Saturday, June 25, 2016

डॉ स्वामी के सवालों पर हंगामा है क्यों बरपा???

डा. सुब्रमणियम स्वामी द्वारा पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन तत्पश्चात मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमणियम की तीखी आलोचना पर मीडिया के एक वर्ग विशेष तथा विरोधी दलों में हंगामा बरपा है. डा. स्वामी के तेवरों पर वित्तमंत्री अरुण जेटली आगबबूला दिख रहे हैं, डा. स्वामी को अनुशासन के दायरे में रहने की सीख दे रहे हैं. 
रघुराम राजन और अरविन्द स्वामी सुब्रमणियम के विरुद्ध डा. स्वामी के तीखे तेवरों से सजे आरोपों पर हंगामा बरपा कर रहा मीडिया का वर्गविशेष, विरोधी दल तथा स्वयं वित्तमंत्री अरुण जेटली आश्चर्यजनक रूप से डा.स्वामी के आरोपों पर बहस से मुंह चुराते नज़र आ रहे हैं.
रघुराम राजन और अरविन्द सुब्रमणियम के भारत विरोधी कृत्यों और वक्तव्यों के तिथिवार दस्तावेज़ी साक्ष्यों को सार्वजनिक कर डा.स्वामी ने देश की वर्तमान अर्थव्यवस्था के इन दिग्गज अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया है. लेकिन उन साक्ष्यों तथ्यों दस्तावेज़ों पर बहस के बजाय उन पर्दा डालने के लिए डा.स्वामी के सनसनीखेज आरोपों को अनुशासनहीनता बताकर मीडिया और राजनीति के गलियारों में उनके विरुद्ध सुनियोजित हंगामा किया जा रहा है ताकि डा.स्वामी के आरोपों पर से देश का ध्यान भटकाया जा सके.

इस पूरे प्रकरण में डा.स्वामी को अनुशासन में रहने की सीख औेर चेतावनी दे रहे वित्तमंत्री अरुण जेटली को डा.स्वामी को सीख और चेतावनी देने के बजाय देश के सामने यह सफाई देनी चाहिए कि डा.स्वामी जो कह रहे हैं, उनके जो आरोप हैं वो सत्य नहीं है.
क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था का कर्त्ताधर्त्ता बनकर बैठे दो दिग्गजों के भारत विरोधी चेहरे और चरित्र में अरुण जेटली को भले ही कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगता हो किन्तु देश के लिए यह एक गम्भीर प्रश्न है जिसका उत्तर वित्तमंत्री अरुण जेटली को देना ही होगा.
डा.स्वामी के सवालों का उत्तर देने के बजाय वित्तमंत्री महोदय रघुराम राजन और अरविन्द स्वामी की तारीफों के पुल बांधते दिखाई दे रहे हैं. डा स्वामी के आरोपों की धार कुंद करने का उनका यह प्रयास अत्यन्त फूहड़ और थोथा है. अर्थव्यवस्था से संबंधित निम्न तथ्य जेटली के ऐसे प्रयासों की धज्जियां उड़ा देते हैं.

वित्त वर्ष 2013-14 में दालों का उत्पादन 19.25 मिलियन टन था.
वित्त वर्ष 2014-15 में दालों का उत्पादन घटकर 17.33 मिbलियन टन हो गया.
वित्त वर्ष 2015-16 में दालों का उत्पादन घटकर लगभग 17 मिलियन टन हो गया.
अर्थात वित्त वर्ष 2013-14 में दालों का जो उत्पादन हुआ था उसकी तुलना में वित्त वर्ष 2014-15 तथा वित्त वर्ष 2015-16 में दालों के उत्पादन में  लगभग 12-13% की कमी हुई. जबकि दालों के दामों में बढ़ोतरी 100% से 300% तक हुई है.
यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि वर्ष 2014-15 में दालों के आयात पर 15990 करोड़ रू खर्च किये गए थे. यदि आयात बिल की यह राशि 15990 करोड़ से बढ़ाकर 60से 70 हज़ार करोड़ कर दी गयी होती तो गरीब आदमी को 60-65 रू किलो की दाल 150-200 रू किलो में नहीं खरीदनी पड़ती. 
देश का वित्तमंत्री यह राशि आसानी से उपलब्ध करा सकता था. क्योंकि वित्तवर्ष 2013-14 में कच्चे तेल के आयात में भारत को लगभग 168 बिलियन डॉलर खर्चने पड़े थे. कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट के कारण वित्त वर्ष 2014-15 में पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर सरकार ने लगभग 113 बिलियन डॉलर खर्च खर्च किये थे. अर्थात उसे लगभग 55 बिलियन डॉलर यानि लगभग 3 लाख 30 हज़ार करोड़ रू की बचत हुई थी.
अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में लगातार जारी रही भारी कमी के कारण वित्त वर्ष 2015-16 में सरकार को केवल 62 बिलियन डॉलर ही खर्च करने पड़े अर्थात वित्त वर्ष 2013-14(इसके बाद ही देश की अर्थव्यवस्था  की कमान अरुण जेटली ने सम्भाल ली थी.) की तुलना में लगभग 106 बिलियन डॉलर अर्थात लगभग 7 लाख 10 हज़ार करोड़ रू. की बचत हुई. यह आंकड़े बताते हैं कि, दो वर्षों में लगभग 10 लाख 40 हज़ार करोड़ रू की बचत हुई.

इस बचत पर जनता का हक़ था. उसके हिस्से के यह पैसे पेट्रोल डीजल की कीमतों में कमी करके जनता को क्यों नहीं नहीं दिए सरकार ने.? 
ये पैसे किस मद में खर्च किये गए.? 
जनता की जेब/हिस्से के इन पैसों से सस्ती दाल का आयात क्यों नहीं किया गया.? 

ऐसे अनेक सवाल वित्तमंत्री और अरविन्द सुब्रमण्यम सरीखे उनके सलाहकारों की नीति और नीयत को कठघरे में खड़ा करते हैं.
डा.स्वामी के तीखे तेवरों से सजे संगीन आरोप इन्हीं और ऐसे सवालों को स्वर देने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं.
उनके सवालों पर हंगामा बरपा करके देश की जनता की आँखों में धूल झोंकी जा रही है.

Monday, June 20, 2016

यदि केजरीवाल का तर्क ही सही है तो...

यदि केजरीवाल का तर्क ही सही है तो उसी तर्क के आधार पर केजरीवाल के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, नरसंहार और फिरौती के लिए अपहरण करने के दर्ज़नों केस दर्ज़ कर NIA को केजरीवाल को तत्काल गिरफ्तार करना चाहिए और केजरीवाल के खिलाफ रासुका लगानी चाहिए...
केजरीवाल का कहना है कि, भाजपा सांसद महेश गिरी होटल मालिक रमेश कक्कड़ को लेकर लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग से मिलने गए थे. उसके 6 दिन बाद NDMC की अधिकारी की हत्या हो गयी इसलिए महेश गिरी को भी एम एम खान की हत्या करवाने के आरोप में गिरफ्तार किया जाए.
हालांकि महेश गिरी ऐसे किसी भी आरोप से इनकार कर रहे हैं और इसी आरोप के सबूत की मांग को लेकर केजरीवाल के घर के सामने धरने पर बैठे हुए हैं. केजरीवाल ना तो कोई सबूत दे पा रहे हैं और ना महेश गिरी का सामना कर पा रहे हैं.
केजरीवाल के अनुसार यदि महेश गिरी किसी को लेकर गवर्नर से मिलने जाएं औेर वो आदमी 6दिन बाद हत्या के आरोप में गिरफ्तार हो जाये तो महेश गिरी को भी गिरफ्तार कर के उनपर भी हत्या का केस दर्ज़ होना चाहिए. केजरीवाल को शायद यह याद नहीं हो या फिर राजनीतिक सुविधानुसार भूल जाने का केजरीवाली पाखण्ड हो लेकिन देश नहीं भूला है.
लगभग ढाई साल पहले जिस 5 लाख रूपये के इनामी हत्यारे नक्सल सरगना सव्यसाची पांडा को केजरीवाल ने ओड़िशा में अपनी पार्टी का नेता नियुक्त किया था उस नक्सली सरगना पांडा के खिलाफ दर्ज़ नरसंहार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, फिरौती जैसे संगीन अपराधों की संख्या 100 से अधिक थी.
अतः केजरीवाल के अनुसार यदि किसी के साथ जाकर लेफ्टिनेंट गवर्नर से मिलने मात्र से महेश गिरी उस व्यक्ति द्वारा 6 दिन बाद किये गए अपराध में बराबर के भागीदार हैं, तो फिर नरसंहार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, फिरौती जैसे जघन्य अपराधों से घिरे एक कुख्यात हत्यारे को राजनीतिक शरण सहायता समर्थन देनेवाले केजरीवाल को उस हत्यारे के जघन्य अपराधों में बराबर का भागीदार मानकर केजरीवाल के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई क्यों ना की जाए.?
यहां यह उल्लेखनीय है कि महेश गिरी अपने खिलाफ केजरीवाल के आरोपों को दृढ़ता से नकार रहे है. केजरीवाल से सबूतों की मांग कर रहे हैं औेर केजरीवाल ना सबूत दे पा रहे हैं ना महेश गिरी का सामना कर पा रहे हैं. जबकि केजरीवाल द्वारा सव्यसाची पांडा को राजनीतिक शरण सहायता समर्थन के हज़ारों साक्ष्य सैकड़ों मीडिया रिपोर्टों में दर्ज़ हैं.
इस पूरे प्रकरण में सनसनी खेज शर्मनाक और खतरनाक सच्चाई यह है कि केजरीवाल ने जब इस कुख्यात हत्यारे नक्सली सरगना को ओडिशा में अपनी पार्टी का नेता बनाया था तब वो फरार चल रहा था और उसके ज़िंदा या मुर्दा पकडे जाने पर सरकार ने 5 लाख का इनाम घोषित कर रखा था. मोदी सरकार बनने के बाद जुलाई 2014 में पांडा को गिरफ्तार किया जा सका था.
इसीलिए मेरा मानना है कि...
यदि केजरीवाल का तर्क ही सही है तो उसी तर्क के आधार पर केजरीवाल के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, नरसंहार और फिरौती के लिए अपहरण करने के दर्ज़नों केस दर्ज़ कर NIA को केजरीवाल को तत्काल गिरफ्तार करना चाहिए और केजरीवाल के खिलाफ रासुका लगानी चाहिए.

Wednesday, June 15, 2016

उड़ता पंजाब और कुतुबमीनार पर बना प्रेम संगीत...



आज के दौर की चिकनी चमेली, शीला की जवानी, मुन्नी बदनाम और बीड़ी जलइले... की कंगारुओं सरीखी उछलती कूदती 90% नग्न देह वाली नायिकाओं पर हिमालय की तरह भारी पड़ती हैं नूतन की सादगी से सजी शरारती शोख मुस्कुराती निगाहें. जो किसी भी कोण से ना तो कृत्रिम दिखती हैं ना अप्राकृतिक.
दिल्ली की क़ुतुब मीनार के भीतर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं जो आपको ऊपर की मंज़िलों तक ले जाती हैं. लेकिन दशकों पहले कुतुबमीनार के भीतर प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था. अतः नयी पीढ़ी का सामना उन सीढ़ियों से नहीं हुआ होगा. संयोग से किशोरावस्था में मैंने उन सीढ़ियों को देखा भी है उन पर चढ़ा भी हूँ.
कुतुबमीनार को देखकर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि वो सीढियाँ कितने संकरे स्थान में बनी होंगी. उन संकरी सीढ़ियों पर आज से लगभग 54-55 साल पहले एक रोमांटिक फ़िल्मी गीत की शूटिंग हुई थी. 54-55 साल पहले के अत्यन्त सीमित तकनीकी क्षमता वाले भारी भरकम कैमरों और लाइट उपकरणों के सहारे कुतुबमीनार की उन्हीं संकरी अँधेरी सीढ़ियों पर निर्देशक विजय आनंद और कैमरामैन वी रतरा ने जो गीत शूट किया था उसे देव आनंद और नूतन ने अपने अभिनय से यादगार बना दिया था.
संकरी अँधेरी सीढ़ियों पर भारीभरकम कैमरा, लाइट्स और यूनिट के लोगों की भीड़ के बीच बचे सीमित स्थान पर नूतन और देव आनंद ने अपने अभिनय की तूलिका से प्रेम की अभिव्यक्ति का जो इंद्रधनुषी चित्र सिनेमा के परदे पर उकेरा था वो आज भी मंत्रमुग्ध कर देता है. तनमन को मादक मोहक तरंगों से सराबोर कर देता है.
आज के दौर की चिकनी चमेली, शीला की जवानी, मुन्नी बदनाम और बीड़ी जलइले… की कंगारुओं सरीखी उछलती कूदती 90% नग्न देह वाली नायिकाओं पर हिमालय की तरह भारी पड़ती हैं नूतन की सादगी से सजी शरारती शोख मुस्कुराती निगाहें. जो किसी भी कोण से ना तो कृत्रिम दिखती हैं ना अप्राकृतिक

आज इस गीत का उल्लेख इसलिए क्योंकि अभी अभी खबर देखी कि सुप्रीमकोर्ट ने “उड़ता पंजाब” के निर्माता निर्देशकों से जब पूछा कि उनकी फिल्म में इतनी भद्दी भद्दी अश्लील गालियां क्यों हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि, दरअसल वो वास्तविकता “रियल्टी” दर्शाना चाहते है. इसलिए….मित्रों मेरा मानना है कि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या वास्तविकता किसी नंगई, गाली गलौज की मोहताज़ नहीं होती. बहुत सीमित साधनों और विषम परिस्थितयों में भी अपनी बात सर्वश्रेष्ठ शैली में कही जा सकती है. बस शर्त यह है कि बात कहने वाले विजय आनंद,वी रतरा, नूतन और देव आनंद सरीखे “जीनियस” होने चाहिए, ना कि अनुराग कश्यप, एकता कपूर, आलिया भट्ट शहीद कपूर सरीखे छिछली, थोथी सोच और क्षमता वाले सतही सस्ते लोग. जीनियस विजय आनंद की निर्देशन क्षमता और नूतन, देव आनंद के बेमिसाल अभिनय कौशल से सजे उपरोक्त गीत का आनंद आप भी लीजिए फिर तय करिये कि, क्या सही है, क्या गलत.

https://youtu.be/0eHgCT_IwTg





Tuesday, June 7, 2016

पर उपदेश कुशल बहुतेरे : त्वरित कार्रवाई वाले न्यायिक हस्तक्षेप का कोई प्रसंग तो याद दिलाइये.



सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने मीडिया में प्रवचन दिया कि जब सरकार ठीक से काम नहीं करती है तब न्यायालय को हस्तक्षेप करना ही पड़ता है. आगे भी करता रहेगा.
जब उनका यह प्रवचन न्यूजचैनलों पर दिखाया जा रहा था संयोग से उसी समय कुछ न्यूजचैनलों पर यासीन मालिक का किस्सा भी सुनाया बताया जा रहा था कि उसने किस तरह 1987 में पुलिस कर्मियों समेत 4 की हत्या करने के बाद 1990 में लगभग 2 दर्जन कश्मीरी पंडितों की हत्या की थी. उसको सजा तो छोड़िए, उन हत्याओं के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चलना भी अभी शुरू नहीं हुआ है. अभी यह भी तय नहीं है कि मुकदमा चलेगा भी कि नहीं.?
न्यायाधीश महोदय के न्यूजचैनली प्रवचन के समय ही एक न्यूजचैनल साध्वी प्रज्ञा की व्यथा भी सुना बता रहा था कि किस तरह बिना किसी साक्ष्य के 2008 से लेकर अबतक, लगभग 8 सालों तक साध्वी को जेल में बंदकर मरण तुल्य यातनाएं दी जाती रहीं. लेकिन इसके लिए किसी को कोई सज़ा नहीं.
सिर्फ इतना ही नहीं....
उनकी बात सुनकर मुझे याद आया कि, 1984 के दंगो में दिल्ली में 3 हज़ार सिखों के नरसंहार के लिए आज 32 बरस बाद भी किसी को सज़ा नहीं हुई है. 1984 में एक रात Bhopal में ही 3900 लोगों को मौत के घाट उतारने और लाखों लोगों को अपंग करने के लिए आजतक किसी को कोई सज़ा नहीं हुई है.
15 वर्षों के कांग्रेसी शासन में सिंचाई विभाग की भ्रष्टतम कार्यशैली का शिकार बनकर महाराष्ट्र में 50000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली थी. आजतक सिंचाई विभाग के किसी इंजीनियर अफसर को कोई सज़ा नहीं हुई. आखिर क्यों.?
उनकी बात सुनने के बाद मुझे यह भी याद आया कि देश भर के न्यायालयों में लगभग 2.70 करोड़ मुक़दमे लम्बित पड़े हैं. लेकिन मुझे यह याद नहीं आया कि, इस लिस्ट को खत्म करने के लिए किसने क्या हस्तक्षेप कब किया...??? उपरोक्त सभी मामलों में सज़ा देने, न्याय करने का दायित्व क्या रेलमंत्रालय या खेल मंत्रालय या तेल मंत्रालय का था...???
......या फिर इस देश की न्यायिक व्यवस्था का...???
उपरोक्त सभी मामलों में समयबद्ध त्वरित कार्रवाई के आदेश वाले न्यायिक हस्तक्षेप का कोई प्रसंग मुझको तो याद नहीं. मित्रों में से किसी को याद हो तो मुझे बताइयेगा.
फिलहाल तो मुझे वही कहावत याद आ रही है कि.....

"पर उपदेश कुशल बहुतेरे..."