सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने मीडिया में प्रवचन दिया कि जब सरकार ठीक से काम नहीं करती है तब न्यायालय को हस्तक्षेप करना ही पड़ता है. आगे भी करता रहेगा.
जब उनका यह प्रवचन न्यूजचैनलों पर दिखाया जा रहा था संयोग से उसी समय कुछ न्यूजचैनलों पर यासीन मालिक का किस्सा भी सुनाया बताया जा रहा था कि उसने किस तरह 1987 में पुलिस कर्मियों समेत 4 की हत्या करने के बाद 1990 में लगभग 2 दर्जन कश्मीरी पंडितों की हत्या की थी. उसको सजा तो छोड़िए, उन हत्याओं के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चलना भी अभी शुरू नहीं हुआ है. अभी यह भी तय नहीं है कि मुकदमा चलेगा भी कि नहीं.?
न्यायाधीश महोदय के न्यूजचैनली प्रवचन के समय ही एक न्यूजचैनल साध्वी प्रज्ञा की व्यथा भी सुना बता रहा था कि किस तरह बिना किसी साक्ष्य के 2008 से लेकर अबतक, लगभग 8 सालों तक साध्वी को जेल में बंदकर मरण तुल्य यातनाएं दी जाती रहीं. लेकिन इसके लिए किसी को कोई सज़ा नहीं.
सिर्फ इतना ही नहीं....
उनकी बात सुनकर मुझे याद आया कि, 1984 के दंगो में दिल्ली में 3 हज़ार सिखों के नरसंहार के लिए आज 32 बरस बाद भी किसी को सज़ा नहीं हुई है. 1984 में एक रात Bhopal में ही 3900 लोगों को मौत के घाट उतारने और लाखों लोगों को अपंग करने के लिए आजतक किसी को कोई सज़ा नहीं हुई है.
15 वर्षों के कांग्रेसी शासन में सिंचाई विभाग की भ्रष्टतम कार्यशैली का शिकार बनकर महाराष्ट्र में 50000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली थी. आजतक सिंचाई विभाग के किसी इंजीनियर अफसर को कोई सज़ा नहीं हुई. आखिर क्यों.?
उनकी बात सुनने के बाद मुझे यह भी याद आया कि देश भर के न्यायालयों में लगभग 2.70 करोड़ मुक़दमे लम्बित पड़े हैं. लेकिन मुझे यह याद नहीं आया कि, इस लिस्ट को खत्म करने के लिए किसने क्या हस्तक्षेप कब किया...??? उपरोक्त सभी मामलों में सज़ा देने, न्याय करने का दायित्व क्या रेलमंत्रालय या खेल मंत्रालय या तेल मंत्रालय का था...???
......या फिर इस देश की न्यायिक व्यवस्था का...???
उपरोक्त सभी मामलों में समयबद्ध त्वरित कार्रवाई के आदेश वाले न्यायिक हस्तक्षेप का कोई प्रसंग मुझको तो याद नहीं. मित्रों में से किसी को याद हो तो मुझे बताइयेगा.
फिलहाल तो मुझे वही कहावत याद आ रही है कि.....
"पर उपदेश कुशल बहुतेरे..."
 

 
 
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