Saturday, October 22, 2016

शहीद सैनिकों के लिए देश में उमड़े जबरदस्त जनाक्रोश का सरकारी सौदा 5 करोड़ में हो गया...???

सीमा पर देश की रक्षा करते शहीद हुए जवानों की रक्तरंजित लाशों पर देश में उमड़े जबरदस्त जनाक्रोश का सरकारी सौदा केवल 5 करोड़ में हो गया है...
"पाकिस्तानी कलाकार वाली फिल्म इस देश में बिना रोकटोक के दिखाई जाए उसका कोई विरोध ना हो और जो विरोध करे उसपर सरकार की पुलिस और फौज लट्ठ बरसाए..." 
अपनी यह मांग लेकर गृहमंत्री से मिलने दिल्ली पहुंचे फिल्म निर्माता विक्रम भट्ट को तनिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. जिस दिन वो दिल्ली पहुंचा उसी दिन इस देश का गृहमंत्री बिना विलम्ब किये हुए उससे तत्काल मिला और उसकी सब मांगे मान भी लीं.
मुम्बई में ऐसी ही मांगों को लेकर करण जौहर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से मिला और उस मुख्यमंत्री ने भी उसको बिना प्रतीक्षा कराये उसकी मांगों को मान लिया.
नतीजा यह निकला है कि सीमा पर देश की रक्षा करते शहीद हुए जवानों की रक्तरंजित लाशों पर देश में उमड़े जबरदस्त जनाक्रोश का सरकारी सौदा केवल 5 करोड़ में हो गया. जिनके घरों में उनके शहीद बेटे पति और भाई की खून से लथपथ लाशें पहुंची उनके मुंह पर फ़िल्मी भांडों की 5 करोड़ की भीख फेंककर इस देश के कर्णधारों ने सिनेमा के माध्यम से भारतीयों की छाती पर पाकिस्तानी नाच गाने की इज़ाज़त दे दी है.
धन्यवाद उस राज ठाकरे को जिसकी वजह से देश के कर्णधारों का असली चेहरा उजागर तो हुआ.
यदि राज ठाकरे ने इतना उपद्रव ना किया होता तो यह स्थिति भी नहीं होती. क्योंकि भाजपाई प्रवक्ताओं को तो पाकिस्तानी फ़िल्मी भांडों के खिलाफ बोलने से कतराते हुए पूरा देश देख ही रहा था...
असली चेहरा इसलिए कह रहा हूं... क्योंकि केवल 6 माह पूर्व देशद्रोही कश्मीरी गुंडों और वहां की भाजपा गठबंधन सरकार की पुलिस द्वारा मार मार कर लहूलुहान कर दिए गए श्रीनगर NIT के सैकड़ों देशभक्त छात्रों उनके परिजनों से इस देश का गृहमंत्री और जम्मू कश्मीर गठबंधन सरकार का भाजपाई उप-मुख्यमंत्री आजतक नहीं मिला है. इस काम के लिए शायद समय की बहुत कमी थी और आज भी है...
उनकी मांगों का क्या हुआ यह देश को आजतक नहीं मालूम...

Saturday, October 15, 2016

क्या एक और पाकिस्तान के निर्माण की नींव का पहला पत्थर है यह मानसिकता.?

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धर्मांध मानसिकता के साथ कट्टर विचार के साम्प्रदायिक सम्भोग के कारण होने वाला धार्मिक वैमनस्य का वीर्यपात भविष्य के गर्भ में  एक और पाकिस्तान के भ्रूण का निर्माण किस प्रकार करता है इसका शर्मनाक साक्ष्य और सन्देश दे रही है यह खबर.
सेक्युलर चिकित्सा पद्धति के राजनीतिक  पुरोधा इस "एक और पाकिस्तान" के भ्रूण की रक्षा में जिस प्रकार प्राणपण से प्रयास कर रहे हैं वह उनके द्वारा 100 और 70 वर्ष पूर्व,  "पहले पाकिस्तान" की भ्रूण रक्षा की उनकी भूमिका की खूनी यादें 
ताज़ा कर रही हैं .
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने देश के सर्वोच्च न्यायलय के आदेश और संविधान को मानने से स्पष्ट इनकार का सन्देश बहुत साफ़ शब्दों में दे दिया है. मुस्लिम वोटों के "लालच कुंड" में डूब उतरा रहे कुछ राजनीतिक दलों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस संविधान विरोधी अराजक मुद्रा के समर्थन में अपने सियासी सेक्युलरिज़्म का नगाड़ा भी जोरशोर से पीटना प्रारम्भ कर दिया है. यह स्थिति देश के भयावह राजनीतिक भविष्य की प्रारंभिक रूपरेखा के निर्माण का अत्यन्त खतरनाक सन्देश दे रही है.

आज 2016 के यह हालात आज से ठीक सौ वर्ष पहले के दिसम्बर 1916 के उन हालातों की याद दिला रहे हैं जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अपनी घोर साम्प्रदायिक मांगों वाला लखनऊ पैक्ट नाम का साझा प्रस्ताव तैयार करा था. लखनऊ पैक्ट की पहचान पाकिस्तान के निर्माण की आधारशिला के पहले पत्थर के रूप में भी की जाती है. उसकी यह पहचान आधारहीन नहीं है. भारतीय राजनीतिक इतिहास में यह ऐसा पहला राजनीतिक प्रस्ताव था जिसमें साम्प्रदायिक आधार पर राजनीति और सत्ता में मुस्लिम हिस्सेदारी की मांग खुलकर की गयी थी. उस समय मोहम्मद अली जिन्ना ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष की हैसियत से संवैधानिक सुधारों की संयुक्त "कांग्रेस-मुस्लिम लीग" की जो योजना पेश की थी उसके अंतर्गत "कांग्रेस-मुस्लिम लीग" समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की मांग की गई। इसी समझौते को 'लखनऊ पैक्ट' कहते हैं.
इस लखनऊ पैक्ट को तैयार करने के लिए मुहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा करते हुए कांग्रेस ने जिन्ना को उस समय हिन्दू-मुस्लिम एकता का राजदूत घोषित कर दिया था. काँग्रेस प्रांतीय परिषद चुनाव में मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मण्डल तथा पंजाब एवं बंगाल को छोडकर, जहां उन्होनेहिन्दू और सिख अल्पसंख्यकों को कुछ रियायतें दी, सभी प्रान्तों में उन्हें रियायत (जनसंख्या के अनुपात से ऊपर) देने पर भी सहमत हो गई थी.
हालांकि ब्रिटिश शासकों ने "कांग्रेस-मुस्लिम लीग" गठबंधन के इस घोर साम्प्रदायिक प्रस्ताव को मानने से स्पष्ट इनकार कर दिया था.
यहां यह उल्लेख अत्यावश्यक है कि, प्रथम विश्व युद्ध से पहले ब्रिटिश सरकार ने भारत में मुस्लिम लीग को पूरी तरह बहिष्कृत कर हाशिये पर पहुंचा दिया था. उसपर अपने अस्तित्व को बचाये बनाये रखने का गम्भीर संकट मंडरा रहा था. मुस्लिम लीग के साथ ब्रिटिश सरकार की इस तकरार का "भारत की आज़ादी" की लड़ाई से कोई लेनादेना नहीं था. इसके बजाय ब्रिटिश सरकार से मुस्लिम लीग की तकरार का कारण तुर्की के कट्टरपंथी, घोर साम्प्रदायिक खलीफा का मुस्लिम लीग द्वारा खुलकर किया जानेवाला समर्थन था. उस समय पूरी दुनिया में तुर्की के खलीफा की सांप्रदायिक विद्वेष और घृणा फ़ैलाने वाली विषाक्त विचारधारा के खिलाफ पूरा विश्व एकजुट हो रहा था. किन्तु तुर्की के खलीफा को दुनिया के कट्टरपंथी मुस्लिम देश अपना धर्म प्रमुख तथा उसके आदेशों और उपदेशों को सर्वोपरि मानते थे. तुर्की के उसी खलीफा को ही हिंदुस्तान की मुस्लिम लीग भी अपना आदर्श मानती थी. इसीलिए ब्रिटिश सरकार उसको कोई महत्व नहीं देती थी.
इस गंभीर स्थिति में मुस्लिम लीग के साथ समझौता करके कांग्रेस ने उसके लिए संजीवनी की भूमिका का निर्वाह किया था. प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के तत्काल बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक प्रशासनिक सुधार के अपने प्रस्ताव के लिए जब सुझाव मांगे थे तो कांग्रेस ने अपना वजन बढ़ाने के लिए घोर साम्प्रदायिक कट्टरपंथी मुस्लिम लीग से हाथ मिलाकर उसको अपना साझीदार बना लिया था. दिसम्बर 1915 को मुम्बई में तथा नवम्बर 1916 को कलकत्ता में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मठाधीशों की महत्वपूर्ण बैठकों में कांग्रेस और मुस्लिम लीग की साझा मांगों की रूपरेखा तैयार की गयी थी.
ब्रिटिश सरकार से अपनी मांगों के साझा प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए दोनों पार्टियों, कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने लखनऊ में अपना संयुक्त अधिवेशन  (29-31) दिसम्बर 1916 को आयोजित किया था. अधिवेशन में तैयार प्रस्ताव को इतिहास में लखनऊ पैक्ट के नाम से जाना जाता है.

आगे चलकर चौथे दशक में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग का पुनर्गठन किया और खुद को 'क़ायदे आज़म' (महान नेता) घोषित करवाया.  1940 ई. में जिन्ना ने 1916 के उसी प्रस्ताव को विस्तार देते हुए धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन तथा मुसलिम बहुसंख्यक प्रान्तों को मिलाकर पाकिस्तान बनाने की मांग कर दी थी. सात साल बाद 1947 में जिन्ना की उस मांग की पूर्ति भारत के विभाजन और पाकिस्तान के जन्म के साथ हुई थी.  
1916 में कांग्रेस के समर्थन और सहयोग से जहरीली साम्प्रदायिक राजनीति का जो अध्याय जिन्ना ने लिखना प्रारम्भ किया था उसका अंत लाखों रक्तरंजित लाशों के साथ हुआ था. आज ठीक सौ साल बाद जब एक कट्टरपंथी मुस्लिम NGO 1916 वाले जिन्ना की भाषा बोल रहा है और कांग्रेस उसी तरह खुलकर उस NGO का समर्थन कर रही है जिस तरह 1916 में उसने जिन्ना का किया था, तो किसी काले नाग की तरह फन काढ़ कर यह प्रश्न स्वतः खड़ा हो जाता है कि.....
क्या एक और पाकिस्तान के निर्माण की नींव का पहला पत्थर है यह मानसिकता...???


Sunday, October 9, 2016

गम्भीर सवालों के कठघरे में "दि हिन्दू" अख़बार और कांग्रेसी चाटुकार पत्रकार.?

जो सैनिक  8 जनवरी  2013 को शहीद हुए और उनका गला काटा गया, उनकी शहादत और गला काटे जाने का बदला 16 महीने पहले ही 30 अगस्त 2011 को कैसे ले लिया गया था.?
क्या भारतीय सेना ने अपने उन दो जवानों की संभावित मृत्यु और सिर काट लिए जाने की घटना की संभावना के आधार पर 16 महीने पहले ही बदला ले लिया था और 8 पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतारकर उनमें से 3 के सिर काट लिए थे.?
यह कुछ ऐसे गम्भीर सवाल हैं जिनका उत्तर दि हिन्दू अखबार और NDTV "आजतक" सरीखे न्यूजचैनलों के साथ ही साथ कांग्रेस को भी देना होगा



आज सवेरे दक्षिण भारत के अंग्रेजी अखबार "दि हिन्दू" ने एक सनसनीखेज खबर छापी है. उसकी खबर के अनुसार भारतीय सेना के जांबाज़ कमांडों की एक टीम ने 30 अगस्त 2011 की रात LOC पार कर पाकिस्तान में घुसकर हमला किया था और 8 पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतार दिया था. अख़बार के अनुसार भारतीय कमांडों की टीम अपने हमले में मारे गए उन 8 पाकिस्तानी फौजियों में से तीन के सिर काटकर अपने साथ ले आयी. 
अख़बार के अनुसार भारतीय कमांडों की टीम ने तीन पाकिस्तानी फौजियों के सिर काटकर भारतीय सेना के उन 2 शहीद जवानों की मौत का बदला लिया था जिनके सिर पाकिस्तानी फौजी कुछ दिन पहले काटकर ले गए थे.
"दि हिन्दू" में अत्यंत सुनियोजित और प्रायोजित तरीके से प्रकाशित हुई इस खबर के साथ ही न्यूजचैनलों ने, विशेषकर NDTV और "आजतक" ने इस खबर के बहाने जबरदस्त शोर मचाना प्रारम्भ कर दिया था कि हाल ही में 29 सितम्बर 2016 को भारतीय सेना के कमांडोज़ की टीम द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक कोई पहली या उल्लेखनीय घटना नहीं है. इससे पहले की मनमोहन सरकार में भी सेना ऐसा करती रही है.
दरअसल इस पूरी खबर को फ़ैलाने के पीछे की मूल मंशा सेना की जयजयकार करना, या उसका मनोबल बढ़ाना नहीं था. इसके बजाय इस खबर का उद्देश्य मोदी सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश की रक्षा से सम्बन्धित लिए गए एक अदम्य साहसी फैसले और उसको मिली अभूतपूर्व सफलता व सराहना की चमक पर धूल की परत बिछाना मात्र ही था. किन्तु अपने अंध "मोदी विरोध" के इस शातिर षड्यन्त्र के क्रियान्वयन में "दि हिन्दू" अखबार और कुछ न्यूजचैनलों,विशेषकर NDTV और "आजतक" से एक बड़ी भारी भूल हो गयी है जिसने उनकी इस खबर की धज्जियाँ बहुत बुरी तरह उड़ा दी हैं.
दरअसल "दि हिन्दू" अपनी खबर में LOC पार करके की गयी भारतीय सेना के कमांडोंज़ की कार्रवाई तथा उनके द्वारा तीन पाकिस्तानी फौजियों के सिर काटने का कारण भारतीय सेना के जिन 2 शहीद जवानों की मौत के प्रतिशोध को बता रहा है, उन 2 शहीद जवानों के सिर काटे जाने की घटना जुलाई या अगस्त 2011 में नहीं हुई थी.
यह घटना 8 जनवरी 2013 को घटित हुई थी. यानि कि "दि हिन्दू" द्वारा बताई जा रही तारीख के लगभग एक वर्ष चार माह बाद. इस खबर की पुष्टि आप इस लिंक पर जाकर कर सकते हैं
http://aajtak.intoday.in/story/indian-soldiers-did-not-behead-pakistani-troops-antony-says-1-720364.html
हद तो यह है कि उस समय यह समाचार पूरे देश के मीडिया समेत स्वयम NDTV और आजतक ने भी प्रसारित किया था. अतः यही वह बिंदु है जो "दि हिन्दू" की खबर और उस खबर के सहारे हुडदंग कर रहे NDTV "आजतक" सरीखे न्यूजचैनलों को संगीन सवालों के कठघरे में खड़ा कर रहा है.
बड़ी सामान्य सी बात है कि भारतीय सीमा में घुसकर पाकिस्तानी फौज ने जिन दो शहीद जवानों का सिर 8 जनवरी 2013 को काटा था उन जवानों की मौत तथा उनके सिर काटने की घटना का बदला लेने के लिए भारतीय सेना के कमांडोज़ ने लगभग 16 महीने पहले ही 30 अगस्त 2011 को LOC पार कर 8 पाकिस्तानी फौजियों को मार कर उनमें से तीन के सिर क्यों काट लिए थे.?
क्या भारतीय सेना को यह पहले से मालूम था कि 16 महीने बाद पाकिस्तानी फौजी उसके दो जवानों का सिर काट कर ले जाएंगे.?
क्या भारतीय सेना ने अपने उन दो जवानों की संभावित मृत्यु और सिर काट लिए जाने की घटना की संभावना के आधार पर 16 महीने पहले ही बदला ले लिया था और 8 पाकिस्तानी फौजियों को मौत के घाट उतारकर उनमें से 3 के सिर काट लिए थे.?
यह कुछ ऐसे गम्भीर सवाल हैं जिनका उत्तर दि हिन्दू अखबार और NDTV "आजतक" सरीखे न्यूजचैनलों के साथ ही साथ उस कांग्रेस को भी देना होगा जिसके नेताओं प्रवक्ताओं की फौज "दि हिन्दू" में प्रकाशित खबर के बाद से छाती ठोंक रही है, दावा कर रही है कि हमारी सरकार ने तो बदला ले ही लिया था लेकिन भाजपा की तरह हल्ला नहीं मचाया था.
अतः देश कांग्रेस से भी जानना चाह रहा है कि किसी घटना के घटने से 16 महीने पहले ही कांग्रेस सरकार ने उसका बदला क्यों और कैसे ले लिया था.
इन सवालों के जवाब में यदि "दि हिन्दू" की रिपोर्ट और कांग्रेस यह तर्क देंगे कि उनकी रिपोर्ट में जिन दो भारतीय सैनिकों का सिर काटे जाने का जिक्र है वो कोई और हैं तथा 8 जनवरी 2013 को जिन भारतीय सैनिकों का गला पाकिस्तानी फौजियों द्वारा काटा गया था उनसे उनका कोई लेनादेना नहीं है.

यदि "दि हिन्दू" की रिपोर्ट और कांग्रेस ने यह तर्क दिया तो उनकी नीति तथा नीयत और भी ज्यादा गंभीर सवालों के कठघरे में खड़े हो जायेंगे. क्योंकि LOC पार पाकिस्तान जाकर की गयी किसी छोटी-बड़ी कार्रवाई पर सरकार के रणनीतिक मौन की कांग्रेसी दुहाई यदि स्वीकार कर भी ली जाये तो जिन भारतीय सैनिकों का गला 2011 में पाकिस्तानी फौज द्वारा काटे जाने का उल्लेख "दि हिन्दू" की रिपोर्ट और कांग्रेसी दावों में किया जा रहा है, उन शहीदों की शहादत को देश और दुनिया से छुपाकर उनकी शहादत का अपमान क्यों किया था यूपीए की तत्कालीन सरकार ने.? क्योंकि देश को 8 जनवरी 2013 को "गलाकाट" पाकिस्तानी बर्बरता का शिकार बने दो शहीद सैनिकों के नाम ही ज्ञात हैं. पहला नाम लांस नायक शहीद हेमराज और दूसरा नाम लांसनायक शहीद सुधाकर सिंह का है.? इन दो शहीद सैनिकों के अतिरिक्त दो और जवानों का सिर भी पाकिस्तानी फौजी भारतीय सीमा में घुस के काट कर ले गए थे, यह सच तत्कालीन यूपीए सरकार ने देश से क्यों छुपाया था.?
यह सवाल व स्थिति "दि हिन्दू" की शातिर सुनियोजीत रिपोर्ट तथा कुटिल कांग्रेसी दावों की धज्जियां बुरी तरह उड़ा रही है.

अंत में यह उल्लेख भी आवश्यक है कि 8 जनवरी 2013 को पाकिस्तानी फौजियों द्वारा 2 भारतीय सैनिकों के सिर काटे जाने की घटना के बाद भी बदले में भारतीय सैनिकों द्वारा पाकिस्तानी फौजियों के सिर काटे जाने की अटकलें देश में जब गर्म हुई थीं तो 30 जनवरी 2013 को भारतीय सेना ने तथा 31 जनवरी 2013 को देश के तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटोनी ने ऐसी किसी भी अटकल को जोरदार शब्दों में पूरी तरह बेबुनियाद बताते हुए पूरी तरह खारिज़ कर दिया था. ज्ञात रहे कि किसी देश की सेना व उसका रक्षामंत्री ऐसे अवसरों पर हां या ना कहने के बजाय चुप्पी तो साध लेते हैं किन्तु देश से झूठ नहीं बोलते हैं.


Saturday, October 8, 2016

कांग्रेस ने देश के स्मृतिकोष को क्या दीवालिया या कंगाल समझ लिया है.? (Part-1)

कांग्रेस को यह याद कराना  आवश्यक है कि उकी यूपीए-2 सरकार ने कांधार में 166 नागरिकों की प्राणरक्षा के दायित्व निर्वहन सरीखी किसी अनिवार्य अपरिहार्य विवशता के कारण शाहिद लतीफ़ समेत 25 दुर्दांत आतंकवादियों को रिहा नहीं किया था. इसके बजाय यूपीए की सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने, दोस्ती बढ़ाने की अपनी बेचैनी बेसब्री के कारण शाहिद लतीफ़ और 25 अन्य हत्यारे पाकिस्तानी आतंकियों पर यह देशघाती सरकारी मेहरबानी की थी.....

कल शुक्रवार को अपने नेता राहुल गाँधी का वकील बनकर राहुल का बचाव करने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता और यूपीए सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री रहे कपिल सिब्बल मैदान में उतरे थे
अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कपिल सिब्बल ने भाजपा पर देश की सुरक्षा के साथ घातक समझौता करने के गम्भीर आरोप भी जड़े थे. इसके लिए कपिल सिब्बल ने सहारा लिया था जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मौलाना मसूद अज़हर के नाम का. उनका कहना था कि, कांधार में जिन 3 आतंकवादियों को छोड़ा गया था उनमें आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का चीफ मौलाना मसूद अज़हर भी था. उन्होंने भाजपा को जैश-ए-मोहम्मद को जन्म देने की गुनाहगार भी बताया था.. इसके लिए भाजपा पर आगबबूला होने के अपने सियासी पाखण्ड का शातिर प्रदर्शन करते हुए कपिल सिब्बल ने दावा किया था कि यदि कांधार में मसूद अज़हर को ना छोड़ा गया होता तो देश में आज आतंकवादी हमले ना हो रहे होते.  
अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपरोक्त बातें करते समय कपिल सिब्बल सम्भवतः भयंकर स्मृतिलोप का शिकार हो चुके थे ... 
या फिर उन्होंने इस देश के स्मृतिकोष को पूरी तरह से कंगाल और दीवालिया समझने की भारी भूल कर दी थी.
कल प्रेस कॉन्फ्रेंस करते समय कपिल सिब्बल को पता नहीं क्यों यह याद नहीं रहा कि इसी वर्ष जनवरी में भारतीय वायुसेना की पश्चिमी कमान के पठानकोट स्थित एयरफोर्स स्टेशन पर हुए जिस आतंकी हमले में सेना और वायुसेना के सात जवान शहीद हो गए थे उस आतंकी हमले का मास्टरमाइंड सरगना जैश ए मोहम्मद का वही शाहिद लतीफ़ था जिसे यूपीए-2 की उस सरकार ने 2010 में भारत की जेल से रिहा करके पाकिस्तान भेज दिया था.जिस सरकार में खुद कपिल सिब्बल भी कैबिनेट मंत्री थे.
इस सन्दर्भ में कपिल सिब्बल भले ही स्मृतिलोप का शिकार हों किन्तु देश यह नहीं भूला है कि उनकी यूपीए-2 सरकार ने केवल शाहिद लतीफ़ को ही रिहा नहीं किया था. उसके साथ साथ 25 दुर्दांत आतंकवादियों को भी यूपीए-2 की सरकार ने रिहा करके पाकिस्तान भेज दिया था. ये सभी आतंकी लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल-मुजाहिदीन से जुड़े हुए थे.
कपिल सिब्बल को यदि याद ना हो तो उन्हें यह याद कराना भी आवश्यक है कि उनकी यूपीए-2 सरकार ने कांधार में 166 नागरिकों की प्राणरक्षा के दायित्व निर्वहन सरीखी किसी अनिवार्य अपरिहार्य विवशता के कारण शाहिद लतीफ़ समेत 25 दुर्दांत आतंकवादियों को रिहा नहीं किया था. इसके बजाय यूपीए की सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने, दोस्ती बढ़ाने की अपनी बेचैनी बेसब्री के कारण शाहिद लतीफ़ और 25 अन्य पाकिस्तानी हत्यारे आतंकियों पर यह देशघाती सरकारी मेहरबानी की थी.
शाहिद लतीफ़ समेत लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल-मुजाहिदीन से जुड़े हुए उन 25 दुर्दांत आतंकियों पर यूपीए-2 सरकार द्वारा की गयी उनकी रिहाई की मेहरबानी की यह पूरी खबर इस लिंक पर जाकर आप भी पढ़ सकते हैं.

कपिल सिब्बल से देश यह भी जानना चाहता है कि कल की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर का जिक्र बार बार करते समय कपिल सिब्बल ने यह क्यों नहीं बताया कि, "आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर कभी कांग्रेस का दायां हाथ हुआ करता था." कपिल सिब्बल को यदि ज्ञात नहीं हो तो यह जान लें कि यह खबर 1 मई 2012 को हिंदी के सबसे बड़े अख़बार दैनिक भास्कर ने अत्यंत विस्तृत रूप में छापी थी. जम्मू कश्मीर पुलिस और ख़ुफ़िया सरकारी रिपोर्टों के दस्तावेजों में दर्ज सूचनाओं के आधार पर अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट-क्लार्क की दस्तावेज़ी रिपोर्ट वाली यह खबर बहुत विस्तार से बताती है कि कांग्रेस पार्टी का कितना करीबी और विश्वसनीय था पाकिस्तानी आतंकवादी सरगना मौलाना मसूद अजहर. कांग्रेस द्वारा उसको सौंपे गए कामों को अंजाम देने के लिए वह दूसरों की ही नहीं खुद अपनी जान पर भी खेल जाता था.
यहाँ यह उल्लेख आवश्यक है कि इस खबर में जिस आतंकी सरगना मौलाना मसूद अजहर का जिक्र है वो कोई और नहीं बल्कि वही मौलाना मसूद अजहर है जिसका नाम ले लेकर कपिल सिब्बल कल अपनी पत्रकार वार्ता में भाजपा पर आगबबूला होने के अपने सियासी पाखण्ड का प्रदर्शन जोरशोर से करते हुए दिखाई दिए थे.
कपिल सिब्बल की कल की बातों में कितना दम था.? इसका जवाब आज से साढ़े 4 साल पहले छपी यह खबर स्वयम दे देती है.

यह पूरी खबर आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं.
( http://www.bhaskar.com/news/NAT-congress-had-hand-with-maulana-masood-azhar-3195836.html )





Friday, October 7, 2016

कांग्रेसी औलादों,दामादों और सालों की जान को उन 166 निर्दोष नागरिकों के प्राणों से ज्यादा कीमती क्यों मानती है कांग्रेस.?

कांग्रेस से देश जानना चाहता है कि, कांग्रेसी नेताओं की औलादों,दामादों और सालों को बचाने के लिए दर्ज़नों आतंकवादी क्यों छोड़े गए थे...???प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवानों के खून की दलाली करनेवाला दलाल कहनेवाले राहुल गाँधी का वकील बनकर राहुल गाँधी की उस उद्दंड असभ्य अराजक टिप्पणी का बचाव करने उतरे कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने आज कंधार कांड में छोड़े गए आतंकियों का राग अलापा और भाजपा पर तीखा आक्रमण किया है।
कपिल सिब्बल का कहना था कि, कांधार में जिन 3 आतंकवादियों को छोड़ा था उनमें आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का चीफ मौलाना मसूद अज़हर भी था इसलिए भाजपा जैश-ए-मोहम्मद को जन्म देने की गुनाहगार है. यदि कांधार में मसूद अज़हर को ना छोड़ा गया होता तो देश में आज आतंकवादी हमले ना हो रहे होते.

आज से पहले भी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेसी प्रवक्ताओं की फौज भी इसी तरह के आरोप कांधार में छोड़े गए तीन आतंकवादियों को लेकर लगाती रही है. अतः कपिल सिब्बल और उनके नेता राहुल गाँधी, उनकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ताओं की फौज और कांग्रेस पार्टी को देश को यह जवाब देना चाहिए कि...
कांग्रेसी नेताओं की औलादों दामादों और सालों की जान कांधार में तीन आतंकवादियों के बदले रिहा कराये गए 166 निर्दोष नागरिकों के प्राणों से ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों थी.?
कपिल सिब्बल और राहुल गाँधी समेत पूरी कांग्रेसी फौज को यदि मेरा सवाल समझ में नहीं आया हो तो उन्हें केवल पांच प्रकरण याद दिलाना चाहूँगा. हालांकि आतंकवादियों के साथ ऐसी कांग्रेसी सौदेबाजी की सूची बहुत लम्बी है लेकिन कांधार काण्ड को लेकर विधवा विलाप करनेवाली कांग्रेसी फौज को आइना दिखाने के लिए फिलहाल यह 5 प्रकरण ही पर्याप्त हैं.
पहला प्रकरण है उस ''तसद्दुक देव'' की रिहाई जो भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा वर्तमान में राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद का ''साला'' है और जिसका जनवरी 1992 में अपहरण किया गया था और उसे छुड़ाने के लिए 17 जनवरी 1992 को तीन दुर्दांत आतंकवादियों को केंद्र की तत्कालीन केंद्र सरकार ने छोड़ दिया था।

दूसरा प्रकरण है वो ''नाहिदा सोज़'' जो यूपीए सरकार के भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज़ की सुपुत्री है और जिसका अपहरण अगस्त 1991 में किया किया गया और उसे छुड़ाने के लिए तत्कालीन दुर्दांत आतंकवादी मुश्ताक़ अहमद को बिना शर्त छोड़ दिया गया था.

तीसरा प्रकरण है वो ''मुस्तफा असलम'' जो जम्मू-काश्मीर प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष गुलाम रसूल कार का दामाद था और जिसका 1992 में अपहरण किया गया था और जिसको छुड़ाने के किये 7 दुर्दांत आतंकियों को बिना शर्त छोड़ दिया गया था।

चौथा है वो नसरुल्लाह जो पूर्व जम्मू कश्मीर सरकार के पूर्व मंत्री जी एम् मीर लासजन का सुपुत्र था. जिसका 1992 में अपहरण कर लिया गया था और जिसे छुड़ाने के लिए 7 दुर्दांत आतंकवादियों को बिना शर्त छोड़ दिया गया था।
पांचवां प्रकरण है, एक सप्ताह तक हज़रत बल में दावत-ए-बिरयानी देने के बाद दर्जनों पाकिस्तानी आतंकियों को वापस पकिस्तान भाग जाने का सेफ पैसेज देने के लिए सेना को मजबूर करने वाली केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार का वह कुकर्म जिसे देश आज भी नहीं भूला है।
उल्लेखनीय है कि, ये फैसले लेने वाली कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह, रक्षा मंत्री शरद पवार और विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ही थे, गुलाम नबी आज़ाद भी संसदीय कार्य/उड्डयन मंत्री थे।

अतः कांधार में 166 निरीह-निर्दोष-निरपराध विमान यात्रियों के बदले 3 आतंकियों को छोड़ने पर आगबबूला होने का ढोंग पाखंड करने वाली कांग्रेस से देश जानना चाहता है कि, कांग्रेसी नेताओं की औलादों,दामादों और सालों को बचाने के लिए दर्ज़नों आतंकवादी क्यों छोड़े गए थे...???

कश्मीर में खून की होली खेलने वाले पाक प्रशिक्षित प्रायोजित दर्ज़नों आतंकवादियों को कब-कब और कैसे-कैसे,
किस-किस के लिए रिहा किया गया.? इसकी संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित झलक दे देती है कश्मीर के अत्यंत प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक Daily Excelsior में प्रकाशित यह रिपोर्ट जिसे इस लिंक पर जाकर पढ़ा जा सकता है..
https://groups.google.com/forum/#!topic/soc.culture.pakistan/O9yR2Tc5eQs

Thursday, October 6, 2016

अपने गिरेबान में झांक कर देखो राहुल गाँधी. खून की दलाली का सच दिख जायेगा.

राहुल गाँधी जी, 2-3 दिसम्बर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड कम्पनी में हुए जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव ने भोपाल के 3787 निर्दोष नागरिकों को कुछ घण्टों में ही मौत के घाट उतार दिया था. और लगभग 3 लाख नागरिकों को बुरी तरह घायल किया था. आज आपको देश को यह बताना चाहिए कि भोपाल गैस का शिकार बने नीर्दोष नागरिकों के खून, उनकी लाशों की दलाली करनेवाला दलाल कौन था. उसने यह दलाली किस लालच में, किसके कहने पर क्यों की थी.?

राहुल गाँधी जी आज आपको इस सवाल का जवाब देश को इसलिए देना चाहिए क्योंकि उन 3787 निर्दोष नागरिकों की मौत का जिम्मीदार, यूनियन कार्बाइड का चेयरमैन वॉरेन एंडरसन 7 दिसम्बर को भोपाल से भागकर दिल्ली पहुंच गया था और वहां से अमेरिका भाग गया था, जहां से वो कभी वापस नहीं आया. उस समय मप्र के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बहुत साफ शब्दों में स्पष्ट किया है कि एंडरसन को भगाने का कार्य उन राजीव गाँधी के कहने पर किया गया था जो उस समय देश के प्रधानमंत्री और आपके पिता भी थे

राहुल गाँधी जी आप शायद भूल गए हो लेकिन देश नहीं भूला है 30 नवम्बर 2008 की रात.
उस रात दिल्ली में छतरपुर से आगे राधेमोहन चौक के रईसजादों की रंगीन रातों के पंचतारा अड्डे की पहचान वाले एक शानदार फार्महाउस में आपके दोस्त समीर शर्मा की शादी से पहले की रस्म "संगीत" का जश्न मनाया जा रहा था. उस जश्न में जिस समय आप मध्यरात्रि से लेकर सवेरे 5 बजे तक नाचगाने और बेहतरीन खाने-"पीने" का जमकर लुत्फ़ ले रहे थे उस समय 26 नवम्बर से 28 नवम्बर तक मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा खेली गयी खून की होली में शहीद सेना के दो कमांडों और मुम्बई पुलिस के 15 जवानों समेत मारे गए 138 हिंदुस्तानियों तथा 28 विदेशी नागरिकों में से 90% की लाशों का अंतिम संस्कार भी सम्पन्न नहीं हो पाया था. अपने माता पिता की इकलौती सन्तान, सेना के शहीद कमांडों मेजर सन्दीप उन्नीकृष्णन तथा उनके दूसरे शहीद साथी कमांडों हवलदार गजेन्द्र सिंह समेत मुम्बई पुलिस के 15 शहीद जवानों के माता पिता की आँख के आंसू भी तब तक नहीं रुके थे. देश सम्भावित युद्ध की भयानक आशंका में डूबा हुआ था.
ऐसे समय में देश के सत्ताधारी दल का भावी कर्ताधर्ता, उसका युवा सांसद जब दिल्ली के एक पंचतारा फार्महाउस में सारी रात नाच गा रहा था, मौज मस्ती में डूबा हुआ था तब सारा देश और विशेषकर उस मुम्बई हमले में शहीद सेना और पुलिस के जवानों की आत्माएं इस सवाल का जवाब अवश्य खोज रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी,यह पहला ऐसा एकमात्र उदाहरण या अपवाद नहीं था जब देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी विवश हो गए थे.
राहुल गाँधी जी, आपको शायद याद नहीं हो किन्तु यह देश आज भी नहीं भूला है और शायद कभी भूलेगा भी नहीं कि, 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में हुए 7 श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों ने 209 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 714 लोगों को घायल कर मरणासन्न अवस्था में पहुंचा दिया था. उनमें से कई लोग अपने हाथ पैर और ऑंखें खोकर जीवन भर के लिए विकलांग हो गए थे. उन श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों की जांच करने वाली देश और मुम्बई पुलिस की जाँच एजेंसियों की गहन-सघन जाँच के बाद यह सच देश के सामने आया था कि उन विस्फोटों को आतंकी संगठन सिमी ने अंजाम दिया है.
राहुल गाँधी जी, आप शायद भूल गए हैं इसलिए याद दिला दूं कि 11 जुलाई 2006 को आतंकी संगठन सिमी ने जब 209 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारा था उससे ठीक 5 दिन पहले 6 जुलाई 2006 को उत्तरप्रदेश कांग्रेस का तत्कालीन अध्यक्ष सलमान खुर्शीद सुप्रीमकोर्ट में उसी आतंकी संगठन सिमी का वकील बनकर सिमी पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने की मांग सुप्रीमकोर्ट से यह दलील देकर कर रहा था कि सिमी एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है और आतंकवाद से उसका कोई लेनादेना नहीं है.
राहुल गाँधी जी संभवतः आपकी समझ में यह नहीं आया हो किन्तु देश भलीभांति यह समझता है कि, सलमान खुर्शीद जिस समय 6 जुलाई को सुप्रीमकोर्ट में आतंकी संगठन सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध करने की कोशिश कर रहा था उस समय आतंकी संगठन सिमी 11 जुलाई को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के अपने आतंकी षड्यन्त्र को अंतिम रूप दे रहा था. क्योंकि इतनी बड़ी आतंकी घटना को कुछ घण्टों या दिनों की तैयारी कर के अंजाम नहीं दिया जा सकता. आतंकी संगठन महीनों की तैयारी के बाद ही इतनी बड़ी साज़िश को अंजाम दे पाते हैं. वैसे भी मुम्बई के श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट सिमी द्वारा की गयी कोई पहली आतंकी वारदात नहीं थी. उससे पहले आतंकी संगठन सिमी दर्ज़नों आतंकी वारदातों में सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार चुका था.
राहुल गाँधी जी लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. सुप्रीम कोर्ट में सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध कर उसपर से प्रतिबन्ध हटाने की कोशिश करनेवाले सलमान खुर्शीद को आप और आपकी पार्टी ने उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नहीं हटाया था. ऐसा करने के बजाय आप और आपकी पार्टी ने 2009 में बनी यूपीए सरकार में सलमान खुर्शीद को जब कानून मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया था तब यह देश और आतंकी संगठन सिमी का शिकार बने सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माएं यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, आपको यह भी याद दिलाना जरूरी है कि देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी उस समय भी विवश हो गए थे.जब देश की राजधानी दिल्ली में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने 13 सितम्बर 2008 को श्रृंखलाबद्ध विस्फोट कर 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 90 लोगों को घायल कर दिया था. उन आतंकवादियों को पकड़ने के लिए 19 सितम्बर को दिल्ली के बाटला हाऊस पहुंची दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा उन आतंकववादियों की गोली का शिकार होकर शहीद हो गए थे.
राहुल गाँधी जी यह देश भूला नहीं है कि उस बाटला हाऊस मुठभेड़ के तत्काल बाद आपकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाटला हाऊस पहुँच कर उन आतंकियों के साथ हुई दिल्ली पुलिस की मुठभेड़ को फ़र्ज़ी तथा 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों के हत्यारे इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित कर दिया था.
उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित करनेवाले दिग्विजय सिंह का नाम अकेला ऐसा नाम नहीं था. आपकी यूपीए की सरकार के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने स्वयम मंच से एलान कर के देश को यह बताया था कि इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों की मौत पर आपकी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी जो संयोग से आपकी मां भी हैं, फूट फूटकर रोयी थीं.
राहुल गाँधी जी आपकी समझ में भले ही ना आया हो लेकिन इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए शहीद इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा तथा दिल्ली के 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माओं के साथ ही साथ इस देश की जनता भी यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, जब अपनी स्पेनिश गर्लफ्रेंड के साथ लन्दन के बर्मिंघम क्रिकेट स्टेडियम में क्रिकेट विश्वकप का लुत्फ़ उठाते हुए आपकी तस्वीरें और खबरें देश तथा दुनिया के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में छपी थीं उस समय देश की सेना के जवान कारगिल युद्ध में अपने खून की गंगा बहाकर पाकिस्तानी दुश्मनों का मुक़ाबला कर रहे थे.
ऐसे समय में उस समय की देश की सबसे बड़ी और मुख्य विपक्षी पार्टी के निर्विवाद इकलौते वारिस के लन्दन के क्रिकेट ग्राउंड में गुलछर्रे उड़ाते चित्रों और समाचारों को देखने पढ़ने के बाद कारगिल में शहीद हुए सैकड़ों जवानों की आत्माओं के साथ ही साथ देश भी यह सोचने के लिए विवश हो गया था कि हमारे "खून की दलाली" करनेवाले हमारे खून के दलाल कौन हैं.?

Sunday, October 2, 2016

नरेंद्र मोदी ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया है.

केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं..
विगत 2 वर्षों में कुल 135 दिनों में सम्पन्न 27 विदेश यात्राओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व के 48 देशों के साथ निर्मित किये गए नवीन राजनीतिक कूटनीतिक आर्थिक और सामरिक सेतुओं के सुपरिणामों का सर्वश्रेष्ठ परिणाम बीती 29 दिसम्बर के बाद भारत के साथ-साथ समस्त विश्व देख रहा है.
भारत-पाक सम्बन्धों के 70 वर्ष लम्बे इतिहास में यह पहला अवसर है जब पाकिस्तान के साथ हुई भारत की तीखी सैन्य झड़प के पश्चात् विश्व के अधिकांश देशों ने भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर की गयी सैन्य कार्रवाई (सर्जिकल स्ट्राइक) के विरोध में दुनिया का एक भी देश एक शब्द नहीं बोला है. इसके विपरीत इनमें से अधिकांश देशों ने भारतीय सैन्य कार्रवाई का खुलकर समर्थन किया है और आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध और और संरक्षण की पाकिस्तानी रीति-नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कठघरे में खड़ा किया है.
उल्लेखनीय यह है कि इन देशों में पाकिस्तान के पड़ोसी ईरानऔर अफगानिस्तान समेत दुनिया के वो 52 इस्लामिक देश भी शामिल हैं जो इससे पूर्व के 70 वर्ष लम्बे अतीत में भारत के साथ पाकिस्तान के सैन्य संघर्ष/तनाव के प्रत्येक अवसरों पर सदा पाकिस्तान के पक्ष और पाले में खड़े दिखाई देते थे.
1948 में कश्मीर में हुई पाकिस्तानी सैन्य घुसपैठ हो, 1965 का युद्ध हो, 1971 का युद्ध हो या कारगिल का युद्ध. इनप्रत्येक अवसरों पर पाकिस्तान अपने पक्ष में इन 52 इस्लामी मुल्कों के साथ ही साथ अमरीकी और यूरोपीय गुटों के महत्वपूर्ण देशों का समर्थन जुटाने में हमेशा सफल होता था. किन्तु इस बार बाज़ी पलटी हुई नज़र आ रही है. दुनिया में केवल चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसके समर्थन का दावा पाकिस्तान तो कर रहा है किन्तु भारतीय सैनिकों द्वारा पाकिस्तानी सीमा में घुसकर की गयी कार्रवाई के विरोध या पाकिस्तान के समर्थन में बोलने से चीन ने भी परहेज ही किया है और स्वयम को इस विवाद से दूर दिखाने की ही कोशिश की है.
इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम ही कहा जाएगा कि पाकिस्तान के पक्ष में दुनिया का एक भी देश नहीं बोला है. पाकिस्तान के जन्म के पश्चात् यह पहला अवसर है जब वैश्विक मंच पर पाकिस्तान पूरी तरह उपेक्षित असहाय और अकेला दिखाई दे रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शतरंज पर सतर्कता पूर्वक चली गयी सधी हुई मारक चालों की पहली झलक 28-29 सितम्बर की रात भारतीय सेना द्वारा सीमा पार कर की गयी सैन्य कार्रवाई से लगभग 50 घण्टे पहले तब ही मिल गए थे जब 26 सितम्बर की शाम न्यूयॉर्क में भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा संयुक्त राष्ट्र के उसी मंच से लगभग 20 मिनटबोलीं और उनके भाषण के दौरान वह सभागार लगभग आधा दर्जन बार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा. जिस मंच से 5 दिन पूर्व 21 सितम्बर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़शरीफ के भाषण के दौरान जो सभागार 99% खाली दिखा था.
भारत के खिलाफ पाकिस्तान के मिथ्या और विषाक्त विधवा विलाप को सुनने में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने अपनी कोई रूचि नहीं दर्शायी थी जबकि भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा प्रस्तुत किये गए भारतीय दृष्टिकोण तथा उनकेद्वारा उजागर की गयी पाकिस्तान की करतूतों का उन्हीं सदस्य देशों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया था.
उड़ी हमले के पश्चात् प्रारम्भ हुई भारत-पाकिस्तान की कूटनीतिक जंग में यह पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय का प्रथम चरण था.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गयी पाकिस्तान की इस कठोर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक घेरेबन्दी का ही परिणाम था कि भारत द्वारा सीमापार पीओके में आतंकी कैंपों पर की गयी सैन्य कार्रवाई के तत्काल बाद ही अमेरिका ने पाकिस्तान को ही आड़े हाथों लिया और व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने अपने बयान में आतंक के खिलाफ भारत के पक्ष में अमेरिका का पूर्ण समर्थन जताते हुए पाकिस्तान को सार्वजनिक तौर पर लताड़ लगाई थी। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉश अर्नेस्ट ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग में पाकिस्तान को लताड़ लगाते हुए पाक में मौजूद आतंकी ठिकानों को नष्ट करने और आतंकियों पर नकेल कसने की भी बात कही थी. अमेरिका ने पाकिस्तान से मांग की है कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के साथ-साथ उनकी वैधता खत्म करे.
पाकिस्तान को अमेरिका की इस चेतावनीनुमा सलाह के साथ ही साथ अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने यह कहकर कि, "भारत और अमेरिका के मौजूदा सैन्य संबंध अब तक के सबसे ज्यादा करीबी संबंध हैं। दोनों देश पहली बार जल, थल एवं वायु में एक साथ सैन्य अभ्यास कर रहे हैं",  पाकिस्तान को यह संकेत भी दे दिया कि पाकिस्तान के साथ भारत के निर्णायक सैन्य टकराव में अमेरिका की भूमिका क्या और किसके पक्ष में होगी.  
पाकिस्तान को भारत के हाथों मिली यह प्रचण्ड कूटनीतिक पराजय उसके लिए भारी आघात है.
क्योंकि पिछले 68 वर्षों से पाकिस्तान की हर करतूत को अनदेखा कर उसके हर संकट में संकटमोचक बनता रहा अमेरिका उसके प्रबल शत्रु भारत के पक्ष में इस प्रकार खुलकर खड़ा हो जायेगा, इसकी कल्पना भी पाकिस्तान ने आज से दो वर्ष पूर्व नहीं की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अद्वितीय कूटनीतिक सूझबूझ और सफलता का श्रेष्ठतम प्रमाण यह भी है कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि उसका चिर प्रतिद्वंदी और शत्रु रूस भी भारत द्वारा पाकिस्तानी सीमा के भीतर घुसकर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन खुलकर कर रहा है. 
पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर आतंकवादियों के ठिकाने तबाह करने की भारतीय सेना की कार्रवाई का रूस ने खुलकर समर्थन किया है. भारत में रूस के राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने कहा है कि उड़ी हमले के तत्काल बाद सिर्फ उनका देश रूस ही था जिसने सीधे शब्दों में कहा था कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे. राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनका देश भारत द्वारा पाकिस्तान में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का स्वागत करता है क्योंकि हर देश को अपनी हिफाजत करने का पूरा अधिकार है.
कदाकिन ने यह भी कहा है कि 'सीमापार आतंकवाद से मुकाबले में उनका देश हमेशा ही भारत के साथ रहा है. पाकिस्तान पर सीधे तौर पर आतंकवादियों को संरक्षण और समर्थन देने के भारत के आरोप का खुला समर्थन भी रूस के विदेश मंत्रालय ये कह कर किया है कि हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान सरकार अपने देश की जमीन पर आतंकवादी ग्रुपों की गतिविधियां रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएगी.
केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं.
यह केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अद्भुत कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम है.
पाकिस्तान की इस स्थिति ने भारत में नरेन्द्र मोदी के उनविरोधियों की नीति और नीयत को भी संगीन सवालों केकठघरे में खड़ा कर दिया है जो पिछले 2 वर्षों से अपने क्षुद्रराजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीकी विदेश यात्राओं का फूहड़ राजनीतिक उपहास उड़ाते रहे हैं