Saturday, April 15, 2017

क्यों टूटा देश के धैर्य का बाँध.?

मई 2014 में भाजपा को मिली ऐतिहासिक चुनावी सफलता के लगभग तीन साल (34 महीनों) बाद देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में भाजपा को मिले जनादेश ने एक बार पुनः इतिहास रच दिया है. उत्तरप्रदेश के 65 वर्ष लम्बे चुनावी इतिहास में जनता ने किसी राजनीतिक दल को पहली बार 80% से अधिक बहुमत देकर प्रदेश की सत्ता सौंपी है. 2014 से 2017 के मध्य जारी रही भाजपा की इस तूफानी विजय यात्रा का परिणाम यह हुआ है कि देश के 13 राज्यों में उसकी सरकार है तथा देश के 4 अन्य राज्यों में अपने सहयोगी दलों के साथ उसकी सरकार है. कुल मिलाकर भाजपा आज देश के 17 राज्यों में शासन कर रही है. तथा इन्हीं तीन वर्षों के कालखण्ड में भाजपा केवल देश की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है.
क्या कारण है कि 1990 तक देश के कुछ हिंदी भाषी राज्यों की एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी मात्र रही भाजपा के राजनीतिक दबदबे ने पिछले ढाई दशकों में इतनी लम्बी और ऊंची छलांग लगाई है कि आज वो देश के 17 राज्यों में शासन कर रही है तथा दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बन चुकी है.?
इस सवाल पर पिछले ढाई तीन वर्षों से, विशेषकर मई 2014 में भाजपा को मिली ऐतिहासिक विजय के बाद से देश में गहन चिंतन मंथन और चर्चा हो रही है. लगभग 60 वर्षों तक इस देश पर शासन कर चुकी कांग्रेस द्वारा पोषित बौद्धिक वैचारिक और मीडियाई खेमे ऐसी चर्चाओं का बाजार गर्म किये हैं. देश की राजनीति में भाजपा के प्रचण्ड उभार के कारणों की असत्य अराजक व्याख्यायों का अश्लील दौर तथाकथित सेक्युलरिज्म की आड़ में देश में पिछले ढाई तीन वर्षों से जोरशोर से जारी है. भाजपा के बढ़ते राजनीतिक प्रभुत्व को कभी कट्टरता, कभी साम्प्रदायिकता कभी असहिष्णुता का उभार कहकर परिभाषित किया जाता रहा है. किन्तु यह सत्य नहीं है.
दरअसल देश के जनादेश में यह ऐतिहासिक परिवर्तन अनायास या अकस्मात नहीं हुआ था. यह जनादेश किसी एक घटना या दुर्घटना का तात्कालिक परिणाम भी नहीं था. इस ऐतिहासिक परिवर्तन की नींव 2014 से वर्षों पहले तैयार होने लगी थी. पिछले ढाई से तीन दशकों के दौरान देश में तथाकथित सेक्युलरिज्म की विकृत विषाक्त विचारधारा जमकर पुष्पित पल्लवित प्रचारित हुई. इस विचारधारा ने देश के बहुसंख्यक हिंदुओं की आत्मा को, आस्था को, अस्मिता को, उसकी राष्ट्रीय भावनाओं को लगातार आहत और अपमानित किया, उसके राष्ट्रीय सम्मान स्वाभिमान को बुरी तरह क्षत विक्षत किया. यही वह कालखण्ड था जब देश ने अपने लिए नए राजनीतिक विकल्प की खोज प्रारम्भ की. इस दौरान देश मौन नहीं रहा था. उसकी आत्मा आस्था अस्मिता तथा उसके राष्ट्रीय सम्मान स्वाभिमान पर प्रहार करनेवालों को वो निरन्तर चेतावनी दे रहा था. किन्तु तथाकथित सेक्युलरिज्म की विकृत विषाक्त विचारधारा के कुटिल कर्णधार इस दौरान देश के धैर्य की कठोर परीक्षा लगातार ले रहे थे. किन्तु अपने लिए नए विकल्प की तलाश कर रहे देश ने अपनी तलाश पूरी होने तक अपने धैर्य के बाँध को टूटने नहीं दिया था.
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब देश का तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुलेआम एलान करता घूम रहा था कि 120 करोड़ की जनसँख्या वाले देश के सब संसाधनों पर पहला हक़ देश के 20 करोड़ मुसलमानों का है.
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब देश के सेक्युलर शासकों ने देश के 100 करोड़ हिंदुओं पर वह एकतरफा यमराजी कानून थोपने की कोशिश की थी जिसके अनुसार साम्प्रदायिक दंगा होने पर किसी मुस्लिम द्वारा नामजद हिन्दू को गैर जमानती धाराओं के अंतर्गत तत्काल गिरफ्तार कर उसकी सारी सम्पत्ति जब्त कर ली जाती तथा स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने का दायित्व भी उसपर ही होता, किन्तु मुस्लिम दंगाइयों को सेक्युलर शासकों ने अपने इस तुगलकी कानून के दायरे से बाहर रखा था. 
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थल पर उनके मन्दिर के निर्माण की मांग कर रहे सौ करोड़ हिंदुओं से देश के सेक्युलर शासकों ने भगवान राम के अस्तित्व का सबूत माँगा था. उन्होंने वामपंथी इतिहासकारों के माध्यम से हिंदुओं को यह समझाने का घृणित प्रयास किया था कि माँ सीता भगवान श्रीराम की पत्नी नहीं बल्कि बहन थीं तथा भगवान श्री हनुमान जी की प्रेमिका थी 
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब इस देश के सेक्युलर भाग्यविधाता देश की सर्वोच्च अदालत में बाकायदा हलफनामा देकर यह एलान कर आये थे कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था श्रद्धा के सर्वोच्च शिखर भगवान श्रीराम केवल एक ऐसी गप्प हैं, अफवाह हैं जिसका कहीं कोई साक्ष्य नहीं है.
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब भगवान श्रीराम के दर्शन कर अयोध्या से वापस लौट रहे ५९ रामभक्तों को ट्रेन के डिब्बे में दंगाई मुस्लिम गुंडों ने जिन्दा जलाकर मौत के घाट उतार दिया था किन्तु इस देश के सेक्युलर शासकों ने बाकायदा एक न्यायिक जाँच का ढोंग कर के यह सिद्ध करने का कुकर्म किया था कि, उन रामभक्तों को किसी ने नहीं जलाया था और वो खुद अपनी लगाई आग में जलकर मर गए थे.
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब हिन्दू देवी देवताओं के साथ ही साथ भारत माता के अश्लील नग्न चित्र बना रहे एमएफ हुसैन नाम के धूर्त को उसके कुकर्म के लिए दण्डित करने के बजाय इस देश के सेक्युलर भाग्यविधाता उस धूर्त हुसैन को पद्मश्री और पद्मविभूषण सरीखे शासकीय सम्मानों से सम्मानित कर रहे थे.
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब इस देश के तथाकथित सेक्युलर भाग्यविधाताओं के शासन में सरकारी पाठ्यपुस्तकों में भगवान शंकर का परिचय शराबी और बलात्कारी तथा देवी माँ दुर्गा का परिचय शराब के नशे में धुत्त रहनेवाली व्यभिचारिणी लिखा गया था.
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब भगवान बजरंगबली को इस धरती का पहला आतंकवादी लिखनेवाले धूर्त राजेन्द्र यादव को दण्डित करने के बजाय इस देश के सेक्युलर भाग्यविधाता उस धूर्त राजेन्द्र यादव को पद्मश्री से सम्मानित कर रहे थे.
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब बाकायदा संसद के भीतर कट्टर धर्मान्ध साम्प्रदायिकता के ठेकेदार देश के राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम का खुलेआम अपमान कर रहे थे. 
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब उन ठेकेदारों के विरुद्ध कार्रवाई करने के बजाय देश के सेक्युलर शासक उन ठेकेदारों का निर्लज्ज बचाव कर रहे थे. 
इस देश के धैर्य का बाँध तब भी नहीं टूटा था जब दंगाई मुस्लिम गुंडों ने काश्मीर में सदियों से रह रहे 3 लाख कश्मीरी पण्डितों से रातोंरात उनके घर उनकी जमीन छीन लिए थे. सड़कों पर खुलेआम उनका कत्लेआम किया था. उनकी माँ बहन बेटियों की इज़्ज़त आबरू के साथ बर्बर व्यवहार किया था. किन्तु देश के सेक्युलर शासकों ने ऐसा करनेवाले उन दंगाई मुस्लिम गुंडों में से किसी एक को भी इसके लिए दण्डित नहीं किया था. वो 3 लाख कश्मीरी पण्डित अभीतक दर दर भटकते रहे हैं. इनदिनों केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों से उनकी घरवापसी की उम्मीदें अवश्य बढ़ गयी हैं. 
उपरोक्त घटनाक्रम तो कुछ उदाहरण मात्र हैं. पिछले 25 वर्षों के दौरान घटे ऐसे घटनाक्रमों से सम्बन्धित तथाकथित सेक्युलरिज्म के ठेकेदारों की यह कुकर्मगाथा बहुत लम्बी है.
इस दौरान देश ने अपने सब्र के बांध को टूटने भी नहीं दिया था तथा अपने लिए एक सशक्त विकल्प की तलाश भी जारी रखी थी. जो 2002 में उसको तब पूरी होती हुई दिखी थी जब देश के पश्चिमी कोने के राज्य गुजरात का तत्कालीन शासक नरेंद्र मोदी उन सेक्युलर शासकों के विरोध में उनके समक्ष स्वाभिमान के साथ तनकर खड़ा हो गया था और आगे बढ़कर उनको आइना दिखाने में कोई संकोच नहीं कर रहा था. यह वह निर्णायक कालखण्ड था जब पूरे देश के तथाकथित सेक्युलर गिरोह 28 फरवरी 2002 को गोधरा में 59 रामभक्तों को जिन्दा जलाकर मौत के घाट उतारनेवाले मुस्लिम दंगाई गुंडों के बचाव में लामबन्द हो गए थे और उनका शिकार बने 59 रामभक्तों की मौत का जिम्मेदार उन रामभक्तों को ही सिद्ध करने में जुट गए थे. किन्तु नरेंद्र मोदी नाम का गुजरात का वह तत्कालीन शासक उस देशव्यापी सेक्युलरी षड्यन्त्र से ना तो भयभीत हुआ था ना ही भ्रमित हुआ था. उसकी दृढ इच्छाशक्ति का ही परिणाम था कि देश के सेक्युलर शासक अपनी न्यायिक जाँच के पाखण्डी षड्यन्त्र से जिन 59 रामभक्तों कि मौत का जिम्मेदार उन रामभक्तों को ही सिद्ध करके उनके हत्यारों को बचाने का कुकर्म करते रहे थे उन्हीं 59 रामभक्तों की हत्या के आरोप में न्यायालय ने 10 मुस्लिम दंगाई गुंडों को मृत्युदण्ड तथा 25 मुस्लिम दंगाई गुंडों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी.
सोहराबुद्दीन और इशरत जहाँ सरीखे आतंकियों की मौत पर भी देश के तथाकथित सेक्युलर शासकों के देशघाती पाखण्डों षडयन्त्रों के विरुद्ध भी नरेंद्र मोदी जिस प्रकार चट्टान की तरह अडिग होकर खड़े हो गए थे उसे देखकर देश ने तय कर लिया था कि उसको जिस और जैसे विकल्प की तलाश है वो विकल्प नरेंद्र मोदी ही हैं.
तथाकथित सेक्युलर शासकों के देशघाती पाखण्डों और षडयन्त्रों के विरुद्ध भीषड़ संघर्ष करते हुए विपरीत परिस्थितियों में नरेंद्र मोदी ने गुजरात को चतुर्दिक विकास के सतरँगी इंद्रधनुष से जिस प्रकार सज्जित किया था उसके कारण देश ने अपने नए विकल्प के रूप में नरेंद्र मोदी के नाम पर सर्वसम्मति से अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी थी. यही कारण है कि जब 2013 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित किया था तब पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने सार्वजनिक बयान देकर यह स्वीकार भी किया था कि यह पहला अवसर है जब प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार पार्टी के बजाय देश की जनता ने तय किया है. सुषमा स्वराज की यह स्वीकारोक्ति शत प्रतिशत सही भी थी.
उल्लेखनीय है कि अपने जन्मकाल से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा हिंदुत्व केंद्रित ही रही है. देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् जनसंघ के रूप में हुए उसके राजनीतिक अवतार की देश में पहचान और पैठ एक हिन्दूवादी राजनीतिक दल के रूप में ही हुई थी. स्वतन्त्रता के पश्चात् जनसंघ का राजनीतिक विस्तार तो हुआ था किन्तु वह एक ऐसी राजनीतिक शक्ति नहीं बन सका था जो स्वयं के बल पर देश या किसी प्रदेश में पूर्ण बहुमत की अपनी सरकार बना सके. 1977 तक उसकी भूमिका हिंदी भाषी क्षेत्रों में बनते बिगड़ते रहे कांग्रेस विरोधी राजनीतिक गठबन्धनों के महत्वपूर्ण सहयोगी और साझेदारों की तो रही किन्तु ड्राइविंग सीट से वो दूर ही रही. 
1977 में जनता पार्टी में विलय तथा 1980 में जनता पार्टी के विघटन के पश्चात् देश के राजनीतिक रंगमंच पर जनसंघ अपने नए नाम भारतीय जनता पार्टी के साथ अवतरित हुआ था. अगले दस वर्षों तक उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी. 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में केंद्र में बनी जनता दल की गठबंधन सरकार में भी भारतीय जनता पार्टी शामिल नहीं हुई थी. उसकी भूमिका उस सरकार को बाहर से अपना समर्थन दे रहे राजनीतिक दल की ही रही थी. राममंदिर आंदोलन के पश्चात देश के कुछ राज्यों तथा केंद्र में अपनी सरकार बनाने में भाजपा सफल तो हुई थी किन्तु विकल्प की तलाश कर रहे देश के मन की बात समझने में भाजपा की उस सरकार के तत्कालीन कर्णधार अटलबिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण अडवाणी से बड़ी चूक हुई थी. तथाकथित सेक्युलरिज्म के पाखण्डी भ्रमजाल में फंसने से वो बच नहीं सके थे. वर्ष 2002 में अमरनाथ तीर्थ यात्रा पर गए 40 श्रद्धालुओं को मौत के घाट उतारनेवाले हत्यारे आतंकवादियों के विरुद्ध उन्होंने तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की थी. इसके लिए उन्होंने रमजान के कारण स्वयं द्वारा घोषित एकतरफा युद्धविराम को बताया था. अपनी इस कायर कुटिल सेक्युलरी अकर्मण्यता के लिए उन्होंने तथाकथित सेक्युलर गिरोहों की वाहवाही तो अवश्य प्राप्त की थी किन्तु जिस देश ने विकल्प के रूप में उनको अपना कर्णधार चुना था वो देश उनकी इस कायर कुटिल रणनीति से बहुत आहत हुआ था. उन कर्णधारों द्वारा अपने सेक्युलरी पाखण्ड से देश को आहत करने का यह एकमात्र उदाहरण नहीं था. अतः देश ने अपने इस प्रयोग को असफल मानकर अपने लिए विकल्प की तलाश पुनः प्रारम्भ कर दी थी.
अन्ततः उसकी यह तलाश 2014 में अपने पड़ाव पर पहुंची थी. परिणामस्वरूप 16 मई 2014 को घोषित हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों ने एक नया इतिहास रच दिया था. देश की जनता ने 30 वर्षों के बाद किसी एक दल (भारतीय जनता पार्टी) को पूर्ण बहुमत के साथ देश की सत्ता सौंप दी थी. 62 वर्ष लम्बे देश के चुनावी इतिहास में यह पहला अवसर था जब शुद्ध रूप से एक गैर कांग्रेसी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था. इससे पहले 1977 में जनता पार्टी को मिली चुनावी विजय की तुलना 2014 में भाजपा को मिली चुनावी विजय से नहीं की जा सकती. 1977 में बनी जनता पार्टी वस्तुतः आम चुनावों से ठीक पहले हुए कई दलों का ऐसा गठबंधन थी जो केवल ढाई वर्ष की समयावधि में ही बुरी तरह टूटकर बिखर गयी थी 
भाजपा को 2014 में केंद्र में मिली ऐतिहासिक विजय के पश्चात् 2017 में उसको उत्तरप्रदेश में मिली ऐतिहासिक विजय के साथ ही साथ देश में तथाकथित सेक्युलरिज्म की सबसे बड़ी ठेकेदार कांग्रेस को मिली सीटों की संख्या उसके अबतक के चुनावी इतिहास मे केंद्र में पहली बार दो अंकों (44) पर सिमट गयी है तथा उत्तरप्रदेश में उसको मिली सीटों की संख्या पहली बार दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर पायी है और 7 पर सिमट गयी है.
यह स्थिति महाभारत के उस चर्चित प्रसंग की याद दिलाती है जब भगवान श्रीकृष्ण महाभारत से पहले संधि का अंतिम प्रयास करने दुर्योधन के पास यह प्रस्ताव लेकर गए थे कि... पूरे राज्य के बजाय पांचों पांडवों को तुम केवल पांच गांव दे दो तो युद्ध नहीं होगा. भगवान श्रीकृष्ण के इस प्रस्ताव का उत्तर दुर्योधन ने यह कहकर दिया था कि... पांच गांव तो दूर, पांडवों को मैं सुई की नोक के बराबर भूमि नहीं दूंगा...
इतिहास साक्षी है कि दुर्योधन के इस उत्तर का परिणाम क्या हुआ था.?
देश के बहुसंख्यक समाज ने भी सेक्युलर कौरवों से अपने लिए सत्ता का साम्राज्य नहीं बल्कि सुख शांति सुरक्षा सम्मान और स्वाभिमान के वो पांच गाँव ही मांगे थे जिन्हें पिछले 3 दशकों के दौरान उनसे छीन लिया गया था, लूट लिया गया था. अतः महाभारत तो होनी ही थी जो हुई भी. इस लोकतान्त्रिक महाभारत का परिणाम भी वही हुआ जो पौराणिक महाभारत का हुआ था.

Sunday, April 9, 2017

यूपी को रास आ गए योगी

आशा और आशंका के श्वेत-श्याम रंगों से सजी अपनी धार्मिक सामाजिक राजनीतिक छवि की अत्यंत चर्चित और विवादित छवि की पूँजी के साथ 19 मार्च को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने जब अपने राजनीतिक जीवन की नई पारी प्रारम्भ की तो उनके समर्थकों और आलोचकों के साथ ही साथ देश और उत्तरप्रदेश की जनता का परिचय योगी आदित्यनाथ की धार्मिक सामाजिक राजनीतिक छवि के बजाय उनके व्यक्तित्व के एक ऐसे पक्ष से हुआ है जिससे वह सभी पूरी तरह अपरिचित और अनभिज्ञ थे. योगी आदित्यनाथ के व्यक्तित्व का यह पक्ष है उनकी अदभुत प्रशासनिक क्षमता दक्षता और कर्मठता.

11 मार्च को घोषित हुए उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणामों के बाद से 19 मार्च की शाम तक, दिल्ली से लखनऊ वाया बनारस, लगातार 9 दिनों तक उत्तरप्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के नाम की अटकलों और अफवाहों की रस्सियों के सहारे झूलती रही संभावनाओं की कोख ने उत्तरप्रदेश के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जन्म दे दिया था. अपने तीखे और तेज़ाबी राजनीतिक धार्मिक तेवरों के कारण भगवा वस्त्रधारी योगी आदित्यनाथ का व्यक्तित्व अपने आलोचकों और समर्थकों के लिए किसी ज्वालामुखी से कम कभी नहीं रहा. उनके समर्थक उन्हें प्रखर राष्ट्रवाद और प्रचण्ड हिंदुत्व के उबलते हुए लावे से लबालब ज्वालामुखी से कम नहीं मानते. इसके ठीक विपरीत उनके आलोचक उन्हें एक ऐसे ज्वालामुखी के रूप में चिन्हित करते हैं जो मुस्लिम विरोधी कट्टर साम्प्रदायिकता के खौलते हुए लावे से लबालब है.
योगी आदित्यनाथ से सम्बन्धित अपनी उपरोक्त धारणाओं के कारण 19 मार्च को उत्तरप्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के उदय के साथ ही अगर उनके आलोचक आशंकाओ से ग्रसित थे तो उनके समर्थकों के उत्साह और उमंग की लहरें आसमान चूमने को आतुर थीं.
उत्तरप्रदेश की सत्ता सँभालने के पश्चात् केवल 20 दिनों में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने अपनी जिस प्रशासनिक क्षमता दक्षता और कर्मठता का प्रदर्शन किया है उसने प्रदेश में उनकी लोकप्रियता को अपरिमित ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है. उनके कट्टर आलोचक भी उनकी आलोचना का कोई कारण नहीं खोज सके हैं. परिणामस्वरूप दबे स्वरों में ही सही किन्तु उनकी सराहना कर रहे हैं.
यह सब अकारण अथवा पार्टी या सरकारी तन्त्र के किसी प्रचार अभियान की सुनियोजित रणनीति के कारण नहीं हो रहा है. इसके बजाय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस शैली में अपनी नई पारी जिस गति से प्रारम्भ की है उसका परिणाम है उनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता.
उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में लघु और सीमान्त किसानों की कर्ज़ माफ़ी के भाजपा के वायदे ने भाजपा को मिली ऐतिहासिक विजय में निर्णायक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अतः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सत्ता सँभालने के पश्चात् किसानों की कर्ज़ माफ़ी के अपने वायदे की पूर्ति करना उनके लिए पहली और सबसे बड़ी चुनौती बन गया था. पिछली सपा सरकार द्वारा छोड़े गए खाली खजाने ने उनकी चुनौती को कई गुना बढ़ा दिया था. शपथ ग्रहण के पश्चात् 16 दिनों तक अपने मन्त्रिमण्डल की पहली कैबिनेट बैठक टालते रहे मुख्यमंत्री योगी के आलोचकों और विपक्षी दलों तथा मीडिया के एक वर्ग ने कैबिनेट के बैठक ना करने को योगी की कमजोरी के रूप में प्रचारित करना प्रारम्भ कर दिया था. ऐसी अटकलें और अफवाहें गर्म की जाने लगीं थीं कि योगी सरकार किसानों की कर्ज़ माफ़ी के अपने वायदे की पूर्ति से बचने के बहाने खोज रही है. किन्तु 17वें दिन अपनी कैबिनेट की पहली बैठक में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने आलोचकों को यह सन्देश दे दिया कि "योगी के कार्यों, उनकी नीयत और नीतियों के आंकलन में जल्दबाजी उचित नहीं है. अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लघु व सीमांत किसानों को कर्जमाफी की सौगात देते हुए उनका एक लाख रुपये तक का फसली ऋण माफ कर दिया। साथ ही साथ उन किसानों का पूरा कर्ज माफ कर दिया है, जिन्हें बैंकों ने एनपीए घोषित कर दिया था। सरकार ने फसली ऋण के लिए 30,729 करोड़ और एनपीए ऋण के लिए 5630 करोड़ यानी कुल 36,359 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है. योगी सरकार के इस फैसले से से 86 लाख से अधिक उन लघु व सीमांत किसानों को लाभ होगा, जिन्होंने बैंकों से फसली ऋण ले रखा है। ऋणमाफी में सभी बैंकों से लिया गया ऋण शामिल होगा। ----ढाई एकड़ तक सीमांत किसानमंत्रियों ने बताया कि एक हेक्टेयर यानी 2.50 एकड़ तक के सभी किसान सीमांत श्रेणी में आएंगे, जबकि दो हेक्टेयर यानी पांच एकड़ तक के सभी किसान लघु श्रेणी में आएंगे.

योगी सरकार ने किसानों को केवल कर्ज़ माफ़ी की ही सौगात नहीं दी बल्कि इस वर्ष गेंहूँ की सरकारी खरीद का लक्ष्य लगभग ढाई से तीन गुना बढ़ाकर 80 लाख मीट्रिक टन कर दिया है. पहले यह लक्ष्य 20 से 30 लाख मीट्रिक टन तय किया जाता था, उसे भी पूरा नहीं किया जाता था.
पिछले कई वर्षों से उत्तरप्रदेश में भ्रष्टाचार का एक बड़ा केंद्र बन चुकी गेंहू की सरकारी खरीद की प्रक्रिया पर मुख्यमंत्री योगी ने इसबार अपने एक फैसले से निर्णायक प्रहार कर उसपर प्रभावी अंकुश लगाने में सफलता पायी है. सरकारी क्रय केंद्रों पर अपना गेंहू बेंचने वाले किसानों को उनके द्वारा बेंचे गए गेंहू के मूल्य की धनराशि अब सीधे उनके बैंक अकाउंट में भेजी जाएगी. भुगतान की यह प्रक्रिया तीन से चार दिन में पूरी की जाएगी. उत्तरप्रदेश में अप्रैल से लागू हुए योगी सरकार के इस नियम ने सरकारी क्रय केंद्रों में सक्रिय और प्रभावी रहने वाले बिचौलियों को तो लगभग समाप्त कर दिया है. अपने इस फैसले को लागू करने के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे को केवल 12 दिनों की समयावधि में तैयार करवा के योगी ने अपनी प्रशासनिक दृढ़ता एवम राजनीतिक इच्छाशक्ति का सफल प्रदर्शन किया है.
सत्ता सँभालने के तत्काल बाद ही योगी आदित्यनाथ ने एलान किया था कि 'हम दो महीने में ऐसे हालात पैदा करेंगे कि लोग बदलाव महसूस करेंगे और जानेंगे कि एक सरकार को कैसे काम करना चाहिए.' अपने इस एलान की गम्भीरता का प्रमाण योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल के प्रथम 15 दिनों की समयावधि में ही दे भी दिया. रोजाना लगभग 18 घण्टे कार्य कर के उन्होंने अपने प्रारम्भिक 15 दिनों के कार्यकाल में ही लगभग 100 से अधिक महत्वपूर्ण फैसले किये. उन फैसलों का सफलतापूर्वक क्रियान्वन सुनिश्चित किया. ऐसा कर के उन्होंने अपने आलोचकों और राजनीतिक विश्लेषकों समेत सबको चौंकाया है.
सत्ता के संरक्षण और सहयोग से हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट के आदेशों तथा नियमावलियों की धज्जियां उड़ाते हुए प्रदेश में गुंडों अपराधियों द्वारा वर्षों से संचालित किये जाते रहे सैकड़ों अवैध बूचड़खानों तथा पशु तस्करों के संगठित गिरोहों पर योगी सरकार ने केवल कुछ दिनों में ही अत्यंत कठोरता के साथ कानून का शिकंजा कसा और उनको बन्द करवाया है. अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश सरकार अवैध बूचड़खानों पर कोई नरमी नहीं बरतने जा रही है। हां, लाइसेंस के नवीनीकरण पर कोई एतराज नहीं होगा। इसके लिए हाई पावर कमेटी बनाई गई है जो यह सुनिश्चित करेगी कि जिन बूचड़खानों के पास लाइसेंस है वो बूचड़खाने सुप्रीमकोर्ट तथा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन कर रहे हैं या नहीं, उन दिशा निर्देशों का उल्लंघन करनेवाले बूचड़खानों को सरकार नहीं चलने देगी. मुख्यमंत्री योगी की इस प्रशासनिक दृढ़ता की सराहना प्रदेश का हर नागरिक कर रहा है. 
पिछले कुछ वर्षों से किशोरियों युवतियों महिलाओं लिए भय और आतंक पर्याय बन चुके जिन सड़कछाप लफंगों/शोहदों के खिलाफ कार्रवाई करने से प्रदेश की पुलिस राजनीतिक दबाव में कतराती थी, उनकी अराजक कारगुजारियों के खिलाफ अपनी आँखें बन्द किये रहती थी. वही पुलिस मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के पश्चात् उन सड़कछाप लफंगों/शोहदों पर कहर बनकर टूट पड़ी. इसका सुखद परिणाम यह निकला कि योगी के सत्ता सँभालने के केवल 72 घण्टों के भीतर ही प्रदेश के स्कूल, कॉलेजों, पार्कों, बाजारों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों से उन सड़कछाप लफंगों/शोहदों की फौज पूरी तरह गायब हो गयी है. सड़कों पर अब शोहदों/लफंगों के बजाय पुलिस के दस्ते गश्त करते दिखाई दे रहे हैं. बीती 11 मार्च को उत्तरप्रदेश में हुए ऐतिहासिक सत्ता परिवर्तन की प्रचण्ड आंधी के पश्चात् प्रदेश के सामाजिक प्रशासनिक राजनीतिक मौसम में हुए ऐतिहासिक परिवर्तनों का यदि प्रथम शब्दचित्र बनाया जाये तो निस्संकोच यह कहा जा सकता है कि स्कूल कॉलेज और शॉपिंग मॉल्स, बाजार जाने वाली किशोरियों युवतियों और महिलाओं के चेहरे इनदिनों खिले हुए हैं. भरपूर आत्मविश्वास से चमकते उनके चेहरे भयमुक्त मुस्कुराहट से सजे हुए हैं. पिछले कई वर्षों से लुटेरों हत्यारों भूमाफियाओं पशु तस्करों के खौफ के साये में ही जीने को विवश रहा हर आम नागरिक अब स्वतन्त्र और सुरक्षित वातावरण में भयमुक्त उन्मुक्तता का भरपूर आनंद ले रहा है
समयबद्धता व स्वच्छता को अपनी प्राथमिकता घोषित कर चुके योगी आदित्यनाथ द्वारा किये गए सचिवालय समेत पुलिस थाने व मेडिकल कॉलेज के आकस्मिक निरीक्षण के फलस्वरूप इन स्थानों पर पसरी रहनेवाली पान तम्बाकू की पीकों से सजी गन्दगी गायब हो गयी है. कार्यालयों चिकित्सालयों और विद्यालयों में अधिकारी कर्मचारी अभियंता अध्यापक और डॉक्टरों की समयबद्ध उपस्थिति के चलते प्रदेश की जनता को सुखद परिवर्तन की बयार बहती दिखने लगी है...इसे उत्तरप्रदेश के अच्छे दिन आने का संकेत माना जा रहा है.