Monday, May 16, 2016

शराब बंदी के बहाने : कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना...

नितीश कुमार, 1990 में वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बने फिर 1998 से 2004 तक लगातार 6 साल अटल जी की सरकार में मंत्री रहे. 2005 से 2014 तक लगातार 9 साल बिहार के मुख्य्मंत्री रहे. इन 24 वर्षो की समयावधि में दर्ज़नों ऐसे अवसर आये जब नितीश कुमार शराब बंदी लागू करने की मांग और फैसला कर सकते थे. लेकिन ऐसा कुछ करना तो दूर, केंद्रीय मंत्री या फिर बिहार का मुख्य्मंत्री रहते हुए नितीश कुमार ने कभी शराब बंदी का जिक्र तक नहीं किया.
क्या आज से पहले शराब पीकर बिहार में लोग भजन आदि गाया करते थे, पूजापाठ दान पुण्य आदि किया करते थे.?
अतः क्या कारण है कि 1977 में शुरू हुई राजनीतिक यात्रा के 40 साल गुजर जाने के बाद 65 वर्ष की आयु पार करके नितीश कुमार को यह दिव्य ज्ञान हुआ कि शराब बंदी लागू होनी चाहिए वो भी सिर्फ बिहार में नहीं बल्कि पूरे देश में.
इस मुहीम के पीछे नितीश कुमार की समाज सुधार की क्या कैसी और कितनी सोच है?
इस शर्मनाक सच को आजकल बिहार में बेख़ौफ़ हो रहा दुर्दांत अपराधियों का खौफनाक खूनी तांडव बुरी तरह उजागर कर रहा है. अतः शराब बंदी के नितीश कुमार के सियासी राग की जड़ जानने से पहले यह जानना भी आवश्यक है कि दुनिया में कोई ऐसा विकसित या विकासशील देश नहीं है जहां शराब बंदी लागू हो. इसका अपवाद केवल वो कट्टरपंथी धर्मांध इस्लामिक देश मात्र हैं जो कुरान के कानून के अनुसार संचालित होते है और शरीयत को ही अपने देश का संविधान मानते हैं.
नितीश कुमार ने मुस्लिम वोट बैंक की तुष्टिकरण नीति के तहत ही पूरे देश में शराब बंदी का ढोल पीटना शुरू किया है क्योंकि बिहार चुनाव में धर्मांध मुस्लिम वोट बैंक ने लामबंद होकर भाजपा के विरुद्ध और नितीश कुमार के सियासी भानुमति के कुनबे को अपना जबरदस्त समर्थन और मत दिया था.
परिणाम स्वरुप नितीश कुमार ने धुर साम्प्रदायिक आधार पर भारत में कुरान के कानून के अनुसार शराब बंदी का राग अलापना शुरू कर दिया है. 2019 तक नितीश का यह राग कट्टरपंथी धर्मांध मुल्लों के लिए उनके उस सपने की पूर्ति की दिशा में पहला और महत्वपूर्ण निर्णायक कदम बन जायेगा जिसके तहत वो भारत को कुरान के अनुसार इस्लामिक कानून से संचालित होने वाले इस्लामिक मुल्क में परिवर्तित करने का अरमान पाले हुए हैं.
मैं यह बात यूँ ही नहीं कह रहा हूँ. एक आंकड़ा बताता हूँ आपको.
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार देश में शराब के कारण प्रति वर्ष होनेवाली मौतों की संख्या डेढ़ लाख के करीब है जबकि तम्बाकू के कारण होनेवाली मौतों की संख्या दस लाख से अधिक है.
इस दस लाख मौतों के आंकड़े में बिहार हमेशा शीर्ष पर रहता है. लेकिन नितीश कुमार ने तम्बाकू के खिलाफ एक शब्द आज तक नहीं बोला, प्रतिबंध लगाना तो दूर है.
मित्रों सिर्फ तम्बाकू ही नहीं, चिकित्सा विज्ञान के अनुसार जिस गौमांस के खाने से अल्ज़ाइमर हृदयरोग कोलोन कैंसर सरीखे प्राणघातक रोग होते हैं, उस गौमांस पर प्रतिबन्ध की नीति का नितीश कुमार इसलिए जमकर विरोध करते हैं क्योंकि मुस्लिम समुदाय गौमांस खाने का समर्थक है.
ऐसा इसलिए क्योंकि तम्बाकू पर प्रतिबन्ध की सरकारी घोषणा से मुस्लिम वोट बैंक के ठेकेदार, भारत को इस्लामिक मुल्क बनाने को बेचैन कट्टर धर्मांध मुल्लों का कोई तुष्टिकरण नहीं होगा.
अंत में यह उल्लेख आवश्यक है की देश में गुजरात मात्र ऐसा प्रदेश है जहां दशकों पहले मोरारजी देसाई ने शराब बंदी लागू की थी और महात्मा गांधी का गृह प्रदेश होने के कारण शराब बंदी वहा से हटाई नहीं गयी जबकि नरेंद्र मोदी सरीखे सख्त मुख्य्मंत्री के रहते हुए भी शराब बंदी वहाँ कभी सफल नहीं हो सकी और प्रतीकात्मक ही रही. शराब वहाँ हमेशा सहज सुलभ रही है.

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