Friday, June 15, 2018

बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना भी पड़ता है।

बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना भी पड़ता है।
बात 70 के दशक के शुरुआती वर्षों की है। 1969 में सुपरहिट फिल्म आराधना की सफलता के साथ मनोरंजन की दुनिया में ध्रुव तारे की तरह चमके राजेश खन्ना के फिल्मी करियर में आराधना के साथ ही साथ दो रास्ते इत्तेफ़ाक़ डोली और खामोशी सरीखी सुपरहिट फिल्मों का नाम जुड़ चुका था।
उस समय तक एकमात्र एकछत्र सुपरस्टार राजेश खन्ना के विषय में यह मशहूर हो चुका था कि उनदिनों सफलता उनके सिर पर चढ़कर बोलती थी। उनका अहंकार अपने चरम पर हुआ करता था। उसी दौर में 1970 में राजेश खन्ना को पता चला कि निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी अपनी एक बहुत छोटे बजट की फ़िल्म को लेकर नायक की तलाश कर रहे हैं। लेखक गुलज़ार के माध्यम से राजेश खन्ना को फ़िल्म की कहानी पता चली थी। कहानी सुनने के बाद राजेश खन्ना ने ऋषिकेश मुखर्जी के ऑफिस पहुंचकर उनसे कहा था कि ऋषि दा यह फ़िल्म तो मैं ही करूंगा। यह सुनकर ऋषि दा ने राजेश खन्ना से कहा था कि मेरी फ़िल्म बहुत छोटे बजट की है इसलिए मेरी तीन शर्ते हैं। पहली शर्त यह कि तुमको केवल एक लाख रूपये दूंगा (उनदिनों राजेश खन्ना की फीस 8 लाख रूपये हुआ करती थी) दूसरी शर्त यह कि तुम्हें अपनी बहुत सारी डेट्स एक साथ देनी होंगी। तीसरी यह कि तुम्हें शूटिंग पर टाइम से पहुंचना होगा।
ऋषि दा की इन तीनों शर्तों के जवाब में राजेश खन्ना ने अपनी डायरी निकाल कर उनके सामने रखते हुए कहा था कि दादा जो और जितनी डेट्स चाहिए अपने हाथ से लिख दीजिये। मैं और लोगों को मैनेज कर लूंगा। एक लाख रूपये की मेरी फीस भी फाइनल और शूटिंग पर समय से भी पहुंचूंगा। दोनों के बीच डील फाइनल हुई और फ़िल्म बनना शुरू हुई।
वो ऐसी फ़िल्म बनी कि आज 47 साल बाद भी दुनिया भर की 47 लाख से अधिक फिल्मों के सबसे बड़े ऑन लाइन संग्रह #IMDB (Internet Movie Database,) की सर्वाधिक लोकप्रिय भारतीय फिल्मों की सूची में उस फिल्म का नाम पहले नम्बर पर है। उस फिल्म का नाम है #आनंद।
सम्भवतः समय बीतने के साथ राजेश खन्ना की अन्य सुपरहिट फिल्में धीरे धीरे अपनी चमक खोती गईं और उनकी चमक धीरे धीरे कम ही होती जाएगी। लेकिन 47 वर्ष बाद भी IMDB की लोकप्रियता सूची में पहले स्थान पर बनी हुई आनंद यह बताती है कि जबतक हिन्दी फिल्मों का दौर चलेगा तबतक आनंद और राजेश खन्ना भी जिंदा रहेंगे।
फ़िल्म आनंद लोकप्रियता का ऐसा इतिहास रच देगी यह तो राजेश खन्ना ने भी नहीं सोचा होगा लेकिन फ़िल्म की कहानी और ऋषि दा की काबिलियत पर तो उनको विश्वास था ही इसीलिए उस समय के उस परम लोकप्रिय, चरम अहंकारी सुपरस्टार ने भी आनंद फ़िल्म के लिए अपने प्रचण्ड अहं को भी पूरी तरह मार दिया था।
आज उपरोक्त प्रसंग का जिक्र इसलिए किया क्योंकि उपरोक्त प्रसंग यह सन्देश देता है कि यदि जीवन में कुछ विशेष विशिष्ट और विलक्षण प्राप्त करना है तो बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, जैसे कि राजेश खन्ना सरीखे व्यक्ति ने आनंद के लिए छोड़ दिया था।
हर समय हमारे मन की ही हो यह सम्भव नहीं है।
अतः देश के प्रधानमंत्री को गली चौक चौराहों पर मदारी (हमारे मन) की रस्सी से बंधा वो बन्दर समझना बन्द करिये जो हर मोड़ हर चौराहे पर लोगों की मर्ज़ी के हिसाब से नाचता कूदता है।

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