Sunday, May 15, 2016

हेमंत करकरे एक शहीद.? बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी...

26 नवंबर 2008 की रात मुंबई की गिरगाव चौपाटी रोड पर रुकी कार के भीतर अत्याधुनिक आग्नेयास्त्रों से लैस वो 2 खूंखार आतंकी बैठे थे जो उस रात मुंबई की सडकों पर खून की होली खेलने निकले थे और पिछले 2 घंटों में ही मुंबई CST सहित कई स्थानों पर लगभग 60-70 निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार चुके थे.
गिरगांव चौपाटी पर उस रात उस कार का रास्ता रोक कर खड़ी हुई मुंबई पुलिस की टीम के सदस्य असिस्टेंट सब इन्स्पेक्टर तुकाराम ओम्बले इस स्थिति को अच्छी तरह जान समझ रहे थे. हालांकि उनके हाथ में पिस्तौल या रिवॉल्वर के बजाय केवल लाठी थी और अच्छी या ख़राब बुलेटप्रूफ जैकेट तो छोडिए, उनके बदन पर बुलेटप्रूफ जैकेट ही नहीं थी.
लेकिन इसके बावजूद तुकाराम ओम्बले ने अपने कदम कार की तरफ और अपने हाथ उन आतंकियों के गिरेबान की तरफ बढ़ा दिए थे. जवाब में आतंकियों की बंदूकों से बरसी गोलियों से छलनी होने के बावजूद उन आतंकियों की कार में घुस गए तुकाराम ओम्बले ने उनमें से एक आतंकी का गिरेबान तबतक नहीं छोड़ा था जबतक उसको कार से बाहर घसीटकर सड़क पर पटक नहीं दिया था. इसी आतंकी की पहचान बाद में अजमल कसाब के नाम से हुई थी.
इसी दिन 26/11 की रात, गिरगांव चौपाटी की इस घटना से लगभग 45 मिनट पहले ही आतंकी कसाब और उसके आतंकी साथी से 8 पुलिस कर्मियों की टीम का सामना हो गया था. टीम का नेतृत्व हेमंत करकरे कर रहे थे. करकरे और उनकी टीम के पास तुकाराम ओम्बले की तरह केवल लाठी नहीं बल्कि आटोमैटिक पिस्तौलें और राइफलें थीं. करकरे और उनकी टीम तुकाराम ओम्बले की तरह केवल सूती कपडे की सरकारी वर्दी नहीं पहने थी, बल्कि बाकायदा बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट पहने हुए थे. बुलेट प्रूफ घटिया थी कहने से काम नहीं चलेगा क्योंकि वो जैकेट चाहे जितनी घटिया रही हो किन्तु तुकाराम ओम्बले की सूती कपड़े वाली सरकारी वर्दी से तो हज़ार गुना बेहतर रही होगी.
सिर्फ यही नहीं, गिरगांव चौपाटी पर हुई मुठभेड़ में तो आतंकी कार में, आड़ लेकर बैठे थे जबकि तुकाराम ओम्बले के पास खुली सड़क पर किसी तिनके तक की ओट लेने की गुंजाईश नहीं थी. जबकि करकरे और उनकी टीम की स्थिति इसके ठीक विपरीत थी.
उनके सामने दोनों आतंकी खुली सड़क पर बिना किसी ओट के खड़े थे और करकरे अपनी टीम के साथ कार के भीतर थे इसके बावजूद उन दोनों आतंकियों ने करकरे समेत उनकी पूरी टीम को मौत के घाट उतार दिया था और करकरे व उनकी पूरी टीम मिलकर उन दोनों को मारना तो दूर उनको घायल तक नहीं कर सकी थी.
जबकि निहत्थे तुकाराम ओम्बले ने सीने पर गोलियों की बौछार सहते हुए भी कसाब सरीखे आतंकी को कार के भीतर घुसकर बाहर खींच के सड़क पर पटक दिया था. यह था वो ज़ज़्बा और जूनून जिसने तुकाराम ओम्बले को शहादत के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दिया.
करकरे और उनकी टीम उन दो आतंकियों का सामना क्यों नहीं कर सकी थी?
इस सवाल का जवाब देश को आज तक नहीं मिला. संकेत देता हूँ कि जवाब क्यों नहीं मिला था.
दरअसल उनके रक्त के नमूने जेजे अस्प्ताल ने इस बात की जांच के लिए फोरेंसिक लैब में भेजे थे कि क्या उन्होंने शराब पी रखी थी?
फोरेंसिक लैब की जांच का परिणाम क्या निकला था.?
देश को आजतक यह भी नहीं बताया गया.
मित्रों यह कोई ऐसा रहस्य नहीं था जिसके उजागर करने से देश की सुरक्षा को कोई खतरा उत्पन्न हो जाता. लेकिन देश को यह नहीं बताया गया.
अतः मेरा स्पष्ट मानना है कि, उस रात यदि वास्तव में कोई शहीद हुआ था, जिसकी शहादत के समक्ष पूरा देश सदा नतमस्तक होता रहेगा, तो वो नाम था तुकाराम ओम्बले का.
जबकि हेमंत करकरे और उनकी टीम की मौत उस रात उन आतंकियों के हाथों मारे गए अन्य नागरिकों की तरह ही हुई एक मौत मात्र थी. क्योंकि शहीद वो कहलाता है जो तुकाराम ओम्बले की तरह सामने खड़े दुश्मन पर जान की परवाह किये बिना टूट पड़ता है. इस आक्रमण में हुई उसकी मौत को देश और दुनिया शहादत कहती है. यदि हेमंत करकरे और उनके साथी शहीद हैं तो फिर उस रात आतंकियों द्वारा मारा गया हर नागरिक शहीद है.
आज यह विवेचन इसलिए क्योंकि कांग्रेसी इशारे पर साध्वी प्रज्ञा के साथ हेमंत करकरे द्वारा किये गए राक्षसी अत्याचारों और फर्ज़ीवाड़े की अदालत और जांच में उडी धज्जियों के बाद उजागर हुई अपनी साज़िशों पर पर्दा डालने के लिए कांग्रेस ने यह विधवा विलाप प्रारम्भ किया है कि साध्वी प्रज्ञा की रिहाई से शहीद हेमंत करकरे और उनकी शहादत का अपमान हुआ है.


मित्रों इस देश में अब शहादत का सर्टिफिकेट वो कांग्रेस नहीं बाँट सकती जो सरकारी किताबों में भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद को आतंकवादी और नेहरू को महान स्वतंत्रता सेनानी लिखकर देश के बच्चों के मन में ज़हर घोलती रही हो.

3 comments:

  1. Congress,sonia was trying to give bhagwa atankwad to 26,11,mumbai ATTACK,,but good blessing,we got kasab alive,,,

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  2. A preset gameplan to disgrace Sanatan religion

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  3. कांग्रेस तो खुद फिरगीं बीज से जन्मी भीरत विरोधी संस्था है

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