पिछले कुछ महीनों से राहुल गांधी ने रिलायंस को 30 हज़ार करोड़ का ठेका देने का राग बार बार लगातार अलापा। लेकिन जब राफेल विमान बनाने वाली कम्पनी दसां के CEO द्वारा दस्तावेज़ दिखाते हुए स्पष्ट कहा गया कि राफेल के ऑफसेट के ठेके (30 हज़ार करोड़ रुपए) के एक हिस्से (850 करोड़) की 50% साझेदारी (425 करोड़ रुपये) रिलायंस को दी गयी है। तो राहुल गांधी ने फतवा जारी कर दिया कि दसां का CEO झूठ बोल रहा है। हालांकि अपने इस फतवे के पक्ष या समर्थन में राहुल गांधी ने आजतक एक छोटा सा भी सबूत या तथ्य देश के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है।
अपने उपरोक्त फतवे के समर्थन में राहुल गांधी की सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि रिलायंस को जब अनुभव ही नहीं था तो दसां ने उसको ठेका क्यों दिया.? अपने इस प्रश्न को आधार बनाकर राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगातार आरोप जड़ा है कि रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी ने दसां पर दबाव डालकर रिलायंस को ठेका दिलवाया है।
लेकिन अनुभव की कसौटी पर रिलायंस को खोटा सिद्ध करने की राहुल गांधी की कोशिश ने खुद राहुल गांधी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। क्योंकि इस कसौटी के अनुसार राहुल गांधी से देश यह जानना चाहता है कि देश के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर रहे राहुल गांधी को किसी प्रादेशिक सरकार चलाने का भी अनुभव नहीं है। राहुल गांधी ने एक दिन के लिए भी केंद्र सरकार के किसी मंत्रालय के मंत्रिपद तक की जिम्मेदारी कभी नहीं सम्भाली है। रिलायंस के अनुभव को लेकर सवाल उठा रहे राहुल गांधी तथा राहुल गांधी के चाटुकारों को यह याद दिलाना जरूरी है कि कांग्रेस में एक दर्जन से अधिक ऐसे नेता हैं जिन्हें सरकार चलाने का लम्बा अनुभव है और वो राहुल गांधी से कई गुना अधिक अनुभवी भी हैं, परिपक्व भी हैं। अतः कांग्रेस ऐसे अनुभवी परिपक्व नेताओं को हाशिये पर डालकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री क्यों बनाना चाहती है।
राहुल गांधी की ही कसौटी के अनुसार... कांग्रेस की ऐसी कोशिशों को देश के लोकतांत्रिक/राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा और शर्मनाक घोटाला क्यों नहीं माना जाए.?
सिर्फ प्रधानमंत्री पद पर ही नहीं बल्कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी की नियुक्ति भी उन अनुभवी कांग्रेस नेताओं की शर्मनाक उपेक्षा/अनदेखी कर के ही की गयी।
राहुल गांधी तथा राहुल गांधी के चाटुकारों को अगर याद नहीं हो तो वो याद करें इन वर्तमान कांग्रेसी दिग्गजों को जो राहुल गांधी से कई गुना अधिक अनुभवी एवं परिपक्व हैं।
यह हैं ऐसे कुछ नाम...
गुलाम नबी आजाद 15 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री 3 साल राज्यमंत्री। 38 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
एके एंटोनी 6 साल केरल के मुख्यमंत्री, 9 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 20 साल लम्बे विधायी तथा 10 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
अशोक गहलोत 10 साल मुख्यमंत्री, 6 साल कैबिनेट मंत्री। 19 साल विधायी व 17 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
पी चिदंबरम 12 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री 33 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
वीरप्पा मोइली 20 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री 38 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
कमलनाथ 20 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 38 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
सलमान खुर्शीद 15 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 15 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
व्यालार रवि 08 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 38 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
जीके वासन 9 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 12 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
श्रीप्रकाश जायसवाल 10 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 15 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
आनन्द शर्मा 10 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 30के साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
कपिल सिब्बल 10 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 20 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
जयराम रमेश 5 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 12 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
सुशील शिंदे 1 साल मुख्यमंत्री व 9 साल केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री। 20 साल लम्बे विधायी व 12 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
भूपेंद्र हुड्डा 10 साल मुख्यमंत्री। 14 साल लम्बे विधायी तथा 12 साल लम्बे संसदीय जीवन का अनुभव।
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