सकी थी.
जबकि निहत्थे तुकाराम ओम्बले ने सीने पर गोलियों की बौछार सहते हुए भी कसाब सरीखे आतंकी को कार के भीतर घुसकर बाहर खींच के सड़क पर पटक दिया था. यह था वो ज़ज़्बा और जूनून जिसने तुकाराम ओम्बले को शहादत के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया.
करकरे और उनकी टीम उन दो आतंकियों का सामना क्यों नहीं कर सकी थी?
इस सवाल का जवाब देश को आज तक नहीं मिला. संकेत देता हूँ कि जवाब क्यों नहीं मिला था.
दरअसल उनके रक्त के नमूने जेजे अस्प्ताल ने इस बात की जांच के लिए फोरेंसिक लैब में भेजे थे कि क्या उन्होंने शराब पी रखी थी?
फोरेंसिक लैब की जांच का परिणाम क्या निकला था.?
देश को आजतक यह भी नहीं बताया गया.
मित्रों यह कोई ऐसा रहस्य नहीं था जिसके उजागर करने से देश की सुरक्षा को कोई खतरा उत्पन्न हो जाता. लेकिन देश को यह नहीं बताया गया.
अतः मेरा स्पष्ट मानना है कि, उस रात यदि वास्तव में कोई शहीद हुआ था, जिसकी शहादत के समक्ष पूरा देश सदा नतमस्तक होता रहेगा, तो वो नाम था तुकाराम ओम्बले का.
जबकि हेमंत करकरे और उनकी टीम की मौत उस रात उन आतंकियों के हाथों मारे गए अन्य नागरिकों की तरह ही हुई एक मौत मात्र थी. क्योंकि शहीद वो कहलाता है जो तुकाराम ओम्बले की तरह सामने खड़े दुश्मन पर जान की परवाह किये बिना टूट पड़ता है. इस आक्रमण में हुई उसकी मौत को देश और दुनिया शहादत कहती है. यदि हेमंत करकरे और उनके साथी शहीद हैं तो फिर उस रात आतंकियों द्वारा मारा गया हर नागरिक शहीद है.
आज यह विवेचन इसलिए क्योंकि कांग्रेसी इशारे पर साध्वी प्रज्ञा के साथ हेमंत करकरे द्वारा किये गए राक्षसी अत्याचारों और फर्ज़ीवाड़े की अदालत और जांच में उडी धज्जियों के बाद उजागर हुई अपनी साज़िशों पर पर्दा डालने के लिए कांग्रेस ने यह विधवा विलाप प्रारम्भ किया है कि साध्वी प्रज्ञा की रिहाई से शहीद हेमंत करकरे और उनकी शहादत का अपमान हुआ है.


मित्रों इस देश में अब शहादत का सर्टिफिकेट वो कांग्रेस नहीं बाँट सकती जो सरकारी किताबों में भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद को आतंकवादी और नेहरू को महान स्वतंत्रता सेनानी लिखकर देश के बच्चों के मन में ज़हर घोलती रही हो.

Tuesday, May 10, 2016

संजो लीजिये इन क्षणों को, कंक्रीट जंगलों में बदलते शहरों में पता नहीं ये कल हो न हो...!!!

अपनी छत, अपने आंगन, अपने द्वार और चौबारे में चिड़ियों की चहचहाट, गिलहरी की भागदौड़ हम सबको आकर्षित करती है, इनके करीब जाने को हर मन उतावला रहता है. दुर्भाग्यवश इनकी संख्या तेजी से कम हो रही है. गर्मी के मौसम में हर साल प्यास के चलते हजारों पक्षियों की मौत हो जाती है.
40 से 45 डिग्री तापमान इन दिनों सिर्फ हमको आपको ही नहीं बल्कि मूक पक्षियों को भी प्यास से बेहाल कर रहा है.
आजकल सूरज की आग में तप रहे कंक्रीट के जंगलों में परिवर्तित हो चुके शहरों में चिड़ियां एक पेड़ से अब दूसरी पेड़ पर नहीं बल्कि छत पर पानी ढूंढती है. आकाश में उड़ती है तो बादलों से अपनी बात कहती है. मॉनसून तक अपना पैगाम ले जाने को कहती है.
मॉनसून आ गया है. यही दिलासा सुबह सुबह चिड़ियों की आवाज को मदमस्त करता है. सुबह के जीवन का संगीत बनता है. थोड़ी मिठास हम भी इसमें घोल सकते हैं. पानी का चंद हिस्सा चिड़ियों के लिए छत पर रख सकते हैं. अपनी छत/आँगन/चौबारे/चहारदीवारी पर चिड़ियों, गिलहरियों की धमाचौकड़ी अनिवार्य व नियमित कर सकते हैं.
गर्मी का मौसम चल रहा है, ऐसे में बढ़ते तापमान से निजात दिलाने का सबसे सरल साधन पानी है. पानी न सिर्फ इंसानों के लिए ज़रूरी है, बल्कि पक्षियों के लिए भी बेहद ज़रूरी है.
अपने घरों के आंगन छतों और चहारदीवारियों पर कुछ जलपात्र और अन्न के कुछ कण रखकर हम इन मूक पक्षियों की बड़ी सहायता कर सकते हैं. मित्रों ऐसा करके हम मात्र इनकी सहायता ही नहीं करते बल्कि स्वयं के लिए कुछ सुखद क्षणों की पूँजी भी संचित करते हैं.
अपने घर की चहारदीवारी पर रखे गए जलपात्र व अन्नपात्र पर चिड़ियों और गिलहरियों की रोजाना की अठखेलियां देखना सुखद अनुभूति से सराबोर कर देता है.
आज सवेरे मैंने ऐसे ही कुछ क्षणों को अपने मोबाइल के कैमरे में संजो लिया.

Monday, May 9, 2016

मोदी की नीतियों को देश के लिए घातक घोषित करने वाले अरुण शौरी से कुछ सवाल

एक न्यूज चैनल पर बैठकर अरूण शौरी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मनमानी करने वाला तानाशाह घोषित कर के उनकी नीतियों को देश के लिए खतरनाक घातक और देश को तबाह कर देने वाली घोषित कर रहे थे.
अतः अरूण शौरी को इन सवालों का जवाब देना चाहिए.
देश का जो कोयला सत्ता के दलालों द्वारा मुफ्त में लूट लिया जाता था उस कोयले से अब देश के खजाने को लगभग 30-35 लाख करोड़ रू मिलेंगे.
अरुण शौरी, क्या यह देश के लिए खतरनाक और घातक नीति का प्रतिफल है?
देश में लगभग 4.5 करोड़ फ़र्ज़ी रसोई गैस कनेक्शन पकड़ कर उन्हें खत्म कर रसोई गैस सिलिंडर सब्सिडी के नाम पर सत्ता के दलालों द्वारा प्रतिवर्ष होनेवाली लगभग 19 हज़ार करोड़ की लूट नरेंद्र मोदी की केवल एक रणनीति के कारण खत्म हो गयी.
अरुण शौरी, क्या यह नरेंद्र मोदी की देश के लिए खतरनाक और घातक नीति का प्रतिफल है?
जो बीएसएनएल 2 साल पहले तक 10 हज़ार करोड़ के घाटे में था आज वो उस घाटे की पूर्ति करके लगभग 1 हज़ार करोड़ के लाभ में है.
अरुण शौरी, क्या यह नरेंद्र मोदी की देश के लिए खतरनाक और घातक नीति का प्रतिफल है?
जो रॉफेल युद्धक विमान का सौदा भ्रष्ट यूपीए सरकार ने 6 साल पहले 80 हज़ार करोड़ रू में तय कर डाला था, मोदी सरकार उसे घटाकर 59 हज़ार करोड़ पर ले आई है और अभी इसको 55 हज़ार करोड़ तक लाने में जुटी हुई है.
अरुण शौरी, क्या यह नरेंद्र मोदी की देश के लिए खतरनाक और घातक नीति का प्रतिफल है?
जो एयरइंडिया पिछले 3 दशकों से लगातार प्रतिवर्ष हज़ारों करोड़ के घाटे में रहती थी वो आज दशकों बाद ऑपरेशनल प्रॉफिट के सुखद दौर में लौटी है.
अरुण शौरी, क्या यह नरेंद्र मोदी की देश के लिए खतरनाक और घातक नीति का प्रतिफल है?
पिछले 2 वर्षों में औसतन प्रतिवर्ष जितनी लम्बी नयी रेलवे लाइन बिछीं और नए राजमार्ग बने और जितनी बिजली का उत्पादन हुआ उतना अधिक आज़ादी के बाद से अबतक कभी नहीं हुआ था?
अरुण शौरी, क्या यह नरेंद्र मोदी की देश के लिए खतरनाक और घातक नीति का प्रतिफल है?
यह तो कुछ उदाहरण मात्र हैं अरुण शौरी, ऐसे उदाहरणों की सूची बहुत लम्बी है.
यह अरुण शौरी पहली बार ऐसा नहीं कर रहे है.
पिछले वर्ष मई में भी इन्होने यही सब कहा था. तब आज से साल भर पहले ही मैंने लिखा था कि अरुण शौरी क्यों नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगल अरे हैं. इस लिंक को क्लिक करके आप भी जानिये उस सच को.
http://jansadan.blogspot.in/2015/05/blog-post.html