Thursday, December 1, 2016

अपने पाप का भार कम से कम गरीबों के ही माथे पर तो मत मढ़िए सरकार...

......उनसे उनकी काली कमाई का स्त्रोत पूछे जांचे बिना चोर लुटेरों भ्रष्टाचारियों भूमि-हवाला-ड्रग माफियाओं की काली कमाई में "फिफ्टी-फिफ्टी" बंदरबांट की अपनी स्कीम का जिम्मेदार जिन कारणों को बताया जा रहा है उनमे सबसे बड़ा कारण गरीबों के जनधन खातों को यह कहकर बताया जा रहा है की 8 नवम्बर के बाद उन खातों में 25 से 26 हज़ार करोड़ रूपये जमा हो गए हैं, अर्थात इन खातों के जरिये कालाधन सफ़ेद किया जा रहा है... 
इस सरकारी राग को न्यूजचैनलों ने भी भांडों की तरह चौबीसों घण्टे अलापना शुरू कर दिया था. ऐसा माहौल बना दिया गया था... मानो जनधन खाते वाले गरीब लोग केवल कालाधन को सफ़ेद करने के काम में जुटे हुए हैं.
अब समझिये और साक्षात्कार करिये इस दुष्प्रचार के शर्मनाक सच से.....
स्वयम सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही 8 नवम्बर 2016 से पहले लगभग 23℅ जनधन खातों का बैलेंस शून्य था, अर्थात यह खाते निष्क्रिय थे... इसके बाद 23 नवम्बर 2016 को जारी हुए आंकड़ों के अनुसार कुल 25.68 करोड़ जनधन खातों में से 5.89 करोड़ खातों (22.94℅)का बैलेंस शून्य ही था अर्थात यह खाते निष्क्रिय ही थे.
सरकारी दावा यह है की 8 नवम्बर के बाद जनधन खातों में लगभग 26 हज़ार करोड़ रू जमा हो गए. 
साथ ही साथ यह आरोप भी चस्पा कर दिया गया की यह रकम काले को सफ़ेद करने के लिए जमा कराई गयी...
जरा गौर करिये की यदि 19.78 करोड़ सक्रीय प्रत्येक जनधन खातेवालों ने अपने खातों में 8 नवम्बर के बाद यदि 1500 रू भी जमा कराये तो यह रकम लगभग 29.67 हज़ार करोड़ रू होती.
क्या 19.78 सक्रीय जनधन खाते वालों के पास 1000 या 500 के दस पांच नोट भी नहीं रहे होंगे.?
नहीं ऐसा नहीं है. मेरे यहां अखबार देनेवाले हॉकर द्वारा 13.5 हज़ार रू मूल्य वाले 500 के 27 नोट जमा करने की बात मैंने 11 नवम्बर को ही अपनी एक पोस्ट में लिखी थी.
जिससे सिगरेट लेता हूँ उस पानवाले ने भी अपनी बचत के 11 हज़ार रू खाते में जमा कराये. यह लोग जनधन खाता धारक ही हैं.
नोटबन्दी के कारण देश भर में इनके जैसे करोड़ों निम्न मध्यम वर्गीय व गरीब लोगों ने अपने जनधन खातों में पैसे जमा करवाये हैं. किन्तु दुष्प्रचार इस तरह किया गया मानो जनधन खातों में जमा कराई गयी 26 हज़ार करोड़ की रकम वह कालाधन है जो इन गरीबों ने कमीशन खाकर अपने खातों में जमा करवाया है.
दरअसल यह दुष्प्रचार एक सुनियोजित षड्यन्त्र था जिसके बहाने जिसकी आड़ में चोर लुटेरों भ्रष्टाचारियों भूमि-हवाला-ड्रग माफियाओं की काली कमाई में "फिफ्टी-फिफ्टी" बंदरबांट की अपनी स्कीम के पाप को जनधन खाते वाले गरीब आम आदमी के माथे मढ़ना था...
अतः गरीबों के साथ विश्वासघात के अपने पाप का भार कम से कम उन गरीबों के ही माथे पर तो मत मढ़िए सरकार...

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