Tuesday, May 10, 2016

संजो लीजिये इन क्षणों को, कंक्रीट जंगलों में बदलते शहरों में पता नहीं ये कल हो न हो...!!!

अपनी छत, अपने आंगन, अपने द्वार और चौबारे में चिड़ियों की चहचहाट, गिलहरी की भागदौड़ हम सबको आकर्षित करती है, इनके करीब जाने को हर मन उतावला रहता है. दुर्भाग्यवश इनकी संख्या तेजी से कम हो रही है. गर्मी के मौसम में हर साल प्यास के चलते हजारों पक्षियों की मौत हो जाती है.
40 से 45 डिग्री तापमान इन दिनों सिर्फ हमको आपको ही नहीं बल्कि मूक पक्षियों को भी प्यास से बेहाल कर रहा है.
आजकल सूरज की आग में तप रहे कंक्रीट के जंगलों में परिवर्तित हो चुके शहरों में चिड़ियां एक पेड़ से अब दूसरी पेड़ पर नहीं बल्कि छत पर पानी ढूंढती है. आकाश में उड़ती है तो बादलों से अपनी बात कहती है. मॉनसून तक अपना पैगाम ले जाने को कहती है.
मॉनसून आ गया है. यही दिलासा सुबह सुबह चिड़ियों की आवाज को मदमस्त करता है. सुबह के जीवन का संगीत बनता है. थोड़ी मिठास हम भी इसमें घोल सकते हैं. पानी का चंद हिस्सा चिड़ियों के लिए छत पर रख सकते हैं. अपनी छत/आँगन/चौबारे/चहारदीवारी पर चिड़ियों, गिलहरियों की धमाचौकड़ी अनिवार्य व नियमित कर सकते हैं.
गर्मी का मौसम चल रहा है, ऐसे में बढ़ते तापमान से निजात दिलाने का सबसे सरल साधन पानी है. पानी न सिर्फ इंसानों के लिए ज़रूरी है, बल्कि पक्षियों के लिए भी बेहद ज़रूरी है.
अपने घरों के आंगन छतों और चहारदीवारियों पर कुछ जलपात्र और अन्न के कुछ कण रखकर हम इन मूक पक्षियों की बड़ी सहायता कर सकते हैं. मित्रों ऐसा करके हम मात्र इनकी सहायता ही नहीं करते बल्कि स्वयं के लिए कुछ सुखद क्षणों की पूँजी भी संचित करते हैं.
अपने घर की चहारदीवारी पर रखे गए जलपात्र व अन्नपात्र पर चिड़ियों और गिलहरियों की रोजाना की अठखेलियां देखना सुखद अनुभूति से सराबोर कर देता है.
आज सवेरे मैंने ऐसे ही कुछ क्षणों को अपने मोबाइल के कैमरे में संजो लिया.

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