Sunday, October 2, 2016

नरेंद्र मोदी ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया है.

केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं..
विगत 2 वर्षों में कुल 135 दिनों में सम्पन्न 27 विदेश यात्राओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व के 48 देशों के साथ निर्मित किये गए नवीन राजनीतिक कूटनीतिक आर्थिक और सामरिक सेतुओं के सुपरिणामों का सर्वश्रेष्ठ परिणाम बीती 29 दिसम्बर के बाद भारत के साथ-साथ समस्त विश्व देख रहा है.
भारत-पाक सम्बन्धों के 70 वर्ष लम्बे इतिहास में यह पहला अवसर है जब पाकिस्तान के साथ हुई भारत की तीखी सैन्य झड़प के पश्चात् विश्व के अधिकांश देशों ने भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर की गयी सैन्य कार्रवाई (सर्जिकल स्ट्राइक) के विरोध में दुनिया का एक भी देश एक शब्द नहीं बोला है. इसके विपरीत इनमें से अधिकांश देशों ने भारतीय सैन्य कार्रवाई का खुलकर समर्थन किया है और आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध और और संरक्षण की पाकिस्तानी रीति-नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कठघरे में खड़ा किया है.
उल्लेखनीय यह है कि इन देशों में पाकिस्तान के पड़ोसी ईरानऔर अफगानिस्तान समेत दुनिया के वो 52 इस्लामिक देश भी शामिल हैं जो इससे पूर्व के 70 वर्ष लम्बे अतीत में भारत के साथ पाकिस्तान के सैन्य संघर्ष/तनाव के प्रत्येक अवसरों पर सदा पाकिस्तान के पक्ष और पाले में खड़े दिखाई देते थे.
1948 में कश्मीर में हुई पाकिस्तानी सैन्य घुसपैठ हो, 1965 का युद्ध हो, 1971 का युद्ध हो या कारगिल का युद्ध. इनप्रत्येक अवसरों पर पाकिस्तान अपने पक्ष में इन 52 इस्लामी मुल्कों के साथ ही साथ अमरीकी और यूरोपीय गुटों के महत्वपूर्ण देशों का समर्थन जुटाने में हमेशा सफल होता था. किन्तु इस बार बाज़ी पलटी हुई नज़र आ रही है. दुनिया में केवल चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसके समर्थन का दावा पाकिस्तान तो कर रहा है किन्तु भारतीय सैनिकों द्वारा पाकिस्तानी सीमा में घुसकर की गयी कार्रवाई के विरोध या पाकिस्तान के समर्थन में बोलने से चीन ने भी परहेज ही किया है और स्वयम को इस विवाद से दूर दिखाने की ही कोशिश की है.
इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम ही कहा जाएगा कि पाकिस्तान के पक्ष में दुनिया का एक भी देश नहीं बोला है. पाकिस्तान के जन्म के पश्चात् यह पहला अवसर है जब वैश्विक मंच पर पाकिस्तान पूरी तरह उपेक्षित असहाय और अकेला दिखाई दे रहा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की शतरंज पर सतर्कता पूर्वक चली गयी सधी हुई मारक चालों की पहली झलक 28-29 सितम्बर की रात भारतीय सेना द्वारा सीमा पार कर की गयी सैन्य कार्रवाई से लगभग 50 घण्टे पहले तब ही मिल गए थे जब 26 सितम्बर की शाम न्यूयॉर्क में भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा संयुक्त राष्ट्र के उसी मंच से लगभग 20 मिनटबोलीं और उनके भाषण के दौरान वह सभागार लगभग आधा दर्जन बार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजा. जिस मंच से 5 दिन पूर्व 21 सितम्बर को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़शरीफ के भाषण के दौरान जो सभागार 99% खाली दिखा था.
भारत के खिलाफ पाकिस्तान के मिथ्या और विषाक्त विधवा विलाप को सुनने में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने अपनी कोई रूचि नहीं दर्शायी थी जबकि भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज द्वारा प्रस्तुत किये गए भारतीय दृष्टिकोण तथा उनकेद्वारा उजागर की गयी पाकिस्तान की करतूतों का उन्हीं सदस्य देशों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया था.
उड़ी हमले के पश्चात् प्रारम्भ हुई भारत-पाकिस्तान की कूटनीतिक जंग में यह पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय का प्रथम चरण था.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गयी पाकिस्तान की इस कठोर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक घेरेबन्दी का ही परिणाम था कि भारत द्वारा सीमापार पीओके में आतंकी कैंपों पर की गयी सैन्य कार्रवाई के तत्काल बाद ही अमेरिका ने पाकिस्तान को ही आड़े हाथों लिया और व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने अपने बयान में आतंक के खिलाफ भारत के पक्ष में अमेरिका का पूर्ण समर्थन जताते हुए पाकिस्तान को सार्वजनिक तौर पर लताड़ लगाई थी। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉश अर्नेस्ट ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग में पाकिस्तान को लताड़ लगाते हुए पाक में मौजूद आतंकी ठिकानों को नष्ट करने और आतंकियों पर नकेल कसने की भी बात कही थी. अमेरिका ने पाकिस्तान से मांग की है कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के साथ-साथ उनकी वैधता खत्म करे.
पाकिस्तान को अमेरिका की इस चेतावनीनुमा सलाह के साथ ही साथ अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने यह कहकर कि, "भारत और अमेरिका के मौजूदा सैन्य संबंध अब तक के सबसे ज्यादा करीबी संबंध हैं। दोनों देश पहली बार जल, थल एवं वायु में एक साथ सैन्य अभ्यास कर रहे हैं",  पाकिस्तान को यह संकेत भी दे दिया कि पाकिस्तान के साथ भारत के निर्णायक सैन्य टकराव में अमेरिका की भूमिका क्या और किसके पक्ष में होगी.  
पाकिस्तान को भारत के हाथों मिली यह प्रचण्ड कूटनीतिक पराजय उसके लिए भारी आघात है.
क्योंकि पिछले 68 वर्षों से पाकिस्तान की हर करतूत को अनदेखा कर उसके हर संकट में संकटमोचक बनता रहा अमेरिका उसके प्रबल शत्रु भारत के पक्ष में इस प्रकार खुलकर खड़ा हो जायेगा, इसकी कल्पना भी पाकिस्तान ने आज से दो वर्ष पूर्व नहीं की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अद्वितीय कूटनीतिक सूझबूझ और सफलता का श्रेष्ठतम प्रमाण यह भी है कि सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि उसका चिर प्रतिद्वंदी और शत्रु रूस भी भारत द्वारा पाकिस्तानी सीमा के भीतर घुसकर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन खुलकर कर रहा है. 
पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर आतंकवादियों के ठिकाने तबाह करने की भारतीय सेना की कार्रवाई का रूस ने खुलकर समर्थन किया है. भारत में रूस के राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने कहा है कि उड़ी हमले के तत्काल बाद सिर्फ उनका देश रूस ही था जिसने सीधे शब्दों में कहा था कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे. राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनका देश भारत द्वारा पाकिस्तान में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का स्वागत करता है क्योंकि हर देश को अपनी हिफाजत करने का पूरा अधिकार है.
कदाकिन ने यह भी कहा है कि 'सीमापार आतंकवाद से मुकाबले में उनका देश हमेशा ही भारत के साथ रहा है. पाकिस्तान पर सीधे तौर पर आतंकवादियों को संरक्षण और समर्थन देने के भारत के आरोप का खुला समर्थन भी रूस के विदेश मंत्रालय ये कह कर किया है कि हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान सरकार अपने देश की जमीन पर आतंकवादी ग्रुपों की गतिविधियां रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएगी.
केवल भारतीय कूटनीति के इतिहास में ही नहीं संभवतः विश्व कूटनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के कट्टर विरोधी रूस और अमेरिका किसी एक देश के समर्थन और उसके पक्ष में इस तरह खुलकर खड़े हुए दिख रहे हैं.
यह केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अद्भुत कूटनीतिक कौशल का ही परिणाम है.
पाकिस्तान की इस स्थिति ने भारत में नरेन्द्र मोदी के उनविरोधियों की नीति और नीयत को भी संगीन सवालों केकठघरे में खड़ा कर दिया है जो पिछले 2 वर्षों से अपने क्षुद्रराजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीकी विदेश यात्राओं का फूहड़ राजनीतिक उपहास उड़ाते रहे हैं

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