Thursday, October 6, 2016

अपने गिरेबान में झांक कर देखो राहुल गाँधी. खून की दलाली का सच दिख जायेगा.

राहुल गाँधी जी, 2-3 दिसम्बर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड कम्पनी में हुए जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव ने भोपाल के 3787 निर्दोष नागरिकों को कुछ घण्टों में ही मौत के घाट उतार दिया था. और लगभग 3 लाख नागरिकों को बुरी तरह घायल किया था. आज आपको देश को यह बताना चाहिए कि भोपाल गैस का शिकार बने नीर्दोष नागरिकों के खून, उनकी लाशों की दलाली करनेवाला दलाल कौन था. उसने यह दलाली किस लालच में, किसके कहने पर क्यों की थी.?

राहुल गाँधी जी आज आपको इस सवाल का जवाब देश को इसलिए देना चाहिए क्योंकि उन 3787 निर्दोष नागरिकों की मौत का जिम्मीदार, यूनियन कार्बाइड का चेयरमैन वॉरेन एंडरसन 7 दिसम्बर को भोपाल से भागकर दिल्ली पहुंच गया था और वहां से अमेरिका भाग गया था, जहां से वो कभी वापस नहीं आया. उस समय मप्र के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बहुत साफ शब्दों में स्पष्ट किया है कि एंडरसन को भगाने का कार्य उन राजीव गाँधी के कहने पर किया गया था जो उस समय देश के प्रधानमंत्री और आपके पिता भी थे

राहुल गाँधी जी आप शायद भूल गए हो लेकिन देश नहीं भूला है 30 नवम्बर 2008 की रात.
उस रात दिल्ली में छतरपुर से आगे राधेमोहन चौक के रईसजादों की रंगीन रातों के पंचतारा अड्डे की पहचान वाले एक शानदार फार्महाउस में आपके दोस्त समीर शर्मा की शादी से पहले की रस्म "संगीत" का जश्न मनाया जा रहा था. उस जश्न में जिस समय आप मध्यरात्रि से लेकर सवेरे 5 बजे तक नाचगाने और बेहतरीन खाने-"पीने" का जमकर लुत्फ़ ले रहे थे उस समय 26 नवम्बर से 28 नवम्बर तक मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा खेली गयी खून की होली में शहीद सेना के दो कमांडों और मुम्बई पुलिस के 15 जवानों समेत मारे गए 138 हिंदुस्तानियों तथा 28 विदेशी नागरिकों में से 90% की लाशों का अंतिम संस्कार भी सम्पन्न नहीं हो पाया था. अपने माता पिता की इकलौती सन्तान, सेना के शहीद कमांडों मेजर सन्दीप उन्नीकृष्णन तथा उनके दूसरे शहीद साथी कमांडों हवलदार गजेन्द्र सिंह समेत मुम्बई पुलिस के 15 शहीद जवानों के माता पिता की आँख के आंसू भी तब तक नहीं रुके थे. देश सम्भावित युद्ध की भयानक आशंका में डूबा हुआ था.
ऐसे समय में देश के सत्ताधारी दल का भावी कर्ताधर्ता, उसका युवा सांसद जब दिल्ली के एक पंचतारा फार्महाउस में सारी रात नाच गा रहा था, मौज मस्ती में डूबा हुआ था तब सारा देश और विशेषकर उस मुम्बई हमले में शहीद सेना और पुलिस के जवानों की आत्माएं इस सवाल का जवाब अवश्य खोज रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी,यह पहला ऐसा एकमात्र उदाहरण या अपवाद नहीं था जब देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी विवश हो गए थे.
राहुल गाँधी जी, आपको शायद याद नहीं हो किन्तु यह देश आज भी नहीं भूला है और शायद कभी भूलेगा भी नहीं कि, 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में हुए 7 श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों ने 209 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 714 लोगों को घायल कर मरणासन्न अवस्था में पहुंचा दिया था. उनमें से कई लोग अपने हाथ पैर और ऑंखें खोकर जीवन भर के लिए विकलांग हो गए थे. उन श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों की जांच करने वाली देश और मुम्बई पुलिस की जाँच एजेंसियों की गहन-सघन जाँच के बाद यह सच देश के सामने आया था कि उन विस्फोटों को आतंकी संगठन सिमी ने अंजाम दिया है.
राहुल गाँधी जी, आप शायद भूल गए हैं इसलिए याद दिला दूं कि 11 जुलाई 2006 को आतंकी संगठन सिमी ने जब 209 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारा था उससे ठीक 5 दिन पहले 6 जुलाई 2006 को उत्तरप्रदेश कांग्रेस का तत्कालीन अध्यक्ष सलमान खुर्शीद सुप्रीमकोर्ट में उसी आतंकी संगठन सिमी का वकील बनकर सिमी पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने की मांग सुप्रीमकोर्ट से यह दलील देकर कर रहा था कि सिमी एक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है और आतंकवाद से उसका कोई लेनादेना नहीं है.
राहुल गाँधी जी संभवतः आपकी समझ में यह नहीं आया हो किन्तु देश भलीभांति यह समझता है कि, सलमान खुर्शीद जिस समय 6 जुलाई को सुप्रीमकोर्ट में आतंकी संगठन सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध करने की कोशिश कर रहा था उस समय आतंकी संगठन सिमी 11 जुलाई को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के अपने आतंकी षड्यन्त्र को अंतिम रूप दे रहा था. क्योंकि इतनी बड़ी आतंकी घटना को कुछ घण्टों या दिनों की तैयारी कर के अंजाम नहीं दिया जा सकता. आतंकी संगठन महीनों की तैयारी के बाद ही इतनी बड़ी साज़िश को अंजाम दे पाते हैं. वैसे भी मुम्बई के श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट सिमी द्वारा की गयी कोई पहली आतंकी वारदात नहीं थी. उससे पहले आतंकी संगठन सिमी दर्ज़नों आतंकी वारदातों में सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार चुका था.
राहुल गाँधी जी लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. सुप्रीम कोर्ट में सिमी को एक निर्दोष सामाजिक सांस्कृतिक संगठन सिद्ध कर उसपर से प्रतिबन्ध हटाने की कोशिश करनेवाले सलमान खुर्शीद को आप और आपकी पार्टी ने उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नहीं हटाया था. ऐसा करने के बजाय आप और आपकी पार्टी ने 2009 में बनी यूपीए सरकार में सलमान खुर्शीद को जब कानून मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया था तब यह देश और आतंकी संगठन सिमी का शिकार बने सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माएं यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, आपको यह भी याद दिलाना जरूरी है कि देश और देश के जवानों के खून की दलाली तथा उनके खून के दलालों की पहचान के सवाल का जवाब खोजने सोचने के लिए देशवासी उस समय भी विवश हो गए थे.जब देश की राजधानी दिल्ली में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने 13 सितम्बर 2008 को श्रृंखलाबद्ध विस्फोट कर 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था तथा 90 लोगों को घायल कर दिया था. उन आतंकवादियों को पकड़ने के लिए 19 सितम्बर को दिल्ली के बाटला हाऊस पहुंची दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा उन आतंकववादियों की गोली का शिकार होकर शहीद हो गए थे.
राहुल गाँधी जी यह देश भूला नहीं है कि उस बाटला हाऊस मुठभेड़ के तत्काल बाद आपकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने बाटला हाऊस पहुँच कर उन आतंकियों के साथ हुई दिल्ली पुलिस की मुठभेड़ को फ़र्ज़ी तथा 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों के हत्यारे इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित कर दिया था.
उन आतंकवादियों को निर्दोष घोषित करनेवाले दिग्विजय सिंह का नाम अकेला ऐसा नाम नहीं था. आपकी यूपीए की सरकार के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने स्वयम मंच से एलान कर के देश को यह बताया था कि इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों की मौत पर आपकी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी जो संयोग से आपकी मां भी हैं, फूट फूटकर रोयी थीं.
राहुल गाँधी जी आपकी समझ में भले ही ना आया हो लेकिन इंडियन मुजाहिदीन के उन आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए शहीद इंस्पेक्टर मोहनचन्द्र शर्मा तथा दिल्ली के 30 निर्दोष हिंदुस्तानियों की आत्माओं के साथ ही साथ इस देश की जनता भी यह देख और समझ रहीं थीं कि हमारे "खून की दलाली" किसे कहते हैं.? और हमारे खून के दलाल कैसे होते हैं.?
राहुल गाँधी जी, जब अपनी स्पेनिश गर्लफ्रेंड के साथ लन्दन के बर्मिंघम क्रिकेट स्टेडियम में क्रिकेट विश्वकप का लुत्फ़ उठाते हुए आपकी तस्वीरें और खबरें देश तथा दुनिया के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में छपी थीं उस समय देश की सेना के जवान कारगिल युद्ध में अपने खून की गंगा बहाकर पाकिस्तानी दुश्मनों का मुक़ाबला कर रहे थे.
ऐसे समय में उस समय की देश की सबसे बड़ी और मुख्य विपक्षी पार्टी के निर्विवाद इकलौते वारिस के लन्दन के क्रिकेट ग्राउंड में गुलछर्रे उड़ाते चित्रों और समाचारों को देखने पढ़ने के बाद कारगिल में शहीद हुए सैकड़ों जवानों की आत्माओं के साथ ही साथ देश भी यह सोचने के लिए विवश हो गया था कि हमारे "खून की दलाली" करनेवाले हमारे खून के दलाल कौन हैं.?

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