Sunday, January 21, 2018

जय बोलो बेईमान की, जय बोलो...!!!

वित्तीय वर्ष 2013-14 यानि कि यूपीए के दस वर्ष के कार्यकाल की समाप्ति के समय (31मार्च 2014) तक देश में EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) में दर्ज कर्मचारियों की संख्या 11 करोड़ 78 लाख थी।
दिसम्बर 2017 में सरकार द्वारा लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार...
31 मार्च 2015 तक यह संख्या 15 करोड़ 84 लाख,
31 मार्च 2016 तक यह संख्या 17 करोड़ 14 लाख,
31 मार्च 2017 तक यह संख्या 19 करोड़ 33 लाख तक पहुंच चुकी थी।
अर्थात मोदी सरकार के पहले 3 वर्षों के कार्यकाल में EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) में दर्ज हुए कर्मचारियों की संख्या में 7 करोड़ 55 लाख की वृद्धि हुई है। ध्यान यह भी रहे कि मोदी सरकार आने के पश्चात EPF खाते को आधार कार्ड से लिंक करने की अनिवार्यता इन आंकड़ों की प्रमाणिकता को सन्देह से परे कर चुकी है।
इसके बावजूद यदि उपरोक्त संख्या के आधे को ही सच मान लिया जाए तो भी इन तीन वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन एक करोड़ 25 लाख नई नौकरियां लोगों को मिलीं हैं।
क्या यह आंकड़ा राहुल गांधी और कांग्रेसी फौज तथा सपा बसपा आरजेडी सरीखे उसके पिछलग्गू दलों के इस आरोप कि "मोदी सरकार के शासन में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है।" की धज्जियां नहीं उड़ा रहा।
लेकिन इसके बावजूद मोदी विरोधी यह टोली आज भी अपने उपरोक्त आरोप की तोता-रटंत में व्यस्त है।
यह देख सुनकर मोदी विरोधी इस टोली के लिए 1972 में रिलीज हुई मनोजकुमार की सुपरहिट फिल्म के सुपरहिट गीत की यह शुरुआती पंक्तियां सर्वाधिक उपयुक्त सिद्ध होती है...
ना इज़्ज़त की चिंता ना फिकर कोई अपमान की,
जय बोलो बेईमान की, जय बोलो.....!!!

लोकसभा में सरकार द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज की खबर/आंकड़ें इस रिपोर्ट के अंत में देखकर पुष्टि कीजिये
http://www.mydigitalfc.com/plan-and-policy/demo-gst-impact-number-new-epfo-subscribers-drops-sharply

Saturday, January 20, 2018

जबड़े मसूढ़े जुबान लहूलुहान पर खुश है पाकिस्तान

यह सर्वज्ञात तथ्य है कि कुत्ता जब सूखी हड्डी को चबाता, चूसता है तो उसके मसूढे, उसकी जीभ, उसका तालू सूखी हड्डी की चोट से टूट जाता है जगह जगह, उससे खून बहने लगता है।  खून का स्वाद क्योंकि कुत्ते को बहुत पसंद होता है अतः वह उसी खून को चूसता चाटता है और सोचता रहता है कि खून हड्डी से आ रहा है।
आज उपरोक्त तथ्य का उल्लेख इसलिए क्योंकि आजकल पाकिस्तान कुछ इसी मनोदशा से गुजर रहा है। वह भारत को हड्डी समझकर चबाने चूसने की कोशिश में अपने जबड़े मसूढ़े जुबान लहूलुहान कर रहा है।
आज पाकिस्तान ने सीमा पर बसे नागरिक क्षेत्रों में भी धुआंधार गोलीबारी की है। इसमें दो भारतीय नागरिक शहीद हुए हैं। पिछले 10 दिनों से सीमा से लगातार ऐसे समाचार आ रहे हैं कि पाकिस्तानी फायरिंग में कभी 2 तो कभी 4 भारतीय सैनिक/नागरिक शहीद हो रहे हैं। इस समाचार के साथ ही यह समाचार भी आता है कि भारत की जवाबी फायरिंग में पाकिस्तान के कभी 4 कभी 8 कभी 12 पाकिस्तानी जवानों को ढेर किया। यानि भारत दोगुने, तीन गुने ज्यादा पाकिस्तानी जवान मार रहा है। लेकिन पाकिस्तान फिर भी मान नहीं रहा है। यह सिलसिला पिछले 10-12 से लगभग रोजाना चल रहा है। आखिर क्यों.?
इसका कारण है भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह में बनने जा रहे एक इतिहास को बनने से रोकने की पाकिस्तान की मंशा।
दरअसल प्रधानमंत्री ने एक ही लीक पर चल रही 70 वर्ष पुरानी परम्परा को तोड़ते हुए इस वर्ष भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह में किसी एक देश के राष्ट्राध्यक्ष को मुख्य अतिथि बनाने के बजाय 10 देशों के शक्तिशाली आर्थिक समूह आसियान ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस) के सभी सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। सभी राष्ट्राध्यक्षों ने समारोह में आने की सहमति भी दे दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह रणनीतिक मास्टर स्ट्रोक है।
उल्लेखनीय है कि आसियान के सदस्य 10 देशों में से आधे से अधिक वो देश हैं जो चीन के कट्टर शत्रु हैं। अपना आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने की चीन की चेष्टा के विरुद्ध चट्टान की तरह बाधा बनकर खड़े हैं। पिछले कुछ समय के घटनाक्रमों से इन देशों को अपनी चीन विरोधी रणनीति में भारत अपना सशक्त सहयोगी साझीदार स्पष्ट दिख रहा है। अतः भारत की राजधानी में इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों के जमावड़े से चीन के खिलाफ रणनीति को और शक्ति मिलेगी। यही कारण है कि चीन सर्वाधिक बौखलाया हुआ है। लेकिन वह स्वयं कुछ कह नहीं सकता, कुछ कर नहीं सकता। अतः उसने अपने पाले हुए कुत्ते पाकिस्तान को इस जमावड़े को रोकने के काम पर लगाया है। यही कारण है कि पाकिस्तान सीमा पर तनाव को इतना बढ़ा देने की कोशिश कर रहा है कि आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्षों की भारत यात्रा रद्द हो जाए। इससे भारत की किरकिरी होगी।
इसके लिए पाकिस्तान अपने दोगुने सैनिक भी मरवाकर अपनी कोशिशों में जुटा हुआ है। जबकि भारत अभी भी संयमित जवाब ही दे रहा है। लेकिन यदि पाकिस्तान की कोशिशें जारी रही तो 26-27 तक तो भारत उसको नापतौल के दोगुने तिगुने के हिसाब से जवाब देता रहेगा। लेकिन उपरोक्त तारीखों के बाद सीमा पर सम्भवतः ऐसी आतिशबाजी देखने को मिलेगी जो पाकिस्तान 1999 (कारगिल यद्ध) के बाद एक बार पुनः देखेगा सुनेगा।

Friday, January 12, 2018

संगीन सवालों के कठघरे में खुद खड़े हो गए हैं चारों जज

सुप्रीमकोर्ट के 4 जजों की अन्तरात्मा आज अचानक जाग गयी। जागी भी कुछ इसतरह कि मानो, दिसम्बर की कड़कड़ाती ठण्ड वाली रात को नींद की गोली खाकर बेसुध सोए व्यक्ति पर आधीरात को बर्फ वाले पानी की भरी हुई बाल्टी उड़ेलकर उसे जगा दिया गया हो। और वो हड़बड़ा कर चीखता हुआ उठ बैठा हो।
जजों की अन्तरात्मा के इस जगने जगाने का मामला माजरा क्या है.? यह धीरे धीरे उजागर हो ही जाएगा। लेकिन भारत के ज्ञात इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि सुप्रीमकोर्ट के 4 जजों ने सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली।
लेकिन मेरे लिए यह घटनाक्रम आश्चर्यचकित करनेवाला नहीं है। बल्कि इस घटनाक्रम ने एक भारतीय के रूप में मुझे आहत अपमानित और लज्जित किया है।

आज अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चारों जजों ने चीफ जस्टिस के खिलाफ शिकायतों का जो पुलिन्दा प्रेस के सामने प्रस्तुत किया उसमें एकमात्र सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण शिकायत यह ही थी कि केसों का बंटवारा ठीक से नहीं किया जा रहा।
बड़े और महत्वपूर्ण केस के बंटवारों में भेदभाव हो रहा है।
यह सुनते ही मन खिन्न हो गया। ग्लानि खीझ क्षोभ और कुंठा से भर उठा। क्योंकि अभी तक राजनीति में भ्रष्ट और स्वार्थी नेताओं को इसबात पर लड़ते रूठते हुए तो देखा था कि मुझे महत्वपूर्ण विभाग का मंत्री नहीं बनाया गया। यह हम सब जानते हैं कि महत्वपूर्ण से उस नेता का इशारा आम जनता की भाषा में "मलाईदार मंत्रालय" की तरफ होता है। मलाईदार मंत्रालय का क्या अर्थ होता है.? यह सच किसी व्यक्ति से छुपा हुआ नहीं है, इसके मायने सब जानते हैं।
लेकिन सुप्रीमकोर्ट के जजों की ही दृष्टि में सुप्रीमकोर्ट में पहुंचा कोई केस महत्वहीन या महत्वपूर्ण कैसे और क्यों हो जाता है। अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि आज अचानक जागी अपनी अन्तरात्मा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले 4 जजों का महत्वपूर्ण केसों से क्या तात्पर्य है.?
मेरा उपरोक्त संकेत का मर्म मेरे इस एक सवाल से स्पष्ट हो जाएगा।
मेरा सवाल:
इन 4 जजों की अन्तरात्मा तब क्यों नहीं जागी जब 9 अगस्त 2016 को अरुणांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री कलिखो पुल ने सुप्रीमकोर्ट में लम्बित अपने केस के लिए हो रही 80 करोड़ रुपये की सौदेबाजी के कारण आत्महत्या करने की बात अपने 60 पेज लम्बे सुसाइड नोट में लिखी थी।
यह एक सवाल जजों की अन्तरात्मा और आज उनके द्वारा उठाये गए तथाकथित महत्वपूर्ण_केसों के बंटवारे की व्याख्या कर देता है।

आज प्रेस कॉन्फ्रेंस करनेवाले 4 जजों ने देश के चीफ जस्टिस समेत देश के सर्वोच्च न्यायालय के चरित्र और चेहरे को सन्देह और शंकाओं के घेरे में खड़ा कर दिया है। उनकी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से कौन मजबूत हुआ कौन नहीं.? यह तो भविष्य बताएगा। लेकिन आज हुई इन 4 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने देश मे सक्रिय आतंकवादियों के हमदर्द/समर्थक उस समूह को संजीवनी देने का कार्य अवश्य किया है जो अफ़ज़ल गुरु से लेकर याकूब मेमन तक, आतंकवादियों को सर्वोच्च न्यायलय द्वारा सुनाई गई सजाओं। तथा आतंकी इशरत जहां, सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर से लेकर बाटला हॉउस एनकाउंटर पर उंगली उठाता रहा है। उन निर्णयों को कठघरे में खड़ा करता रहा है। उस समूह के प्रशांत भूषण और इंदिरा जयसिंग सरीखे सदस्य आज हुई 4 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के खत्म होने के तत्काल बाद से उसके समर्थन में खुलकर बोल रहे हैं। उन चारों जजों की जमकर प्रशंसा कर रहे हैं। 4 जजों की आज हुई इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के भयानक परिणाम भविष्य में भोगेगा।
मेरी उपरोक्त आशंका निराधार नहीं है। क्योंकि आज अचानक जागी उन 4 जजों की तथाकथित अन्तरात्मा से सम्बंधित इन संगीन सवालों ने चारों जजों और उनकी अन्तरात्मा को कठघरे में खड़ा कर दिया है।

Tuesday, January 9, 2018

एक महत्वपूर्ण जानकारी


1973 से 1985 तक इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान प्रेम नाथ बहल नाम का एक IAS अधिकारी प्रधानमंत्री सचिवालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत था। पीएन बहल नाम का यह अधिकारी अक्टूबर 1984 में हुई इंदिरा गांधी की हत्या तक राजनीतिक मामलों में इंदिरा गांधी के निजी सलाहकार की ड्यूटी निभाता था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कुछ महीनों तक राजीव गांधी के साथ भी वो यही ड्यूटी निभाता रहा था। जनवरी 1985 में राजीव गांधी ने संसद में एक सनसनीखेज खुलासा किया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय में जासूसों के एक गिरोह को चिन्हित किया गया है। इस गिरोह में ज्वाइंट सेक्रेटरी रैंक के कई IAS अधिकारी शामिल हैं। आईबी इस सन्दर्भ में आगे की जांच कर रही है। राजीव गांधी ने तब संसद से अनुरोध किया था कि इस सन्दर्भ में अभी ज्यादा कुछ बताने का दबाव मुझ पर मत डालिये क्योंकि इससे जांच प्रभावित हो जाएगी। अपने इस खुलासे के कुछ दिनों बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के कई अधिकारियों को हटा दिया था। हटाये गए अधिकारियों में पीएन बहल भी शामिल था।
राजीव गांधी के उस सनसनीखेज खुलासे और प्रधानमंत्री कार्यालय से अधिकारियों के हटाये जाने की कार्रवाई के मध्य कोई सम्बन्ध था या नहीं.? यह कभी स्पष्ट नहीं हो सका। लेकिन राजीव गांधी के जीवनकाल तक पीएन बहल को फिर कभी किसी जिम्मेदार पद पर नहीं नियुक्त किया गया। किन्तु राजीव गांधी की मृत्यु के पश्चात 1991 में कांग्रेस की सत्ता में हुई वापसी के साथ ही पीएन बहल पुनः महत्वपूर्ण हो गया था और आश्चर्यजनक रूप से गांधी परिवार का भी करीबी हो गया था।
इसके बाद ही अगले 5-6 वर्षों में उसके लड़के के मीडिया हाउस TV18 ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करना प्रारम्भ किया था।
इस पीएन बहल का लड़का है राघव बहल। यह वही राघव बहल है जिसने अपनी वेबसाइट पर तीन दिन पहले ही यह रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें यह दावा किया गया है कि कुलभूषण जाधव पाकिस्तान में रॉ के लिए काम करता था।
ज्ञात रहे कि भारत इस पाकिस्तानी आरोप को झुठलाता रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में स्वयं पाकिस्तान भी ऐसा एक भी सबूत प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे उसके आरोप की पुष्टि हो। किन्तु राघव बहल की वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार कुलभूषण जाधव को लेकर पाकिस्तान सच बोल रहा है, भारत झूठ बोल रहा है। इसकी वेबसाइट की उस रिपोर्ट को पाकिस्तान पिछले 3 दिनों से अंतरराष्ट्रीय मंचों और मीडिया में एक सबूत के रूप में प्रस्तुत कर के स्वयं को सच्चा और भारत को झूठा, कुलभूषण जाधव को आतंकवादी तथा उसको सुनाई गई फांसी की सज़ा को न्यायोचित सिद्ध करने में जुटा हुआ है।
इससे पहले बीते वर्ष मार्च 2017 में इसी राघव बहल की वेबसाइट में प्रकाशित एक खबर के कारण सेना के जवान रॉय मैथ्यू ने आत्महत्या कर ली थी। उस सम्बन्ध में केस भी दर्ज है।
और थोड़ी जानकारी यह भी क़ि ये वही राघव बहल है जो कुछ वर्षों पूर्व तक TV18 मीडिया हाउस का मालिक हुआ करता था। इसने अपने न्यूजचैनल IBN7 द्वारा किये गए 2008 के वोट फ़ॉर कैश के स्टिंग ऑपरेशन को नहीं दिखाया था।
राघव बहल ने अपनी वेबसाइट पर भारत को झूठा, पाकिस्तान को सच्चा तथा कुलभूषण को आतंकवादी सिद्ध करने की खबर क्यों प्रकाशित की.? यह आसानी से समझा जा सकता है।
07/01/2017

कवि और तुकबंदियों के गवइय्ये में बहुत फर्क होता है

स्वतंत्रता पूर्व गांधी ने महाकवि महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से भेंट के लिए उन्हें वर्धा स्थित अपने आश्रम में आमंत्रित किया था। निर्धारित तिथि व समय पर महाप्राण निराला वर्धा पहुंच गए थे। गांधी उस समय अपने कक्ष में नहीं थे। थोड़ी देर प्रतीक्षा के पश्चात निराला वहां से उठकर चल दिए थे। कक्ष से बाहर निकलकर निराला आश्रम के द्वार की तरफ बढ़े ही थे तब ही पीछे से तेजी से चलकर आये गांधी ने उन्हें रोका और कहा कि रुको निराला मैं आ गया हूं। गांधी की इसबात पर ठहर गए निराला ने पलटकर गांधी को जवाब दिया था कि... "यदि तुमको यह अभिमान है कि तुम युग प्रवर्तक नेता हो तो मुझे भी यह अभिमान है कि मैं युग प्रवर्तक कवि हूं। तुमने मुझे जिस समय पर बुलाया था उस समय पर मैं आया, लेकिन तुम नहीं मिले। अब अगर निराला से मिलना हो तो दारागंज इलाहाबाद आना।" इतना कहकर निराला वहां से चले आये थे। लेकिन यहां प्रशंसा गांधी की भी करनी होगी कि गांधी ने अपनी गलती को स्वीकारा था और अपनी एक इलाहाबाद यात्रा के दौरान इलाहाबाद के दारागंज स्थित निराला के निवास पर जाकर उनसे भेंट की थी।
हालांकि गांधी के नेहरू सरीखे चेलों ने निराला को उनके इन तेवरों के लिए दण्डित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। स्वतंत्रता के 14 वर्ष पश्चात 1961 में महाकवि निराला का देहांत हुआ था। उन 14 वर्षों के दौरान हिन्दी के अनेकानेक कवियों साहित्यकारों पर सरकारी सहायता सम्मानों और पदों की बरसात की गयी। किन्तु निराला को कभी कोई सम्मान या सहायता नहीं दी गयी। निराला ने गम्भीर आर्थिक स्थिति में ही इस दुनिया को अलविदा कहा था। लेकिन उन 14 वर्षों के दौरान भी निराला के तेवरों में किंचित मात्र भी परिवर्तन नहीं हुआ था। उनके स्वाभिमानी तेवर अंतिम क्षणों तक ज्यों के त्यों रहे थे।
आजकल कुमार विश्वास जिन रामधारी सिंह "दिनकर" का जिक्र अपने हर बयान, हर साक्षात्कार में कर के अपनी तुलना उनसे करने की शातिर कोशिश कर रहा है उन रामधारी सिंह दिनकर के कृतित्व के पैरों की धूल भी नहीं हैं कुमार विश्वास की सस्ती सतही रोमांटिक तुकबन्दियां। लेकिन उन रामधारी सिंह दिनकर को दी गयी राज्यसभा की कुर्सी और अन्य सरकारी सम्मानों व पदों पर तीखा प्रहार दिनकर जी के समकालीन उनके करीबी कवि मित्र गोपाल सिंह नेपाली ने तब किया था जब नेपाली जी के विद्रोही तेवरों को थोड़ा शांत करने की सलाह दिनकर जी ने उनको दी थी।
उस सलाह का जवाब नेपाली जी ने बाकायदा उस कवि सम्मेलन के मंच से सार्वजनिक रूप से दिया था जिस कवि सम्मेलन में दिनकर जी स्वयं उपस्थित थे। तब गोपाल सिंह नेपाली जी ने उनको संबोधित करते हुए अपनी यह प्रसिद्ध कविता पढ़ी थी...

तुझसा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता।
ईमान बेचता फिरता तो,
मैं भी महलों में रह लेता।

राजा बैठे सिंहासन पर,
यह ताजों पर आसीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम

जिसने तलवार शिवा को दी
रोशनी उधार दिवा को दी
पतवार थमा दी लहरों को
खंजर की धार हवा को दी
अग-जग के उसी विधाता ने,
कर दी मेरे आधीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
(पूरी कविता कमेंट में देखिए)

क्योंकि राज्यसभा की सीट ना मिलने पर तड़प रहे, छटपटा रहे जनलोकपाली गवइय्ये कुमार विश्वास को पिछले 4-5 दिनों से अपने कवि होने का ढोल पीटते हुए देखा। खुद को दिनकर से जोड़ने की शातिर कोशिशें करता हुआ देखा तो सोचा कि... एक गवइय्ये और कवि का फर्क लिख ही डालूं।
07/01/2012

कैसे और कब तक कांग्रेस क्या क्या छुपायेगी.?

uआज दिल्ली की प्रेस क्लब के बाहर की मुख्य सड़क पर एक लम्बा चौड़ा हट्टा कट्टा आदमी तेजी से भाग रहा था और एक नौजवान अपने एक हाथ में माइक पकड़कर भागते हुए उस आदमी का पीछा कर रहा था। थोड़ी देर बाद आगे आगे भाग रहा वह व्यक्ति सड़क पर चल रहे एक ऑटो रिक्शा में कूदकर बैठा और रफूचक्कर हो गया।
प्रथम दृष्टया यह नज़ारा देखकर ऐसा प्रतीत हुआ मानो कोई जेबकतरा जेब काट कर भाग रहा है और कोई पुलिस वाला उसका पीछा कर रहा है। लेकिन ऐसा नहीं था। इसके बजाय पूरा मामला कुछ और ही था।
सड़क पर भाग रहा वो लम्बा चौड़ा हट्टा कट्टा मुश्टण्डा व्यक्ति कोई सामान्य आदमी नहीं था। पिछले लगभग 4 सालों से अलंकार सवाई नाम का वह व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ साये की तरह रहता है। राहुल गांधी के सोशल मीडिया एकाउंट (ट्विटर) वही सम्भालता संचालित करता है। उसके पीछे भाग रहा नौजवान रिपब्लिक चैनल का रिपोर्टर था जो अलंकार सवाई से एक ऐसा सवाल पूछ रहा था जिससे घबराकर अलंकार सवाई प्रेसक्लब में अपनी आलीशान कार छोड़कर वहां से बुरी तरह भाग खड़ा हुआ।
दरअसल महाराष्ट्र में जातीय दंगों की आग भड़काकर दिल्ली पहुंचा जिग्नेश मेवानी आज दिल्ली के प्रेसक्लब ऑफ इंडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा था।
उसकी प्रेस कॉन्फ्रेंस की पूरी जिम्मेदारी और व्यवस्था कोई और नहीं बल्कि राहुल गांधी का दाहिना हाथ माना जानेवाला अलंकार सवाई सम्भाल रहा था।
रिपब्लिक चैनल के रिपोर्टरों की टीम ने उसको पहचान लिया और उसपर सवालों की बौछार कर दी कि क्या ये प्रेस कॉन्फ्रेंस राहुल गांधी द्वारा प्रायोजित/आयोजित है.? यदि नहीं तो वो यहां सारी व्यवस्था स्वयं क्यों सम्भाल रहा है.?
यह सवाल सुनते ही अलंकार सवाई पहले तो प्रेसक्लब के गलियारों में छुपकर सवाल से बचने की कोशिश करता रहा। लेकिन रिपोर्टर ने जब पीछा नहीं छोड़ा तो वो प्रेस क्लब से निकल भागा। रिपोर्टर वहां भी उसके पीछे हो लिया तो अलंकार सवाई रिपोर्टर से बचने के लिए सड़क पर तेजी से भागने लगा। और एक चलते हुए ऑटो में किसी नट की तरह उछलते हुए बैठकर भाग निकला।
यह सब देखकर मुझे याद आ गयी मार्क टुली और कुलदीप नैयर द्वारा अपनी अपनी किताबों में लिखा गया वो प्रसंग कि कुख्यात आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले द्वारा अपने उग्रवादी दल की स्थापना के बाद चंडीगढ़ के पंचतारा होटल में की गई पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस के बिल का भुगतान तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने किया था। जरनैल सिंह भिंडरावाले ने पंजाब और देश को धर्मोन्माद की आग में झोंका था। जिग्नेश मेवानी जातीय उन्माद की हिंसक आग में झोंक रहा है। इस काम में दोनों की मददगार कांग्रेस ही बनी है। जिग्नेश मेवानी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहचान लिए जाने के बाद वहां से चोरों की तरह भागा अलंकार सवाई सबूत है।
05/01/2017

इतिहास का सबक

1977 में कांग्रेस के सफाये के बाद दो तिहाई बहुमत से बनी जनता पार्टी सरकार के गृहमंत्री चौ.चरण सिंह ने अपने शपथ ग्रहण के तत्काल बाद ही कहा था कि...
Arrest Her Today Or Never
चौ.चरण सिंह इसके लिए कोई पहल करते उससे पहले ही हेमवती नन्दन बहुगुणा और जगजीवन राम ने इसका विरोध कर दिया था। उस समय उन दोनों को जनता पार्टी में कांग्रेस का स्लीपर सेल कहा जाता था। बाद में दोनों की कांग्रेस में वापसी भी हो गयी थी। प्रधानमंत्री की कुर्सी पाकर धन्य और गदगद हो चुके मोरारजी देसाई भी निर्बाध सत्ता सुख में कोई खलल नहीं डालना चाहते थे, अतः चरण सिंह की सलाह को बड़बोला उतावलापन मानकर उनकी सलाह को खारिज़ कर दिया था। फिर शुरू की गयी थी जांच आयोगों की नौटंकी। नतीजा यह निकला था कि जनता पार्टी में पहले साल ही सत्ता की दाल जूते में बंटने लगी थी। उस सरकार के कर्णधार इसके लिए आज भी कोसे जाते हैं। लेकिन सिर्फ वही जिम्मेदार नहीं थे। अपने खिलाफ कार्रवाई के प्रति जनता पार्टी सरकार की अरूचि भांपकर केवल साल भर में ही इंदिरा गांधी सक्रिय हो गईं थीं। ढाई साल बाद दो तिहाई बहुमत की वह सरकार इंदिरा-संजय की जोड़ी ने ताश के पत्तों के महल की तरह गिरवा दी थी। मां-बेटे की जोड़ी के उस सरकार गिराओ षडयंत्र का सबसे बड़ा हथियार वही चौधरी चरण सिंह बने थे जो ढाई साल पहले इंदिरा गांधी को तत्काल गिरफ्तार करने की जिद्द पर अड़े हुए थे।
यदि शपथ ग्रहण के तत्काल बाद दी गयी चौ. चरण सिंह की उस सलाह पर अमल हो गया होता तो भारतीय राजनीति की धारा 1977 में ही बदल चुकी होती। क्योंकि आपातकाल के दौरान अनेकानेक ऐसे कुकर्म हुए थे जिनकी सज़ा से बच पाना इंदिरा और संजय, दोनों के लिए असम्भव होता। देश भी आज राजीव सोनिया राहुल सरीखे बोझ नहीं ढो रहा होता।
आज उपरोक्त प्रसंग का उल्लेख इसलिए कि मोदी सरकार ने भी उपरोक्त उदाहरण से कोई सीख ली.? फिलहाल ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा। साढ़े तीन वर्ष बीत चुके हैं। वो सब बाहर हैं, खुलेआम पूरी नंगई से तांडव कर रहे हैं। गुजरात हम देख  चुके, महाराष्ट्र हम देख रहे हैं। आगे ना जाने क्या क्या देखना अभी बाकी है.? देर तो हो चुकी, लेकिन अभी भी काफी समय है।
ध्यान रखिये जहरीली कंटीली घास उखाड़ कर उसकी जड़ों में मट्ठा डालनेवाला चाणक्य ही दिग्विजयी और कालजयी हुआ। मुहम्मद गौरी को माफ करनेवाला पृथ्वीराज चौहान उसी मुहम्मद गौरी के हाथों मौत के घाट उतर गया।
04/01/2017

सोनिया गांधी को क्या कांग्रेस की यह सच्चाई नहीं मालूम.?

भारत छोड़ो आन्दोलन की हीरक जयंती के अवसर पर आयोजित लोकसभा के विशेष सत्र में बोलते समय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कटाक्ष किया था कि  'आज जब हम उन शहीदों को नमन कर रहे हैं, जो स्वाधीनता संग्राम में सबसे अगली कतार में रहे, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उस दौर में ऐसे संगठन और व्यक्ति भी थे, जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था। इन तत्वों का हमारे देश को आजादी दिलाने में कोई योगदान नहीं रहा।' 

सोनिया गांधी ने आरएसएस पर निशाना साधा और कहा था कि ऐसे संगठनों ने आजादी में कोई योगदान नहीं दिया बल्कि ऐसे संगठन आजादी के आंदोलन के खिलाफ थे। 

अपने सम्बोधन में सोनिया गांधी ने अपने सम्बोधन में यह कहा था कि ' आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं की जेल में मौत हो गई थी और पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु ने जेल में लंबा समय बिताया था।

सोनिया गांधी के उस पूरे सम्बोधन का सार यह ही था कि आजादी की लड़ाई केवल कांग्रेस के नेताओं ने लड़ी थी। शेष किसी का उसमें कोई योगदान नहीं था। संसद में ऐसा दावा करने वाली सोनिया गांधी ने सम्भवतः कांग्रेस का इतिहास नहीं पढ़ा। अन्यथा ऐसा अहंकारी दावा करने से पूर्व सोनिया गांधी को हज़ार बार सोचना पड़ता क्योंकि

जिस आज़ादी की लड़ाई लड़ने और देश को आज़ाद कराने का श्रेय केवल कांग्रेस को देने की कोशिश सोनिया गांधी ने की उसके विषय में उस दौर के दिग्गज कांग्रेसी नेता और 1920 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे लाला लाजपत राय ने अपनी पुस्तक "युवा भारत" मे कांग्रेस और उसके तत्कालीन नेताओं के विषय में जो कुछ लिखा है वह सोनिया गांधी के उपरोक्त दावे की धज्जियां उड़ा देता है।

दिग्गज कांग्रेसी नेता और 1920 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे लाला लाजपत राय ने अपनी पुस्तक "युवा भारत" मे कांग्रेस और उसके तत्कालीन नेताओं के विषय में जो कुछ लिखा है वह सोनिया गांधी के उपरोक्त दावे की धज्जियां उड़ा देता है।
1916 में (कांग्रेस की स्थापना के 31 वर्ष पश्चात) लिखी गयी अपनी पुस्तक युवा भारत के पृष्ठ 98 में लाला लाजपतराय जी ने "कांग्रेस की स्थापना साम्राज्य हितों के लिए थी।" उपशीर्षक से लिखा है कि यह तो स्पष्ट है कि उस समय कांग्रेस की स्थापना आनेवाले खतरों से ब्रिटिश साम्राज्य को बचाने के लिए ही की गयी थी, न कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए। उस समय ब्रिटिश राज्य की सुरक्षा का सवाल ही मुख्य था और भारत के हित गौण थे। इससे भी कोई इनकार नहीं करेगा कि कांग्रेस अपने उस समय के आदर्श के अनुकूल ही चलती रही। यह कथन नितान्त न्याययुक्त तथा तर्कसंगत है कि कांग्रेस के संस्थापक यह जानते थे कि भारत में ब्रिटिश शासन का चलते रहना अत्यन्त आवश्यक है, और इसीलिए उनकी चेष्टा थी कि यथा-शक्ति किसी भी आगन्तुक विपत्ति से ब्रिटिश शासन की न केवल रक्षा की जाए, अपितु उसे और मजबूत बनाया जाए। उनकी दृष्टि में देशवासियों की राजनैतिक मांगों की पूर्ति तथा भारत की राजनैतिक प्रगति गौण थीं।

इसी पुस्तक में आगे के पन्नों में उस दौर के कांग्रेस नेताओं के विषय में जानकारी देते हुए "कांग्रेस के नेता" उपशीर्षक से पृष्ठ 164 में लाला लाजपतराय जी ने लिखा है कि...
"कांग्रेस के अनेक नेता सच्चे देशभक्त हैं. किन्तु उन्हें ऐशो-आराम तथा शांत जीवन से इतना प्रेम है कि वे अशान्त परिस्थितियों उपद्रवों तथा भयानक विपत्तियों का सामना करने में अपने को असमर्थ पाते हैं। यही कारण है कि उग्रवादियों के तरीकों के प्रति उनमें विरक्ति का भाव है। तथा वे आम लोगों तक अपना प्रचार कार्य भी नहीं कर पाते। वे बहुत धीमे चलते हैं। यह भी सत्य है कि इनमें कई लोग कायर हैं। कुछ ऐसे हैं जो स्वार्थ पूर्ति में लगे रहते हैं। उन्हें जजों के पदों पर नियुक्त होने की ख्वाहिश रहती है। वे कौंसिलों के सदस्य बनना चाहते हैं, "सर" या "राय बहादुर" का ख़िताब पाना चाहते हैं, किन्तु हम ऐसे लोगों को राष्ट्रवादी नहीं मानते। यह भी सत्य है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इस श्रेणी के लोगों से अछूती नहीं रहती। कुछ कांग्रेसी आचरण में उदारपंथी हैं. किन्तु विचारों से गरमदली हैं। उनमें साहस की इतनी कमी है कि वे स्वयं को उग्रदल वालों की पंक्ति में नहीं बिठा पाते, उसी प्रकार जैसे स्वयं को कांग्रेसी कहनेवाले ऐसे लोग भी हैं जो पक्के राजभक्त हैं तथा सदा अपने हितों की वृद्धि के लिए चिन्तित रहते हैं।
लाला लाजपतराय ने "कांग्रेस की असफलता के कारण" उपशीर्षक से अपनी पुस्तक के पृष्ठ 111 से 113 के मध्य कांग्रेस की असफलता का बिन्दुवार विस्तार से वर्णन कुछ इस प्रकार किया है।
(1) यह आन्दोलन न तो जनता की प्रेरणा से आरम्भ किया गया और न इसकी योजना उसने बनाई। सच तो यह है कि इसके पीछे भारतवासियों की आन्तरिक प्रेरणा थी ही नहीं। भारत के लोगों के किसी भाग ने इस आन्दोलन के साथ खुद को पूरे तौर पर नहीं जोड़ा जिससे उसे यह भरोसा हो जाता है कि इस आन्दोलन के सुचारु संचालन के साथ उसका अस्तित्व ही जुड़ा हुआ है। यह आन्दोलन एक अंग्रेज़ वायसराय की सलाह से एक अंग्रेज़ द्वारा शुरू किया गया।
इसका नेतृत्व करनेवाले वो लोग थे जो या तो सरकारी नौकरियों में थे अथवा इन सेवाओं के साथ किसी भी रूप में सम्बद्ध थे, अथवा उन्हीं के लिए ऐसे अवसर सरकार द्वारा बनाये गए थे। इनमें से अनेक लोग सरकारी नौकरियों में प्रवेश पाना चाहते थे, अथवा सरकार से अपने महत्व या अपनी सार्वजनिक भावना को मनवाना चाहते थे। इनमें इतनी देशभक्ति तो थी जिससे वे इस आन्दोलन के लिए अपना समय और शक्ति का स्वल्पांश निकाल लेते, किन्तु तभी तक जबतक उनके भविष्य को नुकसान न हो। अथवा इसके लिए उन्हें भारी बलिदान न करना पड़े। हम उनके उद्देश्यों तथा देशभक्ति पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर रहे, किन्तु इतना कहा जा सकता है कि अपने लक्ष्य के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की क्षमता उनमें नहीं थी।
(2) इस आन्दोलन में लोकप्रियता अर्जित करने की क्षमता नहीं थी। इसके नेताओं का जनसामान्य से कोई सम्बन्ध नहीं था। शायद वे आम जनता के निकट आना भी नहीं चाहते थे। उनका प्रचार कार्यक्रम कुछ अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों तक ही सीमित था, इसके लिए वे अंग्रेजी जबान का ही प्रयोग करते थे तथा उनका प्रयोजन मात्र अधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाने का था, न कि आम लोगों तक। नेताओं को जनता के बीच जाने में शर्मिंदगी महसूस होती थी। उन्होंने उसके निकट जाने का यत्न भी नहीं किया और नौजवानों को ऐसा करने से निरुत्साहित किया। कुछ ने तो ऐसे प्रयत्नों का खुला विरोध भी किया.
(3) यह नेता लोगों में जोश पैदा करने में असफल रहे. ऐसा शायद इसलिए हुआ क्योंकि उनमें त्यागभाव की कमी थी।
अथवा उनका यह त्याग नितान्त तुच्छ था। इस आन्दोलन से इन नेताओं का सामान्य जीवन, उनकी आमदनी, उनकी सम्पन्नता तथा ऐशो-आराम किंचित मात्र भी प्रभावित नहीं हुए।
इसमें  दो अपवाद अवश्य हैं- दादाभाई नौरोजी तथा गोखले। मि ह्यूम तथा वेडरबर्न के त्याग ने उन्हें लज्जित तो किया, किन्तु वे स्वयं ऐसा नहीं कर सके। सच तो यही है कि इससे लोगों में इन नेताओं के प्रति नाराज़गी बढ़ी और अविश्वास भी बढ़ा। जब ऐसे नेताओं को सरकार में ऊँचे ओहदे दिए गए तो अविश्वास की खाई और चौड़ी हो गयी।

(4) जो आन्दोलन कुछ सहूलियतों की ही मांग करे और आज़ादी के लिए आवाज़ न उठाये वह कदापि प्रभावशाली नहीं बन सकता। इसे तो केवल अवसरवादी आन्दोलन कहा जाएगा। राष्ट्र-निर्माण तथा लोगों के चरित्र निर्माण में बाधक ऐसा आन्दोलन शरारतपूर्ण ही कहा जाएगा। यह तो त्याग किये बिना ही ख्याति प्राप्त करना है। इसके द्वारा पाखण्डियों और विश्वासघातियों को अनुकूल अवसर मिलते हैं। इसमें कुछ लोगों को देशभक्ति की ओट में व्यापर करने का मौका मिल जाता है। यों तो कोई भी राजनैतिक आन्दोलन अपने को ऐसे दोषों से नहीं बचा पाता, किन्तु इससे सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि देश की जनता का सामान्य ढंग से बौद्धिक विकास नहीं हो पाता। कारण कि देशवासियों में मात्र अच्छी आशाएँ जगा दी जाती हैं जो इन नेताओं द्वारा अपनाये गए अथवा प्रस्तावित किये गए तरीकों से कभी पूरी नहीं की जा सकती।
10/08/2017