Thursday, May 31, 2018

कैराना की हार के सच से मुंह चुरा रहे हैं राजनीति और मीडिया के मठाधीश।

ना कोई जाट मुस्लिम एकता हुई। ना कोई दलित लामबंदी हुई। ना ही कोई किसानों नौजवानो की नाराजगी थी। ऐसी एकता, लामबंदी और नाराज़गी का राग अलाप रहे राजनीति और मीडिया के प्रायोजित मठाधीश अपने ऐसे राग से हमारी आपकी आंखों में धूल झोंक रहे हैं।
कैराना उपचुनाव के परिणामों के मूल कारणों से मुंह चुरा रहे न्यूजचैनली/मीडियाई मठाधीश दरअसल यह स्वीकार करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं कि कैराना में धुर साम्प्रदायिक आधार पर प्रचण्ड मुस्लिम ध्रुवीकरण हुआ। ध्यान रहे कि उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 16 सीटें ऐसी हैं जिनमें मुस्लिम मतदाता 20 से 50 प्रतिशत तक हैं। 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के आंकड़ें के साथ कैराना इन्हीं 16 लोकसभा सीटों की सूची में शामिल है।
#अब जरा इन तथ्यों और आंकड़ों को पूरा और ध्यान से पढ़िए...
कैराना लोकसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 16,90,000 मतदाता हैं। इसमें मुस्लिम मतदातों की संख्या लगभग 35%, अर्थात कैराना में लगभग 5 लाख 65 हज़ार मुस्लिम मतदाता हैं।
इस उपचुनाव में कैराना में लगभग 55%  मतदान हुआ था। अर्थात लगभग 9 लाख 43 हज़ार मत पड़े थे।
यह जग जाहिर तथ्य है कि कैराना लोकसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का मतदान प्रतिशत सामान्य मतदान से अधिक प्रतिशत में हुआ था।
अतः बहुत कंजूसी से यदि यह मान लीजिए कि मुस्लिम मतदाताओं का मतदान कुल मतदान से केवल 5% अधिक हुआ तो कैराना में कुल मुस्लिम वोट लगभग 3,40,000 पड़ा। जबकि वास्तविकता संख्या इससे अधिक ही होगी। दिल्ली से लेकर देवबंद तक जारी हुए मोदी-योगी हराओ वाले फतवों और भाजपा बनाम सब की चुनावी स्थिति के बाद यह 3,40,000 मुस्लिम वोट भाजपा के पक्ष में गए होंगे, ऐसा मूर्खतापूर्ण निष्कर्ष राजनीतिक धरातल की कठोर और कटु सच्चाई से पूरी तरह अनभिज्ञ कोई राजनीतिक अनपढ़/गंवार ही निकाल सकता है। मेरा अपना मानना है कि इनमें से ज्यादा से ज्यादा 5 से 10 हज़ार मत ही भाजपा को मिले होंगे। सम्भव यह भी है कि वो भी नहीं मिले होंगे।
2014 में कैराना में 15,31,642 मतदाता थे। उस समय सपा बसपा और RLD-कांग्रेस गठबन्धन अलग अलग चुनाव लड़े थे। उनके तीनों प्रत्याशियों को कुल मिलाकर 5,32,201 मत मिले थे।
इसबार इन सारे दलों के गठबन्धन की संयुक्त प्रत्याशी तबस्सुम हसन को 481182 मत मिले हैं। इनमें अर्थात गठबन्धन प्रत्याशी को 2014 की तुलना में लगभग 51 हज़ार मत कम मिले हैं। यहां यह ध्यान रखिये कि 2014 में 73.08% मतदान हुआ था। जबकि इस उपचुनाव में 55% मतदान हुआ है। अर्थात 2014 की तुलना में लगभग 2 लाख मत कम पड़े हैं। यहां यह भी ध्यान रखिये कि 2014 में तीनों दलों के प्रत्याशी अलग अलग थे। उन तीनों दलों के प्रत्याशियों और उनकी कोर टीम के सदस्यों के व्यक्तिगत प्रभाव वाले मत भी 5,32,201 मतों में शामिल थे। राजनीति के रसायन को समझने वाले यह भलीभांति जानते हैं कि किसी भी दल के प्रत्याशी के व्यक्तिगत सम्बन्धों/सम्पर्कों वाले मतों का दलीय राजनीति से कोई लेनादेना नहीं होता।
उस समय तीनों दलों को मिले वोटों में कम से कम 5-6% वोट उन प्रत्याशियों का व्यक्तिगत वोट था।
अतः आंकड़ों की उपरोक्त सच्चाई यह तो बता ही रही है कि 2014 में गठबन्धन को जितने मत मिले थे उससे मात्र 20-25 हज़ार कम मत उसे इसबार कम मिले हैं। यानी कि मोदी विरोधी राजनीतिक ताकतों का प्रदर्शन जितना सम्भव हो सकता था उतना ही हुआ। इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह मात्र 44618 मतों से हारी हैं। उन्हें 4,36,564 मत मिले हैं। भाजपा को 2014 की तुलना में लगभग 1,30,000 मत कम मिले हैं, क्योंकि 2014 में भाजपा को 5,65,909 मत मिले थे। लेकिन यह 1,30,000 मत विपक्षी गठबन्धन के खाते में नहीं गए। इसके बजाय भाजपा का यह वोटर मतदान के लिए नहीं निकला। इसके कई कारण हैं। पहला तो यही है कि इस उपचुनाव का देश या प्रदेश की सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना था। उपचुनाव में भाजपा का मतदाता उदासीन रहता ही है।
अनुमान लगाइए कि 2019 में जिस समय 2019 मे देश का प्रधानमंत्री, सरकार चुनने के लिए जब वोट डाले जाएंगे तब मृगांका सिंह की 44 हज़ार मतों से हार का अन्तर किस तरह निष्प्रभावी होगा।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 16 सीटें ऐसी हैं जिनमें मुस्लिम मतदाता 20 से 50 प्रतिशत तक हैं। 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के आंकड़ें के साथ कैराना इन्हीं 16 लोकसभा सीटों की सूची में शामिल है। अतः ऐसे कैराना लोकसभा क्षेत्र में गठबन्धन की पूरी ताकत झोंकने के बाद केवल 44 हज़ार मतों की हार एक सुखद सन्देश है कि फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की साख बरकरार है और 2019 की कसौटी के लिए पूरी तरह तैयार है।
उपरोक्त तर्कों के अलावा एक और कारण है कैराना की हार का। यदि वह कारण नहीं होता तो भाजपा यह उपचुनाव भी जीतती। पोस्ट लम्बी हो गयी है। इसलिए वह कारण कल लिखूंगा।

Saturday, May 26, 2018

देश को आज ऐसे विश्वासघाती प्रधानमंत्री और विश्वासघाती सरकार की ही जरूरत है।😊

21 जुलाई 2013 को सुप्रीमकोर्ट में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने बाकायदा एक हलफनामा देकर देश में बने नेशनल हाईवे से सम्बंधित आंकड़े प्रस्तुत किये थे।
अपने हलफनामे में कांग्रेसी यूपीए की सरकार ने सुप्रीमकोर्ट को यह बताया था कि देश में 1980 तक कुल 29023 किमी लम्बाई के नेशनल हाइवे बन चुके थे। उसके बाद के 32 वर्षों में, 2012 तक देश में 47,795 किमी हाइवे बने थे।
अपने इस हलफनामे में तत्कालीन यूपीए की कांग्रेसी सरकार ने यह सच भी स्वीकार किया था कि 32 वर्षों बने इस 47,795 किमी लम्बे हाइवे में से 23815 किमी लम्बे हाइवे का निर्माण अटल जी के नेतृत्व वाली NDA सरकार के 5 वर्ष के कार्यकाल में हुआ था। (हलफनामे की खबर का लिंक पहले कमेन्ट में है)
इस हलफनामे में 2004 से 2014 तक के कांग्रेसी यूपीए शासनकाल के सम्बन्ध में भी यह कहा गया था कि इस दौरान लगभग 16000 किमी लम्बे हाइवे के निर्माण हुआ। (वर्ष 2013-14 का अनुमान लगाकर संख्या बताई थी)
अब जरा इस आंकड़ें पर ध्यान दीजिए कि 1980 से 2012 तक के 32 वर्ष की समयावधि में से 27 वर्षीय गैर भाजपाई शासनकाल में से 25 वर्ष तक कांग्रेस का शासनकाल रहा। इसमें 1980 से 1996 के बीच के 15 वर्ष में कांग्रेस का शासन था। इसमें से 10 वर्ष तक देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी और पिताश्री राजीव गांधी ही बैठे थे।
यदि यह मान लिया जाए कि वीपी सिंह चन्द्रशेखर देवेगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल के नेतृत्व वाली सरकारों के 2 सालों के कार्यकाल में एक इंच नेशनल हाइवे नहीं बनाया गया तो भी उन 15 वर्षों के कांग्रेसी सरकार के कार्यकाल में देश में मात्र 8 हज़ार किलोमीटर लम्बे हाइवे बने थे।
अर्थात 1980 से 2014 के दौरान 25 वर्षों के कांग्रेसी शासन में कुल 24 हज़ार किलोमीटर लम्बे नेशनल हाइवे बने थे जबकि अटल जी की सरकार के केवल 5 वर्ष के कार्यकाल में 23815 किमी लम्बे हाइवे बने थे।
और आज ही प्रकाशित खबर के अनुसार मई 2014 से मार्च 2018 तक के अपने केवल 4 वर्षीय कार्यकाल में मोदी सरकार ने देश में 28702 किमी लम्बे नेशनल हाइवे बनाए हैं।
अतः आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को विश्वासघाती बताकर देश में विश्वासघात दिवस मना रही कांग्रेसी नेताओं की फौज यह समझ ले कि देश को आज 25 वर्षों में 24 हज़ार किमी नेशनल हाईवे बनाने वाली कांग्रेसी सरकारों की जरूरत नहीं है।
इसके बजाय देश को केवल 4 वर्षों में 28हज़ार 702 किमी लम्बे नेशनल हाइवे बनाने वाली उस मोदी सरकार की जरूरत है।
कांग्रेस फौज अगर फिर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को विश्वासघाती कहती है तो वह भलीभांति यह समझ ले कि देश को आज ऐसे विश्वासघाती प्रधानमंत्री और सरकार की ही जरूरत है। नेशनल हाइवे के निर्माण की कसौटी इसका पहला या अकेला कारण नहीं है। अगली पोस्टों में ऐसे 10 और कारण लिखने वाला हूं। कांग्रेसी फौज प्रतीक्षा करे...😊

सुप्रीमकोर्ट में यूपीए सरकार द्वारा दिये गए नेशनल हाइवे निर्माण से सम्बंधित हलफनामे की खबर का लिंक... https://m.timesofindia.com/india/NDA-regime-constructed-50-of-national-highways-laid-in-last-30-years-Centre/articleshow/20869113.cms