भाग-2
राहुल गांधी और उनके मीडियाई चीयर लीडर्स के सफेद झूठ का स्याह सच
गुजरात चुनाव प्रचार अभियान के दौरान गुजरात और केन्द्र की सरकार समेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र के ख़िलाफ़ राहुल गांधी का दूसरा सबसे तीखा और संगीन आरोप यह था कि...
केन्द्र की मोदी सरकार ने कपास का समर्थन मूल्य कम कर दिया है जबकि यूपीए सरकार कपास का समर्थन मूल्य ज्यादा देती थी। राहुल गांधी के इस आरोप के समर्थन और प्रचार में मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग विशेष IPL की चीयर लीडर्स की तरह खुशी से चीखा और झूमा था। राहुल गांधी के इन मीडियाई चीयर लीडर्स ने राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों के बहाने राहुल गांधी को गांव गरीब किसान हितैषी नेता के रूप में प्रचारित/स्थापित करने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी थी। जबकि राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों का सच्चाई से कोई सम्बन्ध नहीं था। राहुल गांधी का आरोप वास्तविकता से कोसों दूर था।
13 दिसम्बर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने अपने उपरोक्त आरोपों के सन्दर्भ में जानकारी देते हुए बताया था कि केन्द्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार कपास का समर्थन मूल्य 1400 रू देती थी जबकि NDA सरकार आजकल केवल 800 रू देती है। यही हाल मूंगफली के समर्थन मूल्य का भी है।
13 दिसम्बर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गयी उपरोक्त जानकारी से यह स्पष्ट हो गया था कि गुजरात में तीन महीनों तक लगातार घूम घूमकर उपरोक्त आरोप लगाते रहे राहुल गांधी को कपास और मूंगफली के वर्तमान और अतीत(यूपीए शासनकाल) के समर्थन मूल्यों की कोई जानकारी ही नहीं थी। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि गुजरात मे अपने तीन महीने लम्बे प्रचार अभियान के दौरान राहुल गांधी ने कपास और मूंगफली के समर्थन मूल्य को लेकर जनता से लगातार तीन महीनों तक सरासर सफेद झूठ बोला था। 13 दिसम्बर की राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुलगांधी के साथ बैठे कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस स्थिति को भांप लिया था। अतः सुरजेवाला ने राहुलगांधी के झूठ का पर्दाफाश करती कपास और मूंगफली के समर्थन मूल्य से सम्बन्धित राहुलगांधी की शून्य जानकारी पर पर्दा डालने का प्रयास करते हुए कहा था कि UPA के शासनकाल में कपास का भाव 4 हज़ार से कम शायद कभी नहीं रहा। राहुल गांधी के बचाव में सुरजेवलवाला की इस सफाई पर राहुलगांधी ने अपना सिर हिलाकर अपनी सहमति जताई थी।
जबकि सच यह है कि रणदीप सुरजेवाला की वह सफाई भी शत प्रतिशत असत्य और झूठ का पुलिन्दा मात्र ही थी।
यूपीए और वर्तमान NDA सरकार के शासनकाल के दौरान कपास और मूंगफली के समर्थन मूल्यों की सच्चाई राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों तथा सुरजेवाला की सफाई की धज्जियां उड़ा देती है।
यूपीए शासनकाल में मध्यम रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 2012-13 में 3600 रू प्रति क्विंटल था और
लम्बे रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 3900 रु प्रति क्विंटल था।
यूपीए सरकार के शासनकाल के अंतिम वित्तीय वर्ष 2013-14 में कपास के समर्थन मूल्य में 100 प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी और 2013-14 में मध्यम रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 3700 रु प्रति क्विंटल तथा लम्बे रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 3900 रु प्रति क्विंटल था।
जबकि केन्द्र में मोदी सरकार बनने के पश्चात मध्यम रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 2014-15 में 3750 रु प्रति क्विंटल 2015-16 में 3800 रु प्रति क्विंटल
2016-17 में 3860 रु प्रति क्विंटल था तथा
2017-18 में 4020 रु प्रति क्विंटल है।
इसी प्रकार केन्द्र में मोदी सरकार बनने के पश्चात लम्बे रेशे वाली कपास का समर्थन मूल्य 2014-15 में 4050 रु प्रति क्विंटल 2015-16 में 4100 रु प्रति क्विंटल
2016-17 में 4160 रु प्रति क्विंटल था तथा
2017-18 में 4320 रु प्रति क्विंटल है।
यूपीए और NDA शासनकाल के दौरान कपास के समर्थन मूल्यों की उपरोक्त सूची राहुल गांधी के आरोप की धज्जियां उड़ा रही है कि केन्द्र की सरकार ने कपास का समर्थन मूल्य कम कर दिया है जबकि यूपीए सरकार कपास का समर्थन मूल्य ज्यादा देती थी।
कपास के समर्थन मूल्यों की उपरोक्त सूची उस शर्मनाक सच्चाई को भी उजागर कर रही है कि 13 दिसम्बर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कपास का मूल्य 1400 और 800 रु प्रति क्विंटल बताकर राहुल गांधी ने यह साफ कर दिया था कि कपास के मूल्यों की कोई जानकारी ही राहुल गांधी को नहीं थी। इस सन्दर्भ में राहुल गांधी की शून्य जानकारी की यह स्थिति इसलिए अत्यन्त गम्भीर और महत्वपूर्ण है क्योंकि तीन महीनों तक गुजरात में इसी मुद्दे पर अपना चुनाव अभियान चलाने के तत्काल पश्चात ही आयोजित 13 दिसम्बर की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कपास का मूल्य 1400 और 800 रु प्रति क्विंटल बताया था।
क्या उपरोक्त तथ्य यह स्पष्ट नहीं कर रहे कि तीन महीनों तक गुजरात में कपास के समर्थन मूल्य से सम्बंधित सरासर सफेद झूठ बोलकर गुजरात और देश की जनता की आंखों में धूल झोंकते रहे राहुल गांधी की किसानों विशेषकर गुजरात के किसानों की समस्याओं में रुचि उनके प्रति सहानुभूति केवल एक चुनावी पाखण्ड और शातिर चुनावी हथकंडा मात्र थी।
लेकिन राहुल गांधी के मीडियाई चीयर लीडर्स सरीखे मीडिया ने गुजरात और देश की जनता लगातार तीन महीनों तक बोले गए उस झूठ को ना तो उजागर किया ना ही राहुल गांधी से इस सन्दर्भ में कोई सवाल ही पूछा। इसके बजाय राहुल गांधी के उपरोक्त आरोपों के बहाने राहुल गांधी के मीडियाई चीयरलीडर्स ने राहुल गांधी को गांव गरीब किसान हितैषी नेता के रूप में प्रचारित/स्थापित करने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी।
इस लेख की अगली कड़ियों में पढ़िए राहुल गांधी के किसान प्रेम तथा गुजरात में खेले गए सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक झूठ फ़रेब मक्कारी के शर्मनाक सियासी खेल के तथ्यात्मक उदाहरण राहुल गांधी और उनके मीडियाई चीयर लीडर्स की कुटिलकथा के अन्य प्रसंग
#क्रमश:
भाग-1 इस लिंक पर जाकर पढ़िए
http://jansadan.blogspot.in/2017/12/blog-post_20.html?m=1
Friday, December 22, 2017
Part-2 लोकतन्त्र के चौथे ख़म्भे को खोखला कर रहीं दीमकों को पहचानिए
ख़बरों की दुनिया की तंग पगडंडियों, संकरे अँधेरे रास्तों तथा चकाचौंध राजमार्गों से साक्षात्कार करती सक्रिय पत्रकारिता की लगभग ढाई दशक लम्बी यात्रा के पश्चात् अब स्वतन्त्र लेखन के पड़ाव पर हूं.
राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वाली मेरी लेखनी का एकमात्र उद्देश्य "जनहित की बात, राष्ट्रहित के साथ" करना है.
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