Thursday, November 24, 2016

पहले संगठित लूट के मायने मालूम करो मनमोहन फिर बोलो

राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा आक्रमण करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 500 और 1000 के नोटों पर रोक के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णय को संगठित लूट बताते हुए चेतावनी दी कि नोटबंदी के नतीजे खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास हिला है. इस कदम से आरबीआई एक्सपोज हुआ है.  राज्यसभा में मनमोहन सिंह के इस बयान ने देश के जख्मों पर तेज़ाब मलने का काम किया है...
प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुए लगभग 12 लाख करोड़ के 2G CWG कोयला घोटालों सरीखी अनेकों बहुप्रचारित संगठित लूट का जिक्र यहां आवश्यक नहीं क्योंकि जनता के धन की इन बेशर्म बर्बर संगठित लूटों से पूरा देश भलीभांति परिचित है. अतः देश की संगठित लूट के उन प्रकरणों को मनमोहन सिंह को याद कराना आवश्यक है जिसके जिम्मेदार वो स्वयम थे.
देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संभवतः संगठित लूट के मायने नहीं मालूम हैं. क्योंकि यदि उनको इसके मायने मालूम होते तो कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 के नोटों पर रोक को वो संगठित लूट नहीं कहते. अतः जनता के धन की संगठित लूट किसे कहते हैं और वो क्या और कैसे होती है.? मनमोहन सिंह को यह याद दिलाना और बताना आज आवश्यक हो गया है. 
इस देश में सरकार की आँख कान नाक के नीचे हुई बैंकों में जमा जनता के धन की सबसे बड़ी और संगठित लूट तब हुई थी जब मनमोहन सिंह इस देश के वित्तमंत्री हुआ करते थे और बैंकों में जमा जनता के धन की रक्षा की जिम्मेदारी उनकी थी. मनमोहन सिंह भले ही भूल गए हों या भूलने का पाखण्ड करते हों लेकिन देश उस जघन्य लूट को नहीं भूला है जब कुछ सट्टेबाजों के गिरोह ने हर्षद मेहता नाम के अपने सट्टेबाज सरगना के साथ मिलकर 1992 में देश के बैंकों में जमा गरीब जनता की गाढ़ी कमाई के लगभग 36 हज़ार करोड़ रू लूट लिए थे. उन सट्टेबाजों की लूट का सिलसिला यहीं नहीं थमा था. बैंकों से लूटी गयी उस रकम को हथियार बनाकर उन सट्टेबाज लुटेरों ने देश के शेयर बाजार में इतनी भयंकर लूटपाट की थी कि शेयर बाजार इतनी बुरी तरह ढहा था कि जनता के लाखों करोड़ रू रातोंरात मिटटी में मिल गए थे और देश के सैकड़ों लोगों ने आत्महत्या करके मौत को गले लगा लिया था. मनमोहन सिंह और उनकी कांग्रेसी फौज को यदि मालूम नहीं हो तो बताना चाहूंगा कि देश के वित्तमंत्री की हैसियत से शेयर बाजार पर निगरानी की जिम्मेदारी भी मनमोहन सिंह की ही थी.
मनोमोहन सिंह ने कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 के नोटों पर रोक के नतीजे खतरनाक होने की चेतावनी देते हुए जब यह कहा कि इस रोक से बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास हिला है. इस कदम से आरबीआई एक्सपोज हुआ है. तो उनके इस बयान पर याद आया कि 2009 में एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में देश में 1,69,000 करोड़ रू के जाली नोटों के चलन में होने की बात उजागर की थी. उसी कालखण्ड में देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर जब सीबीआई ने छापा डाला था तो उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले थे. दरअसल उस समय सीबीआई ने जब नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा था कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. लेकिन इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया था. मनमोहन सिंह को क्या यह याद नहीं कि उस समय देश की सरकार के प्रधानमंत्री वो स्वयम थे. लेकिन उस सरकार ने देश और देश की संसद को अँधेरे में रखा था. सिर्फ यही नहीं सीबीआई की जाँच में यह भी उजागर हुआ था कि जिस इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.की कम्पनी डे-ला-रू को मनमोहन सिंह की सरकार ने भारतीय करेंसी छापने का ठेका दे रखा था वही डे-ला-रू पाकिस्तान की आईएसआई के लिए नकली भारतीय करेंसी छापने का भी धंधा कर रही थी.? लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार ने यह शर्मनाक सच्चाई भी देश और देश की संसद से छुपाने का कुकृत्य किया था. जबकि उस समय यह खबरें देश और दुनिया की मीडिया में उजागर हो गयी थीं. आईएसआई के लिए नकली भारतीय करेंसी छापने का जघन्य अपराध कनेवाले इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.के खिलाफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने क्या और कैसी कानूनी कार्रवाई कब की थी.? देश को यह आजतक मालूम नहीं हुआ है.
अतः मनमोहन सिंह को यह भी याद दिलाना बताना आवश्यक है कि कालेधन के खात्मे के लिए 500 और 1000 करोड़ के नोटों पर रोक के कारण देश के बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास नहीं हिलता है ना ही आरबीआई एक्सपोज होता है. इसके बजाय जब देश को यह पता चलता है कि जो आदमी हमारी असली करेंसी छापता है वही आदमी आईएसआई के लिए हमारी नकली करेंसी भी छाप रहा है तथा सीबीआई के छापे में आरबीआई के वाल्ट से भी नकली नोट निकल रहे हैं तब देश के बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास बुरी तरह हिलता है और आरबीआई की साख तार तार होती है. वो बुरी तरह एक्सपोज भी होता है.
देश मनमोहन सिंह और कांग्रेसी फौज को आज यह भी याद दिलाना चाहता है कि आईएसआई के साथ मिलकर एक इटैलियन नागरिक रोबेर्टो ग्योरी.जब देश की अर्थव्यवस्था की संगठित लूट कर के उसके साथ जघन्य बलात्कार कर रहा था तब इस देश की बागडोर मनमोहन सिंह के हाथ में ही थी.
अतः राज्यसभा में मनमोहन सिंह जब 500 और 1000 के नोटों पर रोक के नरेंद्र मोदी के फैसले को संगठित लूट बता रहे थे तब संभवतः अपने गिरेबान में झांकना भूल गए थे. क्योंकि यदि उन्होंने ऐसा किया होता तो उन्हें यह मालूम हो जाता कि इस देश की अबतक की सबसे बड़ी संगठित लूट का जिम्मेदार 500 और 1000 के नोटों पर रोक का नरेंद्र मोदी का फैसला नहीं बल्कि देश के वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल है.




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