Tuesday, July 26, 2016

जब आज़ाद की मां की मूर्ति स्थापित न होने देने के लिए कांग्रेस सरकार ने चलवा दी गोलियां

 भारत माता के अजर अमर बलिदानी सपूत चंद्रशेखर आज़ाद और उनकी माता की पुण्य स्मृतियों के साथ तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा किये गए खूनी तांडव का शर्मनाक सच यह है.
आप सच से परिचित हों उससे पहले चंद पंक्तियों में उस सच की पृष्ठभूमि से भी परिचित हो लीजिये.
27 फ़रवरी 1931 को चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिताजी की भी मृत्यु हो गयी थी. आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी.

अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं.
लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें. अतः कभी ज्वार, कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल, चावल गेहूं और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमें शेष ही नहीं रह गयी थी. उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (सन 1949) तक जारी रही.
(यहां आज की पीढ़ी के लिए उल्लेख कर दूँ कि उस दौर में ज्वार और बाज़रा को ”मोटा अनाज” कहकर बहुत उपेक्षित और हेय दृष्टि से देखा जाता था और इनका मूल्य गेहूं से बहुत कम होता था)


Indian Revolutionaries: A comprehensive study 1757-1961, Volume 3

अगस्त 1947 तक कभी जेल, कभी फरारी में फंसे रहे चंद्रशेखर आज़ाद के क्रान्तिकारी साथी सदाशिव राव मलकापुरकर को जब आज़ाद की माता की इस स्थिति के विषय में पता चला तो वे उनको लेने उनके घर पहुंचे.
उस स्वाभिमानी माँ ने अपनी उस दीन-हीन दशा के बावजूद उनके साथ चलने से इनकार कर दिया था. तब चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे. चूंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था, अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा और सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था.
अपनी भयानक आर्थिक स्थिति के बावजूद सदाशिव जी ने चंद्रशेखर आज़ाद को दिए गए अपने वचन के अनुरूप आज़ाद की माताश्री को अनेक तीर्थस्थानों की तीर्थ यात्रायें अपने साथ ले जाकर करवायी थीं.
अब यहाँ से प्रारम्भ होता है वो खूनी अध्याय, जो कांग्रेस की राजनीति के उस भयावह चेहरे और चरित्र को नंगा करता है जिसके रोम-रोम में चंद्रशेखर आज़ाद सरीखे क्रांतिकारियों के प्रति केवल और केवल जहर ही भरा हुआ था.
मार्च 1951 में चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक प्याऊ की स्थापना की थी. प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्याऊ के निर्माण को झाँसी की जनता की अवैध और गैरकानूनी गतिविधि घोषित कर दिया. किन्तु झाँसी के राष्ट्रभक्त नागरिकों ने कांग्रेसी सरकार के उस शासनादेश को ‘टॉयलेट पेपर’ से भी कम महत्व देते हुए उस प्याऊ के पास ही चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया.
आज़ाद के ही एक अन्य साथी तथा कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी ने आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी थी. झाँसी के नागरिकों के इन राष्ट्रवादी तेवरों से तिलमिलाई बिलबिलाई कांग्रेस की सरकार अब तक अपने वास्तविक तानाशाह रूप में आ चुकी थी.
कांग्रेस सरकार ने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर के पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा कर चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी थी ताकि उनकी मूर्ति की स्थापना ना की जा सके..
कांग्रेसी सरकार के इस यमराजी रूप के खिलाफ आज़ाद के अभिन्न मित्र सदाशिव जी ने ही कमान संभाली और चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति अपने सिर पर रखकर इस ऐलान के साथ कर्फ्यू तोड़कर अपने घर से निकल पड़े थे कि यदि चंद्रशेखर आज़ाद ने मातृभूमि के लिए अपने प्राण बलिदान कर दिए थे तो आज मुझे अवसर मिला है कि उनकी माताश्री के सम्मान के लिए मैं अपने प्राणों का बलिदान कर दूं.
अपने इस ऐलान के साथ आज़ाद की माताश्री की मूर्ति अपने सिर पर रखकर प्याऊ की तरफ चल दिए सदाशिव जी के साथ झाँसी के राष्ट्रभक्त नागरिक भी चलना प्रारम्भ हो गए.
अपने तानाशाह आदेश की झाँसी की सड़कों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने अपनी पुलिस को सदाशिव जी को गोली मार देने का आदेश दे डाला था किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर प्याऊ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव जी को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में लेकर आगे बढ़ना शुरू कर दिया था. इस पर सरकार ने उस भीड़ पर भी गोली चलाने का आदेश दे डाला. परिणामस्वरूप झाँसी की उस निहत्थी निरीह राष्ट्रभक्त जनता पर तानाशाह कांग्रेस सरकार की पुलिस की बंदूकों के बारूदी अंगारे मौत बनकर बरसने लगे थे सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और तीन लोग मौत के घाट उतर गए.


तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के इस खूनी तांडव का परिणाम यह हुआ था कि चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी थी और आते जाते अनजान नागरिकों की प्यास बुझाने के लिए उनकी स्मृति में बने प्याऊ को भी पुलिस ने ध्वस्त कर दिया था.
अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश में 5 फुट जमीन भी देने से कांग्रेस सरकार ने इनकार कर दिया था जिस देश के लिए चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.
आज देश की नौजवान पीढ़ी को इस सच से परिचित कराने की ज़रुरत है क्योंकि 69 सालों से कांग्रेस ने बहुत कुटिलता और कपट के साथ अपने ऐसे यमराजी कारनामों को हमसे आपसे छुपाकर रखा है. और 69 सालों से हमें सिर्फ यह समझाने की कोशिश की है कि देश को आज़ादी मोहनदास करमचंद गांधी और जवाहरलाल नेहरू और इनकी कांग्रेस ने ही दिलाई.

संदर्भ : Indian Revolutionaries: A comprehensive study 1757-1961, Volume 3

Monday, July 25, 2016

माया बनाम दया : “सत्ता कप” की तैयारी के लिए हुआ एक प्रैक्टिस मैच...



यूपी के राजनीतिक स्टेडियम की चुनावी पिच पर लगभग 7 महीने बाद होने जा रहे मुख्य मुक़ाबले “सत्ता कप” की तैयारी के लिए हुआ एक प्रैक्टिस मैच मात्र ही है. संयोग से यह मैच रोमांचक उतार चढ़ाव से भरपूर रहा.

मैच की शुरुआत भाजपा के नौसिखिया गेंदबाज दयाशंकर सिंह ने अपनी एक ऐसी लूज़ बॉल के साथ की जिसे कोई भी अनुभवी बल्लेबाज दो कदम आगे बढ़कर अपनी खूबसूरत लॉफ्टेड स्ट्रेट ड्राइव से बाउंड्री के बजाय स्टेडियम के ही बाहर पहुंचा देता लेकिन. दयाशंकर की लूज़ बॉल का सामना खूबसूरत अंदाज़ में सधी हुई लॉफ्टेड स्ट्रेट ड्राइव मारने वाले किसी कलात्मक बल्लेबाज से नहीं हुआ. इसके बजाय उसका सामना गली-मोहल्ला क्रिकेट के सर्वाधिक लोकप्रिय शॉट “कुल्हाड़ा कट” के माहिर “अंधाधुंधी” बल्लेबाज से हुआ.

इसका परिणाम वही हुआ जो अपेक्षित था. नौसिखिया गेंदबाज की लूज़ बॉल पर “अंधाधुंधी” बल्लेबाज ने परम् बौरहे अंदाज़ में अपने “कुल्हाड़ा कट” का भरपूर प्रहार किया, नतीजा यह निकला कि बॉल बहुत ज्यादा ऊंचाई तक तो उछल गयी लेकिन ज्यादा दूरी नहीं तय कर सकी. इसका नतीजा यह हुआ कि बॉल स्टेडियम के बाहर जाने के बजाय मैदान भी पार नहीं कर सकी. दयाशंकर की लूज़ बॉल पर चले जबरदस्त “कुल्हाड़ा कट” के कारण बॉल को बाउंड्री से बाहर जाने से रोकने के लिए ‘फील्डिंग” करने के लिए तैनात की गयी दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह ने अपनी शानदार फील्डिंग का प्रदर्शन करते हुए “कुल्हाड़ा कट” के कारण बॉल को बाउंड्री से बाहर जाने से ही नहीं रोका, बल्कि गज़ब का फील्डिंग कौशल दिखाते हुए “कुल्हाड़ा कट” शॉट से उछली गेंद को हवा में ही कैच करके “अंधाधुंधी” बल्लेबाज को आऊट करा दिया और दयाशंकर की लूज़ बॉल को विजयी बॉल में परिवर्तित कर दिया…

...तो मित्रों यह एक प्रैक्टिस मैच ही था जिसने पूरे देश को बहुत साफ़ शब्दों में यह सन्देश दे दिया है कि लगभग 7 महीने बाद यूपी के राजनीतिक स्टेडियम की चुनावी पिच पर होने जा रहे “सत्ता कप” के मुकाबले इसीतरह के नौसिखिया गेंदबाजों, अंधाधुंधी बल्लेबाजों की लूज़ बालों और “कुल्हाड़ा कट” शॉट्स के सहारे ही खेले और हारे-जीते जाएंगे जिनमे स्वाति सिंह जैसे खिलाड़ी भी कहीं कहीं विशेष प्रदर्शन करेंगे. लेकिन मित्रों क्योंकि दुर्भाग्य से यूपी के “सत्ता कप” में भाग लेने जा रही सभी टीमों के पास स्वाति सिंह सरीखी विशेष खिलाडियों का भारी अकाल है अतः यह निश्चित मानिये की यूपी के “सत्ता कप” का विजेता नौसिखिया गेंदबाजों, अंधाधुंधी बल्लेबाजों की लूज़ बालों और कुल्हाड़ा कट शॉट्स के धुरंधरों के दम पर ही तय होगा…!!!

यदि उपरोक्त मुकाबले में भाग लेने जा रही टीमों और उनके खिलाडियों से आप “सैद्धान्तिक” तकनीक, “मर्यादित” कौशल, “अनुशासित” प्रतिबद्धता, “वैचारिक” कलात्मकता के प्रदर्शन की अपेक्षा कर रहे हैं तो यकीन मानिये कि आप मूर्खो के स्वर्ग में जी रहे हैं.

Sunday, July 17, 2016

मंदसौर बंद : 13 सालों से सत्ता पर काबिज़ भाजपा सरकार के मुंह पर ज़ोरदार थप्पड़

मंदसौर बंद की घटना हर्ष और गर्व के बजाय शोक और शर्म का विषय है. मंदसौर बंद की घटना मप्र की भाजपा सरकार के मुंह पर जोरदार थप्पड़ सरीखी है.

ईद के मौके पर मध्यप्रदेश का मंदसौर दो दिन पूरी तरह बंद रहा. इस बात पर सोशल मीडिया में बड़ी जोरशोर से ख़ुशी मनायी जा रही है, इसे ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. मंदसौर बंद का कारण यह बताया जा रहा है कि, ‘शब-ए-बारात’ के दिन मुस्लिम गुंडों ने शहर में पूरी रात जमकर हिंसक उपद्रव किया था. हिन्दुओं के सैकड़ों घरों पर खुलकर पथराव किया था, उनके खिड़की दरवाज़े और घरों के बाहर खड़ी गाड़ियां तोड़ी थीं. पुलिस में शिकायत के बाद भी उन मुस्लिम गुंडों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने के विरोध में मंदसौर की जनता को अंततः यह कदम उठाना पड़ा.

मंदसौर की घटना किसी हर्ष या गर्व की नहीं बल्कि शोक और शर्म का विषय है क्योंकि मंदसौर शहर पकिस्तान, बांग्लादेश में नहीं बल्कि भारत में है.
मंदसौर शहर जम्मू-कश्मीर, केरल या पश्चिम बंगाल में नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में हैं.
मध्यप्रदेश में पिछले 13 वर्षों से मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस, सपा या बसपा की नहीं बल्कि ‘राष्ट्रवादी…!!!’ भाजपा की प्रचण्ड बहुमत वाली सरकार है.
इसके बावजूद मंदसौर में मुस्लिम गुंडे खुलेआम रातभर हिन्दुओं पर कहर बरपाते हैं और पुलिस हिन्दुओं का करूण क्रंदन नहीं सुनती. उन्हें आक्रान्त और आतंकित करने वाले मुस्लिम गुंडों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करके उनके हौंसले बुलंद करती है.
अतः मंदसौर के हिन्दू मजबूर होकर यह कदम उठाते हैं. मंदसौर की बंद पर सोशल मीडिया में मन रहा जश्न और उत्सव मंदसौर के हिन्दुओं के जख्मों पर नमक की तरह है.

किसी शहर का बंद केवल मौखिक लफ़्फ़ाज़ी का नाम नहीं है.छोटे बड़े हर दुकानदार ने उसके लिए अपनी दो दिन की कमाई की आहुति इसलिए दी क्योंकि बेख़ौफ़ बर्बर मुस्लिम गुंडों से उनकी रक्षा करने के बजाय, उन मुस्लिम गुंडों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करके, सरकार उन मुस्लिम गुंडों के पक्ष में खड़ी दिखाई दी.
मंदसौर कोई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, भोपाल, लखनऊ जैसा महानगर नहीं है. उस छोटे से शहर में यदि रोज कमाने खाने वाले दैनिक मजदूर ने यदि दो दिन काम नहीं किया तो उनमें से कई के घरों में चूल्हा भी नहीं जला होगा, बच्चे भूखे सोये होंगे. और यह चूल्हा इसलिए नहीं जला होगा, उसके बच्चे इसलिए भूखे सोये होंगे क्योंकि वह मजदूर हिन्दू है और मुस्लिम गुंडों के आतंक और अत्याचार की आग में झुलस रहा है.
शर्म की बात यह है कि उस हिन्दू दैनिक मजदूर को उस सरकार के शासन में यह सब सहना पड़ रहा है, जिस सरकार का दावा है कि हिन्दुओं की इकलौती ठेकेदार केवल और केवल वही है.
इसीलिए मेरा मानना है कि, मंदसौर की घटना हर्ष और गर्व के बजाय शोक और शर्म का विषय है तथा मप्र की भाजपा सरकार के मुंह पर जोरदार थप्पड़ सरीखी है.