Wednesday, June 15, 2016

उड़ता पंजाब और कुतुबमीनार पर बना प्रेम संगीत...



आज के दौर की चिकनी चमेली, शीला की जवानी, मुन्नी बदनाम और बीड़ी जलइले... की कंगारुओं सरीखी उछलती कूदती 90% नग्न देह वाली नायिकाओं पर हिमालय की तरह भारी पड़ती हैं नूतन की सादगी से सजी शरारती शोख मुस्कुराती निगाहें. जो किसी भी कोण से ना तो कृत्रिम दिखती हैं ना अप्राकृतिक.
दिल्ली की क़ुतुब मीनार के भीतर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं जो आपको ऊपर की मंज़िलों तक ले जाती हैं. लेकिन दशकों पहले कुतुबमीनार के भीतर प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था. अतः नयी पीढ़ी का सामना उन सीढ़ियों से नहीं हुआ होगा. संयोग से किशोरावस्था में मैंने उन सीढ़ियों को देखा भी है उन पर चढ़ा भी हूँ.
कुतुबमीनार को देखकर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि वो सीढियाँ कितने संकरे स्थान में बनी होंगी. उन संकरी सीढ़ियों पर आज से लगभग 54-55 साल पहले एक रोमांटिक फ़िल्मी गीत की शूटिंग हुई थी. 54-55 साल पहले के अत्यन्त सीमित तकनीकी क्षमता वाले भारी भरकम कैमरों और लाइट उपकरणों के सहारे कुतुबमीनार की उन्हीं संकरी अँधेरी सीढ़ियों पर निर्देशक विजय आनंद और कैमरामैन वी रतरा ने जो गीत शूट किया था उसे देव आनंद और नूतन ने अपने अभिनय से यादगार बना दिया था.
संकरी अँधेरी सीढ़ियों पर भारीभरकम कैमरा, लाइट्स और यूनिट के लोगों की भीड़ के बीच बचे सीमित स्थान पर नूतन और देव आनंद ने अपने अभिनय की तूलिका से प्रेम की अभिव्यक्ति का जो इंद्रधनुषी चित्र सिनेमा के परदे पर उकेरा था वो आज भी मंत्रमुग्ध कर देता है. तनमन को मादक मोहक तरंगों से सराबोर कर देता है.
आज के दौर की चिकनी चमेली, शीला की जवानी, मुन्नी बदनाम और बीड़ी जलइले… की कंगारुओं सरीखी उछलती कूदती 90% नग्न देह वाली नायिकाओं पर हिमालय की तरह भारी पड़ती हैं नूतन की सादगी से सजी शरारती शोख मुस्कुराती निगाहें. जो किसी भी कोण से ना तो कृत्रिम दिखती हैं ना अप्राकृतिक

आज इस गीत का उल्लेख इसलिए क्योंकि अभी अभी खबर देखी कि सुप्रीमकोर्ट ने “उड़ता पंजाब” के निर्माता निर्देशकों से जब पूछा कि उनकी फिल्म में इतनी भद्दी भद्दी अश्लील गालियां क्यों हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि, दरअसल वो वास्तविकता “रियल्टी” दर्शाना चाहते है. इसलिए….मित्रों मेरा मानना है कि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या वास्तविकता किसी नंगई, गाली गलौज की मोहताज़ नहीं होती. बहुत सीमित साधनों और विषम परिस्थितयों में भी अपनी बात सर्वश्रेष्ठ शैली में कही जा सकती है. बस शर्त यह है कि बात कहने वाले विजय आनंद,वी रतरा, नूतन और देव आनंद सरीखे “जीनियस” होने चाहिए, ना कि अनुराग कश्यप, एकता कपूर, आलिया भट्ट शहीद कपूर सरीखे छिछली, थोथी सोच और क्षमता वाले सतही सस्ते लोग. जीनियस विजय आनंद की निर्देशन क्षमता और नूतन, देव आनंद के बेमिसाल अभिनय कौशल से सजे उपरोक्त गीत का आनंद आप भी लीजिए फिर तय करिये कि, क्या सही है, क्या गलत.

https://youtu.be/0eHgCT_IwTg





No comments:

Post a Comment