Thursday, November 24, 2016

पहले संगठित लूट के मायने मालूम करो मनमोहन फिर बोलो

राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा आक्रमण करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 500 और 1000 के नोटों पर रोक के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय को संगठित लूट बताते हुए चेतावनी दी कि नोटबंदी के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास हिला है. इस कदम से आरबीआई एक्सपोज हुआ है.  राज्यसभा में मनमोहन सिंह के इस बयान ने देश के जख्मों पर तेज़ाब मलने का काम किया है...
प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुए लगभग 12 लाख करोड़ के 2G CWG कोयला घोटालों सरीखी अनेकों बहुप्रचारित संगठित लूट का जिक्र यहां आवश्यक नहीं क्योंकि जनता के धन की इन बेशर्म बर्बर संगठित लूटों से पूरा देश भलीभांति परिचित है. अतः देश की संगठित लूट के उन प्रकरणों को मनमोहन सिंह को याद कराना आवश्यक है जिसके जिम्मेदार वो स्वयम थे.
देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संभवतः संगठित लूट के मायने नहीं मालूम हैं. क्योंकि यदि उनको इसके मायने मालूम होते तो कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 के नोटों पर रोक को वो संगठित लूट नहीं कहते. अतः जनता के धन की संगठित लूट किसे कहते हैं और वो क्या और कैसे होती है.? मनमोहन सिंह को यह याद दिलाना और बताना आज आवश्यक हो गया है. 
इस देश में सरकार की आँख कान नाक के नीचे हुई बैंकों में जमा जनता के धन की सबसे बड़ी और संगठित लूट तब हुई थी जब मनमोहन सिंह इस देश के वित्तमंत्री हुआ करते थे और बैंकों में जमा जनता के धन की रक्षा की जिम्मेदारी उनकी थी. मनमोहन सिंह भले ही भूल गए हों या भूलने का पाखण्ड करते हों लेकिन देश उस जघन्य लूट को नहीं भूला है जब कुछ सट्टेबाजों के गिरोह ने हर्षद मेहता नाम के अपने सट्टेबाज सरगना के साथ मिलकर 1992 में देश के बैंकों में जमा गरीब जनता की गाढ़ी कमाई के लगभग 36 हज़ार करोड़ रू लूट लिए थे. उन सट्टेबाजों की लूट का सिलसिला यहीं नहीं थमा था. बैंकों से लूटी गयी उस रकम को हथियार बनाकर उन सट्टेबाज लुटेरों ने देश के शेयर बाजार में इतनी भयंकर लूटपाट की थी कि शेयर बाजार इतनी बुरी तरह ढहा था कि जनता के लाखों करोड़ रू रातोंरात मिटटी में मिल गए थे और देश के सैकड़ों लोगों ने आत्महत्या करके मौत को गले लगा लिया था. मनमोहन सिंह और उनकी कांग्रेसी फौज को यदि मालूम नहीं हो तो बताना चाहूंगा कि देश के वित्तमंत्री की हैसियत से शेयर बाजार पर निगरानी की जिम्मेदारी भी मनमोहन सिंह की ही थी.
मनोमोहन सिंह ने कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 के नोटों पर रोक के नतीजे खतरनाक होने की चेतावनी देते हुए जब यह कहा कि इस रोक से बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास हिला है. इस कदम से आरबीआई एक्सपोज हुआ है. तो उनके इस बयान पर याद आया कि 2009 में एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में देश में 1,69,000 करोड़ रू के जाली नोटों के चलन में होने की बात उजागर की थी. उसी कालखण्ड में देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर जब सीबीआई ने छापा डाला था तो उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले थे. दरअसल उस समय सीबीआई ने जब नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा था कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. लेकिन इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया था. मनमोहन सिंह को क्या यह याद नहीं कि उस समय देश की सरकार के प्रधानमंत्री वो स्वयम थे. लेकिन उस सरकार ने देश और देश की संसद को अँधेरे में रखा था. सिर्फ यही नहीं सीबीआई की जाँच में यह भी उजागर हुआ था कि जिस इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.की कम्पनी डे-ला-रू को मनमोहन सिंह की सरकार ने भारतीय करेंसी छापने का ठेका दे रखा था वही डे-ला-रू पाकिस्तान की आईएसआई के लिए नकली भारतीय करेंसी छापने का भी धंधा कर रही थी.? लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार ने यह शर्मनाक सच्चाई भी देश और देश की संसद से छुपाने का कुकृत्य किया था. जबकि उस समय यह खबरें देश और दुनिया की मीडिया में उजागर हो गयी थीं. आईएसआई के लिए नकली भारतीय करेंसी छापने का जघन्य अपराध कनेवाले इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.के खिलाफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने क्या और कैसी कानूनी कार्रवाई कब की थी.? देश को यह आजतक मालूम नहीं हुआ है.
अतः मनमोहन सिंह को यह भी याद दिलाना बताना आवश्यक है कि कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 करोड़ के नोटों पर रोक के कारण देश के बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास नहीं हिलता है ना ही आरबीआई एक्सपोज होता है. इसके बजाय जब देश को यह पता चलता है कि जो आदमी हमारी असली करेंसी छापता है वही आदमी आईएसआई के लिए हमारी नकली करेंसी भी छाप रहा है तथा सीबीआई के छापे में आरबीआई के वाल्ट से भी नकली नोट निकल रहे हैं तब देश के बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास बुरी तरह हिलता है और आरबीआई की साख तार तार होती है. वो बुरी तरह एक्सपोज भी होता है.
देश मनमोहन सिंह और कांग्रेसी फौज को आज यह भी याद दिलाना चाहता है कि आईएसआई के साथ मिलकर एक इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.जब देश की अर्थव्यवस्था की संगठित लूट कर के उसके साथ जघन्य बलात्कार कर रहा था तब इस देश की बागडोर मनमोहन सिंह के हाथ में ही थी.
अतः राज्यसभा में मनमोहन सिंह जब 500 और 1000 के नोटों पर रोक के नरेंद्र मोदी के फैसले को संगठित लूट बता रहे थे तब संभवतः अपने गिरेबान में झांकना भूल गए थे. क्योंकि यदि उन्होंने ऐसा किया होता तो उन्हें यह मालूम हो जाता कि इस देश की अबतक की सबसे बड़ी संगठित लूट का जिम्मेदार 500 और 1000 के नोटों पर रोक का नरेंद्र मोदी का फैसला नहीं बल्कि देश के वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल है.




Friday, November 18, 2016

देश के मुख्य न्यायाधीश को बैंकों के आगे लाइन में खड़ी जनता दंगाई क्यों लगती है.?

देश में 500 और 1000 के नोटों पर लगी रोक के 11 दिन बाद देश के मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर ने टिप्पणी की है कि, "लोगों को हाईकोर्ट जाने का अधिकार है. अगर हाईकोर्ट के दरवाज़े बन्द किये गए तो समस्या की गंभीरता के बारे में कैसे पता चलेगा. लोग परेशान हैं. गुस्से में हैं. स्थिति गंभीर है. ऐसे दंगा होने लगेगा."

मुख्य न्यायाधीश महोदय की उपरोक्त टिप्पणी का देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह तो निकट भविष्य में ज्ञात हो ही जायेगा किन्तु उनकी टिप्पणी के बाद से कांग्रेस के नेताओं और अरविन्द केजरीवाल तथा ममता बनर्जी सरीखे नेताओं के हौसले बुलन्द नज़र आ रहे हैं. इन नेताओं ने देश में 500 और 1000 के नोटों पर रोक के खिलाफ देश में हिंसा भड़कने फैलने की चेतावनियां-धमकियां देना प्रारम्भ कर दिया है.
अतः इस स्थिति ने मेरे मन में कुछ प्रश्नों को जन्म दिया है. मेरे वो सवाल यह हैं...

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, जिस दिन देश में 500 और 1000 के नोटों पर रोक लगी थी उस दिन स्थिति जितनी गंभीर थी उतनी गंभीर उस रोक के 11 दिन बाद तो नहीं ही है. उन 11 दिनों में देश में कहीं कोई दंगा होना तो दूर छोटी मोटी हिंसा या झड़पों का भी कोई समाचार भी देखा सुना नहीं गया. ऐसे में उस रोक के 11 दिन बाद आपको यह क्यों और कैसे प्रतीत हुआ कि नोटों पर लगी रोक के कारण देश में स्थिति इतनी गम्भीर है कि देशव्यापी दंगे हो सकते हैं.?

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश की अदालतों में 2 करोड़ 70 लाख मुक़दमे लम्बित हैं. इस स्थिति का अर्थ यह है कि देश में न्याय पाने की कतार में लगभग 6 से 7 करोड़ लोग खड़े हुए हैं. यह स्थिति एक दो दिन या दो-चार हफ्तों की नहीं है. न्याय पाने के लिए वर्षों से कतार में खड़े लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन न्याय पाने की लम्बी कतार में वर्षों से खड़े इस देश के आम आदमी ने इस बात पर कभी कोई दंगा नहीं किया है. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए केवल कुछ घण्टे लाइन में खड़े होने के कारण लोग दंगा करने लगेंगे.? 

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, आपने टिप्पणी की है कि यदि नोट पर रोक के खिलाफ लोगों को हाईकोर्ट जाने से रोका तो दंगे हो जायेंगे.अतः सबसे पहले बात आपके इसी तर्क की. माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी इस देश में हत्या के केस में केवल 39.1% तथा बलात्कार के केस में केवल 28% लोगों को सजा मिलती है. अर्थात लगभग 60.9% हत्यारों और 72% बलात्कारियों को कोई सजा नहीं मिलती. कमोबेश यही स्थिति अन्य संगीन अपराध के लिए मिलने वाली सज़ाओं की भी है. अर्थात ऐसे जघन्य अपराध के मामलों में 60 से 70 प्रतिशत जनता को न्याय नहीं मिल पाता. लेकिन इस देश का आम आदमी तब भी कोई दंगा नहीं करता. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?
माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में 1991-92 में हुए शेयर घोटाले में सीधे देश की जनता की जेब से लगभग 36 हज़ार करोड़ रू लूट लिए गए थे (आज उस राशि का मूल्य लगभग साढ़े 3 लाख से 4 लाख हज़ार करोड़ होगा). दिनदहाड़े सरकार की आँख नाक कान के सामने जनता से हुई उस जघन्य लूट का उस समय शिकार बने 200 से अधिक लोगों ने आत्महत्या कर ली थी. जनता को वह राशि आजतक वापस नहीं मिली. उस घोटाले के जिम्मेदार लोगों को आजतक सजा नहीं मिली. आज 24 वर्ष बाद भी जनता को उसका वह डूबा हुआ पैसा और न्याय नहीं मिला है. लेकिन इस देश के आम आदमी ने तब भी कोई दंगा नहीं किया. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में जहरीली गैस से लगभग 3900 लोगों को कुछ घण्टों में मौत के घाट उतारने, लाखों लोगों को ज़िन्दगी भर के लिए बीमार करने के जिम्मेदार वॉरेन एंडरसन को सरकारी संरक्षण में देश से भगाया गया था, आजतक किसी को कोई सजा नहीं मिली तब भी इस देश के आम आदमी ने कोई दंगा नहीं किया... अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में केवल 72 घण्टों में लगभग साढ़े तीन हज़ार सिक्खों को देश के सत्ताधारी दल के नेताओं-गुंडों ने देश की राजधानी में सुप्रीमकोर्ट की नाक के नीचे सरेआम कत्ल किया. 
आज 32 वर्ष बाद भी उस कत्लेआम के जिम्मेदार किसी नेता गुंडे को सजा नहीं मिली है लेकिन इस देश के आम आदमी ने कोई दंगा नहीं किया. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश के एक हिस्से कश्मीर से साढ़े तीन लाख हिंदुओं का घरद्वार सम्पत्ति लूटकर उनके घरों से रातों रात भगा दिया गया ऐसा करने वाले किसी गुंडे को आजतक सजा नहीं मिली. उन साढ़े तीन लाख हिंदुओं को ना तो उनका घर जमीन इज़्ज़त वापस मिली ना ही उनको न्याय मिला लेकिन इस देश के आम आदमी ने कोई दंगा नहीं किया. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.? 

मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में सरकारों की 70 साल से जारी आपराधिक लापरवाही और निकम्मेपन के कारण रोजाना लगभग 3650 बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं. इनमे से 50% बच्चे तो जन्म के केवल 28 दिन के भीतर ही काल का ग्रास बन जाते हैं लेकिन इस देश की जनता या इस देश का आम आदमी इसके लिए कोई दंगा नहीं करता. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश की जनता या आम आदमी इतना स्वार्थी, संकीर्ण और संकुचित मानसिकता वाला वह दंगाई नहीं है कि जो देशहित के लिए हो रहे किसी कार्य के लिए कुछ घण्टों कतार में नहीं खड़ा हो सके. 
मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में दंगों की आग का इतिहास देशहित में किये गए जनता के किसी योगदान के कारण नहीं लिखा गया है. इसके बजाय उन दंगों का कारण कट्टर धर्मांध साम्प्रदायिक सोच के गर्भ से जन्म लेता रहा है. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

Sunday, November 13, 2016

पहचानिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आस्तीन के सांप को

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज गोवा का भाषण देश के इतिहास के पन्नों का सर्वाधिक स्वर्णिम पृष्ठ बनकर दर्ज हो चुका है. आज उन्होंने देश को आगाह भी कर दिया है कि वो लोग मुझे ज़िंदा नहीं रहने देंगे...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह बात हम आप सरीखी देश की जनता के लिए अत्यंत गम्भीर सन्देश और चेतावनी है.... इससे हमारा आपका दायित्व और बढ़ गया है कि हम उन लोगों को पहचाने जो "मोदी समर्थक" की खाल ओढ़कर देश को अबतक भ्रमित किये हुए थे और अवसर खोज रहे थे अपना क्षुद्र स्वार्थ सिद्ध करने का. किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी उम्मीदों पर वज्राघात कर दिया हैं. ऐसे लोग कालेधन पर प्रधानमंत्री के जानलेवा प्रहार का शिकार बनने के बाद अब आस्तीन में छुपे जहरीले सांप की तरह उन्हें डसने में जुट गए हैं. इनदिनों "आजतक" NDTV सरीखे न्यूजचैनलों द्वारा देश में फैलाये जा रहे मोदी विरोधी जहर से तो हम सब परिचित हैं किन्तु आज से मैं शुरुआत कर रहा हूँ उन आस्तीन में छुपे साँपों का चेहरा उजागर करने की जो कालेधन के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ज़ंग से तिलमिला कर उन्हें डसने की कोशिश कर रहे हैं. 
अब मैं अपनी बात प्रारम्भ करता हूँ.... अगर दिल्ली के पॉश इलाके में राजदीप सरदेसाई के तथाकथित 56 करोड़ के मकान पर सोशल मीडिया सवाल पूछ सकता है और उसका वह सवाल देशव्यापी सुनामी बन सकता है, तो फिर एक कमरे के घर में अपने 8 भाई बहनों के साथ जीवन गुजारने के बाद 1990 के शुरुआती दिनों में एक सामान्य साधारण पत्रकार के रूप में अपना पेशेवर जीवन प्रारम्भ करनेवाला रजत शर्मा केवल 10-12  वर्षों बाद ही सैकड़ों करोड़ के न्यूजचैनल का मालिक कैसे बन गया.? यह सवाल भी सोशल मीडिया पर क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए.? और उस सवाल को सुनामी क्यों नहीं बन जाना चाहिए.?
आज यह सवाल इसलिए क्योंकि 8 नवम्बर को देश में कालेधन के खिलाफ प्रारम्भ हुआ ऐतिहासिक युद्ध इस देश का हर वो नागरिक लड़ रहा है जो सैकड़ों लोगों की लम्बी लम्बी लाइनों में घण्टों खड़ा हो रहा है लेकिन कह रहा है कि यह फैसला बहुत बढ़िया है और बहुत जरूरी था. लेकिन इस रजत शर्मा का न्यूजचैनल और यह स्वयम भी उस नागरिक के मनोबल को ध्वस्त करने तथा देश में भय आशंका मातम का वातावरण फ़ैलाने के लिए ऐड़ीचोटी का जोर किस तरह लगा रहा है.इसका एक उदाहरण देता हूं.
सरकार के फैसले से दिल्ली में 40 हज़ार शादियों के मातम में बदल जाने का राग अलाप कर इसी के न्यूजचैनल ने अत्यंत शातिर और सुनियोजित तरीके से सरकार के फैसले के खिलाफ जनता को भड़काने की मुहिम प्रारम्भ की थी. मैं यह बात यूं ही नहीं कह रहा, 9 नवम्बर को इसका एक संवाददाता एक व्यक्ति को अपने कैमरे के सामने बैठाये हुए था. उस व्यक्ति ने बताना शुरू किया था कि मैंने पिछले हफ्ते ही बैंक से 7 लाख रू निकाले थे क्योंकि 2 दिन बाद मेरी बेटी की शादी है लेकिन सरकार के इस फैसले से मैं तो बरबाद हो गया, मैं लुट गया, लगता है मुझे कुछ हो जाएगा.... इतना कह कर वो व्यक्ति अपना सीना पकड़कर मातमी मुद्रा में ऐसे झूमने लगा था कि मानो उसको हार्ट अटैक पड़ गया है, उस व्यक्ति के चुप होते ही रजत शर्मा के न्यूजचैनल का संवादददाता उस व्यक्ति से भी ज्यादा मातमी मुद्रा में उस परिवार की स्थिति का परिचय इस अंदाज़ में देने लगा था मानो वह परिवार तो तबाह ही हो गया है. संवाददाता की इस न्यूजचैनली नौटँकी के बाद स्क्रीन पर रजतशर्मा स्वयम चमका था और रूंधी हुई भारी आवाज़ में यह बताने लगा था कि दिल्ली के उन सभी 40 हज़ार घरों की यही स्थिति है जहां शादियां होनेवाली हैं. इसके बताने का अंदाज़ कुछ ऐसा था मानो उन घरों पर कोई समस्या नहीं आयी हो बल्कि उन घर्रों में मौत मंडरा रही हो...
मित्रों अब समझिये इस खेल को... वो आदमी जो बैंक से 7 लाख निकाल चुका था क्या वो उसको वापस बैंक में जमा नहीं कर सकता था.? दिल्ली जैसे शहर में गहने कपड़े फर्नीचर या कोई भी अन्य उपयोगी सामान बेचनेवाली ऐसी दुकानों की कोई कमी है जो ATM डेबिट कॉर्ड स्वैप करके भुगतान लेती हों.? दिल्ली की हर प्रमुख सड़क पर ऐसी दर्जनों दुकाने मिल जाएँगी. रही बात केटरिंग और टेंटवाले की तो सामान्यतः इसका जिम्मा किसी एकदम अनजान के बजाय किसी परिचित या फिर अपने किसी परिचित के जानने वाले केटरिंग टेंटवालों को ही सौंपा जाता है. जो आपसी समझबूझ से एक-दो दिन आगेपीछे पैसा लेने को तैयार हो जाता है.
लेकिन फिर भी यदि वह नहीं मानता तो अपनी नकदी बैंक में जमा करा के उसको चेक दिया जा सकता है, वर्तमान कोर बैंकिंग के दौर में लोकल चेक की राशि उस केटरिंग/टेंट वाले के खाते में दो दिन में जमा हो जाएगी.
लेकिन रजत शर्मा या उसके संवाददाताओं की टीम इन सब सच्चाइयों को बताने के बजाय उसको छुपाते हुए अपने न्यूजचैनल के माध्यम से सिर्फ और सिर्फ देश की जनता को भय आशंका हंगामे की गहरी अँधेरी खाई में धकेल कर देश में नरेंद्र मोदी के खिलाफ जनाक्रोश की आग भड़का कर देश को दंगे फसाद के दावानल में झोंकने की तैयारी में व्यस्त हैं.
ध्यान रहे कि... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल ही जापान में कहा था कि... कुछ लोग जनता के मुंह में ऊँगली डालकर उससे बुलवा रहे हैं कि... बोलो... नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलो

अतः निश्चित ही इसबात की जाँच होनी चाहिए कि इस रजत शर्मा के पास कितना कालाधन है और कालेधन वाले उन माफियायों से इसके क्या और कितने करीबी सम्बन्ध हैं जिनके बारे में स्वयम नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि... वो मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे.....

Saturday, November 5, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले कमांडो जवानों के लिए भी सजा ए मौत की मांग कर सकता है मार्कण्डेय काटजू...?

"भोपाल के ईंटखेड़ी में हुई मुठभेड़ पूरी तरह फ़र्ज़ी है तथा इस मुठभेड़ को अंजाम देनेवाले पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार कर के उन्हें सज़ा ए मौत दे देनी चाहिए."
4 नवम्बर की शाम एक न्यूजचैनल की बहस में अपना उपरोक्त फतवा जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मार्कण्डेय काटजू यहीं नहीं रुके थे. 
मप्र सरकार द्वारा हाईकोर्ट के जज से मुठभेड़ की न्यायिक जाँच कराने के निर्णय को काटजू ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि मैं 35 साल तक जज रहा हूँ और मैंने देखा है कि ज्यादातर जज रिटायरमेंट के बाद पद प्राप्ति के लोभ में कानून के बजाय उस समय की सरकारों के अनुसार कार्य करते हैं. काटजू ने इस सन्दर्भ में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके जस्टिस रंगनाथ मिश्र का नाम लेते हुए उनपर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप भी लगा डाला था. 
लेकिन यहां पहले बात मार्कण्डेय काटजू के उस फतवे की जिसमे उन्होंने भोपाल में मारे गए 8 आतंकवादियो की मुठभेड़ को फ़र्ज़ी घोषित कर पुलिसकर्मियों को सजा ए मौत देने का फरमान सुना दिया. 

काटजू का कहना है कि जो मारे गए उनको किसी कोर्ट ने दोषी करार नहीं दिया था. काटजू को शायद यह मालूम नहीं है कि ओसामा बिन लादेन के समर्थक भी यही तर्क देते हैं कि उसे किसी कोर्ट ने दोषी करार नहीं दिया था.

लेकिन दुर्दांत आतंकवादियों के सन्दर्भ में काटजू का तर्क अत्यंत खतरनाक है. मार्कण्डेय काटजू के इस तर्क के अनुसार तो 29 सितम्बर की रात अपने प्राणों की बाजी लगाकर पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करनेवाले भारतीय सेना के जांबाज कमांडों को भी पुरस्कार देने के बजाय सजा ए मौत देनी पड़ेगी.? क्योंकि पाकिस्तान में घुसकर उन्होंने जिन आतंकवादियों को मारा था वो तो भारत में आये भी नहीं थे, बल्कि भारत में आने की तैयारी कर रहे थे. अर्थात उन्होंने तो कोई अपराध ही नहीं किया था इसलिए भारत की किसी कोर्ट द्वारा उन्हें दोषी करार दिए जाने का तो कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता. अतः मार्कण्डेय काटजू के तर्क के अनुसार तो भारत की सरकार को उन वीर कमांडो सैनिकों को गिरफ्तार कर उनपर निर्दोषों की हत्या का मुकदमा चलाकर उन्हें सज़ा ए मौत दे देनी चाहिए..?

काटजू के तर्कों से निकलने वाले देशघाती ज़हर का प्रतीक और प्रतिनिधि है उपरोक्त सवाल.? 
यह सवाल साक्ष्य हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के बहाने कानून की आड़ की तलवार से राष्ट्रीय एकता अखण्डता और संप्रभुता पर प्रहार की कितनी खतरनाक जमीन तैयार कर रहे हैं काटजू के कुटिल तर्क.

अब बात काटजू के उस आरोप की जिसकी आड़ लेकर उन्होंने मुठभेड़ की न्यायिक जांच के फैसले पर ही कीचड़ उछालने का काम किया है. 
दरअसल काटजू बहुत शातिर दिमाग हैं, इसीलिए उन्होंने ऐसे बहुत से भ्रष्ट जजों को जानने का दावा तो किया लेकिन नाम केवल उन रंगनाथ मिश्र का लिया जिनका देहांत सितम्बर 2012 में हो गया था और जो मार्कण्डेय काटजू के उपरोक्त सनसनीखेज आरोप का जवाब देने के लिए अब इस दुनिया में ही नहीं है. क्योंकि मार्कण्डेय काटजू का तो दावा है कि वो ऐसे बहुत से जजों और उनके कारनामों को जानते हैं, अतः काटजू को देश को कुछ उन जजों का नाम बताने का साहस दिखाना चाहिए जो अभी जीवित हैं और काटजू के आरोपों का जवाब दे सकते हैं. इससे देश का बहुत भला होगा क्योंकि उसके सामने दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा.

हालांकि ऐसे आरोप के बाद मार्कण्डेय काटजू ने स्वयम को ही अपने उपरोक्त गम्भीर आरोप के कठघरे में खड़ा कर दिया है. उपरोक्त आरोप लगाते समय मार्कण्डेय काटजू संभवतः यह भूल गए कि उनके रिटायरमेंट के बाद 2011 में उनको प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन का अत्यंत सम्मानित ताकतवर पद दिया गया था. यह पद यूं ही नहीं मिल जाता है. इस पद के लिए सामान्यतः सुप्रीमकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज का ही चयन किया जाता है. काउंसिल के चेयरमैन का चयन जो तीन सदस्यीय समिति करती है उसके दो सदस्य लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति होते हैं, अर्थात चयन समिति में बहुमत सरकार का ही होता है. सरकार जिसे चाहती है वही चेयरमैन बनता है. 2011 में जब काटजू चेयरमैन बने थे तब लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार थीं और राज्यसभा के सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी थे. इन दोनों की राजनीतिक पृष्ठभूमि और कांग्रेस से निकटता का परिचय देना व्यर्थ ही होगा. सारा देश यह सच जानता है. अतः जवाब तो अब मार्कण्डेय काटजू को देना चाहिए कि पूरे देश की मीडिया पर नज़र और नियंत्रण रखनेवाली प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन सरीखे शक्तिशाली पद के लिए काटजू उस यूपीए-2 सरकार की पहली पसंद कैसे और क्यों बन गए थे जिस यूपीए सरकार पर लगे दसियों लाख करोड़ के घोटालों के संगीन आरोप हैं, जिसके भ्रष्ट कारनामों के उजागर होने का क्रम आज भी थम नहीं रहा है. इन्हीं कारणों से उसको देश की स्वतन्त्रता के बाद के इतिहास की सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार कहा जाता है. अतः मार्कण्डेय काटजू को अपनी उसी स्वघोषित ईमानदारी से देश को यह बताना चाहिए कि प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन का पद पाने के लिए उन्होंने यूपीए-२ की भ्रष्ट सरकार से कौन सा सौदा किया था.? जिस स्वघोषित ईमानदारी से उन्होंने रंगनाथ मिश्र पर पद पाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार से सौदा करने का आरोप जड़ दिया.

Friday, November 4, 2016

राहुल गाँधी और कांग्रेस एक घोटालेबाज-जालसाज की तुलना अमर शहीद भगत सिंह और भारतीय सेना के शहीद सैनिकों से क्यों कर रहे हैं.?

जनता के हिस्से की सरकारी धनराशि की जालसाज़ी घोटाला करने वाले एक जालसाज़ की तुलना अमर शहीद भगत सिंह तथा देश के लिए शहीद होनेवाले मनदीप सिंह सरीखे भारतीय सेना के अमर शहीद सैनिकों से करके राहुल गांधी और उनकी कांग्रेसी फौज ने अपने क्षुद्र राजनीतिक हथकण्डों के लिए अमर शहीद भगत सिंह तथा भारतीय सेना के शहीद सैनिकों की शहादत को अपमानित लांक्षित करने का घृणित कुकृत्य किया है

...जरा जानिये उस भूतपूर्व सैनिक राम किशन के बारे में जिसे राहुल गांधी शहीद बता रहे हैं और उत्तरप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष राज बब्बर जिसकी तुलना शहीद भगत सिंह से कर रहा है.
लीजिये आप भी परिचित होइए कांग्रेसी "भगत सिंह" के महान जीवन परिचय से...

1. रामकिशन 2004 में सेना से सेवानिवृत्त हो कर स्थानीय राजनीति में उतरे और कांग्रेस के नेताओं से अपनी नज़दीकियों की बदौलत सरपंच बने ।

2. 2004 से 2014 तक कांग्रेस शासन में उनकी पेंशन मात्र 13000 रूपये थी जो कि मोदी सरकार में OROP के लागू होने के बाद 28000 हो गयी थी किन्तु बैंक से सम्बन्धित दस्तावेजों में किसी गड़बड़ी के कारण रामकिशन को 23000 रू ही मिल रहे थे.

3. कांग्रेस से नजदीकी की बदौलत ही रामकिशन को फ़र्ज़ी दावों और दस्तावेजों के सहारे सन् 2005 और 2008 में राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत करवाया गया था, रामकिशन को यह पुरस्कार ODF (Open Defection Free) यानि गांव के हर घर में शौचालय बनवाने और खुले में शौच को पूर्ण रूप से बंद कराने के उसके दावे के कारण मिला ।
4. सन् 2015 में सरकार के पास एक शिकायत आयी कि रामकिशन द्वारा किये गए दावे झूठे हैं और ऐसे में उन से पुरस्कार वापस लिया जाना चाहिए।

5. इस शिकायत पर सरकार ने जब जांच की तो पाया कि रामकिशन के दावे के विपरीत गाँव के महज़ 15% घरों में ही शौचालय बनाये गए थे, जबकि रामकिशन का दावा 100% घरों में शौचालय बनाने का किया गया था जो कि सिर्फ कागज़ों पर ही था और जिस पर हरियाणा की तत्कालीन सरकार ने हकीकत होने की मुहर लगा दी थी.।

6. रामकिशन के खिलाफ जब जांच और आगे बढ़ी थी तो पाया गया कि रामकिशन द्वारा फ़र्ज़ी बिलों का भुगतान किया गया है, इस पर सन् 2016 में सरकार ने रामकिशन को आरोपी बनाया था ।

7. रामकिशन अब सरकार को गुमराह करने, सरकारी खजाने को नुकसान पहुचाने, धोखाधड़ी करने, कूट रचित दस्तावेज़ तैयार करने के आरोपी बन चुके थे, ऐसे में उनका बचना लगभग असंभव था.?

8. रामकिशन ने ये घोटाला अकेले नहीं किया था बल्कि अपने कुछ प्रभावशाली राजनीतिक संरक्षकों और साथियों के साथ मिल कर रामकिशन ने इस घोटाले को अंजाम दिया था.

क्या भूतपूर्व सैनिक को जनता के हिस्से के सरकारी धनराशि की जालसाजी/घोटाला करने की छूट होती है.?
जनता के हिस्से की सरकारी धनराशि की जालसाज़ी घोटाला करने वाले एक जालसाज़ की तुलना अमर शहीद भगत सिंह तथा देश के लिए शहीद होनेवाले मनदीप सिंह सरीखे भारतीय सेना के अमर शहीद सैनिकों से करके राहुल गांधी और उनकी कांग्रेसी फौज ने अपने क्षुद्र राजनीतिक हथकण्डों के लिए अमर शहीद भगत सिंह तथा भारतीय सेना के शहीद सैनिकों की शहादत को अपमानित लांक्षित करने का जो घृणित कुकृत्य किया है उसके लिए देश और उन अमर शहीदों के परिजनों से माफ़ी मांगेंगे राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेस.?

अतः जिन और जैसे हालातों में रामकिशन की आत्महत्या हुई है उसके चलते संदेह की यह सुई स्वतः ही उस दिशा की तरफ संकेत करती है कि, रामकिशन के उन प्रभावशाली समर्थकों साथियों को यह लगा हो कि अब हम सब फंस जायेंगे तो उन्होंने रामकिशन को ये आईडिया सुझाया हो कि तुम ज़हर खाने का नाटक करो, हम सब तुम्हे बचा लेंगे लेकिन ऐसा किया नहीं गया.
अतः अब यह जांच होनी चाहिये कि कौन थे वो लोग जो रामकिशन के साथ थे और फ़ोन पर पीछे से रामकिशन को बता रहे थे कि उसको क्या बोलना है ? वो लोग किस राजनैतिक पार्टी के सदस्य या नेता है ? क्या वो सब भी रामकिशन द्वारा किये गए घोटाले में शामिल थे ?
क्या रामकिशन की हत्या में बड़े राजनेता भी शामिल हैं ?
क्या उन्हीं बड़े राजनेताओं ने अपना नाम बचाने के लिए रामकिशन की बलि दे दी.?

Wednesday, November 2, 2016

राहुल गाँधी और कांग्रेस ने देशवासियों को पागल तथा देश को पागलखाना समझ लिया है क्या....???

राहुल गाँधी द्वारा OROP को लेकर को लेकर की जा रही बयानबाजी तथा इसी सन्दर्भ में कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखी गयी चिट्ठी के बाद आज एक भूतपूर्व सैनिक द्वारा की गयी आत्महत्या के बाद दिल्ली में राममनोहर लोहिया अस्पताल के सामने सड़क पर किये गए सियासी तांडव ने इस गंभीर सवाल को जन्म दिया है कि राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेस ने देशवासियों को पागल और देश को पागलखाना  समझ लिया है क्या....???

राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को शायद याद नहीं है इसलिए याद उनको यह याद कराना आवश्यक है कि... अपने लगभग 3900 सैनिकों का बलिदान देकर 1971 में भारत को ऐतिहासिक विजय का उपहार तथा पाकिस्तान को शर्मनाक ऐतिहासिक पराजय का सबक सिखाने वाली भारतीय सेना को पुरस्कृत करने के बजाय ठीक 18 महीने बाद 1973 में भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा भारतीय सेना को यदि दण्डित और अपमानित नहीं किया गया होता तो दिल्ली में आज भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
1973 से 1914 तक की 14 वर्ष की समयावधि में से लगभग 31 वर्ष तक देश पर शासन करती रही कांग्रेस की सरकारों ने यदि 1973 में भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनने के तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कुकर्म का प्रायश्चित करते हुए यदि भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
राहुल गाँधी जी, 1973 में भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनने का कुकर्म जिस तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किया था उसकी मुखिया आपकी दादी श्री, श्रीमती इंदिरा गाँधी थीं. 
राहुल गांधी जी, भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनने के बाद के 31 वर्षीय कांग्रेसी शासन वाली सरकारों में आपके पिताश्री, राजीव गाँधी की प्रचण्ड बहुमत वाली सरकार का पांच वर्षीय कार्यकाल भी शामिल है. यदि आपके पिताश्री राजीव गाँधी ने भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
राहुल गाँधी जी, 2004 से 2014 तक देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाले जिस UPA गठबंधन की सरकार थी उस कांग्रेस और UPA की मुखिया कोई और नहीं बल्कि आपकी माताश्री, सोनिया गाँधी ही थी. यदि अपने 10 वर्ष के शासनकाल में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
आज OROP को ठीक से लागू करने की मांग का सियासी पाखण्ड कर रहे राहुल गाँधी जी, जिस OROP सुविधा को लागू करने के लिए न्यूनतम दस हज़ार करोड़ रुपयों की जरूरत थी उस OROP सुविधा के लिए 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले केवल पांच सौ करोड़ रुपये आबंटित कर के UPA की सरकार ने यदि भूतपुरवैनिकों के साथ क्रूर सियासी मज़ाक करने के बजाय न्यूनतम दस हज़ार करोड़ रुपये आबंटित कर OROP सुविधा का क्रियान्वयन कर के भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
राहुल गाँधी जी जिस नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ OROP को मुद्दा बनाकर आज राम मनोहर लोहिया अस्पताल के सामने सड़क पर आप सियासी तांडव कर रहे हो उस मोदी सरकार ने OROP के लिए आवश्यक दस हज़ार करोड़ रुपये आबंटित कर के भारतीय सेना की OROP की सुविधा लागू कर दी है जिसमें से साढ़े पांच हज़ार करोड़ रुपये भूतपूर्व सैनिकों को दिए भी जा चुके हैं.
में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भारतीय सेना से OROP की सुविधा क्यों छीन ली थी...???
राहुल गांधी जी, 1973 के पश्चात् के 31 वर्षीय लम्बे कांग्रेसी शासनकाल में भारतीय सेना की OROP की सुविधा उसको वापस क्यों नहीं की गयी थी...???
राहुल गांधी जी, भारतीय सेना को OROP की सुविधा वापसी का जो काम आपकी कांग्रेसी सरकारें अपने 31 वर्षीय शासनकाल में नहीं कर पायी उस काम को मोदी सरकार ने यदि अपने 31 महीने के शासनकाल में ही कर दिखाया हैं तो उसके खिलाफ सियासी तांडव क्यों.???
राहुल गांधी जी, उपरोक्त तथ्यों तर्कों और सवालों की कसौटी तो यही सन्देश देती प्रतीत होती हैं कि OROP के मुद्दे पर आपके द्वारा बहाये जा रहे आंसू सिर्फ और सर्फ घड़ियाली आंसू हैं.
राहुल गांधी जी, आपको OROP से सम्बन्धित कांग्रेसी सरकारों के 31 वर्षीय लम्बे उपरोक्त आचरण के सम्बन्ध में देश के समक्ष, विशेषकर भारतीय सेना के समक्ष, उसके भूतपूर्व सैनिकों के समक्ष स्पष्टीकरण देना चाहिए कि 1973 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भारतीय सेना से OROP की सुविधा क्यों छीन ली थी...???
राहुल गांधी जी, 1973 के पश्चात् के 31 वर्षीय लम्बे कांग्रेसी शासनकाल में भारतीय सेना की OROP की सुविधा उसको वापस क्यों नहीं की गयी थी.???
राहुल गांधी जी, भारतीय सेना को OROP की सुविधा वापसी का जो काम आपकी कांग्रेसी सरकारें अपने 31 वर्षीय शासनकाल में नहीं कर पायी उस काम को मोदी सरकार ने यदि अपने 31 महीने के शासनकाल में ही कर दिखाया हैं तो उसके खिलाफ सियासी तांडव क्यों.???
राहुल गांधी जी, उपरोक्त तथ्यों तर्कों और सवालों की कसौटी तो यही सन्देश देती प्रतीत होती हैं कि OROP के मुद्दे पर आपके द्वारा बहाये जा रहे आंसू सिर्फ और सर्फ घड़ियाली आंसू हैं तथा आप और आपकी कांग्रेस ने
देशवासियों को पागल और देश को पागलखाना समझ लिया है क्या....???