Thursday, January 26, 2017

अखिलेश के वायदों पर विश्वास क्यों करे उत्तरप्रदेश.?

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस बार की चुनावी जंग जीतने के लिए मुफ्त स्मारर्टफोन, मुफ्त गेंहूँ-चावल और मुफ्त घी के साथ ही साथ गरीबों को 1000 रू पेंशन का चुनावी दांव चल दिया है. अपने इस दांव का राग वह अपनी हर जनसभा और संचार माध्यमों में लगातार बार-बार दोहरा भी रहे हैं. पिछली बार 2012 में भी उन्होंने मुफ्त लैपटॉप और टेबलेट तथा प्रतिमाह 1000 रू का बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा कर के चुनावी जंग जीत ली थी किन्तु इस बार उनके लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि जनता उनसे उनके पिछले वायदों का हिसाब किताब अवश्य मांगेगी. अखिलेश यादव के लिए यह हिसाब किताब बहुत महंगा सिद्ध होगा क्योंकि पिछली बार जनता से किये गए अपने वायदों की शत प्रतिशत पूर्ति व प्रदेश के सर्वांगीण विकास के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दावों की धरातलीय वास्तविकता उनके दावों के बिलकुल विपरीत है....2012 के अपने चुनावी घोषणापत्र में सपा द्वारा किये गए दो वायदे सर्वाधिक चर्चित एवम लोकप्रिय हुए थे. उत्तरप्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाने में इन दो वायदों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवम निर्णायक सिद्ध हुयी थी. इन दो वायदों में पहला वायदा था 12वीं कक्षा पास करनेवाले प्रत्येक छात्र को एक लैपटॉप तथा 10वीं कक्षा पास करनेवाले प्रत्येक छात्र को एक टेबलेट देने का वायदा.
आजकल मीडिया के सामने तथा सार्वजानिक मंचों से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जब यह दावा करते हैं कि हमने जनता से जो वायदे किये थे वो सारे वायदे पूरे किये तो सबसे पहले वो यही बताते हैं कि हमने नौजवानों को लैपटॉप देने का जो वायदा किया था उसको लगभग 15 लाख लैपटॉप बांट कर पूरा भी किया. यही वह बिंदु है जहां मीडिया पर खर्च की गयी लगभग 1100 करोड़ रू की रकम की धमक अपना रंग दिखाती है. लैपटॉप बाँटने का अपना वायदा पूरा करने के अखिलेश के वायदे को वास्तविकता की कसौटी पर कसने से मीडिया ने पूर्णतः परहेज किया है. जबकि अखिलेश के इस दावे की वास्तविकता सत्य से बिलकुल परे है . मार्च 2012 में अखिलेश यादव द्वारा प्रदेश की सत्ता सम्भालने के बाद से जून 2016 तक 12वीं कक्षा पास करने वाले छात्रों की संख्या लगभग 1 करोड़ 28 लाख हो चुकी थी. यहाँ उल्लेखनीय यह भी है कि यह संख्या केवल उन छात्र की है जिन्होंने यूपी बोर्ड की 12वीं कक्षा की परीक्षा पास की है . इसमें पिछले 5 वर्षों में CBSE तथा ICSE बोर्ड की 12वीं कक्षा पास करनेवाले छात्रों की संख्या शामिल नहीं है. यदि उन छात्रों की संख्या भी इसमें जोड़ दी जाये तो पिछले 5 वर्षों में उत्तर प्रदेश में 12वीं कक्षा पास करनेवालों की संख्या इससे भी अधिक हो जाएगी.
अतः प्रदेश के 1 करोड़ 28 लाख से भी अधिक छात्रों को लैपटॉप देने का जो वायदा किया गया था क्या उस वायदे को केवल 11.7% (15 लाख) छात्रों को लैपटॉप देकर पूरा हुआ मान लिया जाना चाहिए.?
अखिलेश यादव के इस वायदे के उस दूसरे भाग की वास्तविकता और भी अधिक हास्यास्पद एवम शर्मनाक है जिसमें उन्होंने प्रदेश में 10वीं कक्षा पास करनेवाले प्रत्येक छात्र को टेबलेट देने का वायदा अपने घोषणापत्र में किया था. अखिलेश यादव द्वारा प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद से लेकर इस वर्ष जून 2016 तक केवल यूपी बोर्ड की 10वीं कक्षा पास करनेवाले छात्रों की संख्या लगभग 1करोड़ 40लाख के आंकड़े को पार कर चुकी थी. किन्तु इन छात्रों को वह टेबलेट बांटे ही नहीं गए. इसीलिए अपने वायदे पूरे करने का दावा करते समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल लैपटॉप का जिक्र तो कर रहे हैं किन्तु टेबलेट का कोई जिक्र तक नहीं करते.
उत्तरप्रदेश की भावी पीढ़ी के करोड़ों सदस्यों के साथ ऐसी सरासर वायदा खिलाफी के पश्चात् सार्वजनिक और मीडिया मंचों से उन्हीं वायदों को पूरा करने का अखिलेश यादव का दावा कितना दमदार या कितना खोखला है.? कितना सच्चा, कितना झूठा है ? यह अनुमान लगाना कतई कठिन नहीं है.?


2012 के अपने चुनावी घोषणापत्र में उत्तरप्रदेश के नौजवानों को 1000 रू प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता देने के सपा के दूसरे वायदे ने उसके लिए ब्रह्मास्त्र का कार्य किया था. किन्तु अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार ने प्रदेश के कितने बेरोजगार नौजवानों को 1000 रू का बेरोजगारी भत्ता कब तक दिया गया.? या क्या आज भी दिया जा रहा है.? बेरोजगार नौजवानों को यदि यह भत्ता नहीं दिया जा रहा है तो क्यों नहीं दिया जा रहा है.? अखिलेश सरकार के लगभग 1000 करोड़ के विज्ञापन बजट के बोझ से झुकी कमर के कारण मीडिया ऐसे सवालों से भले ही पूरी तरह परहेज बरत रही है किन्तु मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इन सवालों का जवाब इसबार के चुनाव में जनता की अदालत में देना ही पड़ेगा. इसबार यह सवाल और भी अधिक गम्भीर तथा प्रासंगिक इसलिए हो गया है क्योंकि मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने जब उत्तरप्रदेश की सत्ता संभाली थी उस समय प्रदेश में एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में दर्ज बेरोजगारों की संख्या का आंकड़ा लगभग 50 लाख के करीब था जो 2012 से 2017 की अवधि की 12वीं पंचवर्षीय योजना से सम्बन्धित नेशनल सैम्पिल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) की रिपोर्ट के आंकड़ों को जोड़ने के बाद मार्च 2017 में बढ़कर लगभग 1 करोड़ 32 लाख हो जायेगा. उत्तरप्रदेश में रोजगार के अवसरों की जर्जर बदहाल अवस्था को बयान करते यह आंकड़े केवल कागज़ी नहीं है. सितम्बर 2015 में (मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल के चौथे वर्ष में) चपरासी के 368 पदों के लिए आये 23 लाख से अधिक आवेदन तथा उन आवेदनों में पीएचडी डिग्रीधारक आवेदनकर्ताओं की उपस्थिति यह दर्शा बता रही थी कि प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या केवल गम्भीर नहीं हुई है बल्कि भयावह स्तर को पार कर चुकी है.


2012 में प्रदेश के नौजवानों के साथ किये गए अपने उपरोक्त दो वायदों को पूरा करने में असफल रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रदेश के नौजवानों के साथ वायदाखिलाफी की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है...
2012 में समाजवादी पार्टी ने नौजवानों से यह वायदा भी किया था कि प्रदेश के सभी निजी उच्च एवं व्यावसायिक स्कूलो में 5 लाख सालाना वेतन से कम आय वाले परिवारों के बच्चों की फीस माफ की जायेगी, सभी सरकारी एवं अनुदानित निजी महाविद्यालयों में स्नातक स्तर तक लड़कियों को मुफ्त शिक्षा दी जायेगी. तथा उत्तर प्रदेश के सभी विकासखण्ड़ों में जमीन की उपलब्धता देखते हुए सरकारी कन्या स्नातक कालेंजो की स्थापना की जाएगी और पांच साल के अन्दर इन महाविद्यालयों में बी.एड. कक्षाएं चलाने की व्यवस्था अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जायेगी. उत्तरप्रदेश का नौजवान आज 5 साल बाद भी इन सपनों के पूरा होने की बाट जोह रहा है. समाजवादी पार्टी ने यह भी वायदा किया था कि इण्टर तक बिना सरकारी अनुदान के पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिये जीविकोपार्जन भर के मासिक मानदेय की व्यवस्था की जाएगी तथा प्रदेश के विभिन्न विद्यालयों में कार्यरत शिक्षामित्रों को अगले दो वर्षो में नियमित करते हुए समायोजित किया जायेगा.
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का 5 वर्ष का सत्ता का सुहाना सफर दो माह बाद पूर्ण होने जा रहा है किन्तु प्रदेश के नौजवानों के साथ किये गए उनके उपरोक्त वायदों की पूर्ति की प्रतीक्षा प्रदेश आज भी कर रहा है.


समाजवादी पार्टी की वायदाखिलाफी का दूसरा सबसे बड़ा शिकार प्रदेश के किसान बने हैं.
2012 में किसानों को लुभाने के लिए समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि किसानों की उपज का लागत मूल्य निर्धारित करने के लिए ऐसे आयोग का गठन किया जायेगा जो हर तीन महीने में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौपेगा। लागत मूल्यों में 50 फीसदी जोड़कर जो राशि आयेगी उस पर चुनाव जीतने के बाद आने वाली समाजवादी सरकार न्युनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करेगी तथा सरकार सीधे किसानों से इस मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करेगी. आज 5 साल बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यह बताने की स्थिति में नहीं है कि उस किसान आयोग का क्या हुआ.? घोषणा पत्र में किसानों के लिए यह घोषणा भी की गई थी कि 65 वर्ष की उम्र प्राप्त करने वाले छोटी जोत के किसानों कों पेंशन दी जायेगी. सिंचाई के लिए मुफ्त पानी, बंजर जमीन पर खेती के लिए भूमि देना जैसी बातें भी घोषणापत्र में शामिल थी. इन वायदों का क्या हुआ.? यह वायदे कितने पूरे हुए.? इसका कोई लेखाजोखा देने से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल सख्त परहेज बरत रहे हैं.


प्रदेश के चहुमुंखी विकास के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दावे को यह स्थिति उन संगीन सवालों के कठोर कठघरे में भी खड़ा कर रही है जिन सवालों को लगभग 1000 करोड़ के विज्ञापन बजट के बोझ से झुकी अपनी कमर के कारण मीडिया मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भले ही नहीं पूछ रहा है किन्तु जनता की चुनावी अदालत में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इसका जवाब देना ही होगा कि उनके द्वारा किया गया प्रदेश का यह कैसा विकास है जिसमें चपरासी के 368 पदों के लिए 255 पीएचडी धारकों समेत 23 लाख बेरोजगार नौजवानों की भीड़ उमड़ पड़ती है.?
दरअसल प्रदेश में विकास की इस भयावह स्थिति के लिए कोई और नहीं बल्कि स्वयम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सोच और प्राथमिकताएं ही जिम्मेदार हैं. जिन्हें आजकल उनके द्वारा किये जा रहे विकास के दावों की गूँज में भलीभांति सुना जा सकता है. उत्तरप्रदेश में 5 वर्ष के अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों का जो पिटारा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल सार्वजनिक चुनावी मंचों पर और मीडिया के समक्ष बार बार लगातार खोल रहे हैं उसमें लखनऊ में 7-8 किलोमीटर के दायरे में आगामी 26 मार्च से चलना शुरू करनेवाली मेट्रो ट्रेन, लखनऊ से आगरा तक बने 302 किलोमीटर लम्बे एक्सप्रेसवे तथा लखनऊ में एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण को अपनी विकासपरक सर्वाधिक मह्त्बपूर्ण उपलब्धियों के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.
2 लाख 43 हज़ार 290 वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल और लगभग, 20 करोड़ जनसंख्या वाले उत्तरप्रदेश में जहाँ 33% जनसंख्या (लगभग 6 करोड़ 60 लाख व्यक्ति) गरीबी की रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उस उत्तरप्रदेश के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विकास कार्यों के पिटारे के उपरोक्त सर्वाधिक जगमगाते रत्नों से प्रदेश की जनता को पिछले 5 वर्षों में क्या, कैसी और कितनी राहत मिली होगी इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. प्रदेश में भयावह रूप ले चुकी बेरोजगारी की समस्या मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उपरोक्त प्राथमिकताओं का एकमात्र दुष्परिणाम नहीं है. यह एक उदाहरण मात्र है. बिजली पानी सड़क स्वास्थ्य और शिक्षा सरीखे मुद्दों पर भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है. मई 2016 में राज्यसभा में प्रस्तुत की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश के 76 में से 50 जिले पेयजल की भारी कमी की गम्भीर समस्या से ग्रस्त हैं. बिजली की भारी कमी से जूझनेवाले देश के टॉप 5 राज्यों में उत्तरप्रदेश चौथे स्थान पर है.
मार्च 2012 में जब अखिलेश यादव ने प्रदेश की सत्ता संभाली थी उस समय प्रदेश बिजली की मांग और आपूर्ति के मध्य 1739 मेगावाट की कमी से जूझ रहा था. इसके लगभग साढ़े चार वर्ष पश्चात् जून 2016 में भी प्रदेश 1546 मेगावाट बिजली की कमी से जूझ रहा था. साढ़े चार वर्षों में बिजली की मांग और आपूर्ति के मध्य के अंतर में केवल 193 मेगावाट बिजली की कमी को दूर कर सकी है प्रदेश की अखिलेश सरकार. उत्तरप्रदेश में किस विकास की यह कैसी रफ़्तार है.? प्रदेशों में सडकों के निर्माण की स्थिति यह है कि मार्च 2012 तक उत्तरप्रदेश में राज्य सरकार द्वारा निर्मित राजमार्गों की लम्बाई 7876 किलोमीटर थी जो अब बढ़कर लगभग 8500 किमी हो चुकी है. अर्थात प्रतिवर्ष लगभग 125 किमी राजमार्ग का निर्माण हुआ. इसमें यदि आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे को भी जोड़ दिया जाये तो यह लम्बाई 175 किमी प्रतिवर्ष हो जाती है. अर्थात पिछले पांच वर्षों में प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा प्रतिदिन केवल 480 मीटर राजमार्ग का निर्माण किया गया है. उत्तरप्रदेश में किस विकास की यह कैसी रफ़्तार है.?
स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्थिति यह है कि 2015 तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उत्तरप्रदेश में 31,037 स्वाथ्य उपकेंद्रों की आवश्यकता है तथा 5,172 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवम 1293 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता है किन्तु वह लगभग 33% स्वास्थ्य उपकेंद्रों, तथा इतने ही (33%) प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व 40% सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी से जूझ रहा है, यहां विशेषरूप से यह उल्लेखनीय है कि मार्च 2012 में जब अखिलेश यादव ने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश में 20521 स्वास्थ्य उपकेंद्र थे और 2015 की समाप्ति पर भी 20521 स्वास्थ्य उपकेंद्र ही थे. हद तो यह है कि मार्च 2012 में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 3692 थी वह 2015 की समाप्ति तक घट कर 3497 हो गयी थी. इस अवधि में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में अवश्य बढ़ोत्तरी हुई और उनकी संख्या 515 से बढ़कर 773 हो गयी. किन्तु सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में हुई 258 अंकों की इस बढ़ोत्तरी की पृष्ठभूमि में 195 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की उपरोक्त बलि की विशेष भूमिका है. स्वास्थ्य से सम्बन्धित आधारभूत ढांचे की यह कमी प्रदेशवासियों के लिए कितनी जानलेवा सिद्ध हो रही है यह इसी से समझा जा सकता है कि उत्तरप्रदेश में तपेदिक टॉयफॉईड और कैंसर से मरने वाले मरीजों की संख्या व प्रतिशत देश में सर्वाधिक है. प्रदेश की बाल मृत्यु दर भी देश में सर्वाधिक है.


अंत में उल्लेख उत्तरप्रदेश की सर्वाधिक गम्भीर समस्यायों में से एक कानून व्यवस्था की. इस सन्दर्भ में संक्षेप में केवल दो तथ्य ही उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था की बदहाली की पूरी कहानी कह देते हैं. राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2016 में उत्तरप्रदेश में अपराध से सम्बन्धित आंकड़ों को जब उजागर किया था तो उसने यह बताया था कि केवल एक वर्ष 2015 में उत्तरप्रदेश पुलिस की हिरासत में हुए बलात्कारों के 91 मामले दर्ज किये गए थे. अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था के कर्णधारों की फौज की कार्यशैली कितनी अनुशासित और कितनी निरंकुश है.? उत्तरप्रदेश की कानून व्यवस्था से सम्बन्धित दूसरा तथ्य प्रदेश पुलिस की उपरोक्त कार्यशैली से उत्पन्न दुष्परिणामों को दर्शाता है. दिसम्बर 2016 में सामने आयी एक सरकारी रिपोर्ट के ही अनुसार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के 4 वर्ष 9 महीने के कार्यकाल के दौरान प्रदेश में हर 32वें घण्टे में अपराधियों ने पुलिसवालों पर जानलेवा हमले किये. इस समयावधि में बदमाशों के ऐसे हमलों में पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपाधीक्षक समेत लगभग दो दर्जन पुलिसकर्मियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. प्रदेश में कानून व्यवस्था की दयनीय दशा की दर्दनाक दास्ताँ कहते उपरोक्त आंकड़े मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रशासनिक क्षमता की सच्चाई भी बयान कर देते है क्योंकि उत्तरप्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद से ही गृहमंत्रालय का कार्यभार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वयम ही सम्भाल रहे हैं.

Wednesday, January 25, 2017

सैनिकों को जीवनरक्षा कवच दिया है मोदी सरकार ने

बीती 23 नवम्बर को देश के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने राज्यसभा में यह सूचना देकर देश को बताया था कि सेना को दी जानेवाली 3,53,765 बुलेटप्रूफ जैकेट्स में से 50000 अत्याधुनिक बुलेटप्रूफ जैकेट्स की पहली खेप सेना को पिछले महीने मिल चुकी हैं.
      देश के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर द्वारा दी गयी यह सूचना कितनी महत्वपूर्ण थी यह इसी से समझा जा सकता है कि पिछले डेढ़-दो महीने से कश्मीर में आतंकवादियों से हुई ताबड़तोड़ मुठभेड़ों में दर्ज़नों आतंकवादियों को उनके कई कमांडरों समेत सेना ने मौत के घाट तो उतारा है किन्तु अपने किसी जवान की शहादत नहीं होने दी है.? 
अब कश्मीर में सैनिकों की शहादत की खबरें आना लगभग बन्द हो गयी हैं. देश की सरकार ने सेना के जवानों को उनकी अनमोल जीवनरक्षा के जिस कवच "बुलेटप्रूफ जैकेट्स" से लैस कर दिया है उसने जवानों के शौर्य साहस पराक्रम और मनोबल को आसमान पर पहुंचा दिया है. इसी का परिणाम है कि सेना अब आतंकवादियों को उनके गढ़ में घुसकर/चढ़कर मौत के घाट उतार रही है जिसके फलस्वरूप पिछले डेढ़-दो महीनों से कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ों की और उन मुठभेड़ों में आतंकियों की मौतों की खबरों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है. 
देशरक्षा का यह सुखद घटनाक्रम स्वतः या अनायास नहीं हुआ है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर की अत्यंत विशेष और महत्वपूर्ण भूमिका है.
सेना के लिए Defence Acquisition Council (DAC) ने अक्टूबर 2009 में 3,53,765 बुलेटप्रूफ जैकेट्स की आवश्यकता बताते हुए उनकी आपूर्ति की मांग कांग्रेस नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार से की थी. सेना के जवानों की जिंदगी से जुडी उस अत्यंत महत्वपूर्ण मांग पर यूपीए सरकार ने कार्रवाई के नाम पर 5 साल में केवल यह किया था कि मई 2014 में सत्ता से अपनी विदाई के समय तक उसने केवल उन 6 सप्लायरों को चिन्हित किया था जिन्हें बुलेटप्रूफ सप्लाई का ठेका दिया जाना था.
केंद्र मोदी सरकार आने के तत्काल बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुलेटप्रूफ खरीदने का आदेश दिया था. 10 लाख से अधिक संख्या बल वाली सेना के आधुनिकीकरण की जरूरत को ध्यान में रखकर नवंबर 2014 में मनोहर पर्रिकर ने रक्षा मंत्री का पद संभालने के साथ ही जैकेटों के लिए व्यवस्था के निर्देश दिए थे. लेकिन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कांग्रेस की यूपीए सरकार द्वारा चिन्हित उन 6 सप्लायरों की बुलेटप्रूफ जैकेट्स का जब परिक्षण करवाया तो उन सभी 6 सप्लायरों की बुलेटप्रूफ जैकेट्स घटिया दर्ज़े की तथा सेना के निर्धारित मानकों से निम्न स्तर की निकली. कांग्रेस की यूपीए सरकार ने ऐसी घटिया और निम्नस्तर की बुलेटप्रूफ जैकेट्स बनानेवाले सप्लायरों को बुलेटप्रूफ जैकेट्स सप्लाई का ठेका देने के लिए क्यों कैसे और किस लिए चिन्हित किया था.? यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. किन्तु उसकी इस कार्रवाई से मोदी सरकार के समक्ष बुलेटप्रूफ जैकेट्स की सप्लाई का संकट उत्पन्न हो गया था. अतः इस स्थिति से उबरने के लिए रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने एक साहसी निर्णय लिया था. उन्होंने देश की ही Tata Advanced Materials Limited से जवानों के सिर गर्दन छाती और पेट की सुरक्षा करने वाली अत्यंत हल्की अत्याधुनिक बुलेटप्रूफ जैकेट्स की आपात अंतरिम खरीद के लिए अनुमति दी थी. जिसके फलस्वरूप बीती अक्टूबर के अंत में सेना के पास उन 50,000 बुलेटप्रूफ जैकेट्स की पहली खेप पहुँच चुकी है और जिसके सुपरिणाम हम आजकल हम कश्मीर में देख रहे हैं. कम वजन वाली यह नई जैकेट सेना के नए जीएसक्यूआर (जनरल स्टाफ की गुणवत्ता की जरूरतों का विश्लेषण करने का पैरामीटर) के तहत सिर, गले, छाती और बगलों की सुरक्षा कर सकने में शत-प्रतिशत सक्षम है. इसके साथ ही कम वजन की इन जैकेट से सैनिकों को मुश्किल क्षेत्रों में ऑपरेशन के दौरान एक जगह से दूसरी जगह जाने में काफी मदद मिलेगी।
यह मोदी सरकार की कोई छोटी-मोटी कार्रवाई नहीं है. यह उसकी ऐतिहासिक उपलब्धि है.
किन्तु दुर्भाग्य से एक कोर्टमार्शल की सजा पाए जवान के वीडियो पर हफ्तों तक रोजाना घण्टों चर्चा करते रहे न्यूजचैनलों ने सरकार की इस ऐतिहासिक कार्रवाई से सम्बन्धित एक लाइन की सूचना या समाचार तक हमको आपको आजतक नहीं दिखाया सुनाया है. 
NOTE : खबर की पुष्टि आप इस लिंक पर जाकर कर सकते हैं
http://www.indiatimes.com/news/india/after-a-wait-of-seven-years-indian-army-finally-gets-first-lot-of-50-000-bulletproof-vests-266033.html

Friday, January 13, 2017

सेना और सुरक्षाबलों के अधिकारियों को देश के समक्ष खलनायक मत बनाइये.

दुनिया में आजतक ऐसा कोई सरकारी या निजी संस्थान कहीं नहीं बना जिसके सभी कर्मचारी अपने सब अधिकारियों से शत प्रतिशत संतुष्ट और सहमत होते हैं. हर संस्थान हर विभाग में आपको कोई तेजबहादुर कोई यज्ञप्रताप जरूर मिलता है. अतः कठोर सैन्य अनुशासन के दायरे की कठिन सीमाओं में बाँध कर रखने वाले किसी भी सैन्याधिकारी से सब जवान संतुष्ट और सहमत होंगे यह सोचना या ऐसी अपेक्षा करना ही स्वयम को धोखा देना होगा.
बात कई वर्ष पुरानी है. राजधानी लखनऊ के कैंट थाने में उनदिनों तैनात एक इंस्पेक्टर की छवि अत्यंत स्वच्छ और सख्त पुलिस इंस्पेक्टर की थी. वास्तविकता में वो थे भी वैसे ही जैसी कि उनकी छवि थी. एक दिन जाड़े की रात लगभग 9 बजे उनके ही थाना क्षेत्र के मुख्य चौराहे पर शराब के नशे में धुत्त सेना के 4-5 जवानों ने उनको बहुत बुरी तरह पीट कर लहूलुहान कर दिया था उनकी वर्दी फाड़ दी थी, उनको घायलावस्था में अस्पताल ले जाया गया था.अगले दिन यह खबर अख़बारों में प्रमुखता से छपी भी. शाम को राजधानी के तत्कालीन SSP से इस सन्दर्भ में की गयी कार्रवाई के बारे में जानकारी ली गयी तो उन्होंने बताया कि सेना के उच्चाधिकारियों से बात हो रही है दोषी जवानों के विरुद्ध शीघ्र कार्रवाई होगी. ऐसे आश्वासनों के साथ ही जब चार दिन गुजर गए और कोई कार्रवाई नहीं हुयी तथा पत्रकारों के प्रश्न तीखे होने लगे तो SSP महोदय ने जो जवाब दिया था वो मुझे आज भी याद है. उन्होंने कहा था... अरे छोड़ो यार... आप लोग क्यों इस मामले के पीछे पड़े हो. वो लोग सेना के जवान हैं कोई अपराधी नहीं है. नशे में उनसे गलती हो गयी है. उन्होंने इंस्पेक्टर से माफ़ी मांग ली है. उन्होंने भी माफ़ कर दिया है. ये लोग माइनस 30 और 40 डिग्री ठंड में रात रात भर खड़े होकर हमारी आपकी रक्षा के लिए जागते हैं. क्या हम इनकी एक गलती को माफ़ नहीं कर सकते.? अगर हमने कार्रवाई कर दी तो सेना के कानून इतने सख्त हैं कि इनकी नौकरी तो चली ही जाएगी साथ ही साथ सजा भी बहुत सख्त मिलेगी. उन इंस्पेक्टर से जब इस सन्दर्भ में बात की तो उनकी प्रतिक्रिया भी लगभग ऐसी ही थी. लेकिन मुझ सहित कुछ पत्रकार मित्रों को यह तर्क जंचा नहीं था. स्वाभाविक रूप से यह संदेह हुआ था कि संभवतः किसी दबाव में कार्रवाई नहीं हो रही. अतः पता लगाने का प्रयास किया गया किन्तु सेना की अनुशासित गोपनीयता के लौह आवरण के चलते कुछ ज्ञात नहीं हो सका. इस घटना के काफी समय बाद उस घटनाक्रम का एक अंग रहे सेना के ही एक सज्जन से अचानक हुई लम्बी मुलाक़ात में उन्होंने बताया था कि उस घटना में किसी का कोई दबाव नहीं था. राजधानी पुलिस ने सेना के अधिकारियों से उस रात ही शिकायत दर्ज करा दी थी और उन जवानों को CMP ने रात में ही अपनी गिरफ्त में भी ले लिया था. किन्तु दूसरे दिन उन जवानों की बटालियन के कर्नल रैंक के अधिकारी ने इंस्पेक्टर और SSP से भेंट कर यह अनुरोध किया था कि उन जवानों के खिलाफ यदि इन्स्पेक्टर साहब कानूनी कार्रवाई पर अड़ जायेंगे तो उन जवानों की नौकरी तो जाएगी ही और अत्यधिक सम्भावना यह भी है कि नौकरी के बाद मिलने वाली पेंशन समेत सेवानिवृत्ति पश्चात् की कई अनेक सुविधाएँ भी उनको नहीं मिलेंगी, कर्नल ने यह भी बताया था कि वो सभी जवान बहुत कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के हैं. कर्नल के अनुरोध के बाद इंस्पेक्टर और SSP महोदय ने अपनी शिकायत को हल्की फुलकी धाराओं में बदल दिया था. अतः आधिकारिक तौर पर उन जवानों के खिलाफ हल्की फुलकी विभागीय कार्रवाई ही हुई थी. लेकिन उन सज्जन ने यह भी बताया था कि ऐसे बिगड़ैल जवानों को अनुशासन का पाठ सिखाने समझाने के सेना के अपने अनौपचारिक "तौर-तरीके" भी होते हैं जिनमे सैन्याधिकारी पारंगत होते हैं. अतः उन जवानों को उस रात ही तथा उसके बाद भी कुछ वैसा ही सबक इतना "ठीक" से सिखाया समझाया गया था कि उसके बाद कई दिनों तक उन्होंने शराब चाहे जितनी पी हो लेकिन उनपर नशा सवार नहीं हो पाया होगा. 

लेकिन उन सज्जन के उपरोक्त तर्क से इतर, अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि यदि यह तथाकथित "गलती" सेना के जवानों के अलावा किसी और ने की होती तो उसको क्या और कितने गम्भीर परिणाम भोगने पड़ते यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है, फिर उनकी सिफारिश चाहे कोई भी करता. 

अपने वषों पुराने इस संस्मरण का जिक्र आज इसलिए कर रहा हूं.

ताकि तीन बातें स्पष्ट कर सकूं...

पहली यह कि देश में सेना के जवानों के प्रति देश में जनभावनाएं कैसी हैं. इसका उदाहरण है उपरोक्त घटना. 

दूसरी यह कि इतने बेलगाम बेकाबू प्रवृत्ति के जवानों को सेना के कठोर अनुशासन में बांध कर रखने का दुरूह कार्य एक सैन्य अधिकारी ही करता है. कर्नल के पद से रिटायर हुए मेरे मित्र के वायोवृद्ध पिताश्री जब कभी मूड में होते थे तब अक्सर अपने ऐसे कुछ संस्मरणों को सुनाते थे जिन्हें सुनकर हंसी भी बहुत आती थी और यह अहसास भी होता था कि इन जवानों को अनुशासन के एकसूत्र में पिरोये रखने की एक सैन्याधिकारी की जिम्मेदारी क्या और कितनी कठिन होती हैं, जिसमें जरा सी चूक बहुत भारी दुर्घटना का कारण बन सकती है.... 

और तीसरी बात यह कि के प्रति भी सेना के उच्चाधिकारी कितने संवेदनशील होते हैं. 

और तीसरी बात यह कि जवानों को कठोर अनुशासन का कठिन सबक सिखाने वाले वही सैन्याधिकारी उन जवानों के दुःख दर्द के प्रति कितने संवेदनशील होते हैं. क्योंकि इंस्पेक्टर महोदय से मारपीट करने वाले उन जवानों की नौकरी जाने से उस कर्नल का रत्ती भर नुकसान भी नहीं होना था जिसने व्यक्तिगत रूप से पुलिस अधिकारियों से मिलकर उन जवानों के लिए अनुरोध किया था.

अतः पिछले ३-४ दिनों में सोशलमीडिया में सुनियोजित तरीके से वाइरल किये गए कुछ वीडियो के बहाने सेना और सुरक्षाबलों के अधिकारियों को देश के समक्ष खलनायक मत बनाइये. 

ऐसा करने से पहले यह ध्यान रखिये कि सैन्याधिकारियों को पूरे देश में खलनायक बनाने, सिद्ध करने का कुकर्म कर रहा तेजबहादुर यादव अपनी करतूतों से 2010 में ही कोर्टमार्शल की कगार पर पहुँच गया था जहां से सैन्याधिकारियों की दयालुता के चलते ही वह मुक्त हो पाया था. और भारतीय सेना के सभी सैन्याधिकारियों को अपने वीडियो से भ्रष्टाचारी राक्षस सिद्ध करने की देशघाती करतूत करनेवाले यज्ञप्रताप यादव के खिलाफ कोर्टमार्शल की कार्रवाई की सिफारिश महीनों पहले ही की जा चुकी है. यह ध्यान रखिये कि कोर्टमार्शल की कार्रवाई की सिफारिश यूं ही नहीं की जाती. और याद यह भी रखिये कि... दुनिया में आजतक ऐसा कोई सरकारी या निजी संस्थान कहीं नहीं बना जिसके सभी कर्मचारी अपने सब अधिकारियों से शत प्रतिशत संतुष्ट और सहमत होते हैं.

हर संस्थान हर विभाग में आपको कोई तेजबहादुर कोई यज्ञप्रताप जरूर मिलता है.

अतः कठोर सैन्य अनुशासन के दायरे की कठिन सीमाओं में बाँध कर रखने वाले किसी भी सैन्याधिकारी से सब जवान संतुष्ट और सहमत होंगे यह सोचना या ऐसी अपेक्षा करना ही स्वयम को धोखा देना होगा. 

Wednesday, January 11, 2017

बहुत डरावना है कांग्रेस का "डरो मत" का सिद्धांत...

राहुल गाँधी ने दिल्ली में अपनी पार्टी के आयोजन में यह ऐलान किया है कि... कांग्रेस का सिद्धांत-सन्देश है कि "डरो मत" ...!!!
राहुल गांधी के इस ऐलान के मायने और परिणाम हमे आशंकित भी करते हैं और भयभीत भी.. 
क्योंकि... हमने देखा है कि... 
➤➤जब केवल तीन दिनों में तीन हज़ार सिक्खों का सरेआम कत्लेआम दिल्ली में हुआ तब सरकार कांग्रेस की थी और आज 33 साल बाद भी उस नरसंहार में शामिल किसी हत्यारे को सज़ा नहीं हुई है. अर्थात उन हत्यारों को सन्देश बहुत साफ़ था कि "डरो मत".
➤➤जब केवल 5 घण्टे में हज़ारों निर्दोष लोगों की हत्या का मुख्य जिम्मेदार वॉरेन एंडरसन सरकारी संरक्षण में सरकारी गाड़ी से भोपाल और देश से भगा तब सरकार कांग्रेस की थी. अर्थात वॉरेन एंडरसन को सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत.
➤➤जब कश्मीर से तीन लाख पण्डितों को लूटा मारा और भगाया गया, उनकी माँ बहन बेटियों के साथ बलात्कार किया गया, उनका कत्ल किया गया तब कांग्रेस की सरकार थी और ऐसा करनेवाले किसी भी लुटेरे हत्यारे को आजतक सज़ा नहीं मिली है. अर्थात उन लुटेरों हत्यारों को सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत...
➤➤जब 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में बम विस्फोट करके पाकिस्तानी आतंकियों ने सैकड़ों निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया था तब कांग्रेस की सरकार थी और उस सरकार के दो मंत्रियों अर्जुन सिंह तथा अब्दुल रहमान अंतुले ने तब कहा था कि मुस्लिमों को बदनाम करने के लिए यह बम विस्फोट हिन्दू संगठनों ने करवाये हैं. अर्थात उन पाकिस्तानी आतंकी हत्यारों को कांग्रेस का सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत...
➤➤जब नवम्बर 2008 में मुम्बई पर हमला करके पाकिस्तानी आतंकियों ने सैकड़ों निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया था तब कांग्रेस की सरकार थी और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने जब यह कहा था कि यह आतंकी हमला RSS की साज़िश है. अर्थात उन पाकिस्तानी आतंकी हत्यारों को कांग्रेस का सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत...
   
सिर्फ यही नहीं...
➤➤जब देश से करोड़ों रुपये लूटकर इटली का हथियार दलाल ओतावियो क्वात्रोची लूट की रकम समेत देश से बेरोकटोक भागा था तब सरकार कांग्रेस की थी. अर्थात क्वात्रोची को सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत...
➤➤जब देश में घोटालेबाजों ने 2G घोटाला करके देश के 1.76 लाख करोड़ लूट लिए तब सरकार कांग्रेस की थी और उस सरकार का मंत्री कपिल सिब्बल उस लूट को जीरो लॉस थ्योरी कह कर नकार रहा था अर्थात उन घोटालेबाज लुटेरों को सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत.
➤➤जब देश में घोटालेबाजों ने कोयला घोटाला करके देश के 1.86 लाख करोड़ लूट लिए थे तब सरकार कांग्रेस की थी. और उस सरकार का प्रधानमंत्री उस यह कह कर नकार रहा था कि कोई घोटाला नहीं हुआ है. अर्थात उन घोटालेबाज लुटेरों को सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत.
➤➤जब देश में घोटालेबाजों ने CWG घोटाला करके देश के 70 हज़ार करोड़ लूट लिए गए थे तब सरकार कांग्रेस की थी और सरकार कह रही थी कि कोई घोटाला नहीं हुआ है..अर्थात उन घोटालेबाज लुटेरों को सन्देश बहुत साफ़ था कि डरो मत...

कांग्रेस के डरो मत सिद्धांत के ऐसे असंख्य उदाहरण हैं, लेकिन अंत में एक उदाहरण आवश्यक हैं.
➤➤1947 पाकिस्तान एक तिहाई कश्मीर हमसे छीन कर ले गया था, तब सरकार कांग्रेस की थी, उस समय उससे लड़कर वह कश्मीर वापस लेने के बजाय कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने कश्मीर की पाकिस्तानी लूट का मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर उसको अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप का मुद्दा बनाकर यथास्थिति पर मुहर लगवा दी थी. अर्थात पाकिस्तान को सन्देश दे दिया गया था कि डरो मत...
अतः अतीत के उपरोक्त उदाहरणों के चलते राहुल गांधी के "डरो मत" ऐलान के मायने और परिणाम हमे आशंकित भी करते हैं और भयभीत भी.. 

अखिलेश के वायदों पर विश्वास क्यों करे उत्तरप्रदेश.?

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस बार की चुनावी जंग जीतने के लिए मुफ्त स्मारर्टफोन, मुफ्त गेंहूँ-चावल और मुफ्त घी के साथ ही साथ गरीबों को 1000 रू पेंशन का चुनावी दांव चल दिया है. अपने इस दांव का राग वह अपनी हर जनसभा और संचार माध्यमों में लगातार बार-बार दोहरा भी रहे हैं. पिछली बार 2012 में भी उन्होंने मुफ्त लैपटॉप और टेबलेट तथा प्रतिमाह 1000 रू का बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा कर के चुनावी जंग जीत ली थी किन्तु इस बार उनके लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि जनता उनसे उनके पिछले वायदों का हिसाब किताब अवश्य मांगेगी. अखिलेश यादव के लिए यह हिसाब किताब बहुत महंगा सिद्ध होगा क्योंकि पिछली बार जनता से किये गए अपने वायदों की शत प्रतिशत पूर्ति व प्रदेश के सर्वांगीण विकास के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दावों की धरातलीय वास्तविकता उनके दावों के बिलकुल विपरीत है....
2012 के अपने चुनावी घोषणापत्र में सपा द्वारा किये गए दो वायदे सर्वाधिक चर्चित एवम लोकप्रिय हुए थे. उत्तरप्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाने में इन दो वायदों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवम निर्णायक सिद्ध हुयी थी. इन दो वायदों में पहला वायदा था 12वीं कक्षा पास करनेवाले प्रत्येक छात्र को एक लैपटॉप तथा 10वीं कक्षा पास करनेवाले प्रत्येक छात्र को एक टेबलेट देने का वायदा.
आजकल मीडिया के सामने तथा सार्वजानिक मंचों से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जब यह दावा करते हैं कि हमने जनता से जो वायदे किये थे वो सारे वायदे पूरे किये तो सबसे पहले वो यही बताते हैं कि हमने नौजवानों को लैपटॉप देने का जो वायदा किया था उसको लगभग 15 लाख लैपटॉप बांट कर पूरा भी किया. यही वह बिंदु है जहां मीडिया पर खर्च की गयी लगभग 1100 करोड़ रू की रकम की धमक अपना रंग दिखाती है. लैपटॉप बाँटने का अपना वायदा पूरा करने के अखिलेश के वायदे को वास्तविकता की कसौटी पर कसने से मीडिया ने पूर्णतः परहेज किया है. जबकि अखिलेश के इस दावे की वास्तविकता सत्य से बिलकुल परे है . मार्च 2012 में अखिलेश यादव द्वारा प्रदेश की सत्ता सम्भालने के बाद से जून 2016 तक 12वीं कक्षा पास करने वाले छात्रों की संख्या लगभग 1 करोड़ 28 लाख हो चुकी थी. यहाँ उल्लेखनीय यह भी है कि यह संख्या केवल उन छात्र की है जिन्होंने यूपी बोर्ड की 12वीं कक्षा की परीक्षा पास की है . इसमें पिछले 5 वर्षों में CBSE तथा ICSE बोर्ड की 12वीं कक्षा पास करनेवाले छात्रों की संख्या शामिल नहीं है. यदि उन छात्रों की संख्या भी इसमें जोड़ दी जाये तो पिछले 5 वर्षों में उत्तर प्रदेश में 12वीं कक्षा पास करनेवालों की संख्या इससे भी अधिक हो जाएगी.
अतः प्रदेश के 1 करोड़ 28 लाख से भी अधिक छात्रों को लैपटॉप देने का जो वायदा किया गया था क्या उस वायदे को केवल 11.7% (15 लाख) छात्रों को लैपटॉप देकर पूरा हुआ मान लिया जाना चाहिए.?
अखिलेश यादव के इस वायदे के उस दूसरे भाग की वास्तविकता और भी अधिक हास्यास्पद एवम शर्मनाक है जिसमें उन्होंने प्रदेश में 10वीं कक्षा पास करनेवाले प्रत्येक छात्र को टेबलेट देने का वायदा अपने घोषणापत्र में किया था. अखिलेश यादव द्वारा प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद से लेकर इस वर्ष जून 2016 तक केवल यूपी बोर्ड की 10वीं कक्षा पास करनेवाले छात्रों की संख्या लगभग 1करोड़ 40लाख के आंकड़े को पार कर चुकी थी. किन्तु इन छात्रों को वह टेबलेट बांटे ही नहीं गए. इसीलिए अपने वायदे पूरे करने का दावा करते समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल लैपटॉप का जिक्र तो कर रहे हैं किन्तु टेबलेट का कोई जिक्र तक नहीं करते.
उत्तरप्रदेश की भावी पीढ़ी के करोड़ों सदस्यों के साथ ऐसी सरासर वायदा खिलाफी के पश्चात् सार्वजनिक और मीडिया मंचों से उन्हीं वायदों को पूरा करने का अखिलेश यादव का दावा कितना दमदार या कितना खोखला है.? कितना सच्चा, कितना झूठा है ? यह अनुमान लगाना कतई कठिन नहीं है.?

2012 के अपने चुनावी घोषणापत्र में उत्तरप्रदेश के नौजवानों को 1000 रू प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता देने के सपा के दूसरे वायदे ने उसके लिए ब्रह्मास्त्र का कार्य किया था. किन्तु अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार ने प्रदेश के कितने बेरोजगार नौजवानों को 1000 रू का बेरोजगारी भत्ता कब तक दिया गया.? या क्या आज भी दिया जा रहा है.? बेरोजगार नौजवानों को यदि यह भत्ता नहीं दिया जा रहा है तो क्यों नहीं दिया जा रहा है.? अखिलेश सरकार के लगभग 1000 करोड़ के विज्ञापन बजट के बोझ से झुकी कमर के कारण मीडिया ऐसे सवालों से भले ही पूरी तरह परहेज बरत रही है किन्तु मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इन सवालों का जवाब इसबार के चुनाव में जनता की अदालत में देना ही पड़ेगा. इसबार यह सवाल और भी अधिक गम्भीर तथा प्रासंगिक इसलिए हो गया है क्योंकि मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने जब उत्तरप्रदेश की सत्ता संभाली थी उस समय प्रदेश में एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज में दर्ज बेरोजगारों की संख्या का आंकड़ा लगभग 50 लाख के करीब था जो 2012 से 2017 की अवधि की 12वीं पंचवर्षीय योजना से सम्बन्धित नेशनल सैम्पिल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) की रिपोर्ट के आंकड़ों को जोड़ने के बाद मार्च 2017 में बढ़कर लगभग 1 करोड़ 32 लाख हो जायेगा. उत्तरप्रदेश में रोजगार के अवसरों की जर्जर बदहाल अवस्था को बयान करते यह आंकड़े केवल कागज़ी नहीं है. सितम्बर 2015 में (मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल के चौथे वर्ष में) चपरासी के 368 पदों के लिए आये 23 लाख से अधिक आवेदन तथा उन आवेदनों में पीएचडी डिग्रीधारक आवेदनकर्ताओं की उपस्थिति यह दर्शा बता रही थी कि प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या केवल गम्भीर नहीं हुई है बल्कि भयावह स्तर को पार कर चुकी है.

2012 में प्रदेश के नौजवानों के साथ किये गए अपने उपरोक्त दो वायदों को पूरा करने में असफल रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रदेश के नौजवानों के साथ वायदाखिलाफी की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है...
2012 में समाजवादी पार्टी ने नौजवानों से यह वायदा भी किया था कि प्रदेश के सभी निजी उच्च एवं व्यावसायिक स्कूलो में 5 लाख सालाना वेतन से कम आय वाले परिवारों के बच्चों की फीस माफ की जायेगी, सभी सरकारी एवं अनुदानित निजी महाविद्यालयों में स्नातक स्तर तक लड़कियों को मुफ्त शिक्षा दी जायेगी. तथा उत्तर प्रदेश के सभी विकासखण्ड़ों में जमीन की उपलब्धता देखते हुए सरकारी कन्या स्नातक कालेंजो की स्थापना की जाएगी और पांच साल के अन्दर इन महाविद्यालयों में बी.एड. कक्षाएं चलाने की व्यवस्था अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जायेगी. उत्तरप्रदेश का नौजवान आज 5 साल बाद भी इन सपनों के पूरा होने की बाट जोह रहा है. समाजवादी पार्टी ने यह भी वायदा किया था कि इण्टर तक बिना सरकारी अनुदान के पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिये जीविकोपार्जन भर के मासिक मानदेय की व्यवस्था की जाएगी तथा प्रदेश के विभिन्न विद्यालयों में कार्यरत शिक्षामित्रों को अगले दो वर्षो में नियमित करते हुए समायोजित किया जायेगा.
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का 5 वर्ष का सत्ता का सुहाना सफर दो माह बाद पूर्ण होने जा रहा है किन्तु प्रदेश के नौजवानों के साथ किये गए उनके उपरोक्त वायदों की पूर्ति की प्रतीक्षा प्रदेश आज भी कर रहा है.

समाजवादी पार्टी की वायदाखिलाफी का दूसरा सबसे बड़ा शिकार प्रदेश के किसान बने हैं.
2012 में किसानों को लुभाने के लिए समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि किसानों की उपज का लागत मूल्य निर्धारित करने के लिए ऐसे आयोग का गठन किया जायेगा जो हर तीन महीने में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौपेगा। लागत मूल्यों में 50 फीसदी जोड़कर जो राशि आयेगी उस पर चुनाव जीतने के बाद आने वाली समाजवादी सरकार न्युनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करेगी तथा सरकार सीधे किसानों से इस मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करेगी. आज 5 साल बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यह बताने की स्थिति में नहीं है कि उस किसान आयोग का क्या हुआ.? घोषणा पत्र में किसानों के लिए यह घोषणा भी की गई थी कि 65 वर्ष की उम्र प्राप्त करने वाले छोटी जोत के किसानों कों पेंशन दी जायेगी. सिंचाई के लिए मुफ्त पानी, बंजर जमीन पर खेती के लिए भूमि देना जैसी बातें भी घोषणापत्र में शामिल थी. इन वायदों का क्या हुआ.? यह वायदे कितने पूरे हुए.? इसका कोई लेखाजोखा देने से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल सख्त परहेज बरत रहे हैं.

प्रदेश के चहुमुंखी विकास के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दावे को यह स्थिति उन संगीन सवालों के कठोर कठघरे में भी खड़ा कर रही है जिन सवालों को लगभग 1000 करोड़ के विज्ञापन बजट के बोझ से झुकी अपनी कमर के कारण मीडिया मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भले ही नहीं पूछ रहा है किन्तु जनता की चुनावी अदालत में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इसका जवाब देना ही होगा कि उनके द्वारा किया गया प्रदेश का यह कैसा विकास है जिसमें चपरासी के 368 पदों के लिए 255 पीएचडी धारकों समेत 23 लाख बेरोजगार नौजवानों की भीड़ उमड़ पड़ती है.?
दरअसल प्रदेश में विकास की इस भयावह स्थिति के लिए कोई और नहीं बल्कि स्वयम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सोच और प्राथमिकताएं ही जिम्मेदार हैं. जिन्हें आजकल उनके द्वारा किये जा रहे विकास के दावों की गूँज में भलीभांति सुना जा सकता है. उत्तरप्रदेश में 5 वर्ष के अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों का जो पिटारा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल सार्वजनिक चुनावी मंचों पर और मीडिया के समक्ष बार बार लगातार खोल रहे हैं उसमें लखनऊ में 7-8 किलोमीटर के दायरे में आगामी 26 मार्च से चलना शुरू करनेवाली मेट्रो ट्रेन, लखनऊ से आगरा तक बने 302 किलोमीटर लम्बे एक्सप्रेसवे तथा लखनऊ में एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण को अपनी विकासपरक सर्वाधिक मह्त्बपूर्ण उपलब्धियों के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.
2 लाख 43 हज़ार 290 वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल और लगभग, 20 करोड़ जनसंख्या वाले उत्तरप्रदेश में जहाँ 33% जनसंख्या (लगभग 6 करोड़ 60 लाख व्यक्ति) गरीबी की रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं, उस उत्तरप्रदेश के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विकास कार्यों के पिटारे के उपरोक्त सर्वाधिक जगमगाते रत्नों से प्रदेश की जनता को पिछले 5 वर्षों में क्या, कैसी और कितनी राहत मिली होगी इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. प्रदेश में भयावह रूप ले चुकी बेरोजगारी की समस्या मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उपरोक्त प्राथमिकताओं का एकमात्र दुष्परिणाम नहीं है. यह एक उदाहरण मात्र है. बिजली पानी सड़क स्वास्थ्य और शिक्षा सरीखे मुद्दों पर भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है. मई 2016 में राज्यसभा में प्रस्तुत की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश के 76 में से 50 जिले पेयजल की भारी कमी की गम्भीर समस्या से ग्रस्त हैं. बिजली की भारी कमी से जूझनेवाले देश के टॉप 5 राज्यों में उत्तरप्रदेश चौथे स्थान पर है.
मार्च 2012 में जब अखिलेश यादव ने प्रदेश की सत्ता संभाली थी उस समय प्रदेश बिजली की मांग और आपूर्ति के मध्य 1739 मेगावाट की कमी से जूझ रहा था. इसके लगभग साढ़े चार वर्ष पश्चात् जून 2016 में भी प्रदेश 1546 मेगावाट बिजली की कमी से जूझ रहा था. साढ़े चार वर्षों में बिजली की मांग और आपूर्ति के मध्य के अंतर में केवल 193 मेगावाट बिजली की कमी को दूर कर सकी है प्रदेश की अखिलेश सरकार. उत्तरप्रदेश में किस विकास की यह कैसी रफ़्तार है.? प्रदेशों में सडकों के निर्माण की स्थिति यह है कि मार्च 2012 तक उत्तरप्रदेश में राज्य सरकार द्वारा निर्मित राजमार्गों की लम्बाई 7876 किलोमीटर थी जो अब बढ़कर लगभग 8500 किमी हो चुकी है. अर्थात प्रतिवर्ष लगभग 125 किमी राजमार्ग का निर्माण हुआ. इसमें यदि आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे को भी जोड़ दिया जाये तो यह लम्बाई 175 किमी प्रतिवर्ष हो जाती है. अर्थात पिछले पांच वर्षों में प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा प्रतिदिन केवल 480 मीटर राजमार्ग का निर्माण किया गया है. उत्तरप्रदेश में किस विकास की यह कैसी रफ़्तार है.?
स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्थिति यह है कि 2015 तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उत्तरप्रदेश में 31,037 स्वाथ्य उपकेंद्रों की आवश्यकता है तथा 5,172 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवम 1293 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता है किन्तु वह लगभग 33% स्वास्थ्य उपकेंद्रों, तथा इतने ही (33%) प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व 40% सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी से जूझ रहा है, यहां विशेषरूप से यह उल्लेखनीय है कि मार्च 2012 में जब अखिलेश यादव ने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश में 20521 स्वास्थ्य उपकेंद्र थे और 2015 की समाप्ति पर भी 20521 स्वास्थ्य उपकेंद्र ही थे. हद तो यह है कि मार्च 2012 में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 3692 थी वह 2015 की समाप्ति तक घट कर 3497 हो गयी थी. इस अवधि में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में अवश्य बढ़ोत्तरी हुई और उनकी संख्या 515 से बढ़कर 773 हो गयी. किन्तु सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में हुई 258 अंकों की इस बढ़ोत्तरी की पृष्ठभूमि में 195 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की उपरोक्त बलि की विशेष भूमिका है. स्वास्थ्य से सम्बन्धित आधारभूत ढांचे की यह कमी प्रदेशवासियों के लिए कितनी जानलेवा सिद्ध हो रही है यह इसी से समझा जा सकता है कि उत्तरप्रदेश में तपेदिक टॉयफॉईड और कैंसर से मरने वाले मरीजों की संख्या व प्रतिशत देश में सर्वाधिक है. प्रदेश की बाल मृत्यु दर भी देश में सर्वाधिक है.

अंत में उल्लेख उत्तरप्रदेश की सर्वाधिक गम्भीर समस्यायों में से एक कानून व्यवस्था की. इस सन्दर्भ में संक्षेप में केवल दो तथ्य ही उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था की बदहाली की पूरी कहानी कह देते हैं. राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2016 में उत्तरप्रदेश में अपराध से सम्बन्धित आंकड़ों को जब उजागर किया था तो उसने यह बताया था कि केवल एक वर्ष 2015 में उत्तरप्रदेश पुलिस की हिरासत में हुए बलात्कारों के 91 मामले दर्ज किये गए थे. अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था के कर्णधारों की फौज की कार्यशैली कितनी अनुशासित और कितनी निरंकुश है.? उत्तरप्रदेश की कानून व्यवस्था से सम्बन्धित दूसरा तथ्य प्रदेश पुलिस की उपरोक्त कार्यशैली से उत्पन्न दुष्परिणामों को दर्शाता है. दिसम्बर 2016 में सामने आयी एक सरकारी रिपोर्ट के ही अनुसार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के 4 वर्ष 9 महीने के कार्यकाल के दौरान प्रदेश में हर 32वें घण्टे में अपराधियों ने पुलिसवालों पर जानलेवा हमले किये. इस समयावधि में बदमाशों के ऐसे हमलों में पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपाधीक्षक समेत लगभग दो दर्जन पुलिसकर्मियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. प्रदेश में कानून व्यवस्था की दयनीय दशा की दर्दनाक दास्ताँ कहते उपरोक्त आंकड़े मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रशासनिक क्षमता की सच्चाई भी बयान कर देते है क्योंकि उत्तरप्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद से ही गृहमंत्रालय का कार्यभार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वयम ही सम्भाल रहे हैं.