Saturday, December 24, 2016

देश को 5 लाख करोड़ की सौगात समर्पित करेगी नोटबन्दी

8 नवम्बर की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को रद्द कर उनकी जगह नए नोटों के प्रचलन की अपनी घोषणा से पूरे देश को चौंका दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए अपनी सरकार की इस रणनीति के पीछे आतंकवाद को की जाने वाली फंडिंग, जाली करेंसी नोटों का भारत में बढ़ता कारोबार और कालाधन को निकाल बाहर करने के बड़े लक्ष्यों को बताया था । देश की जनता भी इन समस्याओं से पिछले काफी लम्बे समय से चिंतित रही है, वह भी यह चाहती रही है कि इस दिशा में कोई ठोस प्रयास सरकार की ओर से हो, ठीक 6 दिन बाद 30 दिसम्बर को नोटबन्दी की ऐतिहासिक यात्रा अपने पड़ाव पर पहुँचने वाली है. केवल देश ही नहीं अपितु पूरी दुनिया उत्सुकता के साथ नोटबन्दी अभियान की समाप्ति पर उसके परिणामों की प्रतीक्षा कर रही है. नोटबंदी की अबतक की यात्रा ने देश को सुखद और ऐतिहासिक परिणामों के ही संकेत दिए हैं. 
बीती 7 दिसंबर को केंद्र के आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास जब पत्रकारों को नोटबन्दी अभियान की तब तक की प्रगति से अवगत करा रहे थे तब उन्होंने यह बताया था कि... 8 नवम्बर को नोटबन्दी के बाद से लेकर 5 दिसम्बर तक बैंकों में कुल 11.55 लाख करोड़ रू के 500 व 1000 रू के पुराने नोट लोगों द्वारा बैंक खातों में जमा किये गए हैं. इसी दिन वित्तमंत्रालय का यह आंकलन भी सामने आया था कि उन 11.55 करोड़ रू में से लगभग 7 लाख करोड़ रू ऐसे बैंक खातों में जमा हुए हैं जिनमें 1.5 करोड़ या उससे ज्यादा राशि जमा की गयी है. वित्त सचिव द्वारा दी गयी सूचना तथा वित्तमंत्रालय के उपरोक्त आंकलन से यह स्पष्ट हो गया था कि यदि उन खातों में जमा की गयी राशि को पूरी तरह वैध भी है तो उससे सरकार को न्यूनतम २.५० लाख करोड़ रू आयकर का मिलना सुनिश्चित हो चुका है. यदि 500 और 1000 के पुराने नोटों वाली 15.44 लाख करोड़ की राशि में से शेष सारे 8.44 लाख करोड़ रूपए बैंकों में जमा भी हो गए तो सरकार को उनसे 1.5 से लेकर 2 लाख करोड़ रू तक कर के रूप में प्राप्त होंगे ही होंगे क्योंकि बीती 23 दिसम्बर को वित्तमंत्रालय ने यह सूचना सार्वजनिक की थी कि अबतक जिन खातों में जमा रकम इनकम टैक्स के दायरे में आ चुकी है, वैसे खातों की संख्या लगभग 68 लाख तक पहुँच चुकी है. वित्तमंत्रालय के अबतक के उपरोक्त दो आंकलनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि नोटबन्दी के कारण सरकार को इनकम टैक्स के रूप में मिलने वाली रकम का यह आंकड़ा लगभग 4 लाख करोड़ तक पहुँच सकता है. बैंकों में यदि 15.44 लाख करोड़ रू की पूरी राशि जमा भी हो गयी तो यह तो निश्चित है कि वह पूरी राशि वैध नहीं होगी. उसका एक बड़ा हिस्सा वह काला धन भी होगा जिसपर उस राशि के मालिक को भारी जुर्माने की रकम भी चुकानी होगी. अतः संभावित जुर्माने की रकम को भी यदि आयकर से मिलनेवाली राशि से जोड़ दिया जाये तो नोटबन्दी से सरकार को कम से कम 4.5 - 5 लाख करोड़ तक की राशि भी प्राप्त हो सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाया गया नोटबन्दी का कदम इसलिए भी अभूतपूर्व सफलता का इतिहास रचने जा रहा है क्योंकि आर्थिक वित्तीय मामलों की अंतरराष्ट्रीय एजेंसी क्रिसिल ने साल 2007 में भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 23 प्रतिशत काले या अघोषित धन की मौजूदगी बताई थी. यदि इस प्रतिशत को ही स्वीकार कर लिया जाए तो भारत में मौजूदा समय 480 बिलियन डॉलर का अघोषित धन या परिसंपत्ति होने का अनुमान है. सरकार के नोटबंदी के इस कदम से अघोषित नकदी और कालाधन में से लगभग 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि सरकारी बैंकों में आ जाने का अनुमान कई अर्थशास्त्रियों ने भी लगाया है. लेकिन अबतक सामने आये वित्तमंत्रालय के उपरोक्त दो आंकलनों ने यह सन्देश दे दिया है कि नोटबन्दी के परिणामस्वरूप देश के खजाने को मिलने जा रही भारी भरकम राशि का आंकड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कालेधन के खिलाफ छेड़ी गयी निर्णायक जंग (नोटबन्दी) के कदम अभूतपूर्व विजय का नया इतिहास रचने जा रही है.

Friday, December 23, 2016

लोकतंत्र के दो स्तम्भों को RTI से परहेज क्यों.?

चुनावों में कालेधन का जमकर उपयोग होने की चर्चा के साथ ही साथ उन्हीं चुनावों में पेड न्यूज के कालेधंधे की चर्चा भी जमकर होती है. 
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के जजों के भ्रष्टाचरण के अनेकों प्रकरण पिछले काफी लम्बे समय से लगातार उजागर हो रहे हैं.
अतः लोकतंत्र के दो स्तम्भों न्यायपालिका और प्रेस को  इसके दायरे में आने से परहेज क्यों..?
8 नवम्बर को हुई 1000 और 500 के पुराने नोटों की नोटबन्दी के बाद से न्यूजचैनलों पर यह बहस जोरशोर से प्रारम्भ हो गयी है कि... कालेधन पर अंकुश के लिए राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार कानून (RTI) के दायरे में लाया जाए तथा उनको मिलनेवाले हर छोटी बड़ी राशि के चन्दे के स्त्रोत की पूरी जानकारी सार्वजानिक करने का प्रावधान हो. निकट अतीत में न्यायालयों में भी इस ऐसे प्रश्नों को वरीयता के साथ पूछा गया है. मैं भी इस मांग से, ऐसे प्रश्नों से पूर्णतया सहमत हूँ किन्तु न्यूजचैनलों पर आजकल जोरशोर से की जा रही इस मांग ने एक गम्भीर प्रश्न को भी जन्म दिया है. देश का मीडिया केवल राजनीतिक दलों को ही RTI के दायरे में लाने के लिए ही लगातार शोर क्यों कर रहा हैं.? न्यायालयों में ऐसे प्रश्नों का एकमात्र केंद्र राजनीतिक दल ही क्यों बन रहे हैं.? क्या राजनीतिक दलों के साथ ही साथ प्रेस (मीडिया) तथा देश के न्यायालयों को भी सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाया जाना जरुरी नहीं है.? लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से कार्यपालिका और विधायिका तो सूचना का अधिकार कानून के दायरे में पहले से ही हैं. अतः लोकतंत्र के शेष दो स्तम्भों न्यायपालिका और प्रेस को इसके दायरे में आने से परहेज क्यों...?

क्या देश को यह पता चलना आवश्यक नहीं है कि... प्रतिवर्ष सैकड़ों करोड़ के घाटे में चलनेवाले न्यूजचैनल अपने भांति भांति के संपादकों को 15 से 50 लाख रू प्रतिमाह तथा उगाही एजेंट सरीखे रिपोर्टर पत्रकारों को भी 2 से 3 लाख रू प्रतिमाह तक का वेतन कैसे और कहाँ से देते हैं.? इन न्यूजचैनलों पर चलनेवाले विज्ञापनों में से कितने असली हैं और कितने विज्ञापन कालेधन को सफ़ेद बनाने के अपने गोरखधंधे के लिए फ़र्ज़ी तौर पर फिलर की तरह दिखाए जा रहे हैं...? इसकी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए.? ऐसे प्रश्नों का उत्तर न्यूजचैनलों को क्या देश को नहीं देना चाहिए.? विशेषकर तब जब कुछ न्यूजचैनलों के सन्दर्भ में पिछले कुछ वर्षों से देश में यह चर्चा जोरशोर से जारी है कि इनके आय के स्त्रोत के तार संदिग्ध विदेशी संपर्कों और अवैध कालेधन से जुड़े हुए हैं. दिल्ली के इनकमटैक्स कमिश्नर के रूप में एसके श्रीवास्तव द्वारा NDTV के खिलाफ 1.76 लाख करोड़ के 2G घोटाले की रकम में से 2000 करोड़ रू की भागीदारी समेत कुल 5500 करोड़ रू की अवैध रकम (कालाधन) हवाला के जरिये सफ़ेद कर के लेने के अत्यंत गम्भीर आरोप ऐसा ही एक शर्मनाक उदाहरण है. इनकमटैक्स कामिश्नर के उपरोक्त आरोपों को इस बात से भी बल मिला है क्योंकि 2G घोटाले की दलाली की मास्टरमाइंड नीरा राडिया के लिए लॉबीइंग करती NDTV की मैनेजिंग एडिटर की टेलीफोन वार्ताओं को पूरा देश सुन चुका है. अतः न्यूजचैनलों की कार्यशैली और कमाई से सम्बन्धित तथ्यों में RTI लागू करके पारदर्शिता क्यों नहीं लायी जानी चाहिए.? 

इसी तरह 10 से 12 रू की लागत वाला अख़बार रोजाना लाखों की संख्या में केवल 3 से 5 रू तक की कीमत (जिसमे से 1 से 2 रू तो हॉकर और एजेंट ही ले लेता है) के दायरे में बेंचने वाले प्रकाशन समूहों को RTI के दायरे में क्यों नहीं आना चाहिए.? विशेषकर तब जबकि देश और प्रदेश में होनेवाले हर चुनावों के दौरान पेड न्यूज से सम्बन्धित सैकड़ों शिकायतें प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया तथा चुनाव आयोग में व जनता के बीच जोरशोर गूंजती और दर्ज होने के क्रम और गति पिछले कई वर्षों से लगातार बढ़ती जा रही है. 
ध्यान रहे कि चुनावों में कालेधन का जमकर उपयोग होने की चर्चा के साथ ही साथ उन्हीं चुनावों में पेड न्यूज के कालेधंधे की चर्चा भी जमकर होती है. हर चुनावों में लोकतंत्र की लाज लूटती पेड न्यूजों के तांडव को देखा सुना जाता है. पत्रकारिता की तुलना साबुन तेल मंजन या कंडोम बेंचने वाली किसी कम्पनी के धंधे से नहीं हो सकती. इसे शुद्ध निजी व्यवसाय की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की उपाधि से सम्मानित किया गया है. अतः जनता के प्रति जवाबदेही इसका प्रमुख दायित्व है. 
वैसे भी लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से कार्यपालिका और विधायिका तो सूचना का अधिकार कानून के दायरे में पहले से ही हैं. अतः लोकतंत्र के शेष दो स्तम्भों न्यायपालिका और प्रेस को इसके दायरे में आने से परहेज क्यों...?
न्यायपालिका का कार्य और दायित्व लोगों को न्याय प्रदान करना है. यह सीधे जनता से जुड़ा हुआ दायित्व है तथा यह कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है जिसमे देश की सुरक्षा या अन्य किसी संवेदनशील विषय से सम्बन्धित गोपनीयता की कोई भूमिका है. अतः न्यायपालिका को भी RTI के दायरे में लाने से आखिर परहेज क्यों.? विशेषकर तब जबकि देश में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के जजों के भ्रष्टाचरण के अनेकों प्रकरण पिछले काफी लम्बे समय से लगातार उजागर हो रहे हैं. देश की जनता को यह जानने का हक़ क्यों नहीं है कि जिस देश में करोड़ों लोग अपने मुक़दमे की सुनवाई और फैसले के लिए वर्षों से कतार में खड़े हैं उसी देश में एक हत्यारे आतंकवादी की फांसी रोकने की अपील की सुनवाई के लिए देश की सर्वोच्च अदालत पूरी रात कैसे और क्यों खुली रहती है. देश को यह जानने का अधिकार क्यों नहीं है कि जिस सर्वोच्च न्यायलय में अपने केस की सुनवाई प्रारम्भ होने के लिए आम आदमी को महीनों प्रतीक्षा करनी पड़ती है उसी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी कपिल सिब्बल द्वारा मोबाइल फोन से की गयी अपील पर किसी तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी पर रोक कैसे लग जाती है.? देश को यह जानने का भी अधिकार क्यों नहीं है कि जिस हाईकोर्ट में अपने मामले की सुनवाई प्रारम्भ होने के लिए देश के आम आदमी को हफ्तों और महीनों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है वही हाईकोर्ट निचली अदालत द्वारा एक फ़िल्मी सितारे सलमान खान को सुनाई गयी सजा के खिलाफ की गयी अपील को निचली अदालत द्वारा दिए गए आदेश के केवल 3 घण्टे बाद ही कैसे सुन लेता है.?

अतः केवल राजनीतिक दलों को RTI कानून के अन्तर्गत लाने के लिए आजकल मीडिया, विशेषकर न्यूजचैनलों में चल रहे अभियान को तबतक केवल एक पाखण्ड और प्रहसन ही क्यों ना माना जाए जबतक इस अभियान में जनता से सीधे जुड़े हुए देश के शेष दो स्तम्भों देश की मीडिया और न्यायिक व्यवस्था को भी RTI कानून के अंतर्गत लाने की मांग को शामिल नहीं किया जाता.

Tuesday, December 20, 2016

देश की आंखों में धूल झोंक रहे हैं राहुल गाँधी.?

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गाँधी के आरोप वाकई सच हैं या फिर राहुल गाँधी पिछले ढाई वर्षों से देश से लगातार झूठ बोल रहे हैं.? 
इस प्रश्न का जवाब जानने के लिए यह जानना आवश्यक है कि देश के सर्वाधिक धनाढ्य परिवारों की सम्पत्ति पिछले 12 वर्षों के दौरान किस सरकार के कार्यकाल में कितनी बढ़ी... ?
18 दिसम्बर को उत्तरप्रदेश के जौनपुर में कांग्रेस की रैली में बोलते हुए राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि केंद्र में अपनी सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की 60% संपत्ति देश के केवल 1% लोगों को दे दी है तथा इस सम्पत्ति का 60% भाग देश के केवल 50 रईसों को दे दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी के खिलाफ यह आरोप राहुल गाँधी ने पहली बार नहीं लगाया है. 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के तत्काल बाद से ही राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेसी फौज ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अपने ऐसे आरोपों की बौछार प्रारम्भ कर दी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश के कुछ बड़े औद्योगिक घरानों विशेषकर अम्बानी और अडानी के हित साधने का आरोप कांग्रेस लगातार लगाती रही है...
क्या राहुल गाँधी के उपरोक्त आरोप वाकई सच हैं या फिर राहुल गाँधी पिछले ढाई वर्षों से देश से लगातार झूठ बोल रहे हैं.? इस प्रश्न का जवाब जानने के लिए यह जानना आवश्यक है कि देश के सर्वाधिक धनाढ्य परिवारों की सम्पत्ति पिछले 12 वर्षों के दौरान किस सरकार के कार्यकाल में कितनी बढ़ी... ?
उन 12 वर्षों से सम्बंधित तथ्य कुछ इस प्रकार हैं...
सबसे पहले बात देश की 60 % सम्पत्ति पर देश के 1 % धनाढ्य परिवारों का कब्ज़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा करवाये जाने के आरोप की. अपने इस आरोप के पक्ष में राहुल गाँधी ने कोई तथ्य कोई साक्ष्य तो देश के समक्ष आजतक प्रस्तुत नहीं किया है किन्तु 2014 में यूपीए सरकार के 10 वर्षों के शासनकाल के तत्काल बाद प्रकाशित एक रिपोर्ट से देश के समक्ष यह तथ्य अवश्य उजागर हुआ था कि... 2014 तक देश की 50% सम्पत्ति पर देश के 1% धनाढ्य परिवारों का कब्ज़ा हो चुका था. (इस लिंक पर आंकड़े की पुष्टि की जा सकती है http://www.thehindu.com/data/indias-staggering-wealth-gap-in-five-charts/article6672115.ece
नवम्बर 2005 में प्रकाशित एक तुलनात्मक रिपोर्ट में अगस्त 2004 में देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों की कुल सम्पत्ति का आंकड़ा 43.5 बिलियन डॉलर था जो अगस्त 2005 में बढ़कर 70.13 बिलियन डॉलर हो गया था (इस लिंक पर आंकड़े की पुष्टि की जा सकती है. http://www.business-standard.com/special/bill2005/bill-05_01.pdf ) अर्थात अगस्त 2004 से अगस्त 2005 के मध्य, केवल एक वर्ष में देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों की कुल सम्पत्ति लगभग 58% की जेट गति से बढ़ी थी और देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों ने केवल एक वर्ष में ही 26.6 बिलियन डॉलर की मोटी कमाई अपनी संपत्ति में जोड़ ली थी. यहां यह उल्लेख आवश्यक है कि मई 2004 में अटल सरकार की सत्ता से विदाई हो चुकी थी और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर मनमोहन सिंह ने सम्भाल ली थी. अर्थात केवल एक वर्ष में अपनी संपत्ति में 58% वृद्धि कर के 26.6 बिलियन डॉलर की मोटी कमाई करने का कमाल देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के शासनकाल के पहले वर्ष में ही कर दिखाया था.
इसके बाद इन परिवारों की संपत्ति में वृद्धि की यह रफ्तार थमी नहीं थी. सितंबर 2014 में देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों की संपत्ति का आंकड़ा 346.44 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया था ( इस लिंक पर आंकड़े की पुष्टि की जा सकती है. http://www.jagranjosh.com/current-affairs/forbes-india-released-the-100-richest-indian-list-2014-1411727003-1 ). अर्थात अगस्त 2004 से सितंबर 2014 के मध्य देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों ने लगभग 302.9 बिलियन डॉलर अपनी संपत्ति में जोड़ लिए थे. अर्थात 2004 से 2014 के मध्य की दस वर्षों की समयावधि में देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवार प्रतिवर्ष औसतन लगभग 30.29 बिलियन डॉलर अपनी संपत्ति में जोड़ रहे थे. इन परिवारों की संपत्ति में हुई इस बेतहाशा वृद्धि का उपरोक्त आंकड़ा इसलिए और भी ज्यादा आश्चर्यचकित करता है क्योंकि इन दस वर्षों के दौरान भारत पर बाहरी कर्ज के आंकड़े में लगभग 4 गुना वृद्धि हुई थी. वित्तीय वर्ष 2004 की समाप्ति के समय भारत पर 112.7 बिलियन डॉलर का बाह्य ऋण था जो मार्च 2014 में बढ़कर 446.20 बिलियन डॉलर हो चुका था. (इस लिंक पर आंकड़े की पुष्टि की जा सकती है http://www.tradingeconomics.com/india/external-debt ) अर्थात 2004 से 2014 के मध्य यूपीए के शासनकाल की दस वर्षों की समयावधि में देश के क़र्ज़ में औसतन लगभग 33.35 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई थी. क्या राहुल गाँधी मनमोहन सिंह और उनकी कांग्रेसी फौज देश को यह बताएगी कि उनके 10 वर्ष के शासन में जब देश के क़र्ज़ में लगभग 333.5 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई थी तब उसी समयावधि में देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों की संपत्ति में लगभग 302.9 बिलियन डॉलर की वृद्धि कैसे हो रही थी.? 
पिछले ढाई वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐसे आरोप लगा रहे राहुल गाँधी क्या अपनी सरकार के दस वर्षों के शासन से सम्बन्धित उपरोक्त संगीन सवालों का जवाब देश को देंगे.? 
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार के लगभग ढाई वर्ष के शासनकाल के पश्चात् देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों की संपत्ति का आंकड़ा 381.34 बिलियन डॉलर पर पहुंचा है. यह आंकड़ा 2014 के आंकड़े से 34.9 बिलियन डॉलर अधिक है. अर्थात उन घरानों की संपत्ति में वृद्धि लगभग 13.96 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष की दर से हुई है. जबकि यूपीए के 10 वर्ष लम्बे शासनकाल में यह दर इससे दोगुने से भी अधिक लगभग 30.29 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष थी.

क्योंकि 2004 से 2014 के मध्य, यूपीए के शासनकाल की दस वर्षों की जिस समयावधि में देश के क़र्ज़ में जब औसतन लगभग 33.35 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष की वृद्धि हो रही थी. तब उसी यूपीए के शासनकाल के उन्हीं दस वर्षों की उस समयावधि में देश के सबसे धनाढ्य 100 परिवारों की सम्पत्ति में औसतन लगभग 30.29 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष की वृद्धि हो रही थी. इसलिए आज यह प्रश्न स्वाभाविक है कि... क्या तत्कालीन यूपीए सरकार अपने दस वर्षों के शासनकाल के दौरान देश की 60-70% संपत्ति देश के सबसे धनाढ्य उन 100 परिवारों को दे रही थी.?
राहुल गाँधी को इस सवाल का जवाब देश को देना चाहिए क्योंकि पिछले ढाई वर्षों से वो यही आरोप देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ लगा तो रहे हैं किन्तु एक भी ऐसा साक्ष्य या तथ्य प्रस्तुत नहीं कर सके हैं, जिसतरह के उपरोक्त साक्ष्य व तथ्य उनकी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दस वर्षों के शासनकाल के दस्तावेजों में दर्ज हैं...


कृपया इसे भी पढ़ें...
36.5 लाख करोड़ की सौगात कारपोरेट जगत को कांग्रेस ने दी तो गुनाहगार नरेन्द्र मोदी क्यों.?
http://jansadan.blogspot.in/2016/11/365_22.html

Thursday, December 1, 2016

अपने पाप का भार कम से कम गरीबों के ही माथे पर तो मत मढ़िए सरकार...

......उनसे उनकी काली कमाई का स्त्रोत पूछे जांचे बिना चोर लुटेरों भ्रष्टाचारियों भूमि-हवाला-ड्रग माफियाओं की काली कमाई में "फिफ्टी-फिफ्टी" बंदरबांट की अपनी स्कीम का जिम्मेदार जिन कारणों को बताया जा रहा है उनमे सबसे बड़ा कारण गरीबों के जनधन खातों को यह कहकर बताया जा रहा है की 8 नवम्बर के बाद उन खातों में 25 से 26 हज़ार करोड़ रूपये जमा हो गए हैं, अर्थात इन खातों के जरिये कालाधन सफ़ेद किया जा रहा है... 
इस सरकारी राग को न्यूजचैनलों ने भी भांडों की तरह चौबीसों घण्टे अलापना शुरू कर दिया था. ऐसा माहौल बना दिया गया था... मानो जनधन खाते वाले गरीब लोग केवल कालाधन को सफ़ेद करने के काम में जुटे हुए हैं.
अब समझिये और साक्षात्कार करिये इस दुष्प्रचार के शर्मनाक सच से.....
स्वयम सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही 8 नवम्बर 2016 से पहले लगभग 23℅ जनधन खातों का बैलेंस शून्य था, अर्थात यह खाते निष्क्रिय थे... इसके बाद 23 नवम्बर 2016 को जारी हुए आंकड़ों के अनुसार कुल 25.68 करोड़ जनधन खातों में से 5.89 करोड़ खातों (22.94℅)का बैलेंस शून्य ही था अर्थात यह खाते निष्क्रिय ही थे.
सरकारी दावा यह है की 8 नवम्बर के बाद जनधन खातों में लगभग 26 हज़ार करोड़ रू जमा हो गए. 
साथ ही साथ यह आरोप भी चस्पा कर दिया गया की यह रकम काले को सफ़ेद करने के लिए जमा कराई गयी...
जरा गौर करिये की यदि 19.78 करोड़ सक्रीय प्रत्येक जनधन खातेवालों ने अपने खातों में 8 नवम्बर के बाद यदि 1500 रू भी जमा कराये तो यह रकम लगभग 29.67 हज़ार करोड़ रू होती.
क्या 19.78 सक्रीय जनधन खाते वालों के पास 1000 या 500 के दस पांच नोट भी नहीं रहे होंगे.?
नहीं ऐसा नहीं है. मेरे यहां अखबार देनेवाले हॉकर द्वारा 13.5 हज़ार रू मूल्य वाले 500 के 27 नोट जमा करने की बात मैंने 11 नवम्बर को ही अपनी एक पोस्ट में लिखी थी.
जिससे सिगरेट लेता हूँ उस पानवाले ने भी अपनी बचत के 11 हज़ार रू खाते में जमा कराये. यह लोग जनधन खाता धारक ही हैं.
नोटबन्दी के कारण देश भर में इनके जैसे करोड़ों निम्न मध्यम वर्गीय व गरीब लोगों ने अपने जनधन खातों में पैसे जमा करवाये हैं. किन्तु दुष्प्रचार इस तरह किया गया मानो जनधन खातों में जमा कराई गयी 26 हज़ार करोड़ की रकम वह कालाधन है जो इन गरीबों ने कमीशन खाकर अपने खातों में जमा करवाया है.
दरअसल यह दुष्प्रचार एक सुनियोजित षड्यन्त्र था जिसके बहाने जिसकी आड़ में चोर लुटेरों भ्रष्टाचारियों भूमि-हवाला-ड्रग माफियाओं की काली कमाई में "फिफ्टी-फिफ्टी" बंदरबांट की अपनी स्कीम के पाप को जनधन खाते वाले गरीब आम आदमी के माथे मढ़ना था...
अतः गरीबों के साथ विश्वासघात के अपने पाप का भार कम से कम उन गरीबों के ही माथे पर तो मत मढ़िए सरकार...

Thursday, November 24, 2016

पहले संगठित लूट के मायने मालूम करो मनमोहन फिर बोलो

राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा आक्रमण करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 500 और 1000 के नोटों पर रोक के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय को संगठित लूट बताते हुए चेतावनी दी कि नोटबंदी के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास हिला है. इस कदम से आरबीआई एक्सपोज हुआ है.  राज्यसभा में मनमोहन सिंह के इस बयान ने देश के जख्मों पर तेज़ाब मलने का काम किया है...
प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुए लगभग 12 लाख करोड़ के 2G CWG कोयला घोटालों सरीखी अनेकों बहुप्रचारित संगठित लूट का जिक्र यहां आवश्यक नहीं क्योंकि जनता के धन की इन बेशर्म बर्बर संगठित लूटों से पूरा देश भलीभांति परिचित है. अतः देश की संगठित लूट के उन प्रकरणों को मनमोहन सिंह को याद कराना आवश्यक है जिसके जिम्मेदार वो स्वयम थे.
देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संभवतः संगठित लूट के मायने नहीं मालूम हैं. क्योंकि यदि उनको इसके मायने मालूम होते तो कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 के नोटों पर रोक को वो संगठित लूट नहीं कहते. अतः जनता के धन की संगठित लूट किसे कहते हैं और वो क्या और कैसे होती है.? मनमोहन सिंह को यह याद दिलाना और बताना आज आवश्यक हो गया है. 
इस देश में सरकार की आँख कान नाक के नीचे हुई बैंकों में जमा जनता के धन की सबसे बड़ी और संगठित लूट तब हुई थी जब मनमोहन सिंह इस देश के वित्तमंत्री हुआ करते थे और बैंकों में जमा जनता के धन की रक्षा की जिम्मेदारी उनकी थी. मनमोहन सिंह भले ही भूल गए हों या भूलने का पाखण्ड करते हों लेकिन देश उस जघन्य लूट को नहीं भूला है जब कुछ सट्टेबाजों के गिरोह ने हर्षद मेहता नाम के अपने सट्टेबाज सरगना के साथ मिलकर 1992 में देश के बैंकों में जमा गरीब जनता की गाढ़ी कमाई के लगभग 36 हज़ार करोड़ रू लूट लिए थे. उन सट्टेबाजों की लूट का सिलसिला यहीं नहीं थमा था. बैंकों से लूटी गयी उस रकम को हथियार बनाकर उन सट्टेबाज लुटेरों ने देश के शेयर बाजार में इतनी भयंकर लूटपाट की थी कि शेयर बाजार इतनी बुरी तरह ढहा था कि जनता के लाखों करोड़ रू रातोंरात मिटटी में मिल गए थे और देश के सैकड़ों लोगों ने आत्महत्या करके मौत को गले लगा लिया था. मनमोहन सिंह और उनकी कांग्रेसी फौज को यदि मालूम नहीं हो तो बताना चाहूंगा कि देश के वित्तमंत्री की हैसियत से शेयर बाजार पर निगरानी की जिम्मेदारी भी मनमोहन सिंह की ही थी.
मनोमोहन सिंह ने कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 के नोटों पर रोक के नतीजे खतरनाक होने की चेतावनी देते हुए जब यह कहा कि इस रोक से बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास हिला है. इस कदम से आरबीआई एक्सपोज हुआ है. तो उनके इस बयान पर याद आया कि 2009 में एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में देश में 1,69,000 करोड़ रू के जाली नोटों के चलन में होने की बात उजागर की थी. उसी कालखण्ड में देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर जब सीबीआई ने छापा डाला था तो उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले थे. दरअसल उस समय सीबीआई ने जब नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा था कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. लेकिन इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया था. मनमोहन सिंह को क्या यह याद नहीं कि उस समय देश की सरकार के प्रधानमंत्री वो स्वयम थे. लेकिन उस सरकार ने देश और देश की संसद को अँधेरे में रखा था. सिर्फ यही नहीं सीबीआई की जाँच में यह भी उजागर हुआ था कि जिस इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.की कम्पनी डे-ला-रू को मनमोहन सिंह की सरकार ने भारतीय करेंसी छापने का ठेका दे रखा था वही डे-ला-रू पाकिस्तान की आईएसआई के लिए नकली भारतीय करेंसी छापने का भी धंधा कर रही थी.? लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार ने यह शर्मनाक सच्चाई भी देश और देश की संसद से छुपाने का कुकृत्य किया था. जबकि उस समय यह खबरें देश और दुनिया की मीडिया में उजागर हो गयी थीं. आईएसआई के लिए नकली भारतीय करेंसी छापने का जघन्य अपराध कनेवाले इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.के खिलाफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने क्या और कैसी कानूनी कार्रवाई कब की थी.? देश को यह आजतक मालूम नहीं हुआ है.
अतः मनमोहन सिंह को यह भी याद दिलाना बताना आवश्यक है कि कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 करोड़ के नोटों पर रोक के कारण देश के बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास नहीं हिलता है ना ही आरबीआई एक्सपोज होता है. इसके बजाय जब देश को यह पता चलता है कि जो आदमी हमारी असली करेंसी छापता है वही आदमी आईएसआई के लिए हमारी नकली करेंसी भी छाप रहा है तथा सीबीआई के छापे में आरबीआई के वाल्ट से भी नकली नोट निकल रहे हैं तब देश के बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास बुरी तरह हिलता है और आरबीआई की साख तार तार होती है. वो बुरी तरह एक्सपोज भी होता है.
देश मनमोहन सिंह और कांग्रेसी फौज को आज यह भी याद दिलाना चाहता है कि आईएसआई के साथ मिलकर एक इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.जब देश की अर्थव्यवस्था की संगठित लूट कर के उसके साथ जघन्य बलात्कार कर रहा था तब इस देश की बागडोर मनमोहन सिंह के हाथ में ही थी.
अतः राज्यसभा में मनमोहन सिंह जब 500 और 1000 के नोटों पर रोक के नरेंद्र मोदी के फैसले को संगठित लूट बता रहे थे तब संभवतः अपने गिरेबान में झांकना भूल गए थे. क्योंकि यदि उन्होंने ऐसा किया होता तो उन्हें यह मालूम हो जाता कि इस देश की अबतक की सबसे बड़ी संगठित लूट का जिम्मेदार 500 और 1000 के नोटों पर रोक का नरेंद्र मोदी का फैसला नहीं बल्कि देश के वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल है.




Friday, November 18, 2016

देश के मुख्य न्यायाधीश को बैंकों के आगे लाइन में खड़ी जनता दंगाई क्यों लगती है.?

देश में 500 और 1000 के नोटों पर लगी रोक के 11 दिन बाद देश के मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर ने टिप्पणी की है कि, "लोगों को हाईकोर्ट जाने का अधिकार है. अगर हाईकोर्ट के दरवाज़े बन्द किये गए तो समस्या की गंभीरता के बारे में कैसे पता चलेगा. लोग परेशान हैं. गुस्से में हैं. स्थिति गंभीर है. ऐसे दंगा होने लगेगा."

मुख्य न्यायाधीश महोदय की उपरोक्त टिप्पणी का देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह तो निकट भविष्य में ज्ञात हो ही जायेगा किन्तु उनकी टिप्पणी के बाद से कांग्रेस के नेताओं और अरविन्द केजरीवाल तथा ममता बनर्जी सरीखे नेताओं के हौसले बुलन्द नज़र आ रहे हैं. इन नेताओं ने देश में 500 और 1000 के नोटों पर रोक के खिलाफ देश में हिंसा भड़कने फैलने की चेतावनियां-धमकियां देना प्रारम्भ कर दिया है.
अतः इस स्थिति ने मेरे मन में कुछ प्रश्नों को जन्म दिया है. मेरे वो सवाल यह हैं...

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, जिस दिन देश में 500 और 1000 के नोटों पर रोक लगी थी उस दिन स्थिति जितनी गंभीर थी उतनी गंभीर उस रोक के 11 दिन बाद तो नहीं ही है. उन 11 दिनों में देश में कहीं कोई दंगा होना तो दूर छोटी मोटी हिंसा या झड़पों का भी कोई समाचार भी देखा सुना नहीं गया. ऐसे में उस रोक के 11 दिन बाद आपको यह क्यों और कैसे प्रतीत हुआ कि नोटों पर लगी रोक के कारण देश में स्थिति इतनी गम्भीर है कि देशव्यापी दंगे हो सकते हैं.?

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश की अदालतों में 2 करोड़ 70 लाख मुक़दमे लम्बित हैं. इस स्थिति का अर्थ यह है कि देश में न्याय पाने की कतार में लगभग 6 से 7 करोड़ लोग खड़े हुए हैं. यह स्थिति एक दो दिन या दो-चार हफ्तों की नहीं है. न्याय पाने के लिए वर्षों से कतार में खड़े लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन न्याय पाने की लम्बी कतार में वर्षों से खड़े इस देश के आम आदमी ने इस बात पर कभी कोई दंगा नहीं किया है. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए केवल कुछ घण्टे लाइन में खड़े होने के कारण लोग दंगा करने लगेंगे.? 

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, आपने टिप्पणी की है कि यदि नोट पर रोक के खिलाफ लोगों को हाईकोर्ट जाने से रोका तो दंगे हो जायेंगे.अतः सबसे पहले बात आपके इसी तर्क की. माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी इस देश में हत्या के केस में केवल 39.1% तथा बलात्कार के केस में केवल 28% लोगों को सजा मिलती है. अर्थात लगभग 60.9% हत्यारों और 72% बलात्कारियों को कोई सजा नहीं मिलती. कमोबेश यही स्थिति अन्य संगीन अपराध के लिए मिलने वाली सज़ाओं की भी है. अर्थात ऐसे जघन्य अपराध के मामलों में 60 से 70 प्रतिशत जनता को न्याय नहीं मिल पाता. लेकिन इस देश का आम आदमी तब भी कोई दंगा नहीं करता. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?
माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में 1991-92 में हुए शेयर घोटाले में सीधे देश की जनता की जेब से लगभग 36 हज़ार करोड़ रू लूट लिए गए थे (आज उस राशि का मूल्य लगभग साढ़े 3 लाख से 4 लाख हज़ार करोड़ होगा). दिनदहाड़े सरकार की आँख नाक कान के सामने जनता से हुई उस जघन्य लूट का उस समय शिकार बने 200 से अधिक लोगों ने आत्महत्या कर ली थी. जनता को वह राशि आजतक वापस नहीं मिली. उस घोटाले के जिम्मेदार लोगों को आजतक सजा नहीं मिली. आज 24 वर्ष बाद भी जनता को उसका वह डूबा हुआ पैसा और न्याय नहीं मिला है. लेकिन इस देश के आम आदमी ने तब भी कोई दंगा नहीं किया. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में जहरीली गैस से लगभग 3900 लोगों को कुछ घण्टों में मौत के घाट उतारने, लाखों लोगों को ज़िन्दगी भर के लिए बीमार करने के जिम्मेदार वॉरेन एंडरसन को सरकारी संरक्षण में देश से भगाया गया था, आजतक किसी को कोई सजा नहीं मिली तब भी इस देश के आम आदमी ने कोई दंगा नहीं किया... अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में केवल 72 घण्टों में लगभग साढ़े तीन हज़ार सिक्खों को देश के सत्ताधारी दल के नेताओं-गुंडों ने देश की राजधानी में सुप्रीमकोर्ट की नाक के नीचे सरेआम कत्ल किया. 
आज 32 वर्ष बाद भी उस कत्लेआम के जिम्मेदार किसी नेता गुंडे को सजा नहीं मिली है लेकिन इस देश के आम आदमी ने कोई दंगा नहीं किया. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश के एक हिस्से कश्मीर से साढ़े तीन लाख हिंदुओं का घरद्वार सम्पत्ति लूटकर उनके घरों से रातों रात भगा दिया गया ऐसा करने वाले किसी गुंडे को आजतक सजा नहीं मिली. उन साढ़े तीन लाख हिंदुओं को ना तो उनका घर जमीन इज़्ज़त वापस मिली ना ही उनको न्याय मिला लेकिन इस देश के आम आदमी ने कोई दंगा नहीं किया. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.? 

मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में सरकारों की 70 साल से जारी आपराधिक लापरवाही और निकम्मेपन के कारण रोजाना लगभग 3650 बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं. इनमे से 50% बच्चे तो जन्म के केवल 28 दिन के भीतर ही काल का ग्रास बन जाते हैं लेकिन इस देश की जनता या इस देश का आम आदमी इसके लिए कोई दंगा नहीं करता. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश की जनता या आम आदमी इतना स्वार्थी, संकीर्ण और संकुचित मानसिकता वाला वह दंगाई नहीं है कि जो देशहित के लिए हो रहे किसी कार्य के लिए कुछ घण्टों कतार में नहीं खड़ा हो सके. 
मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, इस देश में दंगों की आग का इतिहास देशहित में किये गए जनता के किसी योगदान के कारण नहीं लिखा गया है. इसके बजाय उन दंगों का कारण कट्टर धर्मांध साम्प्रदायिक सोच के गर्भ से जन्म लेता रहा है. अतः माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय टीएस ठाकुर जी, पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि अपना पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े लोग दंगा करने लगेंगे.?

Sunday, November 13, 2016

पहचानिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आस्तीन के सांप को

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज गोवा का भाषण देश के इतिहास के पन्नों का सर्वाधिक स्वर्णिम पृष्ठ बनकर दर्ज हो चुका है. आज उन्होंने देश को आगाह भी कर दिया है कि वो लोग मुझे ज़िंदा नहीं रहने देंगे...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह बात हम आप सरीखी देश की जनता के लिए अत्यंत गम्भीर सन्देश और चेतावनी है.... इससे हमारा आपका दायित्व और बढ़ गया है कि हम उन लोगों को पहचाने जो "मोदी समर्थक" की खाल ओढ़कर देश को अबतक भ्रमित किये हुए थे और अवसर खोज रहे थे अपना क्षुद्र स्वार्थ सिद्ध करने का. किन्तु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी उम्मीदों पर वज्राघात कर दिया हैं. ऐसे लोग कालेधन पर प्रधानमंत्री के जानलेवा प्रहार का शिकार बनने के बाद अब आस्तीन में छुपे जहरीले सांप की तरह उन्हें डसने में जुट गए हैं. इनदिनों "आजतक" NDTV सरीखे न्यूजचैनलों द्वारा देश में फैलाये जा रहे मोदी विरोधी जहर से तो हम सब परिचित हैं किन्तु आज से मैं शुरुआत कर रहा हूँ उन आस्तीन में छुपे साँपों का चेहरा उजागर करने की जो कालेधन के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ज़ंग से तिलमिला कर उन्हें डसने की कोशिश कर रहे हैं. 
अब मैं अपनी बात प्रारम्भ करता हूँ.... अगर दिल्ली के पॉश इलाके में राजदीप सरदेसाई के तथाकथित 56 करोड़ के मकान पर सोशल मीडिया सवाल पूछ सकता है और उसका वह सवाल देशव्यापी सुनामी बन सकता है, तो फिर एक कमरे के घर में अपने 8 भाई बहनों के साथ जीवन गुजारने के बाद 1990 के शुरुआती दिनों में एक सामान्य साधारण पत्रकार के रूप में अपना पेशेवर जीवन प्रारम्भ करनेवाला रजत शर्मा केवल 10-12  वर्षों बाद ही सैकड़ों करोड़ के न्यूजचैनल का मालिक कैसे बन गया.? यह सवाल भी सोशल मीडिया पर क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए.? और उस सवाल को सुनामी क्यों नहीं बन जाना चाहिए.?
आज यह सवाल इसलिए क्योंकि 8 नवम्बर को देश में कालेधन के खिलाफ प्रारम्भ हुआ ऐतिहासिक युद्ध इस देश का हर वो नागरिक लड़ रहा है जो सैकड़ों लोगों की लम्बी लम्बी लाइनों में घण्टों खड़ा हो रहा है लेकिन कह रहा है कि यह फैसला बहुत बढ़िया है और बहुत जरूरी था. लेकिन इस रजत शर्मा का न्यूजचैनल और यह स्वयम भी उस नागरिक के मनोबल को ध्वस्त करने तथा देश में भय आशंका मातम का वातावरण फ़ैलाने के लिए ऐड़ीचोटी का जोर किस तरह लगा रहा है.इसका एक उदाहरण देता हूं.
सरकार के फैसले से दिल्ली में 40 हज़ार शादियों के मातम में बदल जाने का राग अलाप कर इसी के न्यूजचैनल ने अत्यंत शातिर और सुनियोजित तरीके से सरकार के फैसले के खिलाफ जनता को भड़काने की मुहिम प्रारम्भ की थी. मैं यह बात यूं ही नहीं कह रहा, 9 नवम्बर को इसका एक संवाददाता एक व्यक्ति को अपने कैमरे के सामने बैठाये हुए था. उस व्यक्ति ने बताना शुरू किया था कि मैंने पिछले हफ्ते ही बैंक से 7 लाख रू निकाले थे क्योंकि 2 दिन बाद मेरी बेटी की शादी है लेकिन सरकार के इस फैसले से मैं तो बरबाद हो गया, मैं लुट गया, लगता है मुझे कुछ हो जाएगा.... इतना कह कर वो व्यक्ति अपना सीना पकड़कर मातमी मुद्रा में ऐसे झूमने लगा था कि मानो उसको हार्ट अटैक पड़ गया है, उस व्यक्ति के चुप होते ही रजत शर्मा के न्यूजचैनल का संवादददाता उस व्यक्ति से भी ज्यादा मातमी मुद्रा में उस परिवार की स्थिति का परिचय इस अंदाज़ में देने लगा था मानो वह परिवार तो तबाह ही हो गया है. संवाददाता की इस न्यूजचैनली नौटँकी के बाद स्क्रीन पर रजतशर्मा स्वयम चमका था और रूंधी हुई भारी आवाज़ में यह बताने लगा था कि दिल्ली के उन सभी 40 हज़ार घरों की यही स्थिति है जहां शादियां होनेवाली हैं. इसके बताने का अंदाज़ कुछ ऐसा था मानो उन घरों पर कोई समस्या नहीं आयी हो बल्कि उन घर्रों में मौत मंडरा रही हो...
मित्रों अब समझिये इस खेल को... वो आदमी जो बैंक से 7 लाख निकाल चुका था क्या वो उसको वापस बैंक में जमा नहीं कर सकता था.? दिल्ली जैसे शहर में गहने कपड़े फर्नीचर या कोई भी अन्य उपयोगी सामान बेचनेवाली ऐसी दुकानों की कोई कमी है जो ATM डेबिट कॉर्ड स्वैप करके भुगतान लेती हों.? दिल्ली की हर प्रमुख सड़क पर ऐसी दर्जनों दुकाने मिल जाएँगी. रही बात केटरिंग और टेंटवाले की तो सामान्यतः इसका जिम्मा किसी एकदम अनजान के बजाय किसी परिचित या फिर अपने किसी परिचित के जानने वाले केटरिंग टेंटवालों को ही सौंपा जाता है. जो आपसी समझबूझ से एक-दो दिन आगेपीछे पैसा लेने को तैयार हो जाता है.
लेकिन फिर भी यदि वह नहीं मानता तो अपनी नकदी बैंक में जमा करा के उसको चेक दिया जा सकता है, वर्तमान कोर बैंकिंग के दौर में लोकल चेक की राशि उस केटरिंग/टेंट वाले के खाते में दो दिन में जमा हो जाएगी.
लेकिन रजत शर्मा या उसके संवाददाताओं की टीम इन सब सच्चाइयों को बताने के बजाय उसको छुपाते हुए अपने न्यूजचैनल के माध्यम से सिर्फ और सिर्फ देश की जनता को भय आशंका हंगामे की गहरी अँधेरी खाई में धकेल कर देश में नरेंद्र मोदी के खिलाफ जनाक्रोश की आग भड़का कर देश को दंगे फसाद के दावानल में झोंकने की तैयारी में व्यस्त हैं.
ध्यान रहे कि... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल ही जापान में कहा था कि... कुछ लोग जनता के मुंह में ऊँगली डालकर उससे बुलवा रहे हैं कि... बोलो... नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलो

अतः निश्चित ही इसबात की जाँच होनी चाहिए कि इस रजत शर्मा के पास कितना कालाधन है और कालेधन वाले उन माफियायों से इसके क्या और कितने करीबी सम्बन्ध हैं जिनके बारे में स्वयम नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि... वो मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेंगे.....

Saturday, November 5, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले कमांडो जवानों के लिए भी सजा ए मौत की मांग कर सकता है मार्कण्डेय काटजू...?

"भोपाल के ईंटखेड़ी में हुई मुठभेड़ पूरी तरह फ़र्ज़ी है तथा इस मुठभेड़ को अंजाम देनेवाले पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार कर के उन्हें सज़ा ए मौत दे देनी चाहिए."
4 नवम्बर की शाम एक न्यूजचैनल की बहस में अपना उपरोक्त फतवा जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मार्कण्डेय काटजू यहीं नहीं रुके थे. 
मप्र सरकार द्वारा हाईकोर्ट के जज से मुठभेड़ की न्यायिक जाँच कराने के निर्णय को काटजू ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि मैं 35 साल तक जज रहा हूँ और मैंने देखा है कि ज्यादातर जज रिटायरमेंट के बाद पद प्राप्ति के लोभ में कानून के बजाय उस समय की सरकारों के अनुसार कार्य करते हैं. काटजू ने इस सन्दर्भ में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके जस्टिस रंगनाथ मिश्र का नाम लेते हुए उनपर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप भी लगा डाला था. 
लेकिन यहां पहले बात मार्कण्डेय काटजू के उस फतवे की जिसमे उन्होंने भोपाल में मारे गए 8 आतंकवादियो की मुठभेड़ को फ़र्ज़ी घोषित कर पुलिसकर्मियों को सजा ए मौत देने का फरमान सुना दिया. 

काटजू का कहना है कि जो मारे गए उनको किसी कोर्ट ने दोषी करार नहीं दिया था. काटजू को शायद यह मालूम नहीं है कि ओसामा बिन लादेन के समर्थक भी यही तर्क देते हैं कि उसे किसी कोर्ट ने दोषी करार नहीं दिया था.

लेकिन दुर्दांत आतंकवादियों के सन्दर्भ में काटजू का तर्क अत्यंत खतरनाक है. मार्कण्डेय काटजू के इस तर्क के अनुसार तो 29 सितम्बर की रात अपने प्राणों की बाजी लगाकर पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करनेवाले भारतीय सेना के जांबाज कमांडों को भी पुरस्कार देने के बजाय सजा ए मौत देनी पड़ेगी.? क्योंकि पाकिस्तान में घुसकर उन्होंने जिन आतंकवादियों को मारा था वो तो भारत में आये भी नहीं थे, बल्कि भारत में आने की तैयारी कर रहे थे. अर्थात उन्होंने तो कोई अपराध ही नहीं किया था इसलिए भारत की किसी कोर्ट द्वारा उन्हें दोषी करार दिए जाने का तो कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता. अतः मार्कण्डेय काटजू के तर्क के अनुसार तो भारत की सरकार को उन वीर कमांडो सैनिकों को गिरफ्तार कर उनपर निर्दोषों की हत्या का मुकदमा चलाकर उन्हें सज़ा ए मौत दे देनी चाहिए..?

काटजू के तर्कों से निकलने वाले देशघाती ज़हर का प्रतीक और प्रतिनिधि है उपरोक्त सवाल.? 
यह सवाल साक्ष्य हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के बहाने कानून की आड़ की तलवार से राष्ट्रीय एकता अखण्डता और संप्रभुता पर प्रहार की कितनी खतरनाक जमीन तैयार कर रहे हैं काटजू के कुटिल तर्क.

अब बात काटजू के उस आरोप की जिसकी आड़ लेकर उन्होंने मुठभेड़ की न्यायिक जांच के फैसले पर ही कीचड़ उछालने का काम किया है. 
दरअसल काटजू बहुत शातिर दिमाग हैं, इसीलिए उन्होंने ऐसे बहुत से भ्रष्ट जजों को जानने का दावा तो किया लेकिन नाम केवल उन रंगनाथ मिश्र का लिया जिनका देहांत सितम्बर 2012 में हो गया था और जो मार्कण्डेय काटजू के उपरोक्त सनसनीखेज आरोप का जवाब देने के लिए अब इस दुनिया में ही नहीं है. क्योंकि मार्कण्डेय काटजू का तो दावा है कि वो ऐसे बहुत से जजों और उनके कारनामों को जानते हैं, अतः काटजू को देश को कुछ उन जजों का नाम बताने का साहस दिखाना चाहिए जो अभी जीवित हैं और काटजू के आरोपों का जवाब दे सकते हैं. इससे देश का बहुत भला होगा क्योंकि उसके सामने दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा.

हालांकि ऐसे आरोप के बाद मार्कण्डेय काटजू ने स्वयम को ही अपने उपरोक्त गम्भीर आरोप के कठघरे में खड़ा कर दिया है. उपरोक्त आरोप लगाते समय मार्कण्डेय काटजू संभवतः यह भूल गए कि उनके रिटायरमेंट के बाद 2011 में उनको प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन का अत्यंत सम्मानित ताकतवर पद दिया गया था. यह पद यूं ही नहीं मिल जाता है. इस पद के लिए सामान्यतः सुप्रीमकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज का ही चयन किया जाता है. काउंसिल के चेयरमैन का चयन जो तीन सदस्यीय समिति करती है उसके दो सदस्य लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति होते हैं, अर्थात चयन समिति में बहुमत सरकार का ही होता है. सरकार जिसे चाहती है वही चेयरमैन बनता है. 2011 में जब काटजू चेयरमैन बने थे तब लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार थीं और राज्यसभा के सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी थे. इन दोनों की राजनीतिक पृष्ठभूमि और कांग्रेस से निकटता का परिचय देना व्यर्थ ही होगा. सारा देश यह सच जानता है. अतः जवाब तो अब मार्कण्डेय काटजू को देना चाहिए कि पूरे देश की मीडिया पर नज़र और नियंत्रण रखनेवाली प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन सरीखे शक्तिशाली पद के लिए काटजू उस यूपीए-2 सरकार की पहली पसंद कैसे और क्यों बन गए थे जिस यूपीए सरकार पर लगे दसियों लाख करोड़ के घोटालों के संगीन आरोप हैं, जिसके भ्रष्ट कारनामों के उजागर होने का क्रम आज भी थम नहीं रहा है. इन्हीं कारणों से उसको देश की स्वतन्त्रता के बाद के इतिहास की सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार कहा जाता है. अतः मार्कण्डेय काटजू को अपनी उसी स्वघोषित ईमानदारी से देश को यह बताना चाहिए कि प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन का पद पाने के लिए उन्होंने यूपीए-२ की भ्रष्ट सरकार से कौन सा सौदा किया था.? जिस स्वघोषित ईमानदारी से उन्होंने रंगनाथ मिश्र पर पद पाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार से सौदा करने का आरोप जड़ दिया.

Friday, November 4, 2016

राहुल गाँधी और कांग्रेस एक घोटालेबाज-जालसाज की तुलना अमर शहीद भगत सिंह और भारतीय सेना के शहीद सैनिकों से क्यों कर रहे हैं.?

जनता के हिस्से की सरकारी धनराशि की जालसाज़ी घोटाला करने वाले एक जालसाज़ की तुलना अमर शहीद भगत सिंह तथा देश के लिए शहीद होनेवाले मनदीप सिंह सरीखे भारतीय सेना के अमर शहीद सैनिकों से करके राहुल गांधी और उनकी कांग्रेसी फौज ने अपने क्षुद्र राजनीतिक हथकण्डों के लिए अमर शहीद भगत सिंह तथा भारतीय सेना के शहीद सैनिकों की शहादत को अपमानित लांक्षित करने का घृणित कुकृत्य किया है

...जरा जानिये उस भूतपूर्व सैनिक राम किशन के बारे में जिसे राहुल गांधी शहीद बता रहे हैं और उत्तरप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष राज बब्बर जिसकी तुलना शहीद भगत सिंह से कर रहा है.
लीजिये आप भी परिचित होइए कांग्रेसी "भगत सिंह" के महान जीवन परिचय से...

1. रामकिशन 2004 में सेना से सेवानिवृत्त हो कर स्थानीय राजनीति में उतरे और कांग्रेस के नेताओं से अपनी नज़दीकियों की बदौलत सरपंच बने ।

2. 2004 से 2014 तक कांग्रेस शासन में उनकी पेंशन मात्र 13000 रूपये थी जो कि मोदी सरकार में OROP के लागू होने के बाद 28000 हो गयी थी किन्तु बैंक से सम्बन्धित दस्तावेजों में किसी गड़बड़ी के कारण रामकिशन को 23000 रू ही मिल रहे थे.

3. कांग्रेस से नजदीकी की बदौलत ही रामकिशन को फ़र्ज़ी दावों और दस्तावेजों के सहारे सन् 2005 और 2008 में राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत करवाया गया था, रामकिशन को यह पुरस्कार ODF (Open Defection Free) यानि गांव के हर घर में शौचालय बनवाने और खुले में शौच को पूर्ण रूप से बंद कराने के उसके दावे के कारण मिला ।
4. सन् 2015 में सरकार के पास एक शिकायत आयी कि रामकिशन द्वारा किये गए दावे झूठे हैं और ऐसे में उन से पुरस्कार वापस लिया जाना चाहिए।

5. इस शिकायत पर सरकार ने जब जांच की तो पाया कि रामकिशन के दावे के विपरीत गाँव के महज़ 15% घरों में ही शौचालय बनाये गए थे, जबकि रामकिशन का दावा 100% घरों में शौचालय बनाने का किया गया था जो कि सिर्फ कागज़ों पर ही था और जिस पर हरियाणा की तत्कालीन सरकार ने हकीकत होने की मुहर लगा दी थी.।

6. रामकिशन के खिलाफ जब जांच और आगे बढ़ी थी तो पाया गया कि रामकिशन द्वारा फ़र्ज़ी बिलों का भुगतान किया गया है, इस पर सन् 2016 में सरकार ने रामकिशन को आरोपी बनाया था ।

7. रामकिशन अब सरकार को गुमराह करने, सरकारी खजाने को नुकसान पहुचाने, धोखाधड़ी करने, कूट रचित दस्तावेज़ तैयार करने के आरोपी बन चुके थे, ऐसे में उनका बचना लगभग असंभव था.?

8. रामकिशन ने ये घोटाला अकेले नहीं किया था बल्कि अपने कुछ प्रभावशाली राजनीतिक संरक्षकों और साथियों के साथ मिल कर रामकिशन ने इस घोटाले को अंजाम दिया था.

क्या भूतपूर्व सैनिक को जनता के हिस्से के सरकारी धनराशि की जालसाजी/घोटाला करने की छूट होती है.?
जनता के हिस्से की सरकारी धनराशि की जालसाज़ी घोटाला करने वाले एक जालसाज़ की तुलना अमर शहीद भगत सिंह तथा देश के लिए शहीद होनेवाले मनदीप सिंह सरीखे भारतीय सेना के अमर शहीद सैनिकों से करके राहुल गांधी और उनकी कांग्रेसी फौज ने अपने क्षुद्र राजनीतिक हथकण्डों के लिए अमर शहीद भगत सिंह तथा भारतीय सेना के शहीद सैनिकों की शहादत को अपमानित लांक्षित करने का जो घृणित कुकृत्य किया है उसके लिए देश और उन अमर शहीदों के परिजनों से माफ़ी मांगेंगे राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेस.?

अतः जिन और जैसे हालातों में रामकिशन की आत्महत्या हुई है उसके चलते संदेह की यह सुई स्वतः ही उस दिशा की तरफ संकेत करती है कि, रामकिशन के उन प्रभावशाली समर्थकों साथियों को यह लगा हो कि अब हम सब फंस जायेंगे तो उन्होंने रामकिशन को ये आईडिया सुझाया हो कि तुम ज़हर खाने का नाटक करो, हम सब तुम्हे बचा लेंगे लेकिन ऐसा किया नहीं गया.
अतः अब यह जांच होनी चाहिये कि कौन थे वो लोग जो रामकिशन के साथ थे और फ़ोन पर पीछे से रामकिशन को बता रहे थे कि उसको क्या बोलना है ? वो लोग किस राजनैतिक पार्टी के सदस्य या नेता है ? क्या वो सब भी रामकिशन द्वारा किये गए घोटाले में शामिल थे ?
क्या रामकिशन की हत्या में बड़े राजनेता भी शामिल हैं ?
क्या उन्हीं बड़े राजनेताओं ने अपना नाम बचाने के लिए रामकिशन की बलि दे दी.?

Wednesday, November 2, 2016

राहुल गाँधी और कांग्रेस ने देशवासियों को पागल तथा देश को पागलखाना समझ लिया है क्या....???

राहुल गाँधी द्वारा OROP को लेकर को लेकर की जा रही बयानबाजी तथा इसी सन्दर्भ में कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखी गयी चिट्ठी के बाद आज एक भूतपूर्व सैनिक द्वारा की गयी आत्महत्या के बाद दिल्ली में राममनोहर लोहिया अस्पताल के सामने सड़क पर किये गए सियासी तांडव ने इस गंभीर सवाल को जन्म दिया है कि राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेस ने देशवासियों को पागल और देश को पागलखाना  समझ लिया है क्या....???

राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को शायद याद नहीं है इसलिए याद उनको यह याद कराना आवश्यक है कि... अपने लगभग 3900 सैनिकों का बलिदान देकर 1971 में भारत को ऐतिहासिक विजय का उपहार तथा पाकिस्तान को शर्मनाक ऐतिहासिक पराजय का सबक सिखाने वाली भारतीय सेना को पुरस्कृत करने के बजाय ठीक 18 महीने बाद 1973 में भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा भारतीय सेना को यदि दण्डित और अपमानित नहीं किया गया होता तो दिल्ली में आज भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
1973 से 1914 तक की 14 वर्ष की समयावधि में से लगभग 31 वर्ष तक देश पर शासन करती रही कांग्रेस की सरकारों ने यदि 1973 में भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनने के तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कुकर्म का प्रायश्चित करते हुए यदि भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
राहुल गाँधी जी, 1973 में भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनने का कुकर्म जिस तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किया था उसकी मुखिया आपकी दादी श्री, श्रीमती इंदिरा गाँधी थीं. 
राहुल गांधी जी, भारतीय सेना से OROP की सुविधा छीनने के बाद के 31 वर्षीय कांग्रेसी शासन वाली सरकारों में आपके पिताश्री, राजीव गाँधी की प्रचण्ड बहुमत वाली सरकार का पांच वर्षीय कार्यकाल भी शामिल है. यदि आपके पिताश्री राजीव गाँधी ने भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
राहुल गाँधी जी, 2004 से 2014 तक देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाले जिस UPA गठबंधन की सरकार थी उस कांग्रेस और UPA की मुखिया कोई और नहीं बल्कि आपकी माताश्री, सोनिया गाँधी ही थी. यदि अपने 10 वर्ष के शासनकाल में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
आज OROP को ठीक से लागू करने की मांग का सियासी पाखण्ड कर रहे राहुल गाँधी जी, जिस OROP सुविधा को लागू करने के लिए न्यूनतम दस हज़ार करोड़ रुपयों की जरूरत थी उस OROP सुविधा के लिए 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले केवल पांच सौ करोड़ रुपये आबंटित कर के UPA की सरकार ने यदि भूतपुरवैनिकों के साथ क्रूर सियासी मज़ाक करने के बजाय न्यूनतम दस हज़ार करोड़ रुपये आबंटित कर OROP सुविधा का क्रियान्वयन कर के भारतीय सेना की OROP की सुविधा बहाल कर दी होती तो आज दिल्ली में भूतपूर्व सैनिक रामकिशन ने OROP के कारण आत्महत्या नहीं की होती.
राहुल गाँधी जी जिस नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ OROP को मुद्दा बनाकर आज राम मनोहर लोहिया अस्पताल के सामने सड़क पर आप सियासी तांडव कर रहे हो उस मोदी सरकार ने OROP के लिए आवश्यक दस हज़ार करोड़ रुपये आबंटित कर के भारतीय सेना की OROP की सुविधा लागू कर दी है जिसमें से साढ़े पांच हज़ार करोड़ रुपये भूतपूर्व सैनिकों को दिए भी जा चुके हैं.
में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भारतीय सेना से OROP की सुविधा क्यों छीन ली थी...???
राहुल गांधी जी, 1973 के पश्चात् के 31 वर्षीय लम्बे कांग्रेसी शासनकाल में भारतीय सेना की OROP की सुविधा उसको वापस क्यों नहीं की गयी थी...???
राहुल गांधी जी, भारतीय सेना को OROP की सुविधा वापसी का जो काम आपकी कांग्रेसी सरकारें अपने 31 वर्षीय शासनकाल में नहीं कर पायी उस काम को मोदी सरकार ने यदि अपने 31 महीने के शासनकाल में ही कर दिखाया हैं तो उसके खिलाफ सियासी तांडव क्यों.???
राहुल गांधी जी, उपरोक्त तथ्यों तर्कों और सवालों की कसौटी तो यही सन्देश देती प्रतीत होती हैं कि OROP के मुद्दे पर आपके द्वारा बहाये जा रहे आंसू सिर्फ और सर्फ घड़ियाली आंसू हैं.
राहुल गांधी जी, आपको OROP से सम्बन्धित कांग्रेसी सरकारों के 31 वर्षीय लम्बे उपरोक्त आचरण के सम्बन्ध में देश के समक्ष, विशेषकर भारतीय सेना के समक्ष, उसके भूतपूर्व सैनिकों के समक्ष स्पष्टीकरण देना चाहिए कि 1973 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भारतीय सेना से OROP की सुविधा क्यों छीन ली थी...???
राहुल गांधी जी, 1973 के पश्चात् के 31 वर्षीय लम्बे कांग्रेसी शासनकाल में भारतीय सेना की OROP की सुविधा उसको वापस क्यों नहीं की गयी थी.???
राहुल गांधी जी, भारतीय सेना को OROP की सुविधा वापसी का जो काम आपकी कांग्रेसी सरकारें अपने 31 वर्षीय शासनकाल में नहीं कर पायी उस काम को मोदी सरकार ने यदि अपने 31 महीने के शासनकाल में ही कर दिखाया हैं तो उसके खिलाफ सियासी तांडव क्यों.???
राहुल गांधी जी, उपरोक्त तथ्यों तर्कों और सवालों की कसौटी तो यही सन्देश देती प्रतीत होती हैं कि OROP के मुद्दे पर आपके द्वारा बहाये जा रहे आंसू सिर्फ और सर्फ घड़ियाली आंसू हैं तथा आप और आपकी कांग्रेस ने
देशवासियों को पागल और देश को पागलखाना समझ लिया है क्या....???

Saturday, October 22, 2016

शहीद सैनिकों के लिए देश में उमड़े जबरदस्त जनाक्रोश का सरकारी सौदा 5 करोड़ में हो गया...???

सीमा पर देश की रक्षा करते शहीद हुए जवानों की रक्तरंजित लाशों पर देश में उमड़े जबरदस्त जनाक्रोश का सरकारी सौदा केवल 5 करोड़ में हो गया है...
"पाकिस्तानी कलाकार वाली फिल्म इस देश में बिना रोकटोक के दिखाई जाए उसका कोई विरोध ना हो और जो विरोध करे उसपर सरकार की पुलिस और फौज लट्ठ बरसाए..." 
अपनी यह मांग लेकर गृहमंत्री से मिलने दिल्ली पहुंचे फिल्म निर्माता विक्रम भट्ट को तनिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. जिस दिन वो दिल्ली पहुंचा उसी दिन इस देश का गृहमंत्री बिना विलम्ब किये हुए उससे तत्काल मिला और उसकी सब मांगे मान भी लीं.
मुम्बई में ऐसी ही मांगों को लेकर करण जौहर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से मिला और उस मुख्यमंत्री ने भी उसको बिना प्रतीक्षा कराये उसकी मांगों को मान लिया.
नतीजा यह निकला है कि सीमा पर देश की रक्षा करते शहीद हुए जवानों की रक्तरंजित लाशों पर देश में उमड़े जबरदस्त जनाक्रोश का सरकारी सौदा केवल 5 करोड़ में हो गया. जिनके घरों में उनके शहीद बेटे पति और भाई की खून से लथपथ लाशें पहुंची उनके मुंह पर फ़िल्मी भांडों की 5 करोड़ की भीख फेंककर इस देश के कर्णधारों ने सिनेमा के माध्यम से भारतीयों की छाती पर पाकिस्तानी नाच गाने की इज़ाज़त दे दी है.
धन्यवाद उस राज ठाकरे को जिसकी वजह से देश के कर्णधारों का असली चेहरा उजागर तो हुआ.
यदि राज ठाकरे ने इतना उपद्रव ना किया होता तो यह स्थिति भी नहीं होती. क्योंकि भाजपाई प्रवक्ताओं को तो पाकिस्तानी फ़िल्मी भांडों के खिलाफ बोलने से कतराते हुए पूरा देश देख ही रहा था...
असली चेहरा इसलिए कह रहा हूं... क्योंकि केवल 6 माह पूर्व देशद्रोही कश्मीरी गुंडों और वहां की भाजपा गठबंधन सरकार की पुलिस द्वारा मार मार कर लहूलुहान कर दिए गए श्रीनगर NIT के सैकड़ों देशभक्त छात्रों उनके परिजनों से इस देश का गृहमंत्री और जम्मू कश्मीर गठबंधन सरकार का भाजपाई उप-मुख्यमंत्री आजतक नहीं मिला है. इस काम के लिए शायद समय की बहुत कमी थी और आज भी है...
उनकी मांगों का क्या हुआ यह देश को आजतक नहीं मालूम...

Saturday, October 15, 2016

क्या एक और पाकिस्तान के निर्माण की नींव का पहला पत्थर है यह मानसिकता.?

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धर्मांध मानसिकता के साथ कट्टर विचार के साम्प्रदायिक सम्भोग के कारण होने वाला धार्मिक वैमनस्य का वीर्यपात भविष्य के गर्भ में  एक और पाकिस्तान के भ्रूण का निर्माण किस प्रकार करता है इसका शर्मनाक साक्ष्य और सन्देश दे रही है यह खबर.
सेक्युलर चिकित्सा पद्धति के राजनीतिक  पुरोधा इस "एक और पाकिस्तान" के भ्रूण की रक्षा में जिस प्रकार प्राणपण से प्रयास कर रहे हैं वह उनके द्वारा 100 और 70 वर्ष पूर्व,  "पहले पाकिस्तान" की भ्रूण रक्षा की उनकी भूमिका की खूनी यादें 
ताज़ा कर रही हैं .
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने देश के सर्वोच्च न्यायलय के आदेश और संविधान को मानने से स्पष्ट इनकार का सन्देश बहुत साफ़ शब्दों में दे दिया है. मुस्लिम वोटों के "लालच कुंड" में डूब उतरा रहे कुछ राजनीतिक दलों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस संविधान विरोधी अराजक मुद्रा के समर्थन में अपने सियासी सेक्युलरिज़्म का नगाड़ा भी जोरशोर से पीटना प्रारम्भ कर दिया है. यह स्थिति देश के भयावह राजनीतिक भविष्य की प्रारंभिक रूपरेखा के निर्माण का अत्यन्त खतरनाक सन्देश दे रही है.

आज 2016 के यह हालात आज से ठीक सौ वर्ष पहले के दिसम्बर 1916 के उन हालातों की याद दिला रहे हैं जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अपनी घोर साम्प्रदायिक मांगों वाला लखनऊ पैक्ट नाम का साझा प्रस्ताव तैयार करा था. लखनऊ पैक्ट की पहचान पाकिस्तान के निर्माण की आधारशिला के पहले पत्थर के रूप में भी की जाती है. उसकी यह पहचान आधारहीन नहीं है. भारतीय राजनीतिक इतिहास में यह ऐसा पहला राजनीतिक प्रस्ताव था जिसमें साम्प्रदायिक आधार पर राजनीति और सत्ता में मुस्लिम हिस्सेदारी की मांग खुलकर की गयी थी. उस समय मोहम्मद अली जिन्ना ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष की हैसियत से संवैधानिक सुधारों की संयुक्त "कांग्रेस-मुस्लिम लीग" की जो योजना पेश की थी उसके अंतर्गत "कांग्रेस-मुस्लिम लीग" समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की मांग की गई। इसी समझौते को 'लखनऊ पैक्ट' कहते हैं.
इस लखनऊ पैक्ट को तैयार करने के लिए मुहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा करते हुए कांग्रेस ने जिन्ना को उस समय हिन्दू-मुस्लिम एकता का राजदूत घोषित कर दिया था. काँग्रेस प्रांतीय परिषद चुनाव में मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मण्डल तथा पंजाब एवं बंगाल को छोडकर, जहां उन्होनेहिन्दू और सिख अल्पसंख्यकों को कुछ रियायतें दी, सभी प्रान्तों में उन्हें रियायत (जनसंख्या के अनुपात से ऊपर) देने पर भी सहमत हो गई थी.
हालांकि ब्रिटिश शासकों ने "कांग्रेस-मुस्लिम लीग" गठबंधन के इस घोर साम्प्रदायिक प्रस्ताव को मानने से स्पष्ट इनकार कर दिया था.
यहां यह उल्लेख अत्यावश्यक है कि, प्रथम विश्व युद्ध से पहले ब्रिटिश सरकार ने भारत में मुस्लिम लीग को पूरी तरह बहिष्कृत कर हाशिये पर पहुंचा दिया था. उसपर अपने अस्तित्व को बचाये बनाये रखने का गम्भीर संकट मंडरा रहा था. मुस्लिम लीग के साथ ब्रिटिश सरकार की इस तकरार का "भारत की आज़ादी" की लड़ाई से कोई लेनादेना नहीं था. इसके बजाय ब्रिटिश सरकार से मुस्लिम लीग की तकरार का कारण तुर्की के कट्टरपंथी, घोर साम्प्रदायिक खलीफा का मुस्लिम लीग द्वारा खुलकर किया जानेवाला समर्थन था. उस समय पूरी दुनिया में तुर्की के खलीफा की सांप्रदायिक विद्वेष और घृणा फ़ैलाने वाली विषाक्त विचारधारा के खिलाफ पूरा विश्व एकजुट हो रहा था. किन्तु तुर्की के खलीफा को दुनिया के कट्टरपंथी मुस्लिम देश अपना धर्म प्रमुख तथा उसके आदेशों और उपदेशों को सर्वोपरि मानते थे. तुर्की के उसी खलीफा को ही हिंदुस्तान की मुस्लिम लीग भी अपना आदर्श मानती थी. इसीलिए ब्रिटिश सरकार उसको कोई महत्व नहीं देती थी.
इस गंभीर स्थिति में मुस्लिम लीग के साथ समझौता करके कांग्रेस ने उसके लिए संजीवनी की भूमिका का निर्वाह किया था. प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के तत्काल बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक प्रशासनिक सुधार के अपने प्रस्ताव के लिए जब सुझाव मांगे थे तो कांग्रेस ने अपना वजन बढ़ाने के लिए घोर साम्प्रदायिक कट्टरपंथी मुस्लिम लीग से हाथ मिलाकर उसको अपना साझीदार बना लिया था. दिसम्बर 1915 को मुम्बई में तथा नवम्बर 1916 को कलकत्ता में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मठाधीशों की महत्वपूर्ण बैठकों में कांग्रेस और मुस्लिम लीग की साझा मांगों की रूपरेखा तैयार की गयी थी.
ब्रिटिश सरकार से अपनी मांगों के साझा प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए दोनों पार्टियों, कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने लखनऊ में अपना संयुक्त अधिवेशन  (29-31) दिसम्बर 1916 को आयोजित किया था. अधिवेशन में तैयार प्रस्ताव को इतिहास में लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है.

आगे चलकर चौथे दशक में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग का पुनर्गठन किया और खुद को 'क़ायदे आज़म' (महान नेता) घोषित करवाया.  1940 ई. में जिन्ना ने 1916 के उसी प्रस्ताव को विस्तार देते हुए धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन तथा मुसलिम बहुसंख्यक प्रान्तों को मिलाकर पाकिस्तान बनाने की मांग कर दी थी. सात साल बाद 1947 में जिन्ना की उस मांग की पूर्ति भारत के विभाजन और पाकिस्तान के जन्म के साथ हुई थी.  
1916 में कांग्रेस के समर्थन और सहयोग से जहरीली साम्प्रदायिक राजनीति का जो अध्याय जिन्ना ने लिखना प्रारम्भ किया था उसका अंत लाखों रक्तरंजित लाशों के साथ हुआ था. आज ठीक सौ साल बाद जब एक कट्टरपंथी मुस्लिम NGO 1916 वाले जिन्ना की भाषा बोल रहा है और कांग्रेस उसी तरह खुलकर उस NGO का समर्थन कर रही है जिस तरह 1916 में उसने जिन्ना का किया था, तो किसी काले नाग की तरह फन काढ़ कर यह प्रश्न स्वतः खड़ा हो जाता है कि.....
क्या एक और पाकिस्तान के निर्माण की नींव का पहला पत्थर है यह मानसिकता...???


Sunday, October 9, 2016

गम्भीर सवालों के कठघरे में "दि हिन्दू" अख़बार और कांग्रेसी चाटुकार पत्रकार.?

जो सैनिक  8 जनवरी  2013 को शहीद हुए और उनका गला काटा गया, उनकी शहादत और गला काटे जाने का बदला 16 महीने पहले ही 30 अगस्त 2011 को कैसे ले लिया गया था.?
क्या भारतीय सेना ने अपने उन दो जवानों की संभावित मृत्यु और सिर काट लिए जाने की घटना की संभावना के आधार पर 16 महीने पहले ही बदला ले लिया था और 8 पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतारकर उनमें से 3 के सिर काट लिए थे.?
यह कुछ ऐसे गम्भीर सवाल हैं जिनका उत्तर दि हिन्दू अखबार और NDTV "आजतक" सरीखे न्यूजचैनलों के साथ ही साथ कांग्रेस को भी देना होगा



आज सवेरे दक्षिण भारत के अंग्रेजी अखबार "दि हिन्दू" ने एक सनसनीखेज खबर छापी है. उसकी खबर के अनुसार भारतीय सेना के जांबाज़ कमांडों की एक टीम ने 30 अगस्त 2011 की रात LOC पार कर पाकिस्तान में घुसकर हमला किया था और 8 पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतार दिया था. अख़बार के अनुसार भारतीय कमांडों की टीम अपने हमले में मारे गए उन 8 पाकिस्तानी फौजियों में से तीन के सिर काटकर अपने साथ ले आयी. 
अख़बार के अनुसार भारतीय कमांडों की टीम ने तीन पाकिस्तानी फौजियों के सिर काटकर भारतीय सेना के उन 2 शहीद जवानों की मौत का बदला लिया था जिनके सिर पाकिस्तानी फौजी कुछ दिन पहले काटकर ले गए थे.
"दि हिन्दू" में अत्यंत सुनियोजित और प्रायोजित तरीके से प्रकाशित हुई इस खबर के साथ ही न्यूजचैनलों ने, विशेषकर NDTV और "आजतक" ने इस खबर के बहाने जबरदस्त शोर मचाना प्रारम्भ कर दिया था कि हाल ही में 29 सितम्बर 2016 को भारतीय सेना के कमांडोज़ की टीम द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक कोई पहली या उल्लेखनीय घटना नहीं है. इससे पहले की मनमोहन सरकार में भी सेना ऐसा करती रही है.
दरअसल इस पूरी खबर को फ़ैलाने के पीछे की मूल मंशा सेना की जयजयकार करना, या उसका मनोबल बढ़ाना नहीं था. इसके बजाय इस खबर का उद्देश्य मोदी सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश की रक्षा से सम्बन्धित लिए गए एक अदम्य साहसी फैसले और उसको मिली अभूतपूर्व सफलता व सराहना की चमक पर धूल की परत बिछाना मात्र ही था. किन्तु अपने अंध "मोदी विरोध" के इस शातिर षड्यन्त्र के क्रियान्वयन में "दि हिन्दू" अखबार और कुछ न्यूजचैनलों,विशेषकर NDTV और "आजतक" से एक बड़ी भारी भूल हो गयी है जिसने उनकी इस खबर की धज्जियाँ बहुत बुरी तरह उड़ा दी हैं.
दरअसल "दि हिन्दू" अपनी खबर में LOC पार करके की गयी भारतीय सेना के कमांडोंज़ की कार्रवाई तथा उनके द्वारा तीन पाकिस्तानी फौजियों के सिर काटने का कारण भारतीय सेना के जिन 2 शहीद जवानों की मौत के प्रतिशोध को बता रहा है, उन 2 शहीद जवानों के सिर काटे जाने की घटना जुलाई या अगस्त 2011 में नहीं हुई थी.
यह घटना 8 जनवरी 2013 को घटित हुई थी. यानि कि "दि हिन्दू" द्वारा बताई जा रही तारीख के लगभग एक वर्ष चार माह बाद. इस खबर की पुष्टि आप इस लिंक पर जाकर कर सकते हैं
http://aajtak.intoday.in/story/indian-soldiers-did-not-behead-pakistani-troops-antony-says-1-720364.html
हद तो यह है कि उस समय यह समाचार पूरे देश के मीडिया समेत स्वयम NDTV और आजतक ने भी प्रसारित किया था. अतः यही वह बिंदु है जो "दि हिन्दू" की खबर और उस खबर के सहारे हुडदंग कर रहे NDTV "आजतक" सरीखे न्यूजचैनलों को संगीन सवालों के कठघरे में खड़ा कर रहा है.
बड़ी सामान्य सी बात है कि भारतीय सीमा में घुसकर पाकिस्तानी फौज ने जिन दो शहीद जवानों का सिर 8 जनवरी 2013 को काटा था उन जवानों की मौत तथा उनके सिर काटने की घटना का बदला लेने के लिए भारतीय सेना के कमांडोज़ ने लगभग 16 महीने पहले ही 30 अगस्त 2011 को LOC पार कर 8 पाकिस्तानी फौजियों को मार कर उनमें से तीन के सिर क्यों काट लिए थे.?
क्या भारतीय सेना को यह पहले से मालूम था कि 16 महीने बाद पाकिस्तानी फौजी उसके दो जवानों का सिर काट कर ले जाएंगे.?
क्या भारतीय सेना ने अपने उन दो जवानों की संभावित मृत्यु और सिर काट लिए जाने की घटना की संभावना के आधार पर 16 महीने पहले ही बदला ले लिया था और 8 पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतारकर उनमें से 3 के सिर काट लिए थे.?
यह कुछ ऐसे गम्भीर सवाल हैं जिनका उत्तर दि हिन्दू अखबार और NDTV "आजतक" सरीखे न्यूजचैनलों के साथ ही साथ उस कांग्रेस को भी देना होगा जिसके नेताओं प्रवक्ताओं की फौज "दि हिन्दू" में प्रकाशित खबर के बाद से छाती ठोंक रही है, दावा कर रही है कि हमारी सरकार ने तो बदला ले ही लिया था लेकिन भाजपा की तरह हल्ला नहीं मचाया था.
अतः देश कांग्रेस से भी जानना चाह रहा है कि किसी घटना के घटने से 16 महीने पहले ही कांग्रेस सरकार ने उसका बदला क्यों और कैसे ले लिया था.
इन सवालों के जवाब में यदि "दि हिन्दू" की रिपोर्ट और कांग्रेस यह तर्क देंगे कि उनकी रिपोर्ट में जिन दो भारतीय सैनिकों का सिर काटे जाने का जिक्र है वो कोई और हैं तथा 8 जनवरी 2013 को जिन भारतीय सैनिकों का गला पाकिस्तानी फौजियों द्वारा काटा गया था उनसे उनका कोई लेनादेना नहीं है.

यदि "दि हिन्दू" की रिपोर्ट और कांग्रेस ने यह तर्क दिया तो उनकी नीति तथा नीयत और भी ज्यादा गंभीर सवालों के कठघरे में खड़े हो जायेंगे. क्योंकि LOC पार पाकिस्तान जाकर की गयी किसी छोटी-बड़ी कार्रवाई पर सरकार के रणनीतिक मौन की कांग्रेसी दुहाई यदि स्वीकार कर भी ली जाये तो जिन भारतीय सैनिकों का गला 2011 में पाकिस्तानी फौज द्वारा काटे जाने का उल्लेख "दि हिन्दू" की रिपोर्ट और कांग्रेसी दावों में किया जा रहा है, उन शहीदों की शहादत को देश और दुनिया से छुपाकर उनकी शहादत का अपमान क्यों किया था यूपीए की तत्कालीन सरकार ने.? क्योंकि देश को 8 जनवरी 2013 को "गलाकाट" पाकिस्तानी बर्बरता का शिकार बने दो शहीद सैनिकों के नाम ही ज्ञात हैं. पहला नाम लांस नायक शहीद हेमराज और दूसरा नाम लांसनायक शहीद सुधाकर सिंह का है.? इन दो शहीद सैनिकों के अतिरिक्त दो और जवानों का सिर भी पाकिस्तानी फौजी भारतीय सीमा में घुस के काट कर ले गए थे, यह सच तत्कालीन यूपीए सरकार ने देश से क्यों छुपाया था.?
यह सवाल व स्थिति "दि हिन्दू" की शातिर सुनियोजीत रिपोर्ट तथा कुटिल कांग्रेसी दावों की धज्जियां बुरी तरह उड़ा रही है.

अंत में यह उल्लेख भी आवश्यक है कि 8 जनवरी 2013 को पाकिस्तानी फौजियों द्वारा 2 भारतीय सैनिकों के सिर काटे जाने की घटना के बाद भी बदले में भारतीय सैनिकों द्वारा पाकिस्तानी फौजियों के सिर काटे जाने की अटकलें देश में जब गर्म हुई थीं तो 30 जनवरी 2013 को भारतीय सेना ने तथा 31 जनवरी 2013 को देश के तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटोनी ने ऐसी किसी भी अटकल को जोरदार शब्दों में पूरी तरह बेबुनियाद बताते हुए पूरी तरह खारिज़ कर दिया था. ज्ञात रहे कि किसी देश की सेना व उसका रक्षामंत्री ऐसे अवसरों पर हां या ना कहने के बजाय चुप्पी तो साध लेते हैं किन्तु देश से झूठ नहीं बोलते हैं.


Saturday, October 8, 2016

कांग्रेस ने देश के स्मृतिकोष को क्या दीवालिया या कंगाल समझ लिया है.? (Part-1)

कांग्रेस को यह याद कराना  आवश्यक है कि उकी यूपीए-2 सरकार ने कांधार में 166 नागरिकों की प्राणरक्षा के दायित्व निर्वहन सरीखी किसी अनिवार्य अपरिहार्य विवशता के कारण शाहिद लतीफ़ समेत 25 दुर्दांत आतंकवादियों को रिहा नहीं किया था. इसके बजाय यूपीए की सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने, दोस्ती बढ़ाने की अपनी बेचैनी बेसब्री के कारण शाहिद लतीफ़ और 25 अन्य हत्यारे पाकिस्तानी आतंकियों पर यह देशघाती सरकारी मेहरबानी की थी.....

कल शुक्रवार को अपने नेता राहुल गाँधी का वकील बनकर राहुल का बचाव करने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता और यूपीए सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री रहे कपिल सिब्बल मैदान में उतरे थे
अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कपिल सिब्बल ने भाजपा पर देश की सुरक्षा के साथ घातक समझौता करने के गम्भीर आरोप भी जड़े थे. इसके लिए कपिल सिब्बल ने सहारा लिया था जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मौलाना मसूद अज़हर के नाम का. उनका कहना था कि, कांधार में जिन 3 आतंकवादियों को छोड़ा गया था उनमें आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का चीफ मौलाना मसूद अज़हर भी था. उन्होंने भाजपा को जैश-ए-मोहम्मद को जन्म देने की गुनाहगार भी बताया था.. इसके लिए भाजपा पर आगबबूला होने के अपने सियासी पाखण्ड का शातिर प्रदर्शन करते हुए कपिल सिब्बल ने दावा किया था कि यदि कांधार में मसूद अज़हर को ना छोड़ा गया होता तो देश में आज आतंकवादी हमले ना हो रहे होते.  
अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपरोक्त बातें करते समय कपिल सिब्बल सम्भवतः भयंकर स्मृतिलोप का शिकार हो चुके थे ... 
या फिर उन्होंने इस देश के स्मृतिकोष को पूरी तरह से कंगाल और दीवालिया समझने की भारी भूल कर दी थी.
कल प्रेस कॉन्फ्रेंस करते समय कपिल सिब्बल को पता नहीं क्यों यह याद नहीं रहा कि इसी वर्ष जनवरी में भारतीय वायुसेना की पश्चिमी कमान के पठानकोट स्थित एयरफोर्स स्टेशन पर हुए जिस आतंकी हमले में सेना और वायुसेना के सात जवान शहीद हो गए थे उस आतंकी हमले का मास्टरमाइंड सरगना जैश ए मोहम्मद का वही शाहिद लतीफ़ था जिसे यूपीए-2 की उस सरकार ने 2010 में भारत की जेल से रिहा करके पाकिस्तान भेज दिया था.जिस सरकार में खुद कपिल सिब्बल भी कैबिनेट मंत्री थे.
इस सन्दर्भ में कपिल सिब्बल भले ही स्मृतिलोप का शिकार हों किन्तु देश यह नहीं भूला है कि उनकी यूपीए-2 सरकार ने केवल शाहिद लतीफ़ को ही रिहा नहीं किया था. उसके साथ साथ 25 दुर्दांत आतंकवादियों को भी यूपीए-2 की सरकार ने रिहा करके पाकिस्तान भेज दिया था. ये सभी आतंकी लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल-मुजाहिदीन से जुड़े हुए थे.
कपिल सिब्बल को यदि याद ना हो तो उन्हें यह याद कराना भी आवश्यक है कि उनकी यूपीए-2 सरकार ने कांधार में 166 नागरिकों की प्राणरक्षा के दायित्व निर्वहन सरीखी किसी अनिवार्य अपरिहार्य विवशता के कारण शाहिद लतीफ़ समेत 25 दुर्दांत आतंकवादियों को रिहा नहीं किया था. इसके बजाय यूपीए की सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने, दोस्ती बढ़ाने की अपनी बेचैनी बेसब्री के कारण शाहिद लतीफ़ और 25 अन्य पाकिस्तानी हत्यारे आतंकियों पर यह देशघाती सरकारी मेहरबानी की थी.
शाहिद लतीफ़ समेत लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल-मुजाहिदीन से जुड़े हुए उन 25 दुर्दांत आतंकियों पर यूपीए-2 सरकार द्वारा की गयी उनकी रिहाई की मेहरबानी की यह पूरी खबर इस लिंक पर जाकर आप भी पढ़ सकते हैं.

कपिल सिब्बल से देश यह भी जानना चाहता है कि कल की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर का जिक्र बार बार करते समय कपिल सिब्बल ने यह क्यों नहीं बताया कि, "आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर कभी कांग्रेस का दायां हाथ हुआ करता था." कपिल सिब्बल को यदि ज्ञात नहीं हो तो यह जान लें कि यह खबर 1 मई 2012 को हिंदी के सबसे बड़े अख़बार दैनिक भास्कर ने अत्यंत विस्तृत रूप में छापी थी. जम्मू कश्मीर पुलिस और ख़ुफ़िया सरकारी रिपोर्टों के दस्तावेजों में दर्ज सूचनाओं के आधार पर अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट-क्लार्क की दस्तावेज़ी रिपोर्ट वाली यह खबर बहुत विस्तार से बताती है कि कांग्रेस पार्टी का कितना करीबी और विश्वसनीय था पाकिस्तानी आतंकवादी सरगना मौलाना मसूद अजहर. कांग्रेस द्वारा उसको सौंपे गए कामों को अंजाम देने के लिए वह दूसरों की ही नहीं खुद अपनी जान पर भी खेल जाता था.
यहाँ यह उल्लेख आवश्यक है कि इस खबर में जिस आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर का जिक्र है वो कोई और नहीं बल्कि वही मौलाना मसूद अजहर है जिसका नाम ले लेकर कपिल सिब्बल कल अपनी पत्रकार वार्ता में भाजपा पर आगबबूला होने के अपने सियासी पाखण्ड का प्रदर्शन जोरशोर से करते हुए दिखाई दिए थे.
कपिल सिब्बल की कल की बातों में कितना दम था.? इसका जवाब आज से साढ़े 4 साल पहले छपी यह खबर स्वयम दे देती है.

यह पूरी खबर आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं.
( http://www.bhaskar.com/news/NAT-congress-had-hand-with-maulana-masood-azhar-3195836.html )





Friday, October 7, 2016

कांग्रेसी औलादों,दामादों और सालों की जान को उन 166 निर्दोष नागरिकों के प्राणों से ज्यादा कीमती क्यों मानती है कांग्रेस.?

कांग्रेस से देश जानना चाहता है कि, कांग्रेसी नेताओं की औलादों,दामादों और सालों को बचाने के लिए दर्ज़नों आतंकवादी क्यों छोड़े गए थे...???प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवानों के खून की दलाली करनेवाला दलाल कहनेवाले राहुल गाँधी का वकील बनकर राहुल गाँधी की उस उद्दंड असभ्य अराजक टिप्पणी का बचाव करने उतरे कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने आज कंधार कांड में छोड़े गए आतंकियों का राग अलापा और भाजपा पर तीखा आक्रमण किया है।
कपिल सिब्बल का कहना था कि, कांधार में जिन 3 आतंकवादियों को छोड़ा था उनमें आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का चीफ मौलाना मसूद अज़हर भी था इसलिए भाजपा जैश-ए-मोहम्मद को जन्म देने की गुनाहगार है. यदि कांधार में मसूद अज़हर को ना छोड़ा गया होता तो देश में आज आतंकवादी हमले ना हो रहे होते.

आज से पहले भी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेसी प्रवक्ताओं की फौज भी इसी तरह के आरोप कांधार में छोड़े गए तीन आतंकवादियों को लेकर लगाती रही है. अतः कपिल सिब्बल और उनके नेता राहुल गाँधी, उनकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ताओं की फौज और कांग्रेस पार्टी को देश को यह जवाब देना चाहिए कि...
कांग्रेसी नेताओं की औलादों दामादों और सालों की जान कांधार में तीन आतंकवादियों के बदले रिहा कराये गए 166 निर्दोष नागरिकों के प्राणों से ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों थी.?
कपिल सिब्बल और राहुल गाँधी समेत पूरी कांग्रेसी फौज को यदि मेरा सवाल समझ में नहीं आया हो तो उन्हें केवल पांच प्रकरण याद दिलाना चाहूँगा. हालांकि आतंकवादियों के साथ ऐसी कांग्रेसी सौदेबाजी की सूची बहुत लम्बी है लेकिन कांधार काण्ड को लेकर विधवा विलाप करनेवाली कांग्रेसी फौज को आइना दिखाने के लिए फिलहाल यह 5 प्रकरण ही पर्याप्त हैं.
पहला प्रकरण है उस ''तसद्दुक देव'' की रिहाई जो भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा वर्तमान में राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद का ''साला'' है और जिसका जनवरी 1992 में अपहरण किया गया था और उसे छुड़ाने के लिए 17 जनवरी 1992 को तीन दुर्दांत आतंकवादियों को केंद्र की तत्कालीन केंद्र सरकार ने छोड़ दिया था।

दूसरा प्रकरण है वो ''नाहिदा सोज़'' जो यूपीए सरकार के भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज़ की सुपुत्री है और जिसका अपहरण अगस्त 1991 में किया किया गया और उसे छुड़ाने के लिए तत्कालीन दुर्दांत आतंकवादी मुश्ताक़ अहमद को बिना शर्त छोड़ दिया गया था.

तीसरा प्रकरण है वो ''मुस्तफा असलम'' जो जम्मू-काश्मीर प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष गुलाम रसूल कार का दामाद था और जिसका 1992 में अपहरण किया गया था और जिसको छुड़ाने के किये 7 दुर्दांत आतंकियों को बिना शर्त छोड़ दिया गया था।

चौथा है वो नसरुल्लाह जो पूर्व जम्मू कश्मीर सरकार के पूर्व मंत्री जी एम् मीर लासजन का सुपुत्र था. जिसका 1992 में अपहरण कर लिया गया था और जिसे छुड़ाने के लिए 7 दुर्दांत आतंकवादियों को बिना शर्त छोड़ दिया गया था।
पांचवां प्रकरण है, एक सप्ताह तक हज़रत बल में दावत-ए-बिरयानी देने के बाद दर्जनों पाकिस्तानी आतंकियों को वापस पकिस्तान भाग जाने का सेफ पैसेज देने के लिए सेना को मजबूर करने वाली केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार का वह कुकर्म जिसे देश आज भी नहीं भूला है।
उल्लेखनीय है कि, ये फैसले लेने वाली कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह, रक्षा मंत्री शरद पवार और विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ही थे, गुलाम नबी आज़ाद भी संसदीय कार्य/उड्डयन मंत्री थे।

अतः कांधार में 166 निरीह-निर्दोष-निरपराध विमान यात्रियों के बदले 3 आतंकियों को छोड़ने पर आगबबूला होने का ढोंग पाखंड करने वाली कांग्रेस से देश जानना चाहता है कि, कांग्रेसी नेताओं की औलादों,दामादों और सालों को बचाने के लिए दर्ज़नों आतंकवादी क्यों छोड़े गए थे...???

कश्मीर में खून की होली खेलने वाले पाक प्रशिक्षित प्रायोजित दर्ज़नों आतंकवादियों को कब-कब और कैसे-कैसे,
किस-किस के लिए रिहा किया गया.? इसकी संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित झलक दे देती है कश्मीर के अत्यंत प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक Daily Excelsior में प्रकाशित यह रिपोर्ट जिसे इस लिंक पर जाकर पढ़ा जा सकता है..
https://groups.google.com/forum/#!topic/soc.culture.pakistan/O9yR2Tc5eQs

Thursday, October 6, 2016

अपने गिरेबान में झांक कर देखो राहुल गाँधी. खून की दलाली का सच दिख जायेगा.

राहुल गाँधी जी, 2-3 दिसम्बर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड कम्पनी में हुए जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव ने भोपाल के 3787 निर्दोष नागरिकों को कुछ घण्टों में ही मौत के घाट उतार दिया था. और लगभग 3 लाख नागरिकों को बुरी तरह घायल किया था. आज आपको देश को यह बताना चाहिए कि भोपाल गैस का शिकार बने नीर्दोष नागरिकों के खून, उनकी लाशों की दलाली करनेवाला दलाल कौन था. उसने यह दलाली किस लालच में, किसके कहने पर क्यों की थी.?

राहुल गाँधी जी आज आपको इस सवाल का जवाब देश को इसलिए देना चाहिए क्योंकि उन 3787 निर्दोष नागरिकों की मौत का जिम्मीदार, यूनियन कार्बाइड का चेयरमैन वॉरेन एंडरसन 7 दिसम्बर को भोपाल से भागकर दिल्ली पहुंच गया था और वहां से अमेरिका भाग गया था, जहां से वो कभी वापस नहीं आया. उस समय मप्र के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बहुत साफ शब्दों में स्पष्ट किया है कि एंडरसन को भगाने का कार्य उन राजीव गाँधी के कहने पर किया गया था जो उस समय देश के प्रधानमंत्री और आपके पिता भी थे

राहुल गाँधी जी आप शायद भूल गए हो लेकिन देश नहीं भूला है 30 नवम्बर 2008 की रात.
उस रात दिल्ली में छतरपुर से आगे राधेमोहन चौक के रईसजादों की रंगीन रातों के पंचतारा अड्डे की पहचान वाले एक शानदार फार्महाउस में आपके दोस्त समीर शर्मा की शादी से पहले की रस्म "संगीत" का जश्न मनाया जा रहा था. उस जश्न में जिस समय आप मध्यरात्रि से लेकर सवेरे 5 बजे तक नाचगाने और बेहतरीन खाने-"पीने" का जमकर लुत्फ़ ले रहे थे उस समय 26 नवम्बर से 28 नवम्बर तक मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा खेली गयी खून की होली में शहीद सेना के दो कमांडों और मुम्बई पुलिस के 15 जवानों समेत मारे गए 138 हिंदुस्तानियों तथा 28 विदेशी नागरिकों में से 90% की लाशों का अंतिम संस्कार भी सम्पन्न नहीं हो पाया था. अपने माता पिता की इकलौती सन्तान, सेना के शहीद कमांडों मेजर सन्दीप उन्नीकृष्णन तथा उनके दूसरे शहीद साथी कमांडों हवलदार गजेन्द्र सिंह समेत मुम्बई पुलिस के 15 शहीद जवानों के माता पिता की आँख के आंसू भी तब तक नहीं रुके थे. देश सम्भावित युद्ध की भयानक आशंका में डूबा हुआ था.
ऐसे समय में देश के सत्ताधारी दल का भावी कर्ताधर्ता, उसका युवा सांसद जब दिल्ली के एक पंचतारा फार्महाउस में सारी रात नाच गा रहा था, मौज मस्ती में डूबा हुआ था तब सारा देश और विशेषकर उस मुम्बई हमले में शहीद सेना और पुलिस के जवानों की आत्माएं इस सवाल का जवाब अवश्य खोज रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी,यह पहला ऐसा एकमात्र उदाहरण या अपवाद नहीं था जब देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी विवश हो गए थे.
राहुल गाँधी जी, आपको शायद याद नहीं हो किन्तु यह देश आज भी नहीं भूला है और शायद कभी भूलेगा भी नहीं कि, 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में हुए 7 श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों ने 209 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 714 लोगों को घायल कर मरणासन्न अवस्था में पहुंचा दिया था. उनमें से कई लोग अपने हाथ पैर और ऑंखें खोकर जीवन भर के लिए विकलांग हो गए थे. उन श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों की जांच करने वाली देश और मुम्बई पुलिस की जाँच एजेंसियों की गहन-सघन जाँच के बाद यह सच देश के सामने आया था कि उन विस्फोटों को आतंकी संगठन सिमी ने अंजाम दिया है.
राहुल गाँधी जी, आप शायद भूल गए हैं इसलिए याद दिला दूं कि 11 जुलाई 2006 को आतंकी संगठन सिमी ने जब 209 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारा था उससे ठीक 5 दिन पहले 6 जुलाई 2006 को उत्तरप्रदेश कांग्रेस का तत्कालीन अध्यक्ष सलमान खुर्शीद सुप्रीमकोर्ट में उसी आतंकी संगठन सिमी का वकील बनकर सिमी पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने की मांग सुप्रीमकोर्ट से यह दलील देकर कर रहा था कि सिमी एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है और आतंकवाद से उसका कोई लेनादेना नहीं है.
राहुल गाँधी जी संभवतः आपकी समझ में यह नहीं आया हो किन्तु देश भलीभांति यह समझता है कि, सलमान खुर्शीद जिस समय 6 जुलाई को सुप्रीमकोर्ट में आतंकी संगठन सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध करने की कोशिश कर रहा था उस समय आतंकी संगठन सिमी 11 जुलाई को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के अपने आतंकी षड्यन्त्र को अंतिम रूप दे रहा था. क्योंकि इतनी बड़ी आतंकी घटना को कुछ घण्टों या दिनों की तैयारी कर के अंजाम नहीं दिया जा सकता. आतंकी संगठन महीनों की तैयारी के बाद ही इतनी बड़ी साज़िश को अंजाम दे पाते हैं. वैसे भी मुम्बई के श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट सिमी द्वारा की गयी कोई पहली आतंकी वारदात नहीं थी. उससे पहले आतंकी संगठन सिमी दर्ज़नों आतंकी वारदातों में सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार चुका था.
राहुल गाँधी जी लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. सुप्रीम कोर्ट में सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध कर उसपर से प्रतिबन्ध हटाने की कोशिश करनेवाले सलमान खुर्शीद को आप और आपकी पार्टी ने उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नहीं हटाया था. ऐसा करने के बजाय आप और आपकी पार्टी ने 2009 में बनी यूपीए सरकार में सलमान खुर्शीद को जब कानून मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया था तब यह देश और आतंकी संगठन सिमी का शिकार बने सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माएं यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, आपको यह भी याद दिलाना जरूरी है कि देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी उस समय भी विवश हो गए थे.जब देश की राजधानी दिल्ली में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने 13 सितम्बर 2008 को श्रृंखलाबद्ध विस्फोट कर 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 90 लोगों को घायल कर दिया था. उन आतंकवादियों को पकड़ने के लिए 19 सितम्बर को दिल्ली के बाटला हाऊस पहुंची दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा उन आतंकववादियों की गोली का शिकार होकर शहीद हो गए थे.
राहुल गाँधी जी यह देश भूला नहीं है कि उस बाटला हाऊस मुठभेड़ के तत्काल बाद आपकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाटला हाऊस पहुँच कर उन आतंकियों के साथ हुई दिल्ली पुलिस की मुठभेड़ को फ़र्ज़ी तथा 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों के हत्यारे इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित कर दिया था.
उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित करनेवाले दिग्विजय सिंह का नाम अकेला ऐसा नाम नहीं था. आपकी यूपीए की सरकार के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने स्वयम मंच से एलान कर के देश को यह बताया था कि इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों की मौत पर आपकी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी जो संयोग से आपकी मां भी हैं, फूट फूटकर रोयी थीं.
राहुल गाँधी जी आपकी समझ में भले ही ना आया हो लेकिन इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए शहीद इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा तथा दिल्ली के 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माओं के साथ ही साथ इस देश की जनता भी यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, जब अपनी स्पेनिश गर्लफ्रेंड के साथ लन्दन के बर्मिंघम क्रिकेट स्टेडियम में क्रिकेट विश्वकप का लुत्फ़ उठाते हुए आपकी तस्वीरें और खबरें देश तथा दुनिया के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में छपी थीं उस समय देश की सेना के जवान कारगिल युद्ध में अपने खून की गंगा बहाकर पाकिस्तानी दुश्मनों का मुक़ाबला कर रहे थे.
ऐसे समय में उस समय की देश की सबसे बड़ी और मुख्य विपक्षी पार्टी के निर्विवाद इकलौते वारिस के लन्दन के क्रिकेट ग्राउंड में गुलछर्रे उड़ाते चित्रों और समाचारों को देखने पढ़ने के बाद कारगिल में शहीद हुए सैकड़ों जवानों की आत्माओं के साथ ही साथ देश भी यह सोचने के लिए विवश हो गया था कि हमारे "खून की दलाली" करनेवाले हमारे खून के दलाल कौन हैं.?

Sunday, October 2, 2016

नरेंद्र मोदी ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया है.

केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं..
विगत 2 वर्षों में कुल 135 दिनों में सम्पन्न 27 विदेश यात्राओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व के 48 देशों के साथ निर्मित किये गए नवीन राजनीतिक कूटनीतिक आर्थिक और सामरिक सेतुओं के सुपरिणामों का सर्वश्रेष्ठ परिणाम बीती 29 दिसम्बर के बाद भारत के साथ-साथ समस्त विश्व देख रहा है.
भारत-पाक सम्बन्धों के 70 वर्ष लम्बे इतिहास में यह पहला अवसर है जब पाकिस्तान के साथ हुई भारत की तीखी सैन्य झड़प के पश्चात् विश्व के अधिकांश देशों ने भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर की गयी सैन्य कार्रवाई (सर्जिकल स्ट्राइक) के विरोध में दुनिया का एक भी देश एक शब्द नहीं बोला है. इसके विपरीत इनमें से अधिकांश देशों ने भारतीय सैन्य कार्रवाई का खुलकर समर्थन किया है और आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध और और संरक्षण की पाकिस्तानी रीति-नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कठघरे में खड़ा किया है.
उल्लेखनीय यह है कि इन देशों में पाकिस्तान के पड़ोसी ईरानऔर अफगानिस्तान समेत दुनिया के वो 52 इस्लामिक देश भी शामिल हैं जो इससे पूर्व के 70 वर्ष लम्बे अतीत में भारत के साथ पाकिस्तान के सैन्य संघर्ष/तनाव के प्रत्येक अवसरों पर सदा पाकिस्तान के पक्ष और पाले में खड़े दिखाई देते थे.
1948 में कश्मीर में हुई पाकिस्तानी सैन्य घुसपैठ हो, 1965 का युद्ध हो, 1971 का युद्ध हो या कारगिल का युद्ध. इनप्रत्येक अवसरों पर पाकिस्तान अपने पक्ष में इन 52 इस्लामी मुल्कों के साथ ही साथ अमरीकी और यूरोपीय गुटों के महत्वपूर्ण देशों का समर्थन जुटाने में हमेशा सफल होता था. किन्तु इस बार बाज़ी पलटी हुई नज़र आ रही है. दुनिया में केवल चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसके समर्थन का दावा पाकिस्तान तो कर रहा है किन्तु भारतीय सैनिकों द्वारा पाकिस्तानी सीमा में घुसकर की गयी कार्रवाई के विरोध या पाकिस्तान के समर्थन में बोलने से चीन ने भी परहेज ही किया है और स्वयम को इस विवाद से दूर दिखाने की ही कोशिश की है.
इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम ही कहा जाएगा कि पाकिस्तान के पक्ष में दुनिया का एक भी देश नहीं बोला है. पाकिस्तान के जन्म के पश्चात् यह पहला अवसर है जब वैश्विक मंच पर पाकिस्तान पूरी तरह उपेक्षित असहाय और अकेला दिखाई दे रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शतरंज पर सतर्कता पूर्वक चली गयी सधी हुई मारक चालों की पहली झलक 28-29 सितम्बर की रात भारतीय सेना द्वारा सीमा पार कर की गयी सैन्य कार्रवाई से लगभग 50 घण्टे पहले तब ही मिल गए थे जब 26 सितम्बर की शाम न्यूयॉर्क में भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा संयुक्त राष्ट्र के उसी मंच से लगभग 20 मिनटबोलीं और उनके भाषण के दौरान वह सभागार लगभग आधा दर्जन बार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा. जिस मंच से 5 दिन पूर्व 21 सितम्बर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़शरीफ के भाषण के दौरान जो सभागार 99% खाली दिखा था.
भारत के खिलाफ पाकिस्तान के मिथ्या और विषाक्त विधवा विलाप को सुनने में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने अपनी कोई रूचि नहीं दर्शायी थी जबकि भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा प्रस्तुत किये गए भारतीय दृष्टिकोण तथा उनकेद्वारा उजागर की गयी पाकिस्तान की करतूतों का उन्हीं सदस्य देशों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया था.
उड़ी हमले के पश्चात् प्रारम्भ हुई भारत-पाकिस्तान की कूटनीतिक जंग में यह पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय का प्रथम चरण था.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गयी पाकिस्तान की इस कठोर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक घेरेबन्दी का ही परिणाम था कि भारत द्वारा सीमापार पीओके में आतंकी कैंपों पर की गयी सैन्य कार्रवाई के तत्काल बाद ही अमेरिका ने पाकिस्तान को ही आड़े हाथों लिया और व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने अपने बयान में आतंक के खिलाफ भारत के पक्ष में अमेरिका का पूर्ण समर्थन जताते हुए पाकिस्तान को सार्वजनिक तौर पर लताड़ लगाई थी। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉश अर्नेस्ट ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग में पाकिस्तान को लताड़ लगाते हुए पाक में मौजूद आतंकी ठिकानों को नष्ट करने और आतंकियों पर नकेल कसने की भी बात कही थी. अमेरिका ने पाकिस्तान से मांग की है कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के साथ-साथ उनकी वैधता खत्म करे.
पाकिस्तान को अमेरिका की इस चेतावनीनुमा सलाह के साथ ही साथ अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने यह कहकर कि, "भारत और अमेरिका के मौजूदा सैन्य संबंध अब तक के सबसे ज्यादा करीबी संबंध हैं। दोनों देश पहली बार जल, थल एवं वायु में एक साथ सैन्य अभ्यास कर रहे हैं",  पाकिस्तान को यह संकेत भी दे दिया कि पाकिस्तान के साथ भारत के निर्णायक सैन्य टकराव में अमेरिका की भूमिका क्या और किसके पक्ष में होगी.  
पाकिस्तान को भारत के हाथों मिली यह प्रचण्ड कूटनीतिक पराजय उसके लिए भारी आघात है.
क्योंकि पिछले 68 वर्षों से पाकिस्तान की हर करतूत को अनदेखा कर उसके हर संकट में संकटमोचक बनता रहा अमेरिका उसके प्रबल शत्रु भारत के पक्ष में इस प्रकार खुलकर खड़ा हो जायेगा, इसकी कल्पना भी पाकिस्तान ने आज से दो वर्ष पूर्व नहीं की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अद्वितीय कूटनीतिक सूझबूझ और सफलता का श्रेष्ठतम प्रमाण यह भी है कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि उसका चिर प्रतिद्वंदी और शत्रु रूस भी भारत द्वारा पाकिस्तानी सीमा के भीतर घुसकर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन खुलकर कर रहा है. 
पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर आतंकवादियों के ठिकाने तबाह करने की भारतीय सेना की कार्रवाई का रूस ने खुलकर समर्थन किया है. भारत में रूस के राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने कहा है कि उड़ी हमले के तत्काल बाद सिर्फ उनका देश रूस ही था जिसने सीधे शब्दों में कहा था कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे. राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनका देश भारत द्वारा पाकिस्तान में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का स्वागत करता है क्योंकि हर देश को अपनी हिफाजत करने का पूरा अधिकार है.
कदाकिन ने यह भी कहा है कि 'सीमापार आतंकवाद से मुकाबले में उनका देश हमेशा ही भारत के साथ रहा है. पाकिस्तान पर सीधे तौर पर आतंकवादियों को संरक्षण और समर्थन देने के भारत के आरोप का खुला समर्थन भी रूस के विदेश मंत्रालय ये कह कर किया है कि हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान सरकार अपने देश की जमीन पर आतंकवादी ग्रुपों की गतिविधियां रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएगी.
केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं.
यह केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अद्भुत कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम है.
पाकिस्तान की इस स्थिति ने भारत में नरेन्द्र मोदी के उनविरोधियों की नीति और नीयत को भी संगीन सवालों केकठघरे में खड़ा कर दिया है जो पिछले 2 वर्षों से अपने क्षुद्रराजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीकी विदेश यात्राओं का फूहड़ राजनीतिक उपहास उड़ाते रहे हैं