Friday, October 7, 2016

कांग्रेसी औलादों,दामादों और सालों की जान को उन 166 निर्दोष नागरिकों के प्राणों से ज्यादा कीमती क्यों मानती है कांग्रेस.?

कांग्रेस से देश जानना चाहता है कि, कांग्रेसी नेताओं की औलादों,दामादों और सालों को बचाने के लिए दर्ज़नों आतंकवादी क्यों छोड़े गए थे...???प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवानों के खून की दलाली करनेवाला दलाल कहनेवाले राहुल गाँधी का वकील बनकर राहुल गाँधी की उस उद्दंड असभ्य अराजक टिप्पणी का बचाव करने उतरे कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने आज कंधार कांड में छोड़े गए आतंकियों का राग अलापा और भाजपा पर तीखा आक्रमण किया है।
कपिल सिब्बल का कहना था कि, कांधार में जिन 3 आतंकवादियों को छोड़ा था उनमें आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का चीफ मौलाना मसूद अज़हर भी था इसलिए भाजपा जैश-ए-मोहम्मद को जन्म देने की गुनाहगार है. यदि कांधार में मसूद अज़हर को ना छोड़ा गया होता तो देश में आज आतंकवादी हमले ना हो रहे होते.

आज से पहले भी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेसी प्रवक्ताओं की फौज भी इसी तरह के आरोप कांधार में छोड़े गए तीन आतंकवादियों को लेकर लगाती रही है. अतः कपिल सिब्बल और उनके नेता राहुल गाँधी, उनकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ताओं की फौज और कांग्रेस पार्टी को देश को यह जवाब देना चाहिए कि...
कांग्रेसी नेताओं की औलादों दामादों और सालों की जान कांधार में तीन आतंकवादियों के बदले रिहा कराये गए 166 निर्दोष नागरिकों के प्राणों से ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों थी.?
कपिल सिब्बल और राहुल गाँधी समेत पूरी कांग्रेसी फौज को यदि मेरा सवाल समझ में नहीं आया हो तो उन्हें केवल पांच प्रकरण याद दिलाना चाहूँगा. हालांकि आतंकवादियों के साथ ऐसी कांग्रेसी सौदेबाजी की सूची बहुत लम्बी है लेकिन कांधार काण्ड को लेकर विधवा विलाप करनेवाली कांग्रेसी फौज को आइना दिखाने के लिए फिलहाल यह 5 प्रकरण ही पर्याप्त हैं.
पहला प्रकरण है उस ''तसद्दुक देव'' की रिहाई जो भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा वर्तमान में राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद का ''साला'' है और जिसका जनवरी 1992 में अपहरण किया गया था और उसे छुड़ाने के लिए 17 जनवरी 1992 को तीन दुर्दांत आतंकवादियों को केंद्र की तत्कालीन केंद्र सरकार ने छोड़ दिया था।

दूसरा प्रकरण है वो ''नाहिदा सोज़'' जो यूपीए सरकार के भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज़ की सुपुत्री है और जिसका अपहरण अगस्त 1991 में किया किया गया और उसे छुड़ाने के लिए तत्कालीन दुर्दांत आतंकवादी मुश्ताक़ अहमद को बिना शर्त छोड़ दिया गया था.

तीसरा प्रकरण है वो ''मुस्तफा असलम'' जो जम्मू-काश्मीर प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष गुलाम रसूल कार का दामाद था और जिसका 1992 में अपहरण किया गया था और जिसको छुड़ाने के किये 7 दुर्दांत आतंकियों को बिना शर्त छोड़ दिया गया था।

चौथा है वो नसरुल्लाह जो पूर्व जम्मू कश्मीर सरकार के पूर्व मंत्री जी एम् मीर लासजन का सुपुत्र था. जिसका 1992 में अपहरण कर लिया गया था और जिसे छुड़ाने के लिए 7 दुर्दांत आतंकवादियों को बिना शर्त छोड़ दिया गया था।
पांचवां प्रकरण है, एक सप्ताह तक हज़रत बल में दावत-ए-बिरयानी देने के बाद दर्जनों पाकिस्तानी आतंकियों को वापस पकिस्तान भाग जाने का सेफ पैसेज देने के लिए सेना को मजबूर करने वाली केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार का वह कुकर्म जिसे देश आज भी नहीं भूला है।
उल्लेखनीय है कि, ये फैसले लेने वाली कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह, रक्षा मंत्री शरद पवार और विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ही थे, गुलाम नबी आज़ाद भी संसदीय कार्य/उड्डयन मंत्री थे।

अतः कांधार में 166 निरीह-निर्दोष-निरपराध विमान यात्रियों के बदले 3 आतंकियों को छोड़ने पर आगबबूला होने का ढोंग पाखंड करने वाली कांग्रेस से देश जानना चाहता है कि, कांग्रेसी नेताओं की औलादों,दामादों और सालों को बचाने के लिए दर्ज़नों आतंकवादी क्यों छोड़े गए थे...???

कश्मीर में खून की होली खेलने वाले पाक प्रशिक्षित प्रायोजित दर्ज़नों आतंकवादियों को कब-कब और कैसे-कैसे,
किस-किस के लिए रिहा किया गया.? इसकी संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित झलक दे देती है कश्मीर के अत्यंत प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक Daily Excelsior में प्रकाशित यह रिपोर्ट जिसे इस लिंक पर जाकर पढ़ा जा सकता है..
https://groups.google.com/forum/#!topic/soc.culture.pakistan/O9yR2Tc5eQs

Thursday, October 6, 2016

अपने गिरेबान में झांक कर देखो राहुल गाँधी. खून की दलाली का सच दिख जायेगा.

राहुल गाँधी जी, 2-3 दिसम्बर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड कम्पनी में हुए जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव ने भोपाल के 3787 निर्दोष नागरिकों को कुछ घण्टों में ही मौत के घाट उतार दिया था. और लगभग 3 लाख नागरिकों को बुरी तरह घायल किया था. आज आपको देश को यह बताना चाहिए कि भोपाल गैस का शिकार बने नीर्दोष नागरिकों के खून, उनकी लाशों की दलाली करनेवाला दलाल कौन था. उसने यह दलाली किस लालच में, किसके कहने पर क्यों की थी.?

राहुल गाँधी जी आज आपको इस सवाल का जवाब देश को इसलिए देना चाहिए क्योंकि उन 3787 निर्दोष नागरिकों की मौत का जिम्मीदार, यूनियन कार्बाइड का चेयरमैन वॉरेन एंडरसन 7 दिसम्बर को भोपाल से भागकर दिल्ली पहुंच गया था और वहां से अमेरिका भाग गया था, जहां से वो कभी वापस नहीं आया. उस समय मप्र के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बहुत साफ शब्दों में स्पष्ट किया है कि एंडरसन को भगाने का कार्य उन राजीव गाँधी के कहने पर किया गया था जो उस समय देश के प्रधानमंत्री और आपके पिता भी थे

राहुल गाँधी जी आप शायद भूल गए हो लेकिन देश नहीं भूला है 30 नवम्बर 2008 की रात.
उस रात दिल्ली में छतरपुर से आगे राधेमोहन चौक के रईसजादों की रंगीन रातों के पंचतारा अड्डे की पहचान वाले एक शानदार फार्महाउस में आपके दोस्त समीर शर्मा की शादी से पहले की रस्म "संगीत" का जश्न मनाया जा रहा था. उस जश्न में जिस समय आप मध्यरात्रि से लेकर सवेरे 5 बजे तक नाचगाने और बेहतरीन खाने-"पीने" का जमकर लुत्फ़ ले रहे थे उस समय 26 नवम्बर से 28 नवम्बर तक मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा खेली गयी खून की होली में शहीद सेना के दो कमांडों और मुम्बई पुलिस के 15 जवानों समेत मारे गए 138 हिंदुस्तानियों तथा 28 विदेशी नागरिकों में से 90% की लाशों का अंतिम संस्कार भी सम्पन्न नहीं हो पाया था. अपने माता पिता की इकलौती सन्तान, सेना के शहीद कमांडों मेजर सन्दीप उन्नीकृष्णन तथा उनके दूसरे शहीद साथी कमांडों हवलदार गजेन्द्र सिंह समेत मुम्बई पुलिस के 15 शहीद जवानों के माता पिता की आँख के आंसू भी तब तक नहीं रुके थे. देश सम्भावित युद्ध की भयानक आशंका में डूबा हुआ था.
ऐसे समय में देश के सत्ताधारी दल का भावी कर्ताधर्ता, उसका युवा सांसद जब दिल्ली के एक पंचतारा फार्महाउस में सारी रात नाच गा रहा था, मौज मस्ती में डूबा हुआ था तब सारा देश और विशेषकर उस मुम्बई हमले में शहीद सेना और पुलिस के जवानों की आत्माएं इस सवाल का जवाब अवश्य खोज रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी,यह पहला ऐसा एकमात्र उदाहरण या अपवाद नहीं था जब देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी विवश हो गए थे.
राहुल गाँधी जी, आपको शायद याद नहीं हो किन्तु यह देश आज भी नहीं भूला है और शायद कभी भूलेगा भी नहीं कि, 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में हुए 7 श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों ने 209 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 714 लोगों को घायल कर मरणासन्न अवस्था में पहुंचा दिया था. उनमें से कई लोग अपने हाथ पैर और ऑंखें खोकर जीवन भर के लिए विकलांग हो गए थे. उन श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों की जांच करने वाली देश और मुम्बई पुलिस की जाँच एजेंसियों की गहन-सघन जाँच के बाद यह सच देश के सामने आया था कि उन विस्फोटों को आतंकी संगठन सिमी ने अंजाम दिया है.
राहुल गाँधी जी, आप शायद भूल गए हैं इसलिए याद दिला दूं कि 11 जुलाई 2006 को आतंकी संगठन सिमी ने जब 209 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारा था उससे ठीक 5 दिन पहले 6 जुलाई 2006 को उत्तरप्रदेश कांग्रेस का तत्कालीन अध्यक्ष सलमान खुर्शीद सुप्रीमकोर्ट में उसी आतंकी संगठन सिमी का वकील बनकर सिमी पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने की मांग सुप्रीमकोर्ट से यह दलील देकर कर रहा था कि सिमी एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है और आतंकवाद से उसका कोई लेनादेना नहीं है.
राहुल गाँधी जी संभवतः आपकी समझ में यह नहीं आया हो किन्तु देश भलीभांति यह समझता है कि, सलमान खुर्शीद जिस समय 6 जुलाई को सुप्रीमकोर्ट में आतंकी संगठन सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध करने की कोशिश कर रहा था उस समय आतंकी संगठन सिमी 11 जुलाई को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के अपने आतंकी षड्यन्त्र को अंतिम रूप दे रहा था. क्योंकि इतनी बड़ी आतंकी घटना को कुछ घण्टों या दिनों की तैयारी कर के अंजाम नहीं दिया जा सकता. आतंकी संगठन महीनों की तैयारी के बाद ही इतनी बड़ी साज़िश को अंजाम दे पाते हैं. वैसे भी मुम्बई के श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट सिमी द्वारा की गयी कोई पहली आतंकी वारदात नहीं थी. उससे पहले आतंकी संगठन सिमी दर्ज़नों आतंकी वारदातों में सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार चुका था.
राहुल गाँधी जी लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. सुप्रीम कोर्ट में सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध कर उसपर से प्रतिबन्ध हटाने की कोशिश करनेवाले सलमान खुर्शीद को आप और आपकी पार्टी ने उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नहीं हटाया था. ऐसा करने के बजाय आप और आपकी पार्टी ने 2009 में बनी यूपीए सरकार में सलमान खुर्शीद को जब कानून मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया था तब यह देश और आतंकी संगठन सिमी का शिकार बने सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माएं यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, आपको यह भी याद दिलाना जरूरी है कि देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी उस समय भी विवश हो गए थे.जब देश की राजधानी दिल्ली में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने 13 सितम्बर 2008 को श्रृंखलाबद्ध विस्फोट कर 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 90 लोगों को घायल कर दिया था. उन आतंकवादियों को पकड़ने के लिए 19 सितम्बर को दिल्ली के बाटला हाऊस पहुंची दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा उन आतंकववादियों की गोली का शिकार होकर शहीद हो गए थे.
राहुल गाँधी जी यह देश भूला नहीं है कि उस बाटला हाऊस मुठभेड़ के तत्काल बाद आपकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाटला हाऊस पहुँच कर उन आतंकियों के साथ हुई दिल्ली पुलिस की मुठभेड़ को फ़र्ज़ी तथा 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों के हत्यारे इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित कर दिया था.
उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित करनेवाले दिग्विजय सिंह का नाम अकेला ऐसा नाम नहीं था. आपकी यूपीए की सरकार के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने स्वयम मंच से एलान कर के देश को यह बताया था कि इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों की मौत पर आपकी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी जो संयोग से आपकी मां भी हैं, फूट फूटकर रोयी थीं.
राहुल गाँधी जी आपकी समझ में भले ही ना आया हो लेकिन इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए शहीद इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा तथा दिल्ली के 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माओं के साथ ही साथ इस देश की जनता भी यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, जब अपनी स्पेनिश गर्लफ्रेंड के साथ लन्दन के बर्मिंघम क्रिकेट स्टेडियम में क्रिकेट विश्वकप का लुत्फ़ उठाते हुए आपकी तस्वीरें और खबरें देश तथा दुनिया के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में छपी थीं उस समय देश की सेना के जवान कारगिल युद्ध में अपने खून की गंगा बहाकर पाकिस्तानी दुश्मनों का मुक़ाबला कर रहे थे.
ऐसे समय में उस समय की देश की सबसे बड़ी और मुख्य विपक्षी पार्टी के निर्विवाद इकलौते वारिस के लन्दन के क्रिकेट ग्राउंड में गुलछर्रे उड़ाते चित्रों और समाचारों को देखने पढ़ने के बाद कारगिल में शहीद हुए सैकड़ों जवानों की आत्माओं के साथ ही साथ देश भी यह सोचने के लिए विवश हो गया था कि हमारे "खून की दलाली" करनेवाले हमारे खून के दलाल कौन हैं.?

Sunday, October 2, 2016

नरेंद्र मोदी ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया है.

केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं..
विगत 2 वर्षों में कुल 135 दिनों में सम्पन्न 27 विदेश यात्राओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व के 48 देशों के साथ निर्मित किये गए नवीन राजनीतिक कूटनीतिक आर्थिक और सामरिक सेतुओं के सुपरिणामों का सर्वश्रेष्ठ परिणाम बीती 29 दिसम्बर के बाद भारत के साथ-साथ समस्त विश्व देख रहा है.
भारत-पाक सम्बन्धों के 70 वर्ष लम्बे इतिहास में यह पहला अवसर है जब पाकिस्तान के साथ हुई भारत की तीखी सैन्य झड़प के पश्चात् विश्व के अधिकांश देशों ने भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर की गयी सैन्य कार्रवाई (सर्जिकल स्ट्राइक) के विरोध में दुनिया का एक भी देश एक शब्द नहीं बोला है. इसके विपरीत इनमें से अधिकांश देशों ने भारतीय सैन्य कार्रवाई का खुलकर समर्थन किया है और आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध और और संरक्षण की पाकिस्तानी रीति-नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कठघरे में खड़ा किया है.
उल्लेखनीय यह है कि इन देशों में पाकिस्तान के पड़ोसी ईरानऔर अफगानिस्तान समेत दुनिया के वो 52 इस्लामिक देश भी शामिल हैं जो इससे पूर्व के 70 वर्ष लम्बे अतीत में भारत के साथ पाकिस्तान के सैन्य संघर्ष/तनाव के प्रत्येक अवसरों पर सदा पाकिस्तान के पक्ष और पाले में खड़े दिखाई देते थे.
1948 में कश्मीर में हुई पाकिस्तानी सैन्य घुसपैठ हो, 1965 का युद्ध हो, 1971 का युद्ध हो या कारगिल का युद्ध. इनप्रत्येक अवसरों पर पाकिस्तान अपने पक्ष में इन 52 इस्लामी मुल्कों के साथ ही साथ अमरीकी और यूरोपीय गुटों के महत्वपूर्ण देशों का समर्थन जुटाने में हमेशा सफल होता था. किन्तु इस बार बाज़ी पलटी हुई नज़र आ रही है. दुनिया में केवल चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसके समर्थन का दावा पाकिस्तान तो कर रहा है किन्तु भारतीय सैनिकों द्वारा पाकिस्तानी सीमा में घुसकर की गयी कार्रवाई के विरोध या पाकिस्तान के समर्थन में बोलने से चीन ने भी परहेज ही किया है और स्वयम को इस विवाद से दूर दिखाने की ही कोशिश की है.
इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम ही कहा जाएगा कि पाकिस्तान के पक्ष में दुनिया का एक भी देश नहीं बोला है. पाकिस्तान के जन्म के पश्चात् यह पहला अवसर है जब वैश्विक मंच पर पाकिस्तान पूरी तरह उपेक्षित असहाय और अकेला दिखाई दे रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शतरंज पर सतर्कता पूर्वक चली गयी सधी हुई मारक चालों की पहली झलक 28-29 सितम्बर की रात भारतीय सेना द्वारा सीमा पार कर की गयी सैन्य कार्रवाई से लगभग 50 घण्टे पहले तब ही मिल गए थे जब 26 सितम्बर की शाम न्यूयॉर्क में भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा संयुक्त राष्ट्र के उसी मंच से लगभग 20 मिनटबोलीं और उनके भाषण के दौरान वह सभागार लगभग आधा दर्जन बार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा. जिस मंच से 5 दिन पूर्व 21 सितम्बर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़शरीफ के भाषण के दौरान जो सभागार 99% खाली दिखा था.
भारत के खिलाफ पाकिस्तान के मिथ्या और विषाक्त विधवा विलाप को सुनने में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने अपनी कोई रूचि नहीं दर्शायी थी जबकि भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा प्रस्तुत किये गए भारतीय दृष्टिकोण तथा उनकेद्वारा उजागर की गयी पाकिस्तान की करतूतों का उन्हीं सदस्य देशों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया था.
उड़ी हमले के पश्चात् प्रारम्भ हुई भारत-पाकिस्तान की कूटनीतिक जंग में यह पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय का प्रथम चरण था.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गयी पाकिस्तान की इस कठोर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक घेरेबन्दी का ही परिणाम था कि भारत द्वारा सीमापार पीओके में आतंकी कैंपों पर की गयी सैन्य कार्रवाई के तत्काल बाद ही अमेरिका ने पाकिस्तान को ही आड़े हाथों लिया और व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने अपने बयान में आतंक के खिलाफ भारत के पक्ष में अमेरिका का पूर्ण समर्थन जताते हुए पाकिस्तान को सार्वजनिक तौर पर लताड़ लगाई थी। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉश अर्नेस्ट ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग में पाकिस्तान को लताड़ लगाते हुए पाक में मौजूद आतंकी ठिकानों को नष्ट करने और आतंकियों पर नकेल कसने की भी बात कही थी. अमेरिका ने पाकिस्तान से मांग की है कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के साथ-साथ उनकी वैधता खत्म करे.
पाकिस्तान को अमेरिका की इस चेतावनीनुमा सलाह के साथ ही साथ अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने यह कहकर कि, "भारत और अमेरिका के मौजूदा सैन्य संबंध अब तक के सबसे ज्यादा करीबी संबंध हैं। दोनों देश पहली बार जल, थल एवं वायु में एक साथ सैन्य अभ्यास कर रहे हैं",  पाकिस्तान को यह संकेत भी दे दिया कि पाकिस्तान के साथ भारत के निर्णायक सैन्य टकराव में अमेरिका की भूमिका क्या और किसके पक्ष में होगी.  
पाकिस्तान को भारत के हाथों मिली यह प्रचण्ड कूटनीतिक पराजय उसके लिए भारी आघात है.
क्योंकि पिछले 68 वर्षों से पाकिस्तान की हर करतूत को अनदेखा कर उसके हर संकट में संकटमोचक बनता रहा अमेरिका उसके प्रबल शत्रु भारत के पक्ष में इस प्रकार खुलकर खड़ा हो जायेगा, इसकी कल्पना भी पाकिस्तान ने आज से दो वर्ष पूर्व नहीं की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अद्वितीय कूटनीतिक सूझबूझ और सफलता का श्रेष्ठतम प्रमाण यह भी है कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि उसका चिर प्रतिद्वंदी और शत्रु रूस भी भारत द्वारा पाकिस्तानी सीमा के भीतर घुसकर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन खुलकर कर रहा है. 
पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर आतंकवादियों के ठिकाने तबाह करने की भारतीय सेना की कार्रवाई का रूस ने खुलकर समर्थन किया है. भारत में रूस के राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने कहा है कि उड़ी हमले के तत्काल बाद सिर्फ उनका देश रूस ही था जिसने सीधे शब्दों में कहा था कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे. राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनका देश भारत द्वारा पाकिस्तान में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का स्वागत करता है क्योंकि हर देश को अपनी हिफाजत करने का पूरा अधिकार है.
कदाकिन ने यह भी कहा है कि 'सीमापार आतंकवाद से मुकाबले में उनका देश हमेशा ही भारत के साथ रहा है. पाकिस्तान पर सीधे तौर पर आतंकवादियों को संरक्षण और समर्थन देने के भारत के आरोप का खुला समर्थन भी रूस के विदेश मंत्रालय ये कह कर किया है कि हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान सरकार अपने देश की जमीन पर आतंकवादी ग्रुपों की गतिविधियां रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएगी.
केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं.
यह केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अद्भुत कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम है.
पाकिस्तान की इस स्थिति ने भारत में नरेन्द्र मोदी के उनविरोधियों की नीति और नीयत को भी संगीन सवालों केकठघरे में खड़ा कर दिया है जो पिछले 2 वर्षों से अपने क्षुद्रराजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीकी विदेश यात्राओं का फूहड़ राजनीतिक उपहास उड़ाते रहे हैं

Thursday, September 29, 2016

कांग्रेस नेताओं की फौज क्यों तिलमिला रही है...???

पाकिस्तान के खिलाफ सुषमा स्वराज के प्रचण्ड प्रहारों वाले भाषण के खिलाफ भारत में कांग्रेस नेताओं की फौज क्यों तिलमिला रही है...???
केवल 6 दिन पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा के वैश्विक मंच से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण के समय सभागार 99% खाली था. एक तरह से दुनिया ने पाकिस्तान का अघोषित बहिष्कार किया था.
आज जब भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज उसी मंच से लगभग 23 मिनट बोलीं तो वही सभागार लगभग आधा दर्जन बार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान पर सुषमा स्वराज के प्रचण्ड प्रहारों से पाकिस्तान बुरी तरह तिलमिला गया है. उसका तिलमिलाना स्वाभाविक भी है और समझ में भी आता है.
.....किन्तु पाकिस्तान के खिलाफ सुषमा स्वराज के प्रचण्ड प्रहारों वाले भाषण के खिलाफ यहां भारत में कांग्रेस नेताओं की फौज क्यों तिलमिला रही है...???
आप मित्रों के अनुसार इसका कारण क्या है...???

Saturday, September 24, 2016

पीओके पर भारतीय सेना का हमला और 20 आतंकियों की मौत : राजनीति, कूटनीति या रणनीति

अमेरिका से भीख में मिले युद्धक विमान F-16 के जत्थे पिछले 3 दिनों से इस्लामाबाद से लाहौर तक के आकाश पर लगातार रात दिन मंडरा रहे हैं. भारत से सटे पाकिस्तानी कश्मीर समेत सभी इलाकों की वायुसेवा ठप्प कर दी गयी है. इस्लामाबाद, लाहौर के मुख्य राजमार्गों का यातायात रोक कर उन्हें खाली करा लिया गया है. ट्विटर पर पाकिस्तान के दिग्गज पत्रकार और रक्षा विशेषज्ञ पाकिस्तानी जनता को ढांढ़स बंधा रहे हैं कि घबराइये मत यह पाकिस्तानी सेना का सामान्य युद्धाभ्यास है.
उपरोक्त सभी तथ्य पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया के समाचार माध्यमों में छाये हुए हैं.
आखिर क्यों...???

नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारतीय सेना द्वारा आतंकी कैम्पों पर किये गए भयंकर हमले की अपनी पहली खबर पर न्यूजएजेंसी Quint की वेबसाइट डटी हुई है. बरखा, राजदीप, रविश, प्रवीण स्वामी सरीखे अनेक प्रेस्टियूट्स की फौज द्वारा उसको नकारने की कोशिशों का मुंहतोड़ जवाब Quint कल दिन भर देती रही और अपने दावे पर डटी हुई है...
इस सन्दर्भ में मेरा मत.....

1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान भारत में पाकिस्तान रेडियो भी बहुत सुना जाता था. किस्सा उसी समय का है...... वो मेरे बचपन के दिन थे, लखनऊ रेलवे स्टेशन के बिलकुल बगल की रेलवे कालोनी में ही निवास था. उन दिनों भारत पाक युद्ध चरम पर था. तब एक दिन अचानक पाकिस्तानी रेडियो पर “इंशाल्लाह…” की दहाड़ के साथ समाचार गूंजा कि… पाकिस्तानी बमवर्षक विमानों ने लुधियाना आगरा और लखनऊ पर भारी बमबारी की है जिसके कारण लुधियाना का सैनिक हवाई अड्डा और आगरा तथा लखनऊ का रेलवे स्टेशन जल कर खाक़ हो गया है……
अब आगरा और लुधियाना के विषय में तो किसी को कोई जानकारी नहीं थी लेकिन लखनऊ के रेलवे स्टेशन के बिलकुल बगल में तो हमलोग रह ही रहे थे और वहाँ जनजीवन बिलकुल सामान्य था. अतः समाचार सुनकर एक क्षण को सकते में आ गए सभी कालोनी वाले कमरों से निकलकर आसमान ताकने लगे थे और अगले ही क्षण ठहाके लगा रहे थे… बाद में लुधियाना और आगरा से सम्बन्धित पाकिस्तानी रेडियो के बेशर्म झूठ की भी धज्जियां उड़ गयी थीं...

आज यह किस्सा इसलिए क्योंकि अपनी सैन्य ताक़त को लेकर पाकिस्तान अपनी जनता से हमेशा झूठ ही बोलता रहा है. आज भी उसकी स्थिति वही है. इसीलिए उड़ी हमले के बाद भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के समाचार पर कुछ लोग यह कहकर सवाल उठा रहे हैं कि, पाकिस्तान आखिर चुप क्यों है…???
...तो मित्रों यह भी समझ लीजिये कि पिछले डेढ़ दो दशक से पाकिस्तानी सेना इसी दावे और वायदे के सहारे खुद पाकिस्तानी जनता में खुद को प्रासंगिक और प्रभावी बनाये हुए है कि… “….यदि भारत ने कोई हिमाकत की तो हम भारत पर एटम बम से हमला कर देंगे…” हालांकि पाकिस्तानी फौजी जनरल यह भी जानते हैं कि अपने देश की जनता से वो सरासर सफ़ेद झूठ बोल रहे हैं. कारगिल युद्ध इसकी बेहतरीन मिसाल है. तब लगातार दो महीने तक भारत से युद्ध के बाद मिली करारी पराजय के बाद भी पाकिस्तान ने एटम बम नाम की अपनी चिड़िया का इस्तेमाल करना तो दूर, पूरे युद्ध के दौरान उसका जिक्र तक नहीं किया था.
जाहिर है कि ऐसी स्थिति में पाकिस्तानी जनता उससे पूछती कि भारत की फौज द्वारा इतनी बुरी तरह जुतियाये जाने के बावजूद भी तुमलोगों ने एटम बम इस्तेमाल क्यों नहीं किया..???
ऐसे सवालों से बचने/मुंह चुराने के लिए पाकिस्तान ने पाकिस्तानी सेना के पहचानपत्र समेत बाकायदा फौजी वर्दी में कारगिल युद्ध में मारे गए अपने सैकड़ों सैनिकों की लाशें यह कहकर वापस लेने से मना कर दिया था कि यह हमारे सैनिक ही नहीं हैं, पाकिस्तानी फौज का इससे कोई लेनादेना नहीं है.
इसबार भी स्थिति कुछ वैसी ही है. भारत के सर्जिकल स्ट्राइक पर पाकिस्तानी हल्ले पर वहाँ की जनता फौज से उसके “एटम बमी” राग वाले सवाल पूछने लगेगी, जिसका जवाब फौजी हुक्मरानों के पास नहीं है.
सर्जिकल स्ट्राइक के समाचार पर दूसरी शंका भारतीय सेना के प्रवक्ता द्वारा खण्डन को लेकर है.

...तो यह भी याद करिये कि… म्यांमार सरकार को सूचना देकर उसकी सहमति से म्यांमार में घुसकर किये गए सैन्य ऑपरेशन की पुष्टि भारत सरकार ने ना तब की थी…. ना आजतक की है… ना कभी करेगी…
कुछ अंतरराष्ट्रीय बाध्यताएं हैं, जिनका पालन करना ही पड़ता है. और हम सबको यह सच भी स्वीकारने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि हम अमेरिका की तरह राजनीतिक कूटनीतिक ताक़तवर नहीं हैं.
इसीलिए इतनी गम्भीर स्थिति के बावजूद रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने विशेष समय निकालकर भाजपाई प्रवक्ताओं से स्वयं मिलकर उन्हें कुछ निर्देश दिए, अभी तक उजागर नहीं हुआ कि वो निर्देश क्या थे. लेकिन आज़ाद भारत के इतिहास में यह पहला और अकेला उदहारण है कि, सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ताओं को पार्टी अध्यक्ष या कोई वरिष्ठ पार्टी नेता के बजाय देश का रक्षामंत्री स्वयम निर्देश देने पहुंचा हो. यह सामान्य नहीं असाधारण घटनाक्रम था. दरअसल रक्षामंत्री को यह असाधारण कदम पूर्व में की गयी भाजपाई प्रवक्ताओं की उसी मूर्खता के कारण उठाना पड़ा जिसका खामियाजा भारत को तब भोगना पड़ा था जब म्यांमार की कार्रवाई का नगाड़ा पीटते हुए भाजपाई प्रवक्ता न्यूजचैनलों पर वाहवाही लूटने में जुट गए थे. इसीलिए इसबार रक्षामंत्री ने उन सबपर नकेल कसी हुई है.

अब बात समाचार की पुष्टि की….
...तो सबसे पहले बात उस वेबसाइट Quint की जिसने यह खबर उजागर की और जिसके मालिक राघव बहल हैं. राघव बहल कोई ऐरा गैरा नाम नहीं है. यह वह आदमी है जो पूरे CNN IBN ग्रुप का संस्थापक/मालिक रहा है. उसने अपनी वेबसाइट पर इतनी संवेदनशील और गम्भीर यह खबर यूं ही नहीं डाल दी है. खबर में यह स्पष्ट भी किया है कि… खबर सेना के सूत्र से मिली सूचना पर ही लिखी गयी है.
Quint वेबसाइट की खबर की पुष्टि एक और महत्वपूर्ण तथ्य से भी होती है. 20 सितम्बर की रात के बाद से ही पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर गिलगिट बल्टिस्तान में पाकिस्तान ने हवाई जहाजों की उड़ानों को पूरी तरह से रोक दिया है. आखिर क्यों.?
दरअसल कुछ बातें सच्चाइयां ऐसी होती हैं जिनका दावा आप सबकुछ जानते हुए भी नहीं कर सकते हैं.
अपरोक्ष रूप से सूचना देती यह खबर छापकर भी राघव बहल ने बड़ा जोखिम उठाया है, जिसके परिणाम सकारात्मक भी हो सकते हैं, नकारात्मक भी हो सकते हैं.

Tuesday, September 20, 2016

URI ATTACK : वो शातिर जेबकतरा बहुत याद आ रहा है…

.....उरी हमले के बाद गुस्सा तो बहुत हूँ लेकिन इस गुस्से में भी आज जब टीवी पर कांग्रेसी प्रवक्ताओं को सियासी फीते से 56 इंच और 56 सेंटीमीटर की नापजोख का मुजरा करते देखा तो मुझे उस शातिर अनुभवी जेबकतरे की याद आ गयी जो जेब काट कर भागते हुए दोनों हाथों से आगे की ओर इशारा करते हुए चिल्लाता जाता है कि… पकड़ो पकड़ो उसको पकड़ो… देखो बचकर जाने ना पाए… 
जिनकी समझ में ना आया हो उनके लिए स्पष्ट कर दूं...
बात सौ दो सौ साल पुरानी नहीं है….

अभी कुछ महीनों पहले ही मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेता पाकिस्तान जाकर बाकायदा पाकिस्तानी न्यूजचैनलों पर पाकिस्तानी सरकार से यह मांग कर रहे थे कि…. भारत की मोदी सरकार को हटाने में पाकिस्तान उनकी मदद करे…
यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि देश की मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस की मदद पाकिस्तान किस तरह कर सकता था…?


वो शातिर जेबकतरा मुझे इसलिए भी बहुत याद आ रहा है…
क्योंकि मैं भूला नहीं हूँ कि…
इसी वर्ष फरवरी में देश की राजधानी दिल्ली में JNU में “भारत तेरे टुकड़े होंगे… इंशाल्लाह… इंशाल्लाह…” “भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी…चलेगी…” और “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाने वाले देशद्रोही गुंडों को अपना नैतिक, राजनैतिक समर्थन देने, उनका हौसला बढ़ाने कोई छुटभैय्या कांग्रेसी नहीं गया था बल्कि कांग्रेसी राजकुमार राहुल गाँधी ने इस देशघाती कारनामे को अंजाम दिया था. वह देशद्रोही नारे लगानेवाले पाकिस्तान परास्त गुंडों के गैंग के सरगना कन्हैया कुमार के चित्र को असम विधानसभा चुनावों के अपने प्रचार पोस्टरों में कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारक की तरह प्रमुखता से स्थान दिया था.

वो शातिर जेबकतरा मुझे बहुत याद आ रहा है…

क्योंकि मैं भूला नहीं हूँ कि…

26/11/2008 को मुम्बई पर हुए पाकिस्तानी आतंकवादियों के बर्बर हमले के बाद कांग्रेस सरकार का मंत्री अब्दुल रहमान अंतुले उस हमले को हिन्दू आतंकवादियों का हमला सिद्ध करने की कोशिश करके पाकिस्तान और उसके द्वारा भेजे गए आतंकियों को बचाने का देशघाती निर्लज्ज प्रयास कर रहे थे और उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के बजाय माँ-बेटे समेत उनकी कांग्रेस अंतुले के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोली थी.

वो शातिर जेबकतरा मुझे इसलिए भी बहुत याद आ रहा है…
क्योंकि मैं भूला नहीं हूँ कि…
26/11 2008 को मुम्बई पर हुए पाकिस्तानी आतंकवादियों के बर्बर हमले के बाद कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह पाकिस्तान और उसके द्वारा भेजे गए आतंकवादियों को बचाने का देशघाती निर्लज्ज प्रयास यह कहकर कर रहे थे कि… मुम्बई पर आतंकवादियों का हमला RSS की साज़िश है.

वो शातिर जेबकतरा मुझे इसलिए भी बहुत याद आ रहा है…
क्योंकि मैं भूला नहीं हूँ कि…
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की रक्तरंजित जघन्य आतंकवादी घटनाओं…. बाटला हाऊस, इशरत जहां मुठभेड़ , समझौता एक्सप्रेस विस्फोट सरीखे प्रसंगों पर कांग्रेसी फौज की चाल चरित्र और चेहरा कितना स्याह और संदेहास्पद रहा है… यह शर्मनाक सच देश आज तक भूला नहीं है इसलिए उन किस्सों को दोहरा नहीं रहा हूँ… यह कुछ उदाहरण मात्र हैं… ऐसे शर्मनाक प्रसंगों की सूची बहुत लम्बी है…..

......लेकिन बात कश्मीर और पाकिस्तान की हो और इस समस्या को जन्म देनेवाले जवाहरलाल नेहरू का जिक्र ना हो तो यह उचित नहीं होगा.
अतः कांग्रेस को देश को यह जवाब देना चाहिए कि अगर 1948 में मोहनदास करमचंद गाँधी को मौत के घाट उतारनेवाले नाथूराम गोडसे के खिलाफ वो आज भी छाती पीटती है, तो अब तक लगभग दो लाख से अधिक हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार चुकी तथा 3 लाख कश्मीरी पण्डितों का घरद्वार जमीन छीन चुकी कश्मीर समस्या को 1948 में ही जन्म देनेवाले जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ भी कांग्रेस उसी तरह अपनी छाती क्यों नहीं पीटती…??? जबकि मोहनदास करमचन्द गाँधी की मौत के कारण किसी अन्य हिंदुस्तानी की जान नहीं गयी थी बल्कि गोडसे को ही सज़ा ए मौत मिली थी…. जबकि कश्मीर समस्या के कारण अबतक सेना के हज़ारों जवानों समेत 2 लाख हिंदुस्तानियों की जान जा चुकी है. 3 लाख कश्मीरी पण्डित बेघर हो चुके हैं…



अतः कांग्रेसी प्रवक्ताओं के देशभक्ति की चाशनी में डूबे आज के बयानों पर मुझे निकट अतीत के उनके देशघाती कुकर्मों की हज़ारों काली मक्खियां भिनभिनाती हुई नज़र आ रही हैं.

Sunday, August 14, 2016

UP Election : AAP के मठाधीश क्यों हिम्मत नहीं जुटा पा रहे अपने गृहप्रदेश में कदम रखने की.?

गुजरात, पंजाब और गोवा में हवाई दावे करते घूम रहे आम आदमी पार्टी के मठाधीश अपने गृहप्रदेश में कदम रखने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं?
उत्तरप्रदेश की जनता की चुनावी अदालत का सामना करने से इतनी बुरी तरह घबरा क्यों रही है आम आदमी पार्टी..???
बात अपने एक राजनीतिक संस्मरण से प्रारम्भ करता हूँ.
लगभग 14 वर्ष पूर्व 2002 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में राजधानी लखनऊ से सटी एक विधानसभा सीट पर पूर्व में कांग्रेस की केंद्र सरकार में मंत्री रहे एक दिग्गज चुनाव लड़े थे. उन्हें कुल 2900 वोट मिले थे और उनकी जमानत जब्त हो गयी थी. उन कांग्रेसी दिग्गज के साथ पूर्व में केंद्र सरकार में उनके साथ मंत्री रह चुके कांग्रेस के एक राष्ट्रीय नेता उक्त विधानसभा चुनाव के लगभग 3 वर्ष बाद किसी कार्य से लखनऊ आये तो उन्होंने उत्तरप्रदेश के एक चर्चित कांग्रेसी नेता से यह पूछा कि, भाई पूर्व मंत्री जी की इतनी बुरी हार का कारण क्या था.? क्या वो किसी ऐसी अंजान जगह से चुनाव लड़ गए थे, जहां उन्हें कोई जानता ही नहीं था.?
उत्तरप्रदेश के चर्चित कांग्रेसी नेता ने उन्हें जवाब देते हुए कहा था कि नहीं ऐसा नहीं है. वो अपने गृहस्थान से सटे चुनाव क्षेत्र से ही चुनाव लड़े थे और उन्हें सब जानते भी थे, सिवाय उन 2900 लोगों के जिन्होंने उन्हें वोट दिया था…!!!
संयोगवश उक्त संवाद का मैं भी साक्षी रहा था, अतः आजकल मुझे उस 14 साल पुराने उस संवाद की याद खूब आ रही है क्योंकि इन दिनों गुजरात पंजाब और गोवा में अरविन्द केजरीवाल की सियासी धमाचौकड़ी की चर्चा खूब हो रही है. इन राज्यों की जनता का भाग्य बदल देने के केजरीवाल के दावों का सियासी बाजार इन राज्यों में खूब गर्म है. केजरीवाल के ऐसे दावों से सजे दिल्ली सरकार के विज्ञापनों से इन तीनों राज्यों के अख़बारों के 3-3, 4-4 पन्ने लगभग रोजाना भरे जा रहे हैं. लेकिन उपरोक्त राज्यों में केजरीवाल की सक्रियता ने कुछ अत्यन्त गम्भीर सवालों को भी जन्म दिया है, जिनका जवाब केजरीवाल को देना ही होगा.

गुजरात को छोड़कर पंजाब और गोवा के साथ ही उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव भी 7-8 माह बाद ही होने हैं. लेकिन उत्तरप्रदेश में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की सक्रियता शून्य नज़र आ रही है. इस निष्क्रियता ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि आम आदमी पार्टी उत्तरप्रदेश में चुनाव नहीं लड़ेगी.
यही वह बिंदु है जो केजरीवाल की नीति और नीयत को कठघरे में खड़ा करता है. बिजली पानी शिक्षा स्वास्थ्य भूख गरीबी बेरोजगारी महंगाई, भ्रष्टाचार जर्जर क़ानून व्यवस्था जातिवाद साम्प्रदायिकता सरीखी जिन समस्यायों के समाधान के तार तोड़कर जमीन पर ला देने का वादा केजरीवाल द्वारा गुजरात पंजाब गोवा की जनता से किया जा रहा है, वह सभी समस्यायें क्या उत्तरप्रदेश में नहीं है? केजरीवाल के अनुसार क्या उत्तरप्रदेश में राम राज्य स्थापित हो चुका है.?
केजरीवाल से यह सवाल इसलिए क्योंकि केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी का पूरा शीर्ष नेतृत्व उत्तरप्रदेश का ही रहनेवाला है. फिर उत्तरप्रदेश की जनता की चुनावी अदालत का सामना करने से इतनी बुरी तरह घबरा क्यों रही है आम आदमी पार्टी? इसका कारण शायद वही है जिसका जिक्र इस लेख की शुरुआत में अपने संस्मरण में किया है.
“हारूं या जीतूं मैं बनारस अमेठी को छोड़कर अब कहीं नहीं जाऊँगा.” सरीखी कसमें खानेवाले केजरीवाल और कुमार विश्वास जिस दिन चुनाव परिणाम आया था उसी दिन बनारस और अमेठी से गधे के सिर से सींग की तरह यूं गायब हुए थे कि आजतक लौटकर वापस नहीं गए.
दरअसल उत्तरप्रदेश की जनता केजरीवाल समेत पूरी आम आदमी पार्टी के मिथ्याभाषी चाल चरित्र और चेहरे को काफी पहले ही भलीभांति पहचान चुकी है. 2014 में 80 लोकसभा सीटों में से 79 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त करवा कर उत्तरप्रदेश ने अपना फैसला भी सुना दिया था. यही कारण है कि गुजरात पंजाब और गोवा में हवाई दावे करते घूम रहे आम आदमी पार्टी के मठाधीश अपने गृहप्रदेश में चुनावी कदम रखने की हिम्म्त नहीं जुटा पा रहे है.
पंजाब गोवा गुजरात का अँधेरा दूर करने का दावा करते हुए घूम रहे आम आदमी पार्टी के तथाकथित राष्ट्रीय मठाधीशों का सीधा संबंध जिन स्थानों से है वह सभी स्थान आज भी विकास की किरण से कोसों दूर हैं और पिछड़ेपन के घने स्याह अँधेरे में क़ैद है. उन स्थानों के नामों के उल्लेख मात्र से ही यह स्पष्ट हो जाता है.
ज़रा ध्यान दीजिये कि, आमआदमी पार्टी का नेता आशुतोष (मिर्ज़ापुर) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता कुमार विश्वास (पिलखुआ, हापुड़) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता मनीष सिसोदिया (पिलखुआ, हापुड़) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता संजय सिंह (सुल्तानपुर) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता गोपाल रॉय (मऊ) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता आशीष खेतान (बाराबंकी) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता जितेन्द्र तोमर जिसे केजरीवाल ने अपनी सरकार में क़ानून मंत्री बनाया था और जो अपनी फ़र्ज़ी डिग्री के कारण जेल में बंद हो गया था वो तोमर भी (एटा) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता और सरकार में कानून मंत्री कपिल मिश्रा मूल रूप से (देवरिया) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता और सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन मूल रूप से (किरथल, बागपत) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
आमआदमी पार्टी का नेता दिलीप पांडेय (श्रावस्ती) उत्तरप्रदेश का रहनेवाला है.
मित्रों खुद अरविन्द केजरीवाल हरियाणा का रहनेवाला है और पिछले 25 साल से गाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश) में रह रहा था. वहीँ का वोटर था. लेकिन उत्तरप्रदेश तो छोड़िए हरियाणा में भी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था.