Saturday, December 23, 2017

2G घोटाला फैसले की पहेली समझनी हो तो इसे ध्यान से और पूरा पढ़िए।

30 जुलाई 2015 की रात ढाई बजे सुप्रीमकोर्ट यह फैसला करने के लिए विशेष रूप से खोला गया था कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किये जाने के बावजूद आतंकवादी याकूब मेमन को आज फांसी दी जाए कि नहीं।
याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, इंदिरा जयसिंग समेत जिन वकीलों ने सुप्रीमकोर्ट को रात रात ढाई बजे खोलने के लिए मजबूर किया था। उन वकीलों के साथ एक वकील और था। रात ढाई बजे याकूब मेमन की तरफ से उसके पक्ष में सुप्रीमकोर्ट के जजों के सामने उसी वकील ने पैरवी प्रारम्भ की थी। उस वकील का नाम था आनंद ग्रोवर। आनंद ग्रोवर उसी इन्दिरा जयसिंग का पति है जिसने याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए उस रात ढाई बजे सुप्रीमकोर्ट खुलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंदिरा जयसिंग को कांग्रेस ने 2009 में भारत का अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल नियुक्त किया था।
ये दोनों मियां बीबी की जोड़ी लॉयर्स कलेक्टिव नाम का एक NGO भी चलाती है। डेढ़ साल पहले 1 जून 2016 को मोदी  ने इस जोड़ी के NGO (लॉयर्स कलेक्टिव) का विदेशों से चंदा लेने का लाइसेंस (FCRA) इसलिए रद्द कर दिया था। क्योंकि NGO को विदेशों से मिली रकम का दुरूपयोग करने का दोषी पाया गया था।
आज आनंद ग्रोवर और उसकी उपरोक्त पृष्ठभूमि की चर्चा इसलिए क्योंकि कल 2G घोटाले का जो फैसला आया है उसमें CBI का वकील यही आनंद ग्रोवर था। CBI की तरफ से मुख्य पैरवी आनंद ग्रोवर ही कर रहा था। ध्यान रहे कि अपने फैसले के लिए जज ओपी सैनी ने कोर्ट में CBI की तरफ से की गई ढीली ढाली लचर उदासीन पैरवी के लिए जमकर लताड़ा है।
दो दिनों से मोदी सरकार पर आगबबूला हो रहे महानुभावों का पहला सवाल यही होगा कि सरकार ने आनंद ग्रोवर को हटा क्यों नहीं दिया.? तो उनकी जानकारी के लिए बता दूं कि इस केस में CBI की तरफ से वकील के रूप में आनंद ग्रोवर की नियुक्ति मोदी सरकार ने नहीं सुप्रीमकोर्ट ने की थी। आनंद ग्रोवर को पैरवी से हटाने का कोई अधिकार सरकार के पास नहीं था। उसे हटाने या बदलने का अधिकार सुप्रीमकोर्ट के पास था।
मेरे ख्याल से 2G फैसले को तमिलनाडु में सरकार बनाने के जुगाड़ से लेकर ना जाने कैसे कैसे, कौन से कौन तुक्के लगा रहे राजनीतिक अनपढ़ों के दिमाग के जाले इस जानकारी के बाद काफी हद तक साफ हो जाने चाहिए।
हालांकि मेरे लिए पहेली 2G का फैसला नहीं बल्कि कुछ और ही है।
जिस आनंद ग्रोवर की पैरवी की पोल खुद जज ने बहुत विस्तार से उदाहरण देकर की है। उस आनंद ग्रोवर की दिल खोलकर तारीफ वो प्रशांत भूषण कर रहा है जिसने 2G घोटाले के खिलाफ PIL दायर की थी। उसके द्वारा तारीफ का कारण तो मैं काफी कुछ समझ रहा हूं। इस विषय पर आज नहीं, फिर कभी लिखूंगा।
लेकिन डॉ. सुब्रमनियम स्वामी भी आनंद ग्रोवर की प्रशंसा दिल खोलकर कर रहे हैं और CBI की कोर्ट में ढीली ढाली लचर उदासीन पैरवी के लिए आनंद ग्रोवर के बजाय उस पूर्व महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी को पूरी तरह दोषी बता रहे हैं जो 2G घोटाला केस की पैरवी से पूरी तरह अलग थे और इस केस में CBI की तरफ से पैरवी करने कभी भी कोर्ट नहीं गए।
डॉ. स्वामी ऐसा क्यों कर रहे हैं.?
इस पहेली का कोई सीधा उत्तर देने के बजाय इतना ही कहूंगा कि... मंत्री पद ना मिलने की पीड़ा... छोड़िये जाने दीजिए😊
किसी उलझे हुए फैसले या घटनाक्रम पर मैं अपनी टिप्पणी/प्रतिक्रिया देने में मैं इसीलिए जल्दबाजी नहीं करता।😊

Friday, December 22, 2017

Part-2 लोकतन्त्र के चौथे ख़म्भे को खोखला कर रहीं दीमकों को पहचानिए

भाग-2
राहुल गांधी और उनके मीडियाई चीयर लीडर्स के सफेद झूठ का  स्याह सच
गुजरात चुनाव प्रचार अभियान के दौरान गुजरात और केन्द्र की सरकार समेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र के ख़िलाफ़ राहुल गांधी का दूसरा सबसे तीखा और  संगीन आरोप यह था कि...
केन्द्र की मोदी सरकार ने कपास का समर्थन मूल्य कम कर दिया है जबकि यूपीए सरकार कपास का समर्थन मूल्य ज्यादा देती थी। राहुल गांधी के इस आरोप के समर्थन और प्रचार में मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग विशेष IPL की चीयर लीडर्स की तरह खुशी से चीखा और झूमा था। राहुल गांधी के इन मीडियाई चीयर लीडर्स ने राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों के बहाने राहुल गांधी को गांव गरीब किसान हितैषी नेता के रूप में प्रचारित/स्थापित करने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी थी। जबकि राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों का सच्चाई से कोई सम्बन्ध नहीं था। राहुल गांधी का आरोप वास्तविकता से कोसों दूर था।
13 दिसम्बर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने अपने उपरोक्त आरोपों के  सन्दर्भ में जानकारी देते हुए बताया था कि केन्द्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार कपास का समर्थन मूल्य 1400 रू देती थी जबकि NDA सरकार आजकल केवल 800 रू देती है। यही हाल मूंगफली के समर्थन मूल्य का भी है।
13 दिसम्बर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गयी उपरोक्त जानकारी से यह स्पष्ट हो गया था कि गुजरात में तीन महीनों तक लगातार घूम घूमकर उपरोक्त आरोप लगाते रहे राहुल गांधी को कपास और मूंगफली के वर्तमान और अतीत(यूपीए शासनकाल) के समर्थन मूल्यों की कोई जानकारी ही नहीं थी। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि गुजरात मे अपने तीन महीने लम्बे प्रचार अभियान के दौरान राहुल गांधी ने कपास और मूंगफली के समर्थन मूल्य को लेकर जनता से लगातार तीन महीनों तक सरासर सफेद झूठ बोला था। 13 दिसम्बर की राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुलगांधी के साथ बैठे कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस स्थिति को भांप लिया था। अतः सुरजेवाला ने राहुलगांधी के झूठ का पर्दाफाश करती कपास और मूंगफली के समर्थन मूल्य से सम्बन्धित राहुलगांधी की शून्य जानकारी पर पर्दा डालने का प्रयास करते हुए कहा था कि UPA के शासनकाल में कपास का भाव 4 हज़ार से कम शायद कभी नहीं रहा। राहुल गांधी के बचाव में सुरजेवलवाला की इस सफाई पर राहुलगांधी ने अपना सिर हिलाकर अपनी सहमति जताई थी।
जबकि सच यह है कि रणदीप सुरजेवाला की वह सफाई भी शत प्रतिशत असत्य और झूठ का पुलिन्दा मात्र ही थी।
यूपीए और वर्तमान NDA सरकार के शासनकाल के दौरान कपास और मूंगफली के समर्थन मूल्यों की सच्चाई राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों तथा सुरजेवाला की सफाई की धज्जियां उड़ा देती है।
यूपीए शासनकाल में मध्यम रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 2012-13 में 3600 रू प्रति क्विंटल था और
लम्बे रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 3900 रु प्रति क्विंटल था।
यूपीए सरकार के शासनकाल के अंतिम वित्तीय वर्ष 2013-14 में कपास के समर्थन मूल्य में 100 प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी और 2013-14 में  मध्यम रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 3700 रु प्रति क्विंटल तथा लम्बे रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 3900 रु प्रति क्विंटल था।
जबकि केन्द्र में मोदी सरकार बनने के पश्चात मध्यम रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 2014-15 में 3750 रु प्रति क्विंटल 2015-16 में 3800 रु प्रति क्विंटल
2016-17 में 3860 रु प्रति क्विंटल था तथा
2017-18 में 4020 रु प्रति क्विंटल है।
इसी प्रकार केन्द्र में मोदी सरकार बनने के पश्चात लम्बे रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 2014-15 में 4050 रु प्रति क्विंटल 2015-16 में 4100 रु प्रति क्विंटल
2016-17 में 4160 रु प्रति क्विंटल था तथा
2017-18 में 4320 रु प्रति क्विंटल है।
यूपीए और NDA शासनकाल के दौरान कपास के समर्थन मूल्यों की उपरोक्त सूची राहुल गांधी के आरोप की धज्जियां उड़ा रही है कि केन्द्र की सरकार ने कपास का समर्थन मूल्य कम कर दिया है जबकि यूपीए सरकार कपास का समर्थन मूल्य ज्यादा देती थी।
कपास के समर्थन मूल्यों की उपरोक्त सूची उस शर्मनाक सच्चाई को भी उजागर कर रही है कि 13 दिसम्बर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कपास का मूल्य 1400 और 800 रु प्रति क्विंटल बताकर राहुल गांधी ने यह साफ कर दिया था कि कपास के मूल्यों की कोई जानकारी ही राहुल गांधी को नहीं थी। इस सन्दर्भ में राहुल गांधी की शून्य जानकारी की यह स्थिति इसलिए अत्यन्त गम्भीर और महत्वपूर्ण है क्योंकि तीन महीनों तक गुजरात में इसी मुद्दे पर अपना चुनाव अभियान चलाने के तत्काल पश्चात ही आयोजित 13 दिसम्बर की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कपास का मूल्य 1400 और 800 रु प्रति क्विंटल बताया था।
क्या उपरोक्त तथ्य यह स्पष्ट नहीं कर रहे कि तीन महीनों तक गुजरात में कपास के समर्थन मूल्य से सम्बंधित सरासर सफेद झूठ बोलकर गुजरात और देश की जनता की आंखों में धूल झोंकते रहे राहुल गांधी की किसानों विशेषकर गुजरात के किसानों की समस्याओं में रुचि उनके प्रति सहानुभूति केवल एक चुनावी पाखण्ड और शातिर चुनावी हथकंडा मात्र थी।
लेकिन राहुल गांधी के मीडियाई चीयर लीडर्स सरीखे मीडिया ने गुजरात और देश की जनता लगातार तीन महीनों तक बोले गए उस झूठ को ना तो उजागर किया ना ही राहुल गांधी से इस सन्दर्भ में कोई सवाल ही पूछा। इसके बजाय राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों के बहाने राहुल गांधी के मीडियाई चीयरलीडर्स ने राहुल गांधी को गांव गरीब किसान हितैषी नेता के रूप में प्रचारित/स्थापित करने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी।
इस लेख की अगली कड़ियों में पढ़िए राहुल गांधी के किसान प्रेम तथा गुजरात में खेले गए सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक झूठ फ़रेब मक्कारी के शर्मनाक सियासी खेल के तथ्यात्मक उदाहरण राहुल गांधी और उनके मीडियाई चीयर लीडर्स की कुटिलकथा के अन्य प्रसंग
#क्रमश:
भाग-1 इस लिंक पर जाकर पढ़िए
http://jansadan.blogspot.in/2017/12/blog-post_20.html?m=1

Wednesday, December 20, 2017

Part-1 लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को खोखला कर रहीं दीमकों को पहचानिए

भाग-1
राहुल गांधी और उनके मीडियाई चीयर लीडर्स के सफेद झूठ का स्याह सच
गुजरात चुनाव के दौरान, गुजरात चुनाव की मतगणना के दौरान तथा गुजरात चुनाव के परिणामों के उपरान्त मीडिया का एक बड़ा वर्ग देश की जनता को दो बातें समझाने का प्रयास प्राणपण से करता दिखा।
पहली बात यह कि
मीडिया का यह बड़ा वर्ग यह सिद्ध करने का प्रयास कर रहा था और कर रहा है कि इन चुनावों में राहुल गांधी ने लगातार विकास को ही अपने चुनावी प्रचार के केंद्र में रखा, केवल विकास की ही बात की लेकिन भाजपा विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के सवालों/आरोपों का जवाब नहीं दिया और पाकिस्तान की बात कर के चुनाव प्रचार का स्तर गिराया तथा उसे साम्प्रदायिक रूप दे दिया।
मीडिया का यही बड़ा वर्ग देश की जनता को अब यह समझा रहा है कि गुजरात चुनाव में राहुल गांधी एक ऐसे परिपक्व जुझारू नेता बनकर उभरे हैं जिसकी सोच गांव गरीब और किसान हितैषी व विकासपरक है तथा जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए 2019 में चुनौती बनेंगे।

लेकिन गुजरात के चुनाव से सम्बन्धित मीडिया के इस वर्ग विशेष के उपरोक्त निष्कर्ष का बिन्दुवार आंकलन उसके निष्कर्षों की धज्जियां उड़ा देता है।

गुजरात चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने अपने भाषणों और प्रचार अभियान में गुजरात और केन्द्र की सरकार तथा विशेष रूप से प्रधानमंत्री पर 7-8 गम्भीर आरोप लगाए थे। अपने उन्हीं अरोपों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल पूछे थे। राहुल गांधी का पूरा चुनाव प्रचार अभियान अपने इन्हीं 7-8 आरोपों/सवालों तक सीमित/केन्द्रित रहा था।
राहुल गांधी का पहला सबसे संगीन आरोप यह था कि...
नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में टाटा की नैनो फेक्ट्री को 33 हज़ार करोड़ रू दे दिए, लेकिन नैनो कहीं नहीं दिखती।
राहुल गांधी के इस आरोप का जवाब 1 दिसम्बर को स्वयं टाटा मोटर्स ने पूरे देश के मीडिया संस्थानों के लिए बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति भेजकर दिया। अपनी प्रेस विज्ञप्ति में टाटा ने स्पष्ट कहा कि गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार द्वारा 33000 करोड़ रू टाटा की नैनो कम्पनी को दिए जाने का आरोप असत्य भ्रामक और तथ्यहीन है। गुजरात सरकार ने अपनी उद्योग संवर्धन नीति के अंतर्गत टाटा मोटर्स को 584 करोड़ रू. दिए हैं, सरकार ने हमें यह राशि किसी अनुदान या सहायता के रूप में नहीं बल्कि ऋण के रूप में दी है जिसे अनुबंधों की शर्तों के अनुसार कम्पनी चुकाएगी। टाटा मोटर्स ने अपने स्पष्टीकरण में यह भी जानकारी दी कि कम्पनी द्वारा सरकार को टैक्स के रूप में दी गयी धनराशि में से ही 584 करोड़ रु का उपरोक्त कर्ज़ टाटा मोटर्स को दिया गया है।

1 दिसम्बर को टाटा मोटर्स के उपरोक्त स्पष्टीकरण के बावजूद राहुल गांधी ने 13 दिसम्बर को हुई अपनी अन्तिम प्रेस कॉन्फ्रेंस तक अपनी सभी चुनावी रैलियों में उपरोक्त आरोप बार बार जमकर लगाया और दोहराया। अपने इस आरोप के पक्ष में तथा 1 दिसम्बर को दिए गए टाटा के स्पष्टीकरण के खिलाफ राहुल गांधी या कांग्रेस ने आजतक एक भी तथ्य साक्ष्य या दस्तावेज़ देश या गुजरात की जनता के समक्ष पेश नहीं किया है।
जरा सोचिए की 584 करोड़ रु के कर्ज़ को 33000 करोड़ रु का सरकारी उपहार बताकर राहुल गांधी ने गुजरात और देश की जनता की आंखों में कई हफ्तों तक किस निर्लज्जता के साथ धूल झोंकी.? लेकिन क्या उस दौरान या फिर आज भी राहुल गांधी के इस सरासर शर्मनाक झूठ पर राहुल गांधी या कांग्रेस से किसी मीडिया वाले ने कोई सवाल पूछा।
इस लेख की अगली कड़ियों में राहुल गांधी द्वारा गुजरात में खेले गए सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक झूठ फ़रेब मक्कारी के शर्मनाक सियासी खेल के तथ्यात्मक उदाहरण यह बताएंगे कि... IPL की चीयर लीडर्स की तरह राहुल गांधी को परिपक्व, जुझारू, गांव, गरीब और किसान हितैषी विकासपरक सोच का नेता तथा देश का अगला विकल्प बता रहे मीडिया का एक वर्ग विशेष वह दीमक है जो लोकतन्त्र के चौथे ख़म्भे को लगातार बुरी तरह खोखला कर रही है।
#क्रमश:
भाग-2 को इस लिंक पर जाकर पढ़िए।
http://jansadan.blogspot.in/2017/12/blog-post_22.html?m=1

Saturday, December 16, 2017

सोनिया गांधी यह बताना क्यों भूल गईं.?

कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी की ताजपोशी के अवसर पर सोनिया गांधी ने यह याद दिलाया कि... "जब मैंने कांग्रेस अध्यक्ष पद सम्भाला था उस समय केवल 3 राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।"
लेकिन यह बताते समय सोनिया गांधी यह बताना भूल गईं कि आज जब मैं कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ रही हूं उस समय 5 राज्यों में कांग्रेस की सरकार है जिसमें से एक राज्य(हिमांचल) में 48 घण्टों बाद कांग्रेस की राज्य सरकार नहीं रहेगी। इसके साथ ही साथ सोनिया गांधी यह भी बताना भूल गईं कि जब मैंने कांग्रेस अध्यक्ष पद सम्भाला था उस समय लोकसभा में कांग्रेस के 142 सांसद थे और आज जब मैं कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ रही हूं उस समय लोकसभा में 44 सांसद हैं।
यह पोस्ट इसलिए क्योंकि आलोक मेहता, एनके सिंह, जावेद अंसारी सरीखे कई मीडियाई मठाधीशों को न्यूजचैनलों पर सोनिया गांधी के 19 वर्षीय कार्यकाल का गुणगान भांड़ो की तरह करते देखा।
कांग्रेस को उसके सबसे बड़े नेताओं की सबसे लम्बी कतार देनेवाले उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को बहुत निकट से बहुत लम्बे समय(लगभग ढाई दशकों) तक देखा है।
अतः आज दावे के साथ कह सकता हूं कि पिछले 12-15 वर्षों में सांगठनिक रूप से उत्तरप्रदेश में कांग्रेस लगभग खत्म हो चुकी है। मंझे हुए अनुभवी राजनीतिज्ञों के बजाय अत्यन्त स्तरहीन घटिया लोगों का जमावड़ा मात्र बन चुकी है उत्तरप्रदेश कांग्रेस। 15 वर्ष पूर्व तक जो NSUI और यूथ कांग्रेस उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की शक्ति का मुख्य स्त्रोत हुआ करते थे उनके कार्यालयों के दरवाजे अब हफ़्तों तक नहीं खुलते, वहां शमशानी सन्नाटा पसरा रहता है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि लगभग डेढ़ महीने पहले उत्तरप्रदेश कांग्रेस कार्यालय के एक कर्मचारी से मैंने जब यह पूछा कि आजकल यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष कौन है तो उसको एक मिनट सोंचना पड़ा फिर वो बोला कि फलाने महाशय यहां मध्य ज़ोन के अध्यक्ष हैं। मैं आज वह नाम भी भूल चुका हूं क्योंकि निष्क्रियता की कोई पहचान नहीं होती।
...तो सोनिया गांधी के गृहप्रदेश में कांग्रेस की यह जर्जर दयनीय सांगठनिक स्थिति बता रही है कि शेष देश मे क्या हाल होगा।
यही कारण है कि कभी लोकसभा में 425 सीटों वाली कांग्रेस को आज लोकसभा में मात्र 44 सीटों पर पहुंचा कर तथा उत्तरप्रदेश विधानसभा में विधायकों की सँख्या मात्र 7 तक पहुंचा कर सोनिया गांधी अध्यक्ष पद से विदा हुई हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के कार्यकाल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एक पक्ष यह भी है।

देश मे आग लगाने का हुनर तो कांग्रेस जानती है

राहुल गांधी ने आज कांग्रेस अध्यक्ष पद सम्भालते ही कहा कि BJP देश में आग लगा रही है।
सोनिया गांधी ने इस अवसर पर कहा कि BJP संवैधानिक शक्तियों/संस्थाओं को कुचल रही है।
मां बेटे की जोड़ी अपना उपरोक्त कांग्रेसोपदेश देते समय सम्भवतः स्मृतिलोप और शून्य इतिहास बोध सरीखी मानसिक विकृति से ग्रसित थे।
अतः इस जोड़ी को याद दिलाना आवश्यक है कि...
इस देश में आतंकवाद की देशव्यापी आग पहली बार 1981 में भड़की थी और 1981 से 1995 तक लगातार देश को जलाती रही थी। आतंकवाद की उस भयानक आग का नाम था जनरैल सिंह भिंडरावाले। इस आग में लगभग 20 से अधिक निर्दोष नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
राहुल गांधी और सोनिया गांधी की जोड़ी शायद यह सोचती है कि लोग सम्भवतः भूल गए होंगे कि उस दौर में भिंडरावाले को रूपया देने की बात संजय गांधी ने स्वयं स्वीकारी थी। भिंडरावाले ने दल खालसा नाम के अपने आतंकी गुट की जब स्थापना की थी उस समय चंडीगढ़ के पंचतारा होटल में हुई उसकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के खर्च का भुगतान तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के गृहमंत्री जैल सिंह ने बाकायदा अपने चेक से किया था। 9 सितम्बर 1981 को जनरैल सिंह भिंडरावाले ने देश के प्रख्यात पत्रकार और पंजाब केसरी अखबार के संस्थापक सम्पादक लाला जगत नारायण की निर्मम हत्या कर दी थी किन्तु इस हत्याकांड में गिरफ्तारी के कुछ ही घण्टों बाद पंजाब की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के हस्तक्षेप के कारण उसको थाने से ही जमानत पर छोड़ दिया गया था। अपनी रिहाई पर वो अपने सैकड़ों हथियारबंद गुर्गों के जुलूस के साथ थाने से बाहर निकला था और सड़कों पर हवाई फायर करती राइफलों और बन्दूकों के आतंकी धमाकों की दहशत फैलाते हुए अपने डेरे पर चला गया था।
2 साल बाद 6 जून 1984 को जब जनरैल सिंह भिंडरावाले को मुठभेड़ में मारा गया तब देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। उस मुठभेड़ में भारतीय सेना के 83 सैनिक जवान शहीद हुए थे तथा 240 जवान गम्भीर रूप से घायल हुए थे। पंजाब में भिंडरावाले नाम की यह आग कांग्रेस ने इसलिए लगाई भड़कायी थी ताकि 1977 में पंजाब में सत्तारुढ़ हुई अकाली दल की सरकार को गिराकर अकाली दल को खत्म किया जाए।
अतः  मां- बेटे सोनिया-राहुल की जोड़ी को यह जानना समझना स्वीकारना होगा कि क्षुद्र राजनीतिक हथकण्डों के लिए देश मे आग लगाने की खतरनाक सियासी साज़िशों का खूनी खेल की शुरुआत कांग्रेस ने ही की और शातिर खिलाड़ी की तरह उस आग से खेलती रही इसकी कहानी कश्मीर और असम समेत पूर्वोत्तर के राज्यों के चप्पे चप्पे पर चस्पा है।

Friday, December 15, 2017

देश के ख़ज़ाने पर हर वर्ष लगभग 100-125 करोड़ रू का बोझ किस हैसियत से डाल रहा है गांधी परिवार.?

सोनियागांधी 10 जनपथ के जिस सरकारी बंगले में रहती हैं उसका एरिया 163,408 वर्गफुट है। उस एरिया में किराए के न्यूनतम बाजार भाव से बंगले का किराया 4 से 5 करोड़ रू प्रतिमाह होता है।

प्रियंका गांधी लोधी एस्टेट के जिस सरकारी बंगले में रहती हैं उसका एरिया 29,763 वर्गफुट है। उस एरिया में किराए के न्यूनतम बाजार भाव से बंगले का किराया लगभग 1.5 से 2 करोड़ रू होता है।

राहुल गांधी तुगलक रोड के जिस सरकारी बंगले में रहते हैं उसका एरिया 54,063 वर्गफुट है। उस एरिया में किराए के न्यूनतम बाजार भाव से बंगले का किराया लगभग 2.5 से 3 करोड़ रू होता है।

इस तरह सिर्फ किराए के रूप में देश की जनता की गाढ़ी कमाई के औसतन लगभग 9 से 10 करोड़ रु प्रतिमाह अपने ऊपर खर्च कर रहा है। अर्थात लगभग 100 करोड़ रू प्रतिवर्ष।

उल्लेखनीय है कि गांधी परिवार में अब मात्र 6 सदस्य हैं। सोनिया गांधी पुत्र राहुल तथा प्रियंका गांधी व उसके पति एवं 2 बच्चों समेत गांधी परिवार में कुल 6 सदस्य हैं।
इन 6 सदस्यों में से कोई भी सदस्य किसी भी संवैधानिक पद पर नहीं है।
अतः कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि 6 सदस्यीय गांधी परिवार देश की सर्वाधिक बेशकीमती लगभग ढाई लाख वर्गफुट जमीन पर अलग-अलग बने 3 मकानों में रहकर देश के ख़ज़ाने पर हर वर्ष लगभग 100-125 करोड़ रू का बोझ किस हैसियत से क्यों डाल रहा है.?
क्योंकि देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, देवेगौड़ा, आइके गुजराल की सन्तानें सामान्य आवासों में ही रह रहे हैं।
दूसरी बात यह कि सुरक्षा कारणों से यदि उपरोक्त उदाहरणों से गांधी परिवार की तुलना नहीं भी की जाए तो क्या एसपीजी की सहमति संस्तुति प्राप्त जिन तीन बंगलों पर गांधी परिवार काबिज़ है उनमें से 29763 वर्ग फुट जमीन पर बने बंगले में दो नाबालिग बच्चों समेत कुल 6 सदस्यों वाला गांधी परिवार क्यों नहीं रह सकता.?
यह सामंती और शाही सोच का निकृष्टतम उदाहरण है।
आज नहीं तो कल, गांधी परिवार को सरकारी खजाने के 100-125 करोड़ रू लील रहे अपने इस निजी उपयोग/खर्च का जवाब देश को देना ही होगा।

Thursday, August 31, 2017

फ्लॉप नहीं हिट हुई है नोटबंदी

राहुल गाँधी पी.चिदंबरम समेत पूरी कांग्रेसी फौज तथा विपक्षी नेताओं का जमघट कल शाम से जोश में है. 1000 और 500 के पुराने नोटों की वापसी को हथियार बनाकर उन्होंने नोटबंदी को फ्लॉप और निरर्थक घोषित कर के केंद्र सरकार पर तीखे हमले करना प्रारम्भ कर दिया है। क्या नोटबंदी वास्तव में फ्लॉप शो सिद्ध हुई है। या उसने कालेधन पर अपेक्षित प्रहार किया है.? इस सवाल का जवाब जानने के लिए इन तथ्यों से परिचित होना जरूरी है।
पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में इस वर्ष सरकार को मिले टैक्स में लगभग 2 लाख 60 हज़ार करोड़ रूपयों की वृद्धि दर्ज हुई है।
इस वृद्धि में सरकार को मिले प्रत्यक्ष करों (Direct Tax) में लगभग 1 लाख 5 हज़ार करोड़ की वृद्धि तथा अप्रत्यक्ष करों (Indirect Tax ) में हुई 1 लाख 55 हज़ार करोड़ की वृद्धि है।
अबतक के इतिहास में सरकार को मिले करों में इतनी वृद्धि कभी नहीं हुई है। सरकार को मिले करों में हुई यह ऐतिहासिक वृद्धि इसलिए चौंकाती है क्योंकि इस वर्ष नोटबन्दी के कारण GDP की वृद्धि दर में लगभग 7% की गिरावट हुई है। पिछले 2-3 वर्षों से GDP का जो आंकड़ा लगभग 7.6 था वो इस वर्ष 2016-17 में गिर कर 7.1 पर आ गया है। अनुमान लगाइए कि यदि GDP में 7% की गिरावट नहीं हुई होती तो टैक्स वृद्धि का यह आंकड़ा कहां पहुंचता.?
सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इस वर्ष सरकार को मिले इनकम टैक्स में 61 हज़ार 632 करोड़ रू की वृद्धि हुई है। जबकि उससे पिछले वर्ष (2015-16)में यह वृद्धि मात्र 21 हज़ार 865 करोड़ थी तथा उससे भी पहले के वित्तीय वर्ष (2014-15) में यह वृद्धि मात्र 22 हज़ार 884 करोड़ थी। यह आंकड़ा गवाही देता है कि प्रतिवर्ष लगभग 40 हज़ार करोड़ के इनकम टैक्स की चोरी हो रही थी। ये चोर अब पकड़ में आये हैं और चिन्हित हो गए हैं। इसी प्रकार इनकम टैक्स के अलावा अन्य प्रत्यक्ष करों के रूप में सरकार को 2014-15 में मिली जो धनराशि 1095 करोड़ थी और 2015-16 में मिली धनराशि 1079 करोड़ थी। उससे पहले के वर्षों में यह धनराशि और भी कम थी। इसबार वित्तीय वर्ष 2016-17 में नोटबन्दी के बाद अन्य अप्रत्यक्ष करों से सरकार को मिली इस धनराशि के आंकड़ें में लगभग सवा चौदह गुने की वृद्धि हुई है और अन्य अप्रत्यक्ष करों के रूप में सरकार को 15 हज़ार 624 करोड़ की धनराशि मिली है। वह भी तब जबकि GDP वृद्धि दर में 7% की गिरावट हुई है। यह आंकड़ा बताता है कि हर साल कम से कम लगभग 14 हज़ार करोड़ के अप्रत्यक्ष करों की चोरी हो रही थी जो नोटबन्दी के कारण पकड़ में आई और अब चिन्हित हो चुकी है। यह तो सरसरी तौर पर प्रथम दृष्टया नज़र आ रही वह सच्चाई है जो यह बता रही है कि अबतक केवल इनकम टैक्स और अन्य प्रत्यक्ष करों की प्रतिवर्ष होती रही लगभग 55 हज़ार करोड़ रूपयों की चोरी पकड़ी और चिन्हित की जा चुकी है, जिससे हर वर्ष देश को अब यह 55 हज़ार करोड़ रूपये मिला करेंगे।
लेकिन इस कर चोरी की बात यहीं खत्म नहीं होती।
नोटबन्दी ने इसपर कैसा शिकंजा कसा है यह इस तथ्य से समझिये कि सरकार ने वर्ष 2015-16 में प्रत्यक्ष करों से होने वाली आय का अनुमान 7 लाख 52 हज़ार करोड़ लगाया था। किन्तु उसे प्राप्ति हुई थी केवल 7लाख 48 हज़ार करोड़ रूपये की। अर्थात उसे अपने अनुमान से 4 हज़ार करोड़ रु कम मिले थे।
सरकार का अनुमान गलत नहीं था क्योंकि इसके अगले वर्ष ही (नोटबन्दी वाले वर्ष में) उसे प्रत्यक्ष करों से 8 लाख 47 हज़ार करोड़ रू मिले हैं। पिछले वर्ष से लगभग 1 लाख करोड़ रू अधिक।
सरकार को मिले टैक्स में हुई यह वृद्धि इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि 8 अक्टूबर 2016 को हुई नोटबन्दी की घोषणा के बाद लगभग 2 महीने (नोटबन्दी की अवधि) तक तो उद्योग जगत और बाजार की गतिविधियों में जबरदस्त गिरावट दर्ज हुई थी। उसके बाद के दो-तीन महीने उसे उस गिरावट से उबरने में लगे थे। अतः यह स्पष्ट है कि सरकार को मिले उपरोक्त कर वास्तविक रूप से लगभग 9 महीने की ही कमाई है। जो यह बता रही है कि देश में अबतक होती प्रतिवर्ष होती रही लगभग एक से डेढ़ लाख करोड़ की टैक्स चोरी नोटबन्दी के बाद पकड़ में आयी है। यह कोई छोटी मोटी सफलता नहीं है।
लेकिन नोटबन्दी के प्रभाव की कहानी इतने पर ही खत्म नहीं हुई है। नोटबन्दी के दौरान जिन 18 लाख लोगों को चिन्हित किया गया था उनमें से केवल 9.72 लाख लोगों ने अपनी आय का स्पष्टीकरण और टैक्स जमा किया है। शेष 8 लाख में से 5.5 लाख लोग ऐसे हैं जिन्होंने नोटबन्दी के दौरान अप्रत्याशित रूप से भारी रकमें अपने खातों में जमा की थीं और अब जवाब नहीं दे पा रहे हैं। इनके अतिरिक्त लगभग एक लाख ऐसे लोग पकड़ में आये हैं जिन्होंने भारी रकम जमा वाले अपने बैंक खातों को छुपाया था। इन सबकेे विरुद्ध कठोर कार्रवाई की तैयारी चल रही है। इनसे लगभग डेढ़ से दो लाख करोड़ की वसूली होने का अनुमान है।
अंत मे नोटबन्दी के विशेष प्रभाव का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष: लगभग 16 हज़ार करोड़ रू के जो नोट वापस नहीं हुए वो किसके पास थे.? स्पष्ट है कि यह राशि जिन लोगों के पास थे वो किसी भी हालत में इसे कहीं भी जमा या उजागर नहीं कर सकते। ऐसे लोग आतंकवादी और जघन्य अपराधी ही हैं। इन तत्वों को लगी 16 हज़ार करोड़ रुपयों की चोट ने उनकी जान निकाल दी है। वापस नहीं हुई इस रकम का असर बहुत बड़ा हुआ है।
अतः नोटबन्दी को फ्लॉप शो कहने वालों को उपरोक्त आंकड़ें सन्देश दे रहे हैं कि नोटबन्दी का शो फ्लॉप नहीं सुपरहिट हुआ है।