Saturday, June 16, 2018

पराक्रमी सरकार और पेशाबी सरकार में यह फर्क होता है


अक्टूबर 2014 में देवेन्द्र फड़नवीस ने जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी उस समय (2015 की गर्मियों) में विदर्भ समेत महाराष्ट्र के सूखा पीड़ित क्षेत्रों के हज़ारों गांवों में 6140 टैंकरों द्वारा पानी की आपूर्ति होती थी। इसबार (2018 में) समाप्ति की ओर बढ़ रहे गर्मी के इस पूरे मौसम के दौरान पूरे महाराष्ट्र के सभी गांवों में पानी की आपूर्ति के लिए केवल 152 टैंकरों की जरूरत पड़ी। तीन वर्षों में टैंकरों से पानी की आपूर्ति 97.5% खत्म हो चुकी है। इसका मुख्य कारण मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस द्वारा शुरू किये गए जलयुक्त शिविर अभियान हैं जिसके कारण महाराष्ट्र में सदियों से हर वर्ष सूखे की विभीषका  झेलते आ रहे 12000 से अधिक गांव पिछले 3 वर्षों में जल अकाल की समस्या से सदा के लिए मुक्त हो चुके हैं। यह छोटी मोटी नहीं बल्कि ऐतिहासिक सफलता है। इसका जबरदस्त प्रचार होना चाहिए ताकि देश के अन्य क्षेत्र भी इससे प्रेरणा ले सकें।
ध्यान रहे कि अक्टूबर 1999 में महाराष्ट्र में कांग्रेस+एनसीपी गठबन्धन की सरकार बनी थी। उस गठबन्धन सरकार ने 15 साल शासन किया। उस गठबन्धन सरकार के 13 वर्ष के कार्यकाल के बाद भी विदर्भ में मौजूद रही सूखे और अकाल की विकराल समस्या के समाधान की मांग लेकर किसान जब उस गठबन्धन सरकार के तत्कालीन सिंचाई मंत्री अजित पवार के पास गए थे तो अजित पवार ने उन्हें टका से जवाब दिया था कि अगर पानी नहीं बरसा है तो..... #क्या_अपने_पेशाब_से_डैम_भर_दूं।
महाराष्ट्र समेत सारे देश में यह शर्मनाक खबर देखी सुनी और पढ़ी थी।
अतः मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने अपने परिश्रम पराक्रम से यह उदाहरण प्रस्तुत किया है कि पराक्रमी सरकार और पेशाबी सरकार में यह फर्क होता है।
लेकिन न्यूजचैनलों के लिए इतनी बड़ी उपलब्धि कोई खबर ही नहीं है।

मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के जलयुक्त शिविर अभियान को मिली सफलता की पूरी खबर इस लिंक को क्लिक कर के पढ़िए।
https://indianexpress.com/article/cities/mumbai/water-conservation-department-data-on-jalyukta-shivar-number-of-water-tankers-in-drought-hit-villages-decline-5213786/

Friday, June 15, 2018

हीरे के सौन्दर्य की समीक्षा कोयला कर रहा है

सपा बसपा कांग्रेस और न्यूजचैनली मीडिया के "चटपटे फास्टफूड" सरीखे एंकरों एडीटरों एवं लाल बुझ्झकड़ी विश्लेषकों की फौज आजकल एक ही राग अलाप रही है कि मोदी सरकार ने 4 साल में और योगी सरकार सरकार ने एक साल में कोई काम ही नहीं किया।
आइए सच्चाई जानने का प्रयास करते हैं।
2012 में उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान में सपा ने किसानों का 50 हज़ार रुपये का कर्ज माफ करने का वायदा किया था। इसमें ना तो कोई शर्त जोड़ी थी, ना ही कोई शर्त बताई थी। लेकिन सरकार बनने के 8 माह बाद 23 नवम्बर 2014 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कर्ज़ माफ़ी की घोषणा इस शर्त के साथ की थी कि यह कर्जमाफी व्यवसायिक बैंकों के कर्ज पर लागू नहीं होगी। अखिलेश सरकार की इस शर्त के बाद पूरे प्रदेश के किसानों का मात्र 1,650 करोड़ का कर्ज माफ किया गया था। यह कर्ज़ भी एक साथ माफ नहीं किया था। 1,650 करोड़ के कर्ज माफ करने के लिए सरकार ने पहले वर्ष के बजट में मात्र 500 करोड़ रूपयों का प्रावधान किया गया था। अखिलेश ने इस कर्ज़ माफ़ी से लगभग 7 लाख किसानों को लाभ पहुंचाने का दावा किया था।
लेकिन 19 मार्च 2017 में उत्तरप्रदेश में सरकार बनने के मात्र 15 दिन बाद 4 अप्रैल 2017 को योगी सरकार ने किसानों का 36,000 करोड़ का कर्ज माफ कर दिया था। इससे प्रदेश के लगभग 2 करोड़ किसानों को लाभ पहुंचा। पर हास्यास्पद विडम्बना देखिए कि वही अखिलेश यादव आज कह रहा है कि योगी सरकार ने कर्ज़माफी के नाम पर किसानों के साथ धोखा किया, किसानों के लिए कोई काम नहीं किया। इससे बड़ी विडम्बना यह कि अखिलेश यादव के इस आरोप पर न्यूजचैनली मीडिया आजकल बेसुध होकर झूम रहा है।
यह कुछ ऐसी स्थिति है जैसे कि हीरे के सौन्दर्य की समीक्षा कोयला कर रहा हो।
अखिलेश यादव सरकार द्वारा मात्र 1,650 करोड़ के कर्ज की सशर्त माफ़ी के समाचार का लिंक
https://www.bbc.com/hindi/india/2012/11/121122_farmer_loan_waiver_pa

योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा 36,000 करोड़ की कर्जमाफी के समाचार का लिंक
https://www.patrika.com/unnao-news/public-likes-bjp-kisan-karj-maaf-in-unnao-news-in-hindi-1545558/

बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना भी पड़ता है।

बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना भी पड़ता है।
बात 70 के दशक के शुरुआती वर्षों की है। 1969 में सुपरहिट फिल्म आराधना की सफलता के साथ मनोरंजन की दुनिया में ध्रुव तारे की तरह चमके राजेश खन्ना के फिल्मी करियर में आराधना के साथ ही साथ दो रास्ते इत्तेफ़ाक़ डोली और खामोशी सरीखी सुपरहिट फिल्मों का नाम जुड़ चुका था।
उस समय तक एकमात्र एकछत्र सुपरस्टार राजेश खन्ना के विषय में यह मशहूर हो चुका था कि उनदिनों सफलता उनके सिर पर चढ़कर बोलती थी। उनका अहंकार अपने चरम पर हुआ करता था। उसी दौर में 1970 में राजेश खन्ना को पता चला कि निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी अपनी एक बहुत छोटे बजट की फ़िल्म को लेकर नायक की तलाश कर रहे हैं। लेखक गुलज़ार के माध्यम से राजेश खन्ना को फ़िल्म की कहानी पता चली थी। कहानी सुनने के बाद राजेश खन्ना ने ऋषिकेश मुखर्जी के ऑफिस पहुंचकर उनसे कहा था कि ऋषि दा यह फ़िल्म तो मैं ही करूंगा। यह सुनकर ऋषि दा ने राजेश खन्ना से कहा था कि मेरी फ़िल्म बहुत छोटे बजट की है इसलिए मेरी तीन शर्ते हैं। पहली शर्त यह कि तुमको केवल एक लाख रूपये दूंगा (उनदिनों राजेश खन्ना की फीस 8 लाख रूपये हुआ करती थी) दूसरी शर्त यह कि तुम्हें अपनी बहुत सारी डेट्स एक साथ देनी होंगी। तीसरी यह कि तुम्हें शूटिंग पर टाइम से पहुंचना होगा।
ऋषि दा की इन तीनों शर्तों के जवाब में राजेश खन्ना ने अपनी डायरी निकाल कर उनके सामने रखते हुए कहा था कि दादा जो और जितनी डेट्स चाहिए अपने हाथ से लिख दीजिये। मैं और लोगों को मैनेज कर लूंगा। एक लाख रूपये की मेरी फीस भी फाइनल और शूटिंग पर समय से भी पहुंचूंगा। दोनों के बीच डील फाइनल हुई और फ़िल्म बनना शुरू हुई।
वो ऐसी फ़िल्म बनी कि आज 47 साल बाद भी दुनिया भर की 47 लाख से अधिक फिल्मों के सबसे बड़े ऑन लाइन संग्रह #IMDB (Internet Movie Database,) की सर्वाधिक लोकप्रिय भारतीय फिल्मों की सूची में उस फिल्म का नाम पहले नम्बर पर है। उस फिल्म का नाम है #आनंद।
सम्भवतः समय बीतने के साथ राजेश खन्ना की अन्य सुपरहिट फिल्में धीरे धीरे अपनी चमक खोती गईं और उनकी चमक धीरे धीरे कम ही होती जाएगी। लेकिन 47 वर्ष बाद भी IMDB की लोकप्रियता सूची में पहले स्थान पर बनी हुई आनंद यह बताती है कि जबतक हिन्दी फिल्मों का दौर चलेगा तबतक आनंद और राजेश खन्ना भी जिंदा रहेंगे।
फ़िल्म आनंद लोकप्रियता का ऐसा इतिहास रच देगी यह तो राजेश खन्ना ने भी नहीं सोचा होगा लेकिन फ़िल्म की कहानी और ऋषि दा की काबिलियत पर तो उनको विश्वास था ही इसीलिए उस समय के उस परम लोकप्रिय, चरम अहंकारी सुपरस्टार ने भी आनंद फ़िल्म के लिए अपने प्रचण्ड अहं को भी पूरी तरह मार दिया था।
आज उपरोक्त प्रसंग का जिक्र इसलिए किया क्योंकि उपरोक्त प्रसंग यह सन्देश देता है कि यदि जीवन में कुछ विशेष विशिष्ट और विलक्षण प्राप्त करना है तो बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, जैसे कि राजेश खन्ना सरीखे व्यक्ति ने आनंद के लिए छोड़ दिया था।
हर समय हमारे मन की ही हो यह सम्भव नहीं है।
अतः देश के प्रधानमंत्री को गली चौक चौराहों पर मदारी (हमारे मन) की रस्सी से बंधा वो बन्दर समझना बन्द करिये जो हर मोड़ हर चौराहे पर लोगों की मर्ज़ी के हिसाब से नाचता कूदता है।